Hindi Family Story:
सरिता, बीस साल पहले, नवंबर (प्रथम) 2005
अमेरिका से लौट कर विलास मोहिनी का बदला रूप देख कर चकित रह गया और जब उस पर अपना अधिकार जताना चाहा तो मोहिनी ने पतिपत्नी की जो परिभाषा उसे बतलाई उस से वह घर में ही मात्र एक अतिथि बन कर रह गया.
जमींदार घराने का इकलौता चांद था विलास. सोने पर सुहागा यह कि आईआईटी से इंजीनियरिंग करने के बाद उस ने आईआईएम हैदराबाद से एमबीए की परीक्षा गोल्ड मैडल ले कर पास की थी. मल्टीनैशनल कंपनियों से ले कर बड़बड़े धनकुबेर और नौकरशाह उस के लिए पलकें बिछाए बैठे थे. कई सुंदरसलोनी युवतियों के मातापिता या अभिभावकों में विलास की मुंहमांगी कीमत अदा करने की होड़ सी लगी हुई थी.
ललिता को पसंद आई अपने बचपन की सहेली रुक्मणि की इंटर पास बेटी मोहनी. संचार माध्यमों के विशेषज्ञ विलास के मन में जीवनसंगिनी के रूप में किसी हाईटैक बाला की मूर्ति स्थापित थी. विलास ने दबे स्वर में मां से अपनी इच्छा जाहिर भी की थी.
‘‘बेटा, मुझे जिंदगी में कभी कोई सुख नहीं मिला. तेरे पिता तुझे दुनिया में अकेला छोड़ गए थे. अपनी नौकरी के चक्कर में तू भी मेरे साथ गांव में नहीं रह सकता. कम से कम मुझे कुछ दिनों तक बहू का सुख तो भोग लेने दे. अगर तू अपनी तरह हाईटैक लड़की ले आया तो वह एक दिन भी मेरे साथ गांव में नहीं टिकेगी,’’ ललिता के तर्क ने विलास के सारे तर्कों को पराजित कर दिया था.
शादी के 2 साल बाद ही विधवा हुई मां ने विलास को पालने के लिए अपनी सारी इच्छाओं की बलि दे दी थी. अब उन की अकेली इच्छा ढेर सारे पोतेपोतियों को खिलाने की थी. विलास जानता था कि उस की सोच वाली बीवी मां की इच्छा पूरी नहीं कर सकती, इसलिए उस ने हथियार डाल दिए थे.
मिलन रात्रि की बेला पर विलास ने नख से शिख तक स्वर्णाभूषणों से सजी मोहिनी के सुंदरसलोने चेहरे को देखा तो अपलक देखता ही रह गया. उस को इस तरह टकटकी लगा कर घूरते हुए देख कर मोहिनी की पलकें लाज से झकी जा रही थीं. घबराहट में पैर के अंगूठे से फर्श को कुरेदने का असफल प्रयास करती हुई वह लाजवंती, मां, की पहली सीख ही भूल गई कि पति का प्रथम स्पर्श उस के चरणों को छू कर करना है, उसे याद ही न रहा.
विलास को भी कहां कुछ पता था. हां, अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए किसी अनाड़ी की भांति वह मोहिनी के शरीर से भारीभरकम आभूषणों का बोझ कम करने लगा लेकिन 4 तोले के रत्नजडि़त मांगटीके को केशों से अलग करने में ही उस की सारी प्रबंधन योग्यता असफल सिद्ध हो गईर्. टीके के साथ कई केश भी उखड़ कर हाथ में आ गए तो कंचनकाया की सिसकारी पर वह झेंप कर रह गया.
रूपगर्विता की नथ के साथ काफी माथापच्ची करने के बाद भी जब उसे खोलने की तरकीब समझ में न आई तो उस के कंठ में पड़े 20-20 तोले के चंद्रहार और रत्नहार को उतार कर उस ने राहत की सांस ली. बावजूद उस के आसानी से खुलने की सफलता के बाद वह मोहिनी के हाथों की उंगलियों में फंसी हथफूलों की लडि़यों से उलझ कर रह गया. एकएक लड़ी को सुलझना उसे गणित के जटिल प्रश्नों को सुलझने से भी कठिन लग रहा था.
संगिनी के स्पर्श की ऊष्मा विलास के तनमन को बेचैन करती जा रही थी. एक झटके के साथ कमरे में पड़ी 50 तोले की करधनी को उछाल कर फेंकने के बाद उस ने जब मोहिनी के चेहरे की ओर देखा तो कसमसा कर रह गया. भारीभरकम नथ और कानों में झल रहे बड़बड़े कर्णफूल अभी भी मुंह चिढ़ा रहे थे.
‘‘उफ, यह क्या बेवकूफी है. तुम से किस ने इतने सारे जेवर पहनने के लिए कहा था,’’ न चाहते हुए भी वह झल्ला उठा.
