Property Purchase : आजकल मकान या जमीन खरीदते समय उन लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जो सही से जांचपरख नहीं करते. कई बार चालाक लोग भी फ्रौड का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में जानिए कि जमीन या मकान लेते समय किन बातों का ध्यान रखा जाए.

आज के दौर में जमीन की खरीदारी बेहद कठिन काम हो गया है. एक तो जमीन महंगी हो गई है, दूसरे गलत तरह से बेचीखरीदी जा रही है. इस में सरकार की नाकामी सब से अधिक है. भ्रष्टाचार के चलते एक ही जमीन की कईकई रजिस्ट्री हो जा रही हैं. जमीन को बिकवाने और खरीद में बिचौलिए भी होते हैं जिन को प्रौपर्टी डीलर कहा जाता है. वैसे तो हर शहर विकसित हो रहा है लेकिन बड़े शहरों के विकास ने अपने आसपास के गांव और खेती की जमीन को खत्म कर दिया है. गांव के लोग शहर में रहने को प्राथमिकता दे रहे हैं. इस के लिए वे गांव की जमीन बेच कर शहर के छोटेछोटे मकानों में रहने को आ रहे हैं.

लखनऊ, दिल्ली, पटना, भोपाल जैसे शहरों में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं. लखनऊ में आवास विकास परिषद ने अनंत नगर परियोजना में प्लौट अलोट किए हैं उन में 2 हजार स्क्वायर फुट वाले प्लौट की कीमत 80 लाख रुपए हो गई है. सरकार का काम सस्ते दरों पर मकान बेचना होता है न कि किसी प्राइवेट बिल्डर की तरह से मुनाफा कमाना. लखनऊ में प्राइवेट सैक्टर में औसतन वेतन 12 से 15 हजार रुपए प्रतिमाह है. ऐसे में सरकार की ये योजनाएं उस के किस काम की हैं? ऐेसे लोग किसी तरह से पैसा जुटा कर सस्ती जमीन, प्लौट या फ्लैट खरीदते हैं तो वहां धोखाधड़ी में फंस जाते हैं.

कई प्राइवेट बिल्डर ऐसी जगहों पर फ्लैट बना देते हैं या लोग मकान बना लेते हैं जो सरकार द्वारा आवासीय नहीं होती हैं. ऐसे में जब घर बन कर तैयार हो जाते हैं तो सरकारी बुलडोजर वहां घर गिराने पहुंच जाता है. लखनऊ के बिजनौर इलाके में 25 घरों की कालोनी को लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अवैध घोषित कर दिया है जबकि घरों की रजिस्ट्री और बैंक लोन तक हो चुका है. कई परिवार यहां रहने भी आ गए हैं. कोई कालोनी रातोंरात बन कर तैयार नहीं होती है. जब यह बनती है तब तक सरकारी अफसर सोए रहते हैं. अचानक जागते हैं और फिर बुलडोजर ले कर दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं. यह केवल लखनऊ की बात नहीं है. हर जगह यही हालत है.

संभल कर करें जमीन की खरीदारी

आप रहने के लिए मकान खरीद रहे हो या प्लौट या फिर फ्लैट, सावधान रहिए. जमीन के पेपर देख लें. उन के सहीगलत का जितना पता कर सकते हैं, जरूर कर लें. इस के बाद अगर गलत खरीद लिया है तो डरिए नहीं. अपनी जमीन पर कब्जा बनाए रखिए और कोर्ट में लड़ाई लड़िए. डर कर मत भागिए. कोई न कोई हल जरूर निकलेगा. कई तरह के कानून हैं जो आप के पक्ष में होते हैं. अगर आप ने गलत कब्जा नहीं किया है तो आप का नुकसान नहीं होगा.

जमीन की खरीद में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है. जमीन खरीदने से पहले सभी आवश्यक दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए. इस में खसरा खतौनी, जमाबंदी और नक्शा शामिल हैं. इस के अलावा यह भी देखें कि जमीन पर कोई लोन तो नहीं है. जमीन के मालिक का आईडी प्रूफ भी वैरिफाई कर लें. खसरा खतौनी जमीन के मालिकाना हक और सीमाओं को दर्शाता है. जमाबंदी से यह पता चलता है कि यह जमीन राजस्व रिकौर्ड में किस तरह से दर्ज है. जमीन का नक्शा जमीन के आकार व उस के स्थान को दिखाता है.

