Gen Z Special: दुनियाभर की जेन जी यानी नए युवाओं की खेप अपने आंदोलनों की बुनियाद पूरी तरह सोशल मीडिया को आधार बना कर तैयार कर रही है, यह आधार ही अपनेआप में समस्याओं से घिरा है जो कुछ टैक जायंट्स के हाथों में कैद है, जिस में कोई विचारधारात्मक संघर्ष फलफूल ही नहीं सकता.
भारत में ‘जेन जी’ का फैलाव सभी राज्यों में 20 से 32 फीसदी तक है. हिंदीभाषी राज्यों में यह 30-32 फीसदी तक है. इन में उत्तर का जम्मूकश्मीर भी है. बिहार सर्वाधिक 32 फीसदी, दक्षिण-पश्चिम के राज्यों में सिर्फ 22-27 प्रतिशत तक का फैलाव है. बंगाल, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में यह फैलाव सब से कम 24-21 फीसदी है. वहीं, देश का जेन जी औसत 27.1 फीसदी है और देश की जनसंख्या के हिसाब से जेन जी की गिनती 32-35 करोड़ की है. जेन जी को जनरेशन जूमर्स भी कहते हैं.
वर्ष 1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी को जेन जी कहते हैं. इन की उम्र 13 से 28 साल के बीच है. यानी, जिन की उम्र 18 साल से ऊपर है, जेन जी के वे लोग वोट डालने का हक रखते हैं. कालेज और विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव न होने से जेन जी वाली पीढ़ी के अंदर राजनीतिक सम झ का पूरी तरह से अभाव हो गया है. राजनीति और समाजसेवा के नाम पर इस पीढ़ी को पूरी तरह से पूजापाठी बना दिया गया है.
यह पीढ़ी कांवड़ यात्रा और धार्मिक आयोजनों में पूरी तरह से शामिल दिखती है. पूजापाठ और दूसरे रीतिरिवाजों में जेन जी युवा शामिल होते हैं. ये पिछली पीढ़ी की युवाओं की तरह तर्क नहीं करते. इस का सब से बड़ा कारण यह है कि इन की पढ़ाई स्कूलों से ले कर घर तक ऐसे हुई है जहां तर्क नहीं किए जाते. एक सवाल के 4 जवाब लिखे होते हैं, उन में से एक सही होता है. स्कूली किताबों के अलावा जेन जी वाली पीढ़ी ने ज्यादा साहित्य नहीं पढ़ा है.
नेपाल बना उदाहरण
ऐसे में उन की कोई अपनी न तो राजनीतिक विचारधारा है और न ही सम झ जिस से छात्रसंघ चुनावों को ले कर उधर से कोई मांग भी नहीं उठ रही. इस से यह साफ सम झा जा सकता है कि वोट दे कर सरकार बनाने वाली एक बड़ी आबादी को राजनीतिक विमर्श का पता ही नहीं है. उस ने नेताओं के नाम सुने हैं, उन के विचारों के बारे में उसे पता नहीं है.
नेपाल में जो हुआ उस को भी देखें तो यह साफतौर पर पता चलता है कि पूरे आंदोलन की कोई एक दिशा नहीं थी. आंदोलन पूरी तरह से भटका हुआ था. हिंसा का बोलबाला था. इस की वजह यह थी कि नेपाल ने अपने यहां के युवाओं को राजनीति से जोड़ा ही नहीं. नेपाल में तख्तापलट को जेन जी आंदोलन नाम दिया गया. यह पीढ़ी उस दौर में पैदा हुई जब इंटरनैट का प्रभाव काफी बढ़ गया था. ये सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए और किताबों से दूर होते गए.
जेन जी के पहले वाली पीढ़ी ‘मिलेनियल्स’ यानी जो 1981 से 1997 के बीच पैदा हुए या इन से पहले की पीढ़ी जेन एक्स जो 1965 से 1980 के बीच पैदा हुई थी, की जिम्मदारी थी कि वे जेन जी के अंदर उन गुणों को भरते कि जिस से उन में समाज के प्रति रचनात्मक विचारों का संचार होता. जेन जी को सोशल मीडिया की पैदाइश माना जाता है और सोशल मीडिया पर बैन के बाद ही नेपाल में सत्ता के खिलाफ विद्रोह हुआ. इस के बाद वहां जेन जी कुछ रचनात्मक कर सकेगा, इस पर सवालिया निशान हैं.
नेपाल में विरोध का एक दूसरा कारण नैपो किड्स भी था. इस का मतलब नेपाल के नेताओं के बच्चों की तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर आ रहे थे. जनता को यह लगने लगा था कि यहां फिर से वंश और परिवारवाद शुरू हो जाएगा. ये लोग देख रहे थे कि नैपो किड्स किस तरीके से आरामदायक जीवन जी रहे थे. दूसरी तरफ देश के बाकी युवा अपने जीवन की तुलना उस से कर रहे थे कि उन का जीवन किस दयनीय स्थिति में बीत रहा है.
जेन जी में परिपक्वता की कमी है. उन की दिशा तय नहीं है. इस वजह से नेपाल की राह आसान नहीं लगती है. इन की कोई अपनी एक राय थी, ये क्या चाहते थे यह भी स्पष्ट नहीं था. इन का अपना कोई नेता नहीं था. इन की अपनी कोई स्पष्ट मांग नहीं थी. जैसेजैसे लोग जुट रहे थे, इन के अंदर बदलाव दिख रहा था. नेपाल में चुनाव के बाद बनी सरकार को देख सम झ आएगा कि देश संभालने के लिए जेन जी ने क्या काम किया है.