पहली ही रात में पति के इस तेवर को देख कर घबराहट में मोहिनी के चेहरे की लाली कुछ और बढ़ गई और माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं. विलास को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था. सो, पसीने की उन बूंदों को पोंछते हुए उस ने एक भरपूर चुंबन पत्नी के चेहरे पर जड़ दिया. उस की अनुगूंज मोहिनी के तनमन में गूंज गई और 2 अलगथलग पथिकों को एक होते देर न लगी.
तृप्ति के सागर में गोते लगाने के बाद विलास गहरी निद्रा की आगोश में चला गया. सुबह चूडि़यों की खनखनाहट सुन उस की नींद खुली. जमींदार घराने की बहू पूर्ण शृंगार किए सामने खड़ी थी. उस के तन पर रात से भी अधिक आभूषण चमक रहे थे.
‘‘नीचे चलिए, मांजी काफी देर से नाश्ते के लिए आप की प्रतीक्षा कर रही हैं,’’ लाज से बोझिल अपनी पलकों को ऊपर उठाते हुए मोहिनी ने कहा.
‘‘तुम ने फिर इतने सारे जेवर क्यों पहन लिए?’’ बिना किसी भूमिका के विलास ने सीधा प्रश्न किया.
‘‘मांजी ने पहनाए हैं,’’ आनंद के अतिरेक में डूबी मोहिनी ने बताया.
‘‘मुझे उलझन होती है, उतारो इन्हें,’’ विलास झल्ला उठा.
‘‘ये मांजी का आशीर्वाद और मेरे सुहाग की निशानी है,’’ नववधू सहम उठी.
‘‘तुम्हें जीवन सुहाग की निशानी के साथ नहीं, सुहाग के साथ गुजारना है और तुम्हारे सुहाग को यह सब तामझम पसंद नहीं है, अच्छी तरह समझ लो,’’ विलास ने तेज स्वर में कहा और तौलिया उठा कर नहाने चला गया.
विलास के मन में जीवनसाथी के रूप में जींसटौप पहनने वाली आधुनिका की छवि कैद थी. भारीभरकम साड़ी और आभूषणों से एक दिन में ही उस का मन घबरा उठा था. उधर मोहिनी उस माहौल से आई थी जहां सोने के गहने ही नारी की प्रतिष्ठा के प्रतीक माने जाते हैं. अपनी हैसियत से वंचित होना दुख का स्वाभाविक कारण है. मोहिनी भला अपवाद कैसे हो सकती थी. सिसकारियां भरते हुए वह पति की आज्ञा का पालन करने लगी.
उस की सिसकारियों की गूंज ललिता के कानों तक पहुंच गई थी. मन में अनेक आशंकाएं लिए जब वह विलास के कमरे में पहुंची तब मोहिनी अपने शरीर का अंतिम आभूषण उतार रही थी.
‘‘बहू, यह क्या अपशकुन कर रही हो. सुहागन हो कर शृंगारहीन?’’ ललिता का स्वर कांप उठा.
‘‘मांजी, यह इन की आज्ञा है,’’ मोहिनी फफक उठी.
असलियत जान ललिता ने विलास को खूब फटकारा और अपने हाथों से एकएक आभूषण पहना कर बहू को किसी राजकुमारी की भांति सजा दिया. विलास की एक न सुनी. मोहिनी उच्चशिक्षित विलास के मानसिक स्तर की न थी, फिर भी उस ने यह सोच कर समझता कर लिया था कि वह उसे अपने अनुकूल ढाल लेगा लेकिन मोहिनी उस के बजाय मांजी के अनुकूल ढलती जा रही थी.
विलास का मन करता कि पत्नी को ले कर कहीं घूमने जाए किंतु उसे घर में रह कर मांजी की सेवा करने में ज्यादा आनंद आता था. वह चाहता था कि मोहिनी उस के साथ संगीत की तेज धुनों पर नाचेगाए लेकिन उसे घर के मंदिर में भजन गाने में ज्यादा आनंद आता था. विलास की इच्छा मोहिनी को आधुनिका बनाने की थी लेकिन उसे कर्तव्यों और परंपराओं का पालन करने में असीम शांति मिलती थी.
मनपसंद बहू पा कर ललिता धन्य हो उठी थीं तो विलास का मन उचटने लगा था. वह छुट्टियां खत्म होने से पहले ही दिल्ली लौट गया. मां को बताया कि कंपनी उसे कुछ दिनों के लिए अमेरिका भेज रही है, इसलिए ट्रेनिंग करना जरूरी है. भोलीभाली मोहिनी पति के मन की बात भांप न सकी थी.
दिन, सप्ताह कर के 3 महीने बीत गए. ललिता रोज पूछतीं, ‘‘विलास बहू, क्या कोई चिट्ठी आई?’’
विलास बहू इनकार में सिर हिला देती और कहती, ‘‘मांजी, बहुत काम होगा. चिट्ठी लिखने का समय न निकाल पाते होंगे.’’
