71st National Film Awards : फिल्म जगत से जुड़ा 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा हुई. इस घोषणा के साथ ही देशभर में दबी अस्वीकृति देखने को मिली है, फिर चाहे वह ‘जवान’ के लिए शाहरुख़ खान को मिला पुरस्कार हो या केरला स्टोरी जैसी एजेंडेधारी भड़काऊ फिल्म हो.

‘अंधा बांटे रेवड़िया, अपनोंअपनों को दे’. 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की सूची देखने पर यही कहावत याद आती है. यूं तो देश की सरकारें बदलती रही हैं, मगर हर बार फिल्म पुरस्कार घोषित होने पर विवाद जरुर उठते रहे हैं. अब देश के हालात व सरकार के हालात भी बदले हुए हैं, जिस के चलते 90 प्रतिशत लोगों के मुंह पर ताले पड़ गए हैं. सभी को डर सता रहा है कि कहीं उन्हें देशद्रोही न करार दिया जाए. इसलिए सोशल मीडिया पर भी खामोशी छाई हुई है.

अगर शशि थरुर को नजरंदाज कर दिया जाए तो दक्षिण भारत वह भी केरला राज्य से जरुर विरोध के स्वर उठ रहे हैं, जिन पर इस बार की ज्यूरी के अध्यक्ष आशुतोष गोवारीकर ने भी चुप्पी साध रखी है. उन की तरफ से अब तक कोई सफाईनामा पेश नहीं किया गया. यानी कि नक्कार खाने में कोई आवाज सुनाई नहीं देती. शशि थरुर ने जरुर अभिनेता शाहरुख खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार पाने पर बधाई दी है, जबकि उन्हीं के राज्य केरला से तमाम विरोध के स्वर उठ रहे हैं.

हम ने पहले ही कहा कि देश में चाहे जिस दल की सरकार रही हो, पर राष्ट्रीय पुरस्कार निष्पक्ष कभी नहीं रहे. हम आगे बढ़ें उस से पहले एक कटु सत्य की तरफ ध्यान आकर्षित करा देना चाहिए.

पान, गुटका, तंबाकू व सिगरेट को हर इंसान के स्वास्थ्य का दुश्मन माना जाता है. सरकार विज्ञापन करती है, हर सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इस से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है. पर अफसोस हमारे देश में गुटका बेचने वाले तीनों फिल्म कलाकारों को सरकार पुरस्कृत करती आ रही है तो क्या गुटका बेचना अच्छा काम है?

गुटका बेचने वाले पहले कलाकार अजय देवगन को 1998 में फिल्म ‘जख्म’, 2002 में फिल्म ‘द लीजेंड औफ भगत सिंह’, 2020 में फिल्म ‘तान्हाजी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार, 2020 में ही फिल्म ‘तान्हाजी’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था, जिस का निर्माण अजय देवगन ने ही किया था. इतना ही नहीं 2016 में अजय देवगन को पद्मश्री से भी सम्मनित किया गया.

गुटका बेचने वाले दूसरे कलाकार अक्षय कुमार को 2016 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में अक्षय कुमार द्वारा निर्मित व अभिनीत फिल्म ‘पैडमैन’ को ‘बेस्ट फिल्म औन अदर सोशल इशू’ का पुरस्कार दिया गया था और इस ज्यूरी के अध्यक्ष फिल्मकार प्रियदर्शन थे. इन दिनों प्रियदर्शन के निर्देशन में अक्षय कुमार 4 फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं. इस से पहले भी प्रियदर्शन के निर्देशन में अक्षय कुमार कई फिल्में कर चुके थे. 2009 में अक्षय कुमार को पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. गुटका का एड करने वाले तीसरे कलाकार शाहरुख खान को इस वर्ष फिल्म ‘जवान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया है, यह निर्णय फिल्मकार आशुतोष गोवारीकर की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने दिया है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि आशुतोष गोवारीकर ने बतौर लेखक, निर्माता व निर्देशक फिल्म ‘स्वदेश’ बनाई थी, जिस में शाहरुख खान की अहम भूमिका थी. यह फिल्म 17 दिसंबर, 2004 को रिलीज हुई थी. फिल्म को काफी सराहा गया था और फिल्म को बौक्स औफिस पर भी सफलता मिली थी. लेकिन इस फिल्म के बाद शाहरुख खान ने आशुतोष गोवारीकर के संग काम नहीं किया. बौलीवुड के गलियारों में चर्चा है कि अब बहुत जल्द शाहरुख खान, आशुतोष गोवारीकर के निर्देशन में फिल्म कर सकते हैं.

