Retirement Planning: पार्क के कोने वाली सीट पर दो बूढ़ी महिलाएं आपस में अपने-अपने दुखड़े बांट रही थीं. इनमें से एक थीं 77 वर्षीय रजनी बाला और दूसरी उनकी दूर के रिश्ते की भाभी स्नेहलता कौशिक, जिनकी उम्र भी लगभग 75 वर्ष है. दोनों के घर आसपास ही हैं, लिहाजा शाम की सैर पर दोनों साथ ही पार्क में आती हैं. दोनों महिलाएं पढ़ी लिखी और अच्छे खाते पीते परिवार की हैं. दोनों के पति अच्छी जॉब से रिटायर हुए हैं. दोनों के बेटे ही नहीं, बल्कि बहुएं भी अच्छी जॉब में हैं. रजनी बाला का एक पोता और स्नेहलता के पास एक पोता और एक पोती हैं. तीनों बच्चे अपनी किशोरावस्था में हैं. घर में नौकर हैं, ड्राइवर है. अच्छा बैंक बैलेंस है. यानी किसी चीज की कोई कमी नहीं है मगर शिकायतें फिर भी बहुत हैं.
रजनीबाला को शिकायत है कि उनके पति अपना सारा समय टीवी या कंप्यूटर पर बिताते हैं. बेटा बहू सारा दिन ऑफिस में रहते हैं, शाम को आते हैं तो दोनों अपने कमरे में एक दूसरे के साथ होते हैं. पोता भी टीवी या मोबाइल फ़ोन पर ज्यादा समय बिताता है और उनके पास बहुत कम बैठता है. ऐसे में वे सबके होते हुए भी घर में बहुत अकेली हैं. उनकी शिकायत है कि उनका दुःख दर्द बांटने वाला कोई भी नहीं है.
रजनी बाला अपनी भाभी से बता रही थीं कि उनकी बहू कुसुम ने उनके पोते को पता नहीं क्या पाठ पढ़ा दिया है कि अब वह उनके पास भी आकर नहीं बैठता. वे स्नेहलता से बोलीं – ”छोटा था तो सारा दिन मेरी गोद से नहीं उतरता था. बहू तो ठाठ से सजधज कर ऑफिस चली जाती थी, अंकुर को देखने की जिम्मेदारी मेरी थी. मैं ही उसे समय से दूध पिलाती, खाना खिलाती, उसके नैपकिन बदलती, उसको दुलारती और सुलाती थीं. वो स्कूल जाने लगा तब भी उसके बहुत सारे काम मैं ही करती थीं. कभी कभी उसको स्कूल से लेने भी जाती थीं. मगर छठी कक्षा में आने के बाद तो उसने ऐसी दूरी ही बना ली है, जैसे मैं उसकी दुश्मन हूँ. मेरी हर बात अनसुनी कर देता है. कई कई बार आवाज लगाओ तब कहीं मेरे कमरे में आता है. चार काम बताओ तो एकाध काम ही करता है. बहू से कहो तो बोलती है – मां जी, अंकुर अपनी स्टडी कर रहा है. आप बार बार आवाज देती हैं तो वह डिस्टर्ब होता है. हो ना हो, बहू ने ही उसको मेरे पास आने से मना किया है.”
स्नेहलता ने उनकी बातों से सहमति जताते हुए कहा, ”यही हाल तो मेरे घर का भी है. मेरे ग्रैंड चिल्ड्रन भी बस अपने में ही मगन रहते हैं. दादा दादी से तो कोई मतलब ही नहीं है. हम कुछ पूछें तो उलटा ही जवाब देते हैं. सब बहू के सिखाये पढ़ाये में हैं. अभी नानी का फ़ोन आ जाए तो घंटों बात करते हैं, मगर मुझसे बात करने के लिए दोनों के पास टाइम नहीं है.
दरअसल आज के समय में इस तरह की शिकायतें अधिकतर परिवारों में बुजुर्गों की हैं, कि उनके ग्रैंड चिल्ड्रन उनकी बात नहीं सुनते, उनके पास नहीं बैठते या कोई काम बोलो तो नहीं करते हैं. जिन घरों में किशोर बच्चे हैं वे अपना समय अपनी पढ़ाई में, स्कूल में, दोस्तों के साथ, खेल में या कंप्यूटर अथवा मोबाइल फ़ोन में व्यतीत कर रहे हैं. ऐसे में बुजुर्गों के पास बैठने का समय उनके पास नहीं है. अगर वे कुछ समय उनके साथ बिताते भी हैं तो उनकी दो पीढ़ी पीछे की पुरानी बातों में बच्चो को कोई इंटरेस्ट नहीं आता है. फिर दादा दादी हर वक़्त कोई ना कोई काम ही बताते रहते हैं.
