Carrom : कोरोना काल ने पूरे भारत को घरों में कैद कर दिया था. सबकुछ जैसे ठहर सा गया था. पर इस का एक फायदा यह हुआ था कि जिन घरों में सालों से कैरम अंधेरे वाले उमसभरे स्टोर में धूल फांक रहे थे, वे अब बाहर ताजा हवा में सांसें लेने लगे थे. उन्हें झाड़पोंछ कर स्टूल पर रख दिया गया था. उस स्टूल के इर्दगिर्द 4 कुरसियां सजा दी गई थीं.

टिन के डब्बे या पुराने से लकड़ी के बक्से में बंद काली और भूरी गोटियां बाहर निकल आई थीं. लाल रंग की ‘रानी’ गोटी के तो नखरे ही नहीं संभल रहे थे. उन सब का ‘बौस’ स्ट्राइकर अपने जलवे दिखाने को बेताब था.

कहने का मतलब यह है कि आम भारतीय घरों में अपनी पहचान खो रहा कैरम खेल फिर से जिंदा हो गया था. यह एक ऐसा इंडोर गेम है जो बहुत कम जगह घेरता है और मनोरंजन का सस्ता साधन होने के अलावा खिलाड़ी को कैसे फोकस्ड रहना है, यह भी सिखाता है.

जब हम मनोरंजन की बात करते हैं तो हमें कैरम के इर्दगिर्द वे 4 मासूम बच्चे बैठे नजर आते हैं जिन के लिए एक काली गोटी निकालने (पौकेट करने) का मतलब होता है 10 नंबर अपने खाते में जोड़ना और एक सफेद गोटी लेने का मतलब है 20 नंबर अपनी झोली में डालना. लाल गोटी (रानी या क्वीन) के सीधे 50 नंबर.

बच्चों के इस खेल में कैरम कितना बड़ा या छोटा है, इस की कोई परवा नहीं करता और नियम भी ज्यादा मायने नहीं रखते क्योंकि बच्चों को तो कैरम खेलने के बहाने जोड़ने व घटाने की प्रैक्टिस कराई जाती है. इस बहाने बच्चों में एक गुण और विकसित होता है- अपनी बारी का इंतजार करना और पार्टनर को यह बताना कि कौन सी गोटी लेना आसान होगा. थोड़ीबहुत चीटिंग भी इस में जायज मानी जाती है.

पर जब हम कैरम खेलने को थोड़ा सीरियसली लेते हैं तो यही लाल, काली और भूरी गोटियां हमारे लिए स्ट्रैस बस्टर का काम करती हैं. ऐसा माना जाता है कि जब हम इस खेल में खो जाते हैं, तो यह हमारे ब्लडप्रैशर को कंट्रोल में रखता है. इस से हमारा ध्यान काबू में रहता है और यह सामाजिक कौशल को बढ़ाने का बेहतरीन साधन बन जाता है.

यही वजह है कि कैरम परिवार व दोस्तों के साथ अच्छा समय बिताने का एक तरीका ही नहीं है, बल्कि यह हमें रणनीति बनाने में भी मददगार साबित होता है, क्योंकि आप को अपने खेलने की कला का तो अंदाजा होता ही है, साथ ही, आप को यह भी पता करना होता है कि प्रतिद्वंद्वी अपनी चालों की योजना किस तरह बना रहा है.

चैंपियन खिलाड़ी वही होता है जो एक स्ट्राइक में अपनी एक गोटी पौकेट करे, दूसरी को आसान करे और मुमकिन हो तो प्रतिद्वंद्वी की गोटी को मुश्किल बना दे. जो ऐसा करने में कामयाब होता है वह तालियों और शाबाशी का हकदार बनता है.

यह खेल उंगलियों और अंगूठे का सटीक तालमेल ही नहीं है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि किस ताकत से हमें स्ट्राइक करना है और हमारा निशाना और एंगल कितना परफैक्ट होना चाहिए.

इस खेल का सब से खास मनोवैज्ञानिक पहलू यह है कि हम अपने पार्टनर की बात या सलाह पर गौर करते हैं. उस की बताई गई चाल पर यकीन करते हैं. यही आपसी तालमेल हमें प्रैक्टिकल दुनिया की समस्याओं को सुलझाने में कारगर साबित होता है और जब सामने आप का दोस्त या परिवार वाला बैठा होता है तो आप दोनों की बौन्डिंग अलग लैवल की हो जाती है. इस से आप के रिश्ते में मजबूती आती है.

तभी तो कहते हैं कि किसी भी तरह के बोर्ड गेम (कैरम बोर्ड इसी श्रेणी में आता है) को खेलने से शरीर में फील गुड हार्मोन ‘एंडोर्फिन’ बनता है, जो हमें कुदरती रूप से खुशी देता है. चूंकि यह खेल मनोरंजन का साधन भी होता है, तो हारजीत में लगने वाले ठहाके और शिकायतें हमारे दिमाग को बैलेंस करते हैं.

लिहाजा, यह जरूरी नहीं है कि कैरम खेलने के लिए कोरोना जैसी किसी आपदा का इंतजार किया जाए. यह बेहद ही सस्ता खेल है और जगह भी ज्यादा नहीं घेरता है. तो फिर देर किस बात की, आप भी अपनों के साथ प्लाईवुड लकड़ी से बने इस चौकोर बोर्ड के इर्दगिर्द बैठ जाएं और उन्हें बता दें कि उन की नाक के नीचे से ‘रानी’ को पौकेट करने का हुनर आप को भी आता है. Carrom

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