सोशल मीडिया की पावर कितनी ताकतवर?
युवा अपनी आवाज को देश और देश से बाहर पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल सीख चुके हैं. ये एक नई राजनीतिक संस्कृति को जन्म दे रही है. खांटी राजनीतिक दलों के लिए ये सम झने की बात है. ये जेन जी पीढ़ी देश की राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था को किस दिशा में ले जाएगी, साफ नहीं है. सोशल मीडिया की पावर एक बुलबुले ही तरह की है. यह किसी दूसरे के हाथ में खेलने जैसी है. नेपाल से पहले कई देशों में ऐसा बदलाव जेन जी कर चुके हैं. उन को देखें तो साफ है कि देश को संभालने और चलाने की ताकत जेन जी में नहीं है. नेपाल में देश संभालने के लिए 74 साल की रिटायर सुशीला कार्की को सामने आना पड़ा, जिन का जन्म 7 जून, 1952 को हुआ था.
नेपाल से पहले श्रीलंका की जेन जी ने सोशल मीडिया का उपयोग कर के श्रीलंका की संसद ने सर्वसम्मति से पूर्व राष्ट्रपति और उन के परिवारों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया. यह कदम देश में 2022 के गंभीर आर्थिक संकट के बाद जनता के असंतोष को देखते हुए लिया गया, जब महंगाई और आवश्यक वस्तुओं की कमी के कारण व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे. जुलाई 2022 को श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे पहले मालदीव और फिर सिंगापुर रवाना हो गए थे. राजपक्षे ने सिंगापुर से ही ईमेल के जरिए अपना त्यागपत्र भेज दिया था. देश से भागने के लगभग 2 महीने बाद गोटाबाया राजपक्षे 2 सितंबर, 2022 को श्रीलंका वापस आ गए.
जुलाई 2024 में जेन जी पीढ़ी ने बंगलादेश में भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को ले कर ढाका में प्रदर्शन किए. उन्होंने अपनी बात को व्यापक स्तर पर उठाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया. युवाओं के असंतोष ने तत्कालीन पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया. हिंसक प्रदर्शनों के बाद उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी. 8 अगस्त, 2104 को वहां अंतरिम सरकार बनी. इस के बाद बंगलादेश के हाल खराब होते गए. छात्रों के प्रदर्शनों पर और सुरक्षाबलों की कार्रवाई में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए.
मई 2025 में जेन जी ने मंगोलिया के प्रधानमंत्री लुव्सन्नामस्रे ओयुन-एर्डीन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर विरोध प्रदर्शन किए. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के बेटे द्वारा किए गए अत्यधिक खर्चों के खिलाफ आवाज उठाई. दरअसल, ओयुन एर्डीन के सत्ता में आने के बाद से मंगोलिया में भ्रष्टाचार की स्थिति और बिगड़ गई थी. प्रदर्शनों के बाद 3 जून को संसद में पीएम विश्वास मत हार गए और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा.
धर्म और सोशल मीडिया में उलझे जेन जी
भारत में 18-19 साल के मतदाताओं की संख्या 1.82 करोड़ है. 20 से 29 साल के वोटर 19.74 करोड़ हैं. यानी, करीबकरीब 22 करोड़ वोटर जेन जी वाले हैं. जबकि, जनसंख्या 32-35 करोड़ बताई जा रही है. करीबकरीब 25 फीसदी वोटर जेन जी है. भारत में युवाओं ने राजनीति में बदलाव किए हैं. इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने जब जेपी आंदोलन शुरू किया था तब उन के साथ बड़ी संख्या में युवा ही थे. वे एक समाजवादी विचारधारा के साथ आंदोलन कर रहे थे. जेन जी वाले आंदोलन से वे आंदोलन अलग था तब सामने नेता होते थे, पीछे युवा होते थे.
जेन जी को अगर राजनीतिक सफलता हासिल करनी है तो उन को केवल सोशल मीडिया पर निर्भर नहीं रहना होगा. सोशल मीडिया तो कुछ पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली है. वे जब चाहेंगे, इस की डोर खींच लेंगे और पूरे आंदोलन की हवा निकाल देंगे.
सोशल मीडिया के पास अपने विचार नहीं हैं. ऐसे में वह रचनात्मक काम करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती. जेन जी वोटर्स को भी सर्तक रहने की जरूरत है कि वे किसी बहकावे में आ कर कदम न उठाएं बल्कि सोचविचार कर काम करें ताकि उन की ऊर्जा का लाभ देश और समाज को मिले न कि सोशल मीडिया का प्लेटफौर्म चलाने वाले कुछ पूजीपतियों को.
जिस तरह से धर्म एक घुट्टी पिला कर युवाओं को कांवड यात्रा और पूजापाठ में लगाता है जिस से कि उस की धर्म की दुकानदारी चलती रहे उसी तरह से सोशल मीडिया भी करती है. धर्म के नाम पर होने वाली दुकानदारी का लाभ पंडित बिचैलियों को जाता है तो सोशल मीडिया का लाभ दूसरे देशों में बैठे पूंजीपतियों को. दोनों में एक और समानता ये है कि ये दोनों ही युवाओं को काहिल बना कर उन का उपयोग करते हैं. धर्म के नाम पर सत्ता ऐसे ही पलटती है जैसे सोशल मीडिया के नाम पर हो रहा है. Gen Z Special.