रजनी बाला जो पोते के पास ना आने का सारा दोष अपनी बहू के सिर मढ़ रही थीं दरअसल वे यह नहीं जानती कि उन्हीं की गलत बातों के कारण अंकुर ने उनके पास बैठना कम कर दिया है. दरअसल रजनी बाला अक्सर अंकुर के जरिये अपनी बहू की जासूसी करने की कोशिश करती हैं. एक दिन वे अंकुर से पूछ रही थीं कि उसके मम्मी पापा रात में किस बात पर झगड़ा कर रहे थे? एक दिन पूछने लगीं कि तुम्हारी मम्मी अपनी सैलरी लाकर पापा को देती है या अपने पास रखती है? तुम नानी के घर गए थे तो नानी ने इस बार तुम लोगों को क्या क्या दिया? तुम्हारी मम्मी को क्या क्या दिया? तुमको कुछ पैसे दिए या खाली हाथ ही वापस कर दिया? तुम्हारी मम्मी नानी के घर क्या क्या सामान लेकर गए थे? आदि आदि. अब ऐसे सवालों के जवाब कौन देना चाहेगा?
ऐसे सवाल यदि आप किशोर होते बच्चे से पूछेंगे तो उसको आपकी मंशा तो समझ में आने लगती हैं. अंकुर ने भी अपनी मां से कह दिया कि दादी ऐसी बातें पूछती हैं, मैं क्या बताऊँ उनको? जवाब में कुसुम ने बेटे से कहा कि वह स्कूल से आने के बाद अपने कमरे में ही बैठ कर होमवर्क किया करे और खाना खा कर सो जाया करे. अब कुसुम ने क्या गलत किया?
यह बात तो बुजुर्गों को सोचनी चाहिए कि वे अपने पोते पोतियों से ऐसी बातें न करें जो उनके विकसित होते हुए मन मस्तिष्क में जहर घोलने का काम करें. या उनको ऐसा महसूस होने लगे कि उनके माँ बाप के खिलाफ उनका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अलावा रोजमर्रा के जो काम खुद किये जा सकते हैं, उसके लिए भी बार बार बच्चों को आवाज लगाने की जरूरत नहीं है. अपने पलंग पर ठाठ से पड़े रहने की बजाय अपने हाथ पैर भी चलाते रहें. आपको पानी चाहिए तो आप किचेन में जाकर खुद पानी ले लें. अब यह क्या बात हुई कि आपको नहाना है तो आप बच्चों से कह रहे हैं कि गीजर ऑन कर दो, बाल्टी में पानी भर दो, मेरे कपड़े अलमारी से निकाल दो. अगर यह सारे काम आप खुद करने में सक्षम हैं तो उसके लिए बच्चों को आवाज न लगाए.
संतोष कालरा 80 साल के हैं. इस उम्र में भी उनकी सेहत अच्छी है. चलते फिरते हैं. सुबह सैर को भी जाते हैं. मगर उनको सिगरेट पीने की बुरी लत है. बिल्डिंग के सेकंड फ्लोर पर उनका परिवार रहता है. पत्नी का निधन हुए दस साल हो गए हैं. पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी सिगरेट पीने की लत बढ़ गयी. एक दिन में दो दो डिब्बी (20 सिगरेट) तक पी जाते हैं. बेटा बहू मना करते हैं मगर वे उनकी बात पर ध्यान ही नहीं देते. कहते हैं – ”पीता हूँ तो अपने पैसे की पीता हूँ.” एक दिन सेकंड फ्लोर से उतर कर नीचे मार्केट तक जाने में उनको मुश्किल लगी तो उन्होंने अपने 13 वर्षीय पोते शिवा को पैसे और सिगरेट की खाली डिब्बी देकर नीचे भेजा कि वह मार्केट से उनके लिए सिगरेट ले आये. शिवा जाकर ले आया. उसके बाद तो जब भी उनकी सिगरेट ख़त्म होती, वे शिवा को चुपचाप पैसे देकर सिगरेट लाने के लिए नीचे भेज देते. एक दिन शिवा की माँ ने पूछ लिया कि कहाँ गया था तो शिवा ने बता दिया कि दादा की सिगरेट लेने गया था. उस दिन तो घर में हंगामा हो गया. बहू बेटे दोनों ने पापा जी को खूब सुनाया. इतने छोटे बच्चे से सिगरेट मंगाते आपको शर्म नहीं आयी? कुछ तो अक्ल से काम लिया करिये. पापाजी को उस दिन बहुत बुरा लगा.
अक्सर देखा जाता है कि जिन घरों में बच्चों के साथ उनके दादा दादी भी रहते हैं, वहाँ बच्चों पर काम का अतिरिक्त बोझ उनके दादा दादी द्वारा डाला जाता है. जबकि वे काम बुजुर्ग स्वयं भी कर सकते हैं. मगर वे बच्चों को अपने काम में उलझाए रखना चाहते हैं ताकि घर पर उनका अधिकार ज्यादा प्रकट हो. वे बच्चों को अपने जमाने के संस्कार देने के भी बड़े इच्छुक होते हैं. उनको धर्म का ज्ञान देने में उनकी बड़ी रूचि होती है. कुछ लोग बच्चों से उनकी माँ के खिलाफ भी बोलते रहते हैं. जैसे तेरी माँ को तो कुछ आता ही नहीं है… तेरी माँ कुछ करती नहीं… तेरी माँ ऐसी है, वैसी है… इससे बच्चों के मन में दादा दादी के प्रति सम्मान भी कम हो जाता है और वे उनसे दूरी भी बना लेते हैं.