तहसील और सब रजिस्ट्रार औफिस से 12 साल का रिकौर्ड निकलवा कर जांच करें कि जमीन पहले कभी बंधक तो नहीं रही है. जमीन खरीदने के पहले यह देखना भी जरूरी है कि जमीन की प्रकृति यानी वह कृषि, आवासीय, व्यावसायिक किस प्रकार की है. यदि घर बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं तो यह देख लें कि वहां आवासीय अनुमति है. जमीन खरीदने के बाद स्टैंप ड्यूटी भर कर रजिस्ट्री कराएं और फिर दाखिल खारिज कराएं. हर खरीदार जानकार नहीं होता है. ऐसे में वकील की मदद लें. दस्तावेजों की जांच करवाएं.

अगर जनरल पावर औफ अटौर्नी के आधार पर जमीन खरीदी जा रही है तो वह रजिस्टर्ड होनी चाहिए. रजिस्ट्री के बाद दाखिल खारिज कराना जरूरी है. जमीन खरीदने से पहले क्षेत्र के बारे में जानकारी कर लें. वहां की विकास योजनाएं और भविष्य की संभावनाएं क्या है, यह देख लें. किसी भी संदिग्ध चीज को नजरअंदाज न करें और यदि आवश्यक हो तो कानूनी सलाह लें. अपने दस्तावेजों को सुरक्षित रखें और उन की प्रतियां भी फाइल बना कर रखें. आजकल पेपर रखने का चलन कम हो रहा है. फाइल को डिजिटल स्कैन करा कर भी रखें.

धारा 143 क्यों महत्त्वपूर्ण है

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 143 कृषि भूमि को गैरकृषि उपयोग जैसे आवासीय या व्यावसायिक उददेश्यों के लिए परिवर्तित करने की अनुमति देती है. जमीन के मालिक को सब मजिस्ट्रेट एसडीएम के पास आवेदन करना होता है. यदि एसडीएम संतुष्ट हो जाता है तो वह भूमि के पुनर्वर्गीकरण की घोषणा जारी करता है. यदि आप अपनी खेती की जमीन का कोई दूसरा उपयोग करना चाहते हैं तो धारा 143 के तहत भूमि का रूपांतरण कानूनी रूप से आवश्यक है. अगर आप किसी किसान से अपने मकान बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं तो यह देख लें कि धारा 143 हुई है या नहीं.

जमीन के संबंध में धारा 80 क्या है

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 80 कृषि भूमि को गैरकृषि प्रयोजनों जैसे औद्योगिक, वाणिज्यिक या आवासीय उपयोग के लिए बदलने की अनुमति देती है. भूमिधर, औनलाइन आवेदन कर के अपनी कृषि भूमि को गैरकृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग करने की अनुमति प्राप्त कर सकता है. आवासीय कालोनी, टाउनशिप कालोनी बनाने वाले बिल्डर कई बार बिना अनुमति लिए अपार्टमैंट बना लेते हैं. ऐेसे में परेशानी तब खड़ी होती है जब बनेबनाए फ्लैट गिराने के लिए बुलडोजर आ जाता है.

धारा 143 और धारा 80 दोनों ही जमीन से जुड़े कानून हैं. धारा 143 को अब धारा 80 के रूप में जाना जाता है. यह नए और पुराने कानून का अंतर है. दोनों ही धाराएं एक तरह से ही काम करती हैं. ये जमीन के प्रारूप और प्रयोग को बदलने के लिए प्रयोग की जाती हैं. मकान के लिए जमीन खरीदते समय इस बात का ध्यान हर हाल में रखना चाहिए. अगर किसी अपार्टमैंट में फ्लैट खरीद रहे हैं तो यह तय कर लें कि इस जमीन का भूउपयोग कानूनन सही से बदल लिया गया है या नहीं.

अगर आप शहर के अपने मकान में रह रहे हैं और वहां से कोई बिजनैस करना चाहते हैं या घर में दुकान खोलना चाहते हैं तो भी आप को मकान का उपयोग बदलवाना पड़ेगा. धारा 80 के तहत ही घर में कमर्शियल एक्टिविटी करने की छूट मिलती है. अगर ऐसा नहीं करते तो नगरनिगम आप के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है. कई बार सरकार अपनी तरफ से भी आवासीय को व्यावसायिक उपयोग में बदलने का काम करती है.

