Bollywood Updates: ‘जौली एलएलबी-3’ हिंदी भाषा की एक कानूनी कौमेडी ड्रामा फिल्म है जिसे पिछली दोनों फिल्मों के निर्देशक सुभाष कपूर ने लिखा और निर्देशित किया है. इस कड़ी की पहली फिल्म 2013 में रिलीज की गई और दूसरी 2017 में. पहली फिल्म में एडवोकेट जगदीश त्यागी जिन्हें लोग जौली भी कहते हैं, एक उच्च समाज के लड़के राहुल दीवान के खिलाफ पैरवी करते हैं जिस पर लैंड क्रूजर को नशे में चलाने और फुटपाथ पर सो रहे 6 मजदूरों की मौत का कारण बनने का आरोप है.

इस शृंखला की दूसरी फिल्म को 2017 में रिलीज किया गया. उस फिल्म में कहानी लखनऊ आधारित एक वकील की थी जो एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी और एक कथित मृत आतंकवादी के बीच हुई फर्जी मुठभेड़ के मृतक पीडि़त को न्याय दिलाने के लिए एक क्रूर और शक्तिशाली वकील के खिलाफ मुकदमा लड़ता है.

‘जौली एलएलबी’ की तीसरे सीक्वल में अक्षय कुमार, सौरभ शुक्ला और हुमा कुरैशी को दोहराया गया है. इस बार फिल्म में न्याय व्यवस्था की खामियों के बजाय अन्नदाना यानी किसान का मुद्दा उठाया गया है. मगर जो मुद्दा उठाया गया है वह न तो आज चौंकाता है, न उस ने फिलमाया सही गया है. कहानी पिछले पार्ट से आगे बढ़ती है. अब एडवोकेट जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जौली (अक्षय कुमार) कानपुर से निकल कर और जौली (अरशद वारसी) भी मेरठ की गलियों से आगे बढ़ कर राजधानी की कोर्ट में हाथपैर मार रहे हैं. दोनों के बीच केस हथियाने को ले कर टकराव हो जाता है.

इस फिल्म की कहानी 2011 में उत्तर प्रदेश के भट्टा-परसौल में हुए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हुए विरोध से प्रेरित है. फिल्म की कहानी यूपी से हट कर राजस्थान के बीकानेर की है. फिल्म आगे बढ़ती है और मामला बड़ी अदालत में जस्टिस सुंदरलाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) की अदालत में पहुंचता है. यहां किसानों और इंडस्ट्रियलिस्ट की ऐसी टक्कर होती है जो सीधी किसानों की जिंदगी पर असर डालती है. इस कहानी में सब से बड़ा आकर्षण है 2-2 जौलियों का होना. 2-2 जौली एकदूसरे से खूब ?ागड़ते हैं, वह भी जज साहब के सामने. जैसे अदालत न हो, कुश्ती का अखाड़ा हो कोई.

2013 में आई पहली ‘जौली एलएलबी’ में अभिनेता अरशद वारसी ने वकील जोशी की भूमिका खूबसूरती से निभाई थी, दर्शकों ने भी उसे खूब पसंद किया. 2017 में अक्षय कुमार ने अरशद वारसी की जगह ले ली. निर्देशक ने इस फिल्म में दोनों कलाकारों को एकसाथ ला कर हंसी की डोज गायब कर दी है क्योंकि पूरी कहानी लचर है और अदालतों की जगह बिजनैसमैनों की बन गई है.

यह फिल्म प्रोपगेंडा और जबरन देशभक्ति के दौर में मूल मुद्दों को दिखाती है. किसान देश को अन्न देता है, पेट भरता है. मगर जब बात उस के हक की आती है तो सब अपनी आंखें मूंद लेते हैं. यहां विकास के नाम पर किसानों की जमीन तो ले ली जाती है मगर उसे अपनी जमीन देनी है या नहीं, उसे विकल्प नहीं दिया जाता. आम शहरी को इस से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह बुलेट की रफ्तार से दौड़ते देश को देखना चाहता है मगर जब बात खुद के मकान, जमीन पर आती है तो सारे हक याद आ जाते हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स भी इसी बिंदु पर आधारित है.

‘जौली एलएलबी 3’ में पहली 2 जौली फिल्मों के दृश्यों को जबरन दोहराया गया है मानो उन से हास्य पैदा हो जाएगा ही. अरशद वारसी और अक्षय कुमार ने कोशिश की है कि वे पिछली फिल्मों के सीनों और हावभावों को दोहराएं और यहीं फिल्म चूक कर गई है. इस तरह की शृंखला बनने वाली फिल्मों में जब कहानी मजबूत हो तो ही पात्रों का एक सा व्यवहार जम सकता है. अरशद वारसी और अक्षय कुमार ही नहीं, जज बने सौरभ शुक्ला ने भी लगभग वही संवाद दोहराए हैं जो उन्होंने पिछली फिल्मों में दोहराए थे. फिल्म कोर्टरूम ड्रामा कम है. कोर्ट के बाहर का ज्यादा रही है. तेजी से भागती है. फिल्म सवाल छोड़ती है कि देश के लिए विकास का मतलब क्या है? क्या वह विकास जिस पर टौप 20 प्रतिशत आबादी गर्व कर सके या वह जो समावेशी हो. आखिर विकास के मायने क्या हैं?

फिल्म में जस्टिस सुंदर लाल त्रिपाठी का एक सीन है, जिस पर कानून जगत में खूब चर्चा है. दरअसल, खेतान के खिलाफ केस लड़ते हुए सुंदर लाल दोनों जौलियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं. इस पर उन का असिस्टैंट उन से सवाल के अंदाज में कहता है, क्या जौलियों का साथ देना पार्शियलिटी नहीं है? जवाब में सुंदर लाल कहता है कि अब तक वह सिर्फ उसे फौलो कर रहे थे, जो संविधान में लिखा हुआ था मगर इस बार वह उस लिखे के पीछे की भावना को एक मौका देना चाहते हैं. न्याय की परिभाषा में ‘लेटर’ और ‘स्पिरिट’ में से ‘स्पिरिट’ को चुनना चाहते हैं. वह बताते हैं कि दोनों जौली अक्खड़ हैं, बदतमीज हैं, कम पढ़ेलिखे हैं मगर अपने काम को ले कर ईमानदार हैं और एक नेक काम के लिए लड़ रहे हैं.

अक्षय कुमार ने अपने जौली मिश्रा के किरदार को आत्मविश्वास से निभाया है. सौरभ शुक्ला जज त्रिपाठी के किरदार में दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. राम कपूर इस बार वकील बने हैं. अच्छे सधे हुए लगते हैं. गजराव राव ने भ्रष्ट कारोबारी का किरदार निभाया है. अमृताराव और हुमा कुरैशी को नाममात्र के लिए रखा गया है. कहानी में उन का कोई योगदान नहीं है. निर्देशक ने अक्षय और अरशद की जुगलबंदी को बरकरार रखा है. संवाद बढि़या हैं, संगीत कमजोर कड़ी है. फिल्म मनोरंजन को परोसते हुए सामाजिक संदेश भी देती है. कई सीन नाटकीय बन पड़े हैं. फिल्म आप को हंसाती है तो सोचने पर मजबूर भी करती है. फिल्म ने नारा भी दिया है- ‘जय जवान जय किसान.’  Bollywood Updates

 

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