आज की जेनेरशन दो पीढ़ी पहले की जेनेरशन से काफी तेज और स्मार्ट है. तकनीक के क्षेत्र में और गैजेट्स को उपयोग करने में वह अपने माता पिता को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. ऐसे में जब दादा दादी उनको धर्म या किसी अन्य विषय का घिसा पिटा ज्ञान देने लगते हैं तो उनका जवाब होता है कि ”यह सब हम जानते हैं… ”
बच्चों पर पढ़ाई का बोझ भी है. कम्पटीशन का ज़माना है. उनके सामने बड़े लक्ष्य हैं. वे कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन पर बहुत कुछ बहुत तेजी से सीख रहे हैं. उनके पास समय का अभाव है. ऐसे में यदि घर के बुजुर्ग यह आशा करें कि किशोरावस्था के बच्चे उनके पास बैठ कर उनसे रामायण-महाभारत या कुरान-हदीस या बाइबिल-गुरु ग्रंथ साहब की बातें सुनेंगे, तो ऐसा संभव नहीं है. वे तो ख़ामोशी से अपने कमरे में बैठ कर कंप्यूटर पर ज्ञान अर्जित कर रहे हैं. और आपको उस कंप्यूटर की एबीसीडी नहीं आती, फिर वे आपसे क्या बातें करें?
बच्चे दादा दादी से बहुत प्यार करते हैं. उनके पास उन्हें सुरक्षा और स्नेह मिलता है. परन्तु बच्चों को उनका समय और स्पेस भी चाहिए. जब यह दोनों चीजें उनसे छिनने लगती हैं तो वह दादा दादी से दूर होने लगते हैं. उन्हें लगता है कि ये तो बस हर वक्त काम ही बताते रहते हैं. वहीं जब दादा दादी बच्चों के माता पिता के खिलाफ कोई बात करते हैं तो भी बच्चों के मन में दादा दादी के प्रति गुस्सा भरने लगता है. कोई भी बच्चा अपने माता पिता के खिलाफ बात नहीं सुनना चाहता, भले वह उसके दादा दादी क्यों न बोल रहे हों.
ऐसे में बुजुर्गों को अपनी हद समझनी चाहिए. सच तो यह है कि व्यक्ति को रिटायरमेंट की उम्र से ही अपने बुढ़ापे की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. इसके लिए अपनी आर्थिक मजबूती रखनी जरूरी है, ताकि आप किसी पर बोझ न बनें. कभी ऐसा समय आ गया कि आप चलने फिरने के लायक न रहें तो कम से कम एक सर्वेंट का खर्च आप वहन कर सकें, इतना पैसा आपके पास हो. इस तरह आप अपनी जरूरत की चीजें मंगाने के लिए घर के किसी अन्य सदस्य पर निर्भर नहीं होंगे. नौकर आपके रोजमर्रा के कार्यों में भी आपकी मदद करेगा. आपको नहाने धोने के लिए मदद चाहिए तो वह आपकी मदद करेगा.
आपके पास बुढ़ापे के लिए इतना पैसा अवश्य होना चाहिए कि आप अपने मनोरंजन के लिए अपने कमरे में टीवी, कंप्यूटर आदि लगवा सकें. ताकि आपको अकेलापन ना लगे. कई बार घर में एक ही टीवी सबके लिए होता है, ऐसे में बच्चे सारा दिन उस पर अपने कार्यक्रम देखते रहते हैं और बुजुर्गों को यह शिकायत होती है, कि उनकी पसंद का चैनल तो लगता ही नहीं है. तो अपने बुढ़ापे के मनोरंजन के लिए भी सारे इंतजाम पहले से कर के रखें. अपने कमरे में अपना टीवी लगाएं.
इसके अलावा अपने पुराने दोस्तों के संपर्क में भी रहें ताकि उनसे अपने लेवल की बातें कर के आप अपना मन हल्का कर सकें. और आपको ऐसा न लगे कि आप अकेले रह गए हैं. कभी कभी दोस्तों से मिलने भी जाएँ. उनके साथ सैर सपाटा भी करें. बहुत सारे बुजुर्ग ऐसे हैं जिनका जीवनसाथी अब नहीं रहा. ऐसे लोग ज्यादा एकाकीपन महसूस करते हैं. उन्हें तो खासतौर पर अपनी उम्र के लोगों से संपर्क बना कर रखना चाहिए, जो समय समय पर आपसे मिलने भी आएं. Retirement Planning