फ्लैट खरीदने से पहले कर लें सही से जांच

फ्लैट खरीदने से पहले कई महत्त्वपूर्ण कागजात और कानूनी दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए जिस से सुनिश्चित हो सके कि संपत्ति कानूनी तौर पर सुरक्षित है. इन में बिक्री विलेख यानी सेल डीड, शीर्षक विलेख टाइटल डीड, एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट यानी अदेय प्रमाणपत्र और औक्यूपैंसी सर्टिफिकेट प्रमुख रूप से शामिल हैं. इस के अतिरिक्त, संपत्ति कर की रसीदें देख लें. अगर रेरा कानून लागू है तो देख लें कि जिस जमीन पर अपार्टमैंट बने हैं वह रेरा एपू्रव्ड है या नहीं. इस में सब से महत्त्वपूर्ण सेल डीड होती है. जो फ्लैट के स्वामित्व को बिल्डर से खरीदार को हस्तांतरित करता है. यह सुनिश्चित करें कि यह पंजीकृत है और इस में सभी नियम और शर्तें स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं. टाइटल डीड से यह पता चलता है कि संपत्ति का शीर्षक स्पष्ट है और विक्रेता के पास इसे बेचने का कानूनी अधिकार है.

एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट, जिस को अदेय प्रमाणपत्र कहते हैं, यह बताता है कि संपत्ति पर कोई बकाया या कानूनी देनदारी तो नहीं है, जैसे कि कोई ऋण या कानूनी विवाद. औक्यूपैंसी सर्टिफिकेट यह दर्शाता है कि संपत्ति निर्माण के नियमों और विनियमों के अनुसार पूरी हो चुकी है और रहने योग्य है. संपत्ति कर रसीदें बताती हैं कि संपत्ति कर का भुगतान कर दिया गया है. अगर जमीन रेरा पंजीकरण में आती है तो यह देख लें कि संपत्ति रेरा के तहत पंजीकृत है, यह सुनिश्चित करें कि बिल्डर ने पंजीकरण कराया है और परियोजना रेरा नियमों के आधार पर ही बनी है.

यदि आवश्यक हो तो विभिन्न सरकारी विभागों जैसे नगरनिगम, पानी और बिजली विभाग से एनओसी प्राप्त करें. इस के अतिरिक्त, आप को बिल्डर के साथ डैवलपमैंट एग्रीमैंट, पावर औफ अटौर्नी और अन्य जरूरी दस्तावेजों की भी जांच करनी चाहिए.

रेरा क्या है

रियल एस्टेट विनियमन एवं विकास अधिनियम 2016 को रेरा कहा जाता है. रियल एस्टेट रैगुलेटरी अथौरिटी भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र की निगरानी करता है. घर खरीदारों के हितों को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए रेरा अधिनियम लागू किया गया है. यह आवासीय योजनाओं को बनाने वाले बिल्डर्स और घर खरीदने वाले ग्राहकों के बीच के विवादों को हल करने का काम करता है. इसलिए अगर किसी बिल्डर्स से अपार्टमैंट खरीद रहे हैं तो यह जरूर देखें कि वह परियोजना रेरा द्वारा स्वीकृत है या नहीं.

कुछ राज्यों को छोड़ कर भारत के लगभग सभी राज्यों ने अपने यहां रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करने के लिए राज्य रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण स्थापित कर लिए हैं. यूपी रेरा, रेरा गुजरात, रेरा कर्नाटक, रेरा राजस्थान और रेरा महाराष्ट्र जैसे कई हैं. घर खरीदारों और डैवलपर्स के बीच झगड़े और विवादों की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए इस को बनाया गया था. इस के तहत 500 वर्ग मीटर से ज्यादा क्षेत्रफल वाली सभी रियल एस्टेट परियोजनाओं को रेरा प्राधिकरणों के पास पंजीकृत होना अनिवार्य है. इस के अलावा ऐसे प्रत्येक बिल्डर को फ्लैट के खरीदार को निर्माण की प्रगति की जानकारी देनी होगी. समय सीमा का पालन करना होगा.