एक दिन चिट्ठी भी आ गई, लिखा था कि अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई है. अगले सप्ताह वहां जा रहा हूं. अंत में विलास ने मां से सफलता का आशीर्वाद मांगा था.
सन्न रह गईं ललिता. 4-6 महीने के लिए अमेरिका जाने की बात और थी लेकिन वहां नौकरी करने का मतलब था कि बेटा अब वापस नहीं आएगा.
‘‘विलास बहू, तैयारी कर. कल ही दिल्ली चलना है,’’ ललिता ने फैसला सुनाया.
‘‘किसलिए?’’
‘‘विलास को रोकने. वह मुझ से और तुझ से मिले बिना भला कैसे जा सकता है. उसे रोकना होगा,’’ ललिता ने इस उम्मीद से कहा मानो विलास बहू के मन की बात कह रही हों.
‘‘वे आप के बेटे हैं. आप को उन के पास जाने का हक है,’’ विलास बहू ने धीमे स्वर में कहा.
‘‘और तेरा हक?’’
‘‘मेरा हक यह है कि वे मुझे लेने आएं, तभी जाऊंगी,’’ स्वाभिमानिनी ने फैसला सुनाया.
सास ने बहुत ऊंचनीच समझई पर विलास बहू न मानी तो न मानी. एक ही रट थी कि अपना हक भीख में नहीं लेगी. जिस की जिम्मेदारी है वह निभाए तो ठीक, न निभाए तो जिस देहरी पर डोली आई है वहीं जिंदगी काट देगी.
बहू की बातों ने मां का स्वाभिमान भी जगा दिया था. न विलास ने बुलाया और न ही वह मिलने गई. उस ने आशीर्वाद मांगा था, सो, पत्र लिख कर आशीर्वाद भेज दिया.
विलास चला गया लेकिन विलास बहू ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी. भंडारगृह से ले कर अनाजगोदाम तक का पूरा हिसाब सौंप कर ललिता निश्चिंत हो गई थीं. क्या बनना है, क्या खाना है से ले कर खेतों में क्या बोना है और कब फसल बेचनी है, सारी बातें नौकर और मुनीम अब उसी से पूछने लगे थे. विलास बहू की योग्यता से हुलस कर अकसर ललिता कहतीं कि तू बहू नहीं, बेटा है मेरा.
तर्कों को व्यावहारिकता की कसौटी पर कसती हुई एक दिन मोहिनी बोली, ‘‘जानती हैं मांजी, वे हमें छोड़ कर क्यों चले गए?’’
‘‘समय खराब था उस का,’’ ललिता ठंडी सांस भर कर बोलीं, ‘‘हीरे को पहचान न सका.’’
‘‘हीरा तो कोयला होता है, मांजी, अगर उसे तराशा न जाए तो न पहचानने का दोष भला दूसरे पर कैसे लगाया जा सकता है?’’ विलास बहू के चेहरे पर दर्द की रेखाएं उभर आईं.
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘बताइए, मांजी, क्या कमी है मेरे अंदर? रंग, रूप, गुण, आकर्षण… क्या कुछ नहीं है मेरे पास,’’ विलास बहू ने सास की आंखों में झंका. वहां असमंजस के भाव देख कर बोली, ‘‘बस, एक ही कमी थी मुझ में. समय के साथ न चल सकी. उन की जरूरत के मुताबिक खुद को न ढाल सकी लेकिन मैं चाहती हूं किसी और के साथ ऐसा न हो, इसलिए मैं…’’
कहतेकहते मोहिनी रुक गई. ललिता बहुत ध्यान से बहू की बात सुन रही थीं. उसे चुप होता देख बोलीं, ‘‘इसलिए क्या कहना चाहती हो तुम?’’
‘‘इस पूरे इलाके में लड़कियों के लिए एक भी डिगरी कालेज नहीं है. मांजी, हमारे पास किसी चीज की कमी भी नहीं है. अगर आप इजाजत दें तो पिताजी के नाम एक डिग्री कालेज यहां खोल दिया जाए,’’ विलास बहू ने मन की इच्छा बताई.
ललिता को सोच में डूबा देख मोहिनी बोली, ‘‘मांजी, क्या सोचने लगीं?’’
‘‘मैं स्कूल खोलने की अनुमति एक शर्त पर दे सकती हूं कि तुझे भी उस में पढ़ना होगा.’’
‘‘मैं भला कैसे पढ़ सकती हूं,’’ विलास बहू का स्वर कांप उठा.
‘‘बेटा, अभी तेरी उम्र ही क्या है. अगर मैं तुझे ब्याह कर न ले आती और रुक्मणि तुझे पढ़ाने के लिए शहर भेजने की हिम्मत जुटा पाती तो अभी तू पढ़ ही रही होती,’’ ललिता ने स्नेह से विलास बहू के सिर पर हाथ फेरा.
