Romantic Story In Hindi : अभिमन्यु और अनूमेहा एकदूसरे के करीब खड़े थे. कहना बहुतकुछ चाहते थे लेकिन जबान से शब्द ठहरठहर कर निकल रहे थे. यही तो था प्यार.
शाम का धुंधलका धीरेधीरे सैमिनार हौल के बाहर फैल रहा था. 3 दिनों का यह साहित्य और संस्कृति सैमिनार अपनी समापन बेला पर था. हौल में तालियों की गूंज थम चुकी थी. लोग अब अपनेअपने बैग समेट कर विदाई की तैयारी में थे. अभिमन्यु अपनी नोटबुक को बैग में रखते हुए अजीब सी बेचैनी महसूस कर रहा था. उस का मन बारबार अनूमेहा की ओर खिंच रहा था, जो हौल के दूसरे कोने में कुछ सहभागियों से हंसते हुए बातें कर रही थी.
3 दिनों पहले जब वह पहली बार अनूमेहा से मिला था तो उसे नहीं पता था कि यह मुलाकात उस के दिल में इतनी गहरी छाप छोड़ेगी. अनूमेहा की मुसकान, उस की बुद्धिमत्ता और सब से बढ़ कर उस की वो नजरें जो हर बार अभिमन्यु से कुछ कहना चाहती थीं- ये सब अब उस के मन में एक मधुर संगीत की तरह गूंज रहा था. लेकिन आज, विदाई की इस बेला में, एक सवाल उस के मन को मथ रहा था : क्या यह सब यहीं खत्म हो जाएगा?
‘अभिमन्यु,’ अनूमेहा की आवाज ने उसे विचारों के भंवर से बाहर खींचा.
वह मुसकराते हुए उस की ओर बढ़ी अपने दुपट्टे को कंधे पर ठीक करते हुए बोली, ‘‘किस सोच में डूबे हो? सैमिनार खत्म हो गया, अब तो खुश होना चाहिए.’’
अभिमन्यु हलके से मुसकराया, लेकिन उस की आंखों में एक गंभीरता थी, बोला, ‘‘खुशी तो है, लेकिन थोड़ा सा खालीपन भी है.’’
अनूमेहा ने उस की बात को ध्यान से सुना, फिर धीरे से बोली, ‘‘खालीपन? क्यों? कुछ छूट रहा है क्या?’’
उस के इस सवाल ने अभिमन्यु के दिल की धड़कन तेज कर दी. वह चाहता था कि कह दे हां, तुम छूट रही हो. लेकिन शब्द उस के गले में अटक गए. उस ने बस इतना कहा, ‘‘शायद, कुछ खास पल.’’
अनूमेहा ने एक पल के लिए उस की आंखों में देखा, जैसे वह उस के मन की बात पढ़ लेना चाहती हो. फिर, हलका सा हंसती हुई बोली, ‘‘तो उन पलों को और खास क्यों न बनाया जाए? चलो, बाहर बगीचे में थोड़ी देर टहलते हैं.’’
सैमिनार हौल के पीछे एक छोटा सा बगीचा था, जहां गुलमोहर के पेड़ों की छांव में हलकी ठंडी हवा बह रही थी. दोनों चुपचाप चल रहे थे, लेकिन उन की चुप्पी में एक अजीब सा संवाद था.
आखिरकार, अनूमेहा ने चुप्पी तोड़ी. ‘‘अभिमन्यु, तुम्हें याद है, पहले दिन जब हमारी बहस हुई थी काव्य और गद्य पर?’’ वह हंसती हुई बोली, ‘‘मुझे लगा था, तुम कितने जिद्दी हो.’’
अभिमन्यु हंस पड़ा, ‘‘और मुझे लगा था, तुम कितनी समझदार हो और थोड़ी सी नटखट भी.’’
अनूमेहा ने उस की ओर देखा, उस की आंखों में एक शरारत थी. ‘‘नटखट? अच्छा, तो अब तुम मुझे जज करने लगे?’’
‘‘नहीं, जज नहीं,’’ अभिमन्यु ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बस, तुम्हें समझने की कोशिश कर रहा हूं.’’
अनूमेहा रुक गई. उस ने अभिमन्यु की ओर देखा, इस बार उस की मुसकान में एक गहराई थी, ‘‘और, कितना समझ पाए?’’
अभिमन्यु का दिल जोर से धड़का. यह वही पल था जिस का वह इंतजार कर रहा था. वह रुक गया, हिम्मत जुटा कर बोला, ‘‘यह समझ पाया कि तुम वो किताब हो जिसे मैं बारबार पढ़ना चाहता हूं, लेकिन डरता हूं कि कहीं उस का आखिरी पन्ना न आ जाए.’’
अनूमेहा की आंखें चमक उठीं. उस ने हलके से सिर झुकाया जैसे वह अभिमन्यु की बात को अपने दिल में उतार रही हो. फिर, धीरे से बोली, ‘‘और अगर मैं कहूं कि यह किताब अभी पूरी नहीं लिखी गई है?’’
अभिमन्यु ने एक कदम उस की ओर बढ़ाया. उस की आवाज में गर्मजोशी थी. ‘‘तो मैं कहूंगा, क्या मैं इसे लिखने में तुम्हारा साथ दे सकता हूं?’’
बगीचे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया. हवा में गुलमोहर के फूल हलके से लहराए. अनूमेहा ने अभिमन्यु की आंखों में देखा और उस की मुसकान ने सारी बात कह दी. ‘‘शायद, हम कोशिश कर सकते हैं.’’
रात के सितारे अब आसमान में चमक रहे थे. विदाई की बेला तो थी लेकिन अभिमन्यु और अनूमेहा के बीच एक नई शुरुआत हो चुकी थी. हौल के बाहर जब अनूमेहा अपनी गाड़ी की ओर बढ़ी, उस ने पलट कर अभिमन्यु को देखा और कहा, ‘‘कल कौफी? तुम्हारा पसंदीदा कैफे, 4 बजे.’’ अभिमन्यु ने मुसकराते हुए सिर हिलाया, ‘पक्का.’
जैसे ही अनूमेहा की गाड़ी दूर हुई, अभिमन्यु ने आसमान की ओर देखा. उस का दिल एक सवाल के जवाब से भरा था तो एक नई कहानी की शुरुआत से धड़क भी रहा था.
लेखक : संजय सिंह चौहान