रेरा अधिनियम 2016 लागू होने के बाद भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही आई है. रियल एस्टेट डैवलपर्स के लिए किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले राज्य रेरा में पंजीकरण कराना अनिवार्य है, इसलिए भ्रामक दावों की घटनाओं में कमी आई है. रेरा अधिनियम ने राज्यवार नियामक निकायों की स्थापना को अनिवार्य बना दिया है जो प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में रियल एस्टेट विकास पर नजर रखते हैं.

परियोजनाओं में देरी करने या अधिनियम का पालन न करने वाले डैवलपर्स पर जुर्माना लगा कर घर खरीदारों के हितों की रक्षा की जाती है.

घर बनाने से पहले नक्शा पास कराना जरूरी

जब आप अपनी खरीदी जमीन पर मकान बनवाते हैं तो पहले मकान का नक्शा सरकारी विभाग, जैसे शहर में हैं तो वहां के विकास प्राधिकरण और अगर शहरी सीमा से बाहर है तो जिला पंचायत से मकान का नक्शा पास कराना जरूरी होता है. यह नक्शा उत्तर प्रदेश आवास भवन निर्माण एवं विकास उपविधि 2008, जिस को 2025 में संशोधित किया गया है, के अनुसार पास कराया जाता है. नक्शा पहले आर्किटैक्ट से बनवाना पड़ता है. नक्शा बनवाने के लिए पैसा देना पड़ता है.

इस के बाद नक्शा विकास प्राधिकरण, नगरनिगम या फिर जिला पंचायत के औफिस में जमा करना पड़ता है. इस का निर्धारित शुल्क है. इस के बाद इंजीनियर नक्शा पास करते हैं. नक्शा पास कराने के बाद ही मकान बनाने की अनुमति दी जाती है. इस में भ्रष्टाचार खूब होता है. नक्शा पास करने के नाम पर मनमानी की जाती है.

उत्तर प्रदेश में सरकार ने भवन निर्माण से जुड़ी परेशानियों से राहत देने के लिए उत्तर प्रदेश आवास भवन निर्माण एवं विकास उपविधि 2008 में बदलावों को मंजूरी दी है. जिस से अब 1,000 वर्ग फुट तक के प्लौट पर मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराना जरूरी नहीं होगा. इस के अतिरिक्त 5,000 वर्ग फुट तक के प्लौट के लिए सिर्फ आर्किटैक्ट का प्रमाणपत्र ही पर्याप्त होगा. इस के तहत पहले जहां अपार्टमैंट के लिए 2,000 वर्गमीटर प्लौट अनिवार्य था, अब 1,000 वर्गमीटर में भी अपार्टमैंट निर्माण की अनुमति मिल सकेगी. साथ ही, अस्पताल और कमर्शियल बिल्डिंग के लिए 3,000 वर्गमीटर पर्याप्त होगा.

अब घर से ही प्रोफैशनल सर्विसेस चलाने का नियम बना दिया गया है. इस के तहत 25 फीसदी हिस्से में नर्सरी, क्रेच, होम स्टे या फिर वकील, डाक्टर, आर्किटैक्ट, आईटी जैसे प्रोफैशनल्स अपने दफ्तर चला सकेंगे. इस के लिए नक्शे में अलग से उल्लेख करना जरूरी नहीं होगा.

रिहायशी इलाकों में 24 मीटर या उस से चौड़ी सड़क वाले क्षेत्रों में दुकानें और दफ्तर खोले जा सकेंगे. इस के साथ ही वकील, डाक्टर जैसे प्रोफैशनल्स कम चौड़ाई वाली सड़कों पर भी अपने औफिस खोल सकते हैं. 45 मीटर चौड़ी सड़क पर किसी भी ऊंचाई की इमारत बनाने की इजाजत मिलेगी. वहीं, फ्लोर एरिया रेशियो अब तीनगुना तक बढ़ा दिया गया है.

इस तरह से जब मकान बनवाने, फ्लैट खरीदने जा रहे हैं तो उस से जुड़े कानूनी पहलुओं को समझ लें. उन की जानकारी वकीलों द्वारा मिल सकती है. इस के अलावा पत्रपत्रिकाओं और किताबों में यह छपती रहती है. वहां से पता कर सकते हैं. किसी भी लैवल पर किसी भी तरह की शंका का समाधान जरूरी होता है, तभी आप कानूनी पचड़ों से बच सकते हैं.  Property Purchase

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