‘‘तब की बात और होती, मांजी, लेकिन अब शादी के बाद…’’
बहू की बात बीच में ही काट कर ललिता बोली थीं, ‘‘तुझे पढ़ना होगा बहू और विलास से ज्यादा पढ़ना होगा. यह साबित करना होगा कि तू किसी मामले में उस से कम नहीं है.’’
इतना कहतेकहते ललिता की आंखों से आंसू टपकने लगे. उन के मन में इस बात की फांस थी कि उन के ही कारण बेटा, बहू को छोड़ गया है. उसे पढ़ालिखा कर अब वे अपना प्रायश्चित्त करना चाहती थीं.
अगले ही दिन सासबहू शहर पहुंच गईं. विलास बहू ने शहर के सब से बड़े आर्किटैक्ट से बात की. ललिता ने पुरखों के खजाने का मुंह खोल दिया. देखतेदेखते ही कालेज का भवन बनने लगा. विलास बहू ने दिन देखा न रात, बस, एक ही धुन समाई थी कि इस साल कालेज शुरू कर देना है. वह अपने एक पुराने प्राध्यापक पांडेजी को बुला लाई. कालेज चलाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई.
सत्र शुरू होते ही विलास बहू ने भी बीएससी में दाखिला ले किया. वह एक छात्रा की तरह हर रोज कक्षाओं में जाती और खाली समय में कालेज का प्रबंधन संभालती. वह कालेज में कंप्यूटर की कक्षाएं भी शुरू करना चाहती थी पर ललिता काफी खर्चा कर चुकी थीं. कंप्यूटर खरीदने के लिए अब उन के पास पैसे न थे.
इस के अलावा गांव में बिजली और टैलीफोन भी न था लेकिन कहते हैं न जहां चाह वहां राह. विलास बहू ने अपनी 50 तोले की करधनी बेच दी. एक जनरेटर और 4 लैपटाप आ गए. दूसरी लड़कियों के साथ वह खुद भी कंप्यूटर सीखने में जुट गई. उस की लगन देख कर सभी दंग थे. प्रधानाचार्य पांडेजी तो कहते कि विलास बहू मोहिनी साधना कर रही है.
देखते ही देखते 5 साल कब बीत गए, पता ही न चला. प्रथम श्रेणी में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर विलास बहू उर्फ मोहिनी राय चौधरी अब उसी कालेज में लैक्चरर हो गई थी लेकिन लड़कियों से ले कर टीचर स्टाफ तक के लोग उसे मैडम के बजाय विलास बहू ही कहते थे. मोहिनी राय चौधरी को भी इस में कोई आपत्ति न थी.
अमेरिका जाने के बाद के सालों में बढ़ते समय के साथ विलास के पत्रों की घटती संख्या शून्य तक पहुंच गई. फिर एक दिन विलास का नहीं, उस के वकील का पत्र आया. वह अमेरिका में अपनी एक सहयोगी नैंसी से शादी करना चाहता था, इसलिए उसे मोहिनी से तलाक चाहिए था. नोटिस देखते ही ललिता हायहाय कर उठीं लेकिन विलास बहू ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की.
‘‘वह इस तरह दूसरी शादी कर तेरी तपस्या भंग नहीं कर सकता. कुछ कर बेटा. इस नोटिस का जवाब भेज. सुना है विदेश की कोर्टकचहरी में सही न्याय मिलता है. तुझे न्याय जरूर मिलेगा,’’ ललिता कंद्रन कर उठीं.
‘‘मांजी, कोर्ट के आदेश से जमीनजायदाद हासिल की जाती है, दांपत्य सुख नहीं,’’ विलास बहू ने उत्तर दिया और अपने कमरे में चली गई.
ललिता ने मुनीम को बुला कर आदेश दिया, ‘‘शहर जा कर विलास को फोन करो कि मेरी तबीयत बहुत खराब है. अगर फौरन न आया तो अंतिम दर्शन भी न कर पाएगा.’’
मुनीम समझ गया कि जरूर कोई अनहोनी हो गई है, फौरन शहर चला गया. लौट कर बताया कि विलास बाबू अगली उड़ान पकड़ कर भारत आ रहे हैं. परसों तक गांव पहुंच जाएंगे.
ललिता ने हुलसते हुए विलास बहू को खबर सुनाई, ‘‘एक बार वह नालायक आ जाए, फिर कभी वापस नहीं जाने दूंगी. तेरे कदमों में बांध कर न डाल दिया तो मेरा नाम बदल देना.’’
‘‘मांजी, यह आप ने अच्छा नहीं किया. झठ के सहारे गढ़े गए संबंध कभी प्रगाढ़ नहीं हो सकते,’’ विलास बहू ने धीमे स्वर में कहा.
‘‘अरे, तेरी मति मारी गई है. पति दूसरा ब्याह करने की सोच रहा है और तू पत्थर बनी बैठी है,’’ ललिता फट पड़ीं और उस दिन उन्होंने विलास बहू को खूब खरीखोटी सुनाई.
वह सिर झका कर चुपचाप सुनती रही. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला. मांजी का दर्द समझती थी. कुछ कह कर उसे और नहीं बढ़ाना चाहती थी.
जिस दिन विलास को आना था, मोहिनी में कोई आतुरता न थी. हमेशा की ही तरह उठी. रसोई में जा कर विलास की पसंद का खाना बनाया और किताबें उठा कर कालेज चली गई.
शाम का धुंधलका होने पर घर के सामने एक जीप आ कर रुकी. ललिता दौड़ कर बाहर आईं. विलास जीप से नीचे उतर रहा था. उन्हें देखते ही चौंक पड़ा, ‘‘मां, तुम ठीक तो हो. मुनीमजी कह रहे थे कि…’’
‘‘भीतर चल, फिर सब बतलाती हूं,’’ ललिता ने हुलस कर उस की बांह थामी और भीतर लिवा लाईं.
विलास अब तक असलियत समझ गया था. मोहिनी पर नजर पड़ते ही फट पड़ा, ‘‘तो इस के कहने पर तुम ने झठा फोन करवाया था.’’
‘‘मैं ने परसों ही ईमेल कर दिया था कि मांजी की तबीयत बिलकुल ठीक है, आप अगर अपने घर आना चाहें तो आराम से आएं,’’ मोहिनी ने धीमे स्वर में सफाई दी.
‘‘ईमेल,’’ विलास ने दांत भींचे, फिर बोला, ‘‘जानती हो ईमेल क्या होता है, किसी पत्रिका में नाम पढ़ लिया और सोचती हो कि मैं रोब खा जाऊंगा?’’
‘‘बहू, अपने ‘लौलीपौप’ पर दुनियाभर में ईमेलसीमेल भेजती रहती है,’’ ललिता ने फौरन बहू का पक्ष लिया.
‘‘मांजी, लौलीपौप नहीं लैपटौप से ईमेल किया जाता है,’’ मोहिनी ने धीमे स्वर में संशोधन किया.
विलास बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहता था, इसलिए चुप हो गया. मोहिनी ने उस का सामान अपने कमरे में लगवा दिया. अपना सामान एक दिन पहले ही उस ने वहां से हटवा दिया था.
विलास जब कमरे में पहुंचा तो उस का लैपटौप मेज पर रखा हुआ था. दुनिया से संपर्क बना रहे, इसलिए वह अमेरिका से उसे साथ ले कर आया था. 2 दिन से उसे अपना मेल चैक करने का अवसर ही नहीं मिल पाया था. लैपटौप खोल कर उस ने लौगइन किया और इंटरनैट से जुड़ गया. ईमेल खाता खोलते ही वह चौंक पड़ा, पहला मैसेज मोहिनीञ्चयाहूडौटकौम से था. तारीख परसों की ही थी.
आश्चर्य से स्क्रीन को देखते हुए उस ने माउस क्लिक किया. अगले ही पल ईमेल खुल गया. मोहिनी ने सही कहा था. उस ने परसों ही उसे असलियत से अवगत करा दिया था लेकिन जल्दी में उस ने ही ईमेल को नहीं देखा था. अब वह सोच में पड़ गया. मोहिनी और ईमेल? रसोई की चारदीवारी में कैद औरत का लैपटौप, कंप्यूटर और इंटरनैट से क्या संबंध? उस का दिमाग चकरा कर रह गया.
इसी कमरे में उस का और मोहिनी का प्रथम मिलन हुआ था. इसी कमरे में उसे छोड़ कर गया था. तब से दुनिया काफी बदल गई थी. आज इस कमरे में वह अकेला बिस्तर पर पड़ा करवटें बदल रहा था. बहुत मुश्किलों के बाद नींद आ सकी.
सुबह जब उठा तो धूप निकल आई थी. उस का मंजनब्रश और कुरतापाजामा मेज पर रखा था. तैयार हो कर नीचे आया तो ललिता नाश्ते के लिए उस की प्रतीक्षा कर रही थीं, उन्होंने फौरन
2 प्लेटें लगा दीं.
‘‘मोहनी, नाश्ता नहीं करेगी क्या?’’ उस ने इधरउधर देखते हुए पूछा.
‘‘वह विद्यालय गई है,’’ ललिता ने प्लेट उस के आगे बढ़ाते हुए बताया. ‘चौधरी कृष्णबिहारी राय गर्ल्स डिग्री कालेज’, कभी नाम सुना है उस का? मोहिनी लैक्चरर है उस में,’’ ललिता का स्वर तेज हो गया.
‘‘यह तो पिताजी का नाम है. उन के नाम का स्कूल किस ने खोला और मोहिनी उस में कैसे पढ़ा सकती है. वह तो…’’ विलास चाह कर भी अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका.
‘‘वह तो गंवार और जाहिल है,’’ ललिता ने विलास का अधूरा वाक्य पूरा किया, फिर फट पड़ीं, ‘‘इतने सालों में तू ने पलट कर भी नहीं देखा कि हम लोग जिंदा हैं या मुर्दा, और आज पूछता है कि पिताजी के नाम का स्कूल किस ने खोला. जो काम तुझे करना चाहिए था वह बहू कर रही है. तेरे नाम का झठा सिंदूर लगा कर वह तेरे पुरखों का नाम रोशन कर रही है और तू उसे तलाक देने की सोच रहा है. तेरी हिम्मत कैसे हुई नोटिस भेजने की.’’
‘‘मां, मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता,’’ विलास ने नाश्ते की प्लेट खिसका दी और मेज से उठ गया. ललिता उसे रोकती रहीं लेकिन वह तेजी से बाहर निकल आया.
तेज कदमों से चलता हुआ विलास डिग्री कालेज के भवन के करीब पहुंचा. प्रवेश द्वार के ऊपर बड़े से बोर्ड पर ‘चौधरी कृष्णाबिहारी राय गर्ल्स डिग्री कालेज’लिखा हुआ था. थोड़ी दूरी पर ‘ललिता महिला छात्रावास’ की इमारत थी. आश्चर्य से देखते हुए विलास कालेज के भीतर घुसने लगा.
‘‘बाबू साहब, यह लड़कियों का स्कूल है. आप भीतर नहीं जा सकते,’’ द्वार पर खड़े सुरक्षाकर्मी ने उसे रोक दिया.
विलास पलभर के लिए हड़बड़ाया, फिर संभलते हुए बोला, ‘‘मुझे कुछ जरूरी काम है.’’
‘‘बहूजी की आज्ञा है कि जिस को भी काम हो वह कालेज समय के बाद आए,’’ सुरक्षाकर्मी ने टका सा उत्तर दिया.
‘‘कौन बहूजी? वे कैसी औरत हैं?’’ विलास ने पूछा.
‘‘औरत? अरे, ये यहां के जमींदार की बहू हैं. उन का बेटा उन्हें ब्याह कर लाया था लेकिन अभागा हीरे को पहचान न सका. बहूजी ने न केवल खुद की पढ़ाई पूरी की बल्कि पूरे इलाके की लड़कियों की किस्मत बदल कर रख दी है,’’ सुरक्षाकर्मी ने बताया. उस के स्वर से मोहिनी के प्रति अपार श्रद्धा टपक रही थी.
तसवीर काफीकुछ साफ हो चुकी थी. काफी देर तक इधरउधर भटकने के बाद जब विलास घर पहुंचा तो मुनीमजी एक मेटाडोर से कुछ सामान उतरवा रहे थे.
‘‘यह क्या है?’’ विलास ने यों ही पूछ लिया.
‘‘एसी. बहूजी कह रही थीं कि आप इतने साल अमेरिका में रहे हैं. यहां की गरमी में दिक्कत होगी. इसलिए शहर से मंगवाया है,’’ मुनीमजी ने बताया.
विलास को कोई जवाब नहीं सूझ. चुपचाप भीतर चला आया. किंतु आज उस के आश्चर्य का अंत न था. बैठक के बगल वाले कमरे में प्रबंधक की तख्ती लगी हुई थी. कल रात के अंधेरे में वह उसे देख न सका था. उत्सुकतावश दरवाजा खोल कर वह भीतर पहुंचा.
विशालकाय मेज के पीछे पिताजी की आदमकद तसवीर लगी हुई थी. एक कोने में रखा छोटा सा कंप्यूटर आधुनिकता की गवाही दे रहा था तो अलमारी में करीने से सजी बहुमूल्य पुस्तकें अपनी स्वामिनी की रुचि की साक्षी थीं.
विलास को अपना व्यक्तित्व अब काफी बौना लगने लगा था. चंद सालों में मोहिनी ने वह कर दिखलाया जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकता था. उस की सोच से परे बिलकुल नवीन मोहिनी उस के सामने खड़ी थी और उस में उस का सामना कर पाने का साहस न था. वह चुपचाप आ कर अपने कक्ष में लेट गया.
कालेज से लौट कर मोहिनी ने जल्दीजल्दी खाना लगवाया, फिर मांजी और विलास को बुलवाया. विलास ने देखा मेज पर उस की ही पसंद की चीजें सजी हुई थीं. उस ने मोहिनी की ओर देखा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद.’’
‘‘किस बात का?’’
‘‘तुम ने इस घर के लिए, गांव के लिए इतना कुछ किया.’’
‘‘मेरा जो फर्ज था, मैं ने किया. इस में धन्यवाद की क्या बात. आप छोटीछोटी बातें सोच कर परेशान मत होइए, खाना खाइए,’’ मोहिनी ने थाली विलास की ओर बढ़ाते हुए कहा.
कभीकभी दिन, रात से भी भयानक होता है. रात तो फिर भी कट जाती है लेकिन दिन नहीं बीतता है. विलास के लिए एकएक पल भारी हो रहा था. समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. मांजी, मोहिनी और नैंसी सब गड्डमड्ड हुए जा रहे थे. बेचैनी जब उस की बढ़ गई तो एक बार फिर घर से बाहर निकल आया. खेत, खलिहान, बागबगीचे, तालाब हर जगह भटक आया पर कहीं भी मन को शांति न मिली.
रात का खाना भी उस से नहीं खाया गया. किसी तरह कुछ कौर ठूंस कर अपने कमरे में लौट आया. जब मन शांत न हो तो नींद भी कहां आती है. रात के 12 बज चुके थे. जब विलास से रहा नहीं गया तो चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया. सोचा, छत पर खुली हवा में शायद कुछ शांति मिल सकेगी. सीढि़यों पर उस ने पांव रखा ही था कि बगल के कमरे की खुली खिड़की पर नजर पड़ते ही ठिठक गया.
कमरे के भीतर मोहिनी सोई हुई थी. खुली खिड़की से चांद की किरणें उस के मासूम चेहरे से अठखेलियां कर रही थीं. चांदनी में नहाया मोहिनी का चेहरा पूर्णमासी के चांद की भांति खिला हुआ था. उस की मांग में जगमगा रहा सिंदूर उस की गरिमा को कुछ और ही बढ़ा रहा था.
यह सिंदूर तो उस के नाम का है. विलास के मन में अनायास ही भावनाओं का ज्वार आया. उस ने सीढि़यों से अपने पांव पीछे खींच लिए और दरवाजे के करीब आ गया. हाथ के दबाव मात्र से दरवाजा खुल गया.
पलंग के समीप पहुंच विलास मोहिनी के चेहरे को निहारने लगा. वह आज भी उतनी ही आकर्षक प्रतीत को रही थी जितनी प्रथम रात्रि को थी. उस की दूध की तरह सफेद त्वचा, सुराहीदार गरदन, धौंकनी की तरह ऊपरनीचे हो रही छाती और कमल के डंठल की तरह पतली कमर आज भी किसी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने में सक्षम थीं.
मोहिनी के रूप से सम्मोहित विलास ने आगे बढ़ कर उस के चेहरे को दोनों हाथों में सहेजा और उस के अधरों पर भरपूर चुंबन अंकित कर दिया.
‘‘कौन है?’’ वह भयभीत हिरणी सी व्याकुल हो उठ बैठी.
‘‘मैं हूं, तुम्हारा विलास,’’ कांपते होंठों से स्वर निकले.
‘‘आप, यहां क्या कर रहे हैं?’’ आश्चर्यचकित स्वर कांप उठा.
‘‘प्रश्न मत करो?’’ चुप रहने के संकेत के साथ प्यासी बांहों के बंधन आगे बढ़े.
‘‘मुझे स्पर्श करने का प्रयास भी मत करिएगा. दूर रहिए मुझ से,’’ शांत स्वर में अशांति गूंज उठी.
‘‘मैं पति हूं तुम्हारा. मेरा अधिकार बनता है तुम पर,’’ विलास की व्यग्रता अधीरता में बदलने लगी थी.
‘‘किस अधिकार की बात करते हैं आप. वह अधिकार जो चुटकीभर सिंदूर ने दिया था? वह अधिकार जो 7 फेरों ने दिया था? वह अधिकार जो मोतियों के मंगलसूत्र ने दिया था? वे सारे अधिकार तो तलाक का नोटिस भेज कर आप ने खो दिए हैं?’’ वर्षों से दबा आक्रोश ज्वालामुखी बन धधक उठा.
भौचक्का विलास हतप्रभ रह गया. ऐसी स्थिति की उस ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. बरस रही मोहिनी को शांत कर पाने का नैतिक साहस उस में शेष न बचा था.
शब्दों के बाण कक्ष की दीवारों को भेद कर मांजी के कानों तक पहुंच गए थे. कोई भी मां बेटे को हताहत होता नहीं देख सकती. फौरन बेटे की मदद को आ पहुंचीं और डपटते हुए बोलीं, ‘‘यह कैसा अनर्थ मचा रही हो. अभी तलाक नहीं हुआ है, इस नाते विलास अभी भी तुम्हारा पति है.’’
‘‘जो पुरुष पराई स्त्री का हो गया वह मेरे लिए पर पुरुष समान है और मैं किसी गैरपुरुष की छाया भी अपने तन पर न पड़ने दूंगी.’’
‘‘यह मेरा बेटा है, इस घर का स्वामी.’’
‘‘मैं भी इस घर की स्वामिनी हूं लेकिन जो यह कर के लौटे हैं अगर वह मैं कर के लौटती तो क्या आप मुझे स्वीकार कर पातीं?’’ मोहिनी ने सीधे मांजी की आंखों में झंका.
मांजी ने घबरा कर आंखें बंद कर लीं. जीवन की एकमात्र साध बंद आंखों के सामने तैरने लगी तो झली फैला कर बोलीं, ‘‘बहू, मैं ने हमेशा तेरा कहना माना है. बस, तू मेरी एक इच्छा पूरी कर दे. मरने से पहले मैं इस घर के वंशज को गोद में खिलाना चाहती हूं.’’
‘‘ठीक है, मांजी, जैसी आप की आज्ञा,’’ मोहिनी ने सास की आंखों में जल उठे आशाओं के दीप को देखा, फिर आगे बोली, ‘‘लोगों की व्यंग्यभरी मुसकान जब आप के उस वंशज से पूछेगी कि समंदर पार रहने वाला उस का बाप एक ही रात में कितना बड़ा आशीर्वाद दे गया जो यह हवेली जगमगा उठी तब मैं क्या जवाब दूंगी? यह बता दीजिए, फिर मुझे आप की सारी आज्ञाएं शिरोधार्य हैं.’’
अपने होंठों को दांतों से दाब कर मांजी सिसक पड़ीं. विलास बहू के एक प्रश्न ने हजारों प्रश्नों के व्यूह की रचना कर दी थी जिसे भेद पाने की सामर्थ्य उन में न थी. विवशता गंगा की धार बन बह निकली.
मोहिनी मांजी के दिल की पीड़ा को जानती थी. सो, दर्दभरे स्वर में बोली, ‘‘मांजी, मैं अपने साथ हुए अन्याय को सह सकती हूं किंतु नारी होने के नाते दूसरी नारी के साथ अन्याय करने में सहभागिता नहीं कर सकती.’’
बहू की बातों का अर्थ मांजी की समझ में नहीं आया तो उन्होंने अर्थभरी दृष्टि से उस की ओर देखा. मोहिनी ने विलास पर एक उचटती हुई दृष्टि डाली, फिर बोली, ‘‘आप के बेटे ने अब नैंसी का हाथ थामा है और उस ने बहुत विश्वास के साथ इन्हें आप के पास भेजा है, ऐसे में यदि मैं आप के बेटे की इच्छापूर्ति करती हूं तो क्या वह दूर बैठी उस नारी के साथ विश्वासघात नहीं होगा? यदि ऐसा हुआ तो फिर आप की बहू और उस विदेशी बाला में क्या फर्क रह जाएगा. यदि ये आप का बेटा बन कर आए होते तो मैं इन्हें सिरआंखों पर बैठाती लेकिन जिस रूप में ये आए हैं, यदि उस में मैं इन की क्षणिक इच्छा की पूर्ति करती हूं तो किसी राहगीर को क्षणिक विश्राम प्रदान करने वाली गणिका के व्यापार और औरत की इज्जत में क्या फर्क रह जाएगा.’’
‘‘बस कर बेटा, बस कर. तू जो कर रही है, सोच रही है यही सच है और बाकी सब झठ,’’ मांजी पूरी शक्ति से बहू के सीने से लिपट गईं. उन की आंखों से गिरने वाली एकएक बूंद सच्ची थी.
विलास बहू के घर में विलास मेहमान हो चुका था. अतिथि के अधिकारों का अतिक्रमण करने का साहस उस में शेष नहीं बचा था. पराए हो चुके अपने शरीर को घसीटते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगा. मांजी की सिसकियां उसे जल्द से जल्द यहां से दूर चले जाने का आदेश दे रही थीं. Hindi Family Story.
इन्हें आजमाइए:
पुराने अखबार के खास पन्ने जैसे कार्टून, पुरानी हैडलाइन या इंग्लिश टाइप पेज ले कर गिफ्ट रैप बनाएं. ऊपर से कलरफुल रिबन लगा दें. हट के और क्रिएटिव गिफ्ट पैक बन जाएगा.
बोतल में पानी ठंडा रखना हो तो फ्रीजर में आधा पानी भर के बोतल रख दें. सुबह बोतल पानी से पूरी भर दें. पानी पूरा दिन ठंडा रहेगा.
एक पुराने मोजे में कपूर, लौंग, इलायची डाल कर उसे बांध दें और अलमारी में टांग दें. न बदबू, न कीड़े. बस, अलमारी में एक देसी फ्रैशनैस रहेगी.
नीबू का रस निकालना हो लेकिन नीबू सख्त है तो उसे 15 सेकंड माइक्रोवेव में घुमा दो या 1 मिनट गरम पानी में डाल दो, फिर निचोड़ो, पूरा रस निकलेगा.
थोड़ा सा शैंपू पानी में घोल कर शीशे पर पोंछ दो, धुंध नहीं जमेगी. बाथरूम के मिरर के लिए बैस्ट ट्रिक.
घर में जहां चींटियां आ रही हैं, वहां थोड़ा नमक या हल्दी छिड़क दो. चींटियां तुरंत रास्ता बदल लेंगी.
लाइट न हो तो मोबाइल की टौर्च को पानी की बोतल के नीचे रख दें. पूरी जगह रोशनी से भर जाएगी.
प्याज को 15 मिनट फ्रीजर में रख कर काटिए, आंखों से पानी नहीं आएगा.