जी हां! यही वजह है कि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए शाहरुख खान को फिल्म ‘जवान’ के लिए चुना जाना रास नहीं आ रहा है. दक्षिण भारत की उर्वशी सहित कई कलाकारों की राय में इस पुरस्कार का हक निर्देशक ब्लेसी की फिल्म ‘अदूजीवितम’ (द गोट लाइफ) के लिए पृथ्वीराज सुकुमारन थे. लेकिन ज्यूरी ने पक्षपात कर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार शाहरुख खान को दे दिया.

बौलीवुड के गलियारों में दबे स्वर में कहा जा रहा है कि ज्यूरी के अध्यक्ष आशुतोष गोवारीकर ने अपने कैरियर की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया. तभी को शाहरुख खान द्वारा निर्मित फिल्म ‘जवान’ के लिए शाहरुख खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और फिल्म ‘जवान के गीत ‘चलैया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार शिल्पा राव को दिया गया. तो वहीं यह चर्चा भी गरम है कि फिल्म ‘जवान’ में जिस तरह से शाहरुख खान का आजाद का किरदार भ्रष्टाचार व अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ता है, आजाद अपने तरीके से सरकार को 7 लाख किसानों का कर्ज माफ करने पर मजबूर करता है. फिल्म में वोट देने से पहले नेता से सवाल करने की बात कही गई है. उस के मद्देनजर सरकार के इशारे पर शाहरुख खान का चयन किया गया है. आखिरकार वर्तमान सरकार भी यही दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कार्यरत है मगर हकीकत में फिल्म ‘जवान’ प्रतिशोध पर आधारित सतही फिल्म है.

इंटरवल से पहले रौबिनहुड की कहानी लगती है, पर इंटरवल के बाद एक बिखरी हुई फिल्म है. इतना ही नहीं, बतौर अभिनेता शाहरुख खान अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे, इस के बावजूद उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा गया. एटली निर्देशित और शाहरुख खान की कंपनी ‘रेड चिल्ली’ निर्मित फिल्म ‘जवान’ में शाहरुख खान की पिता व पुत्र की दोहरी भूमिका है.

हम ने ‘जवान’ के साथ ही पृथ्वीराज सुकुमारन की फिल्म ‘अदूजीवितम’ (द गोट लाइफ) भी देखी हुई है. इस फिल्म में खाड़ी देशों में जानवर की तरह जिंदगी जी रहे अप्रवासी भारतीयों के प्रतिनिधि रूपी नजीब के किरदार को पृथ्वीराज सुकुमारन ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. इस किरदार को निभाने के लिए पृथ्वीराज सुकुमारन ने जिस तरह से अपने शरीर में बदलाव लाया, हर कलाकार के वश की बात नहीं है. किरदार के प्रति उन का समर्पण ही फिल्म में जान फूंकता है.

एक तरफ सोशल मीडिया पर मलयाली सिनेमा के फैंस पृथ्वीराज सुकुमारन और डायरेक्टर ब्लेसी की ‘आदुजीविथम’ उर्फ ‘द गोट लाइफ’ को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं. जबकि इस ज्यूरी में एकमात्र मलयाली प्रतिनिधि प्रदीप नायर ने एक औनलाइन पत्रिका से बात करते हुए ज्यूरी अध्यक्ष आशुतोष गोवारीकर पर आरोप मढ़ते हुए कहा है कि आशुतोष गोवारीकर को फिल्म ‘द गोट लाइफ’ की एक्टिंग-कहानी प्रमाणिक नहीं लगी. उन्होंने इस इंटरव्यू में खुलासा किया कि ब्लेसी निर्देशित फिल्म असल में पुरस्कार की दौड़ में थी, लेकिन अंतिम चरण में पीछे हो गई.

पृथ्वीराज सुकुमारन की बजाय शाहरुख खान के चयन पर अभिनेत्री उर्वशी ने नाराजगी जताई है. अपनी बेबाक राय के लिए जानी जाने वाली उर्वशी ने ‘उल्लोझुक्कू’ में पार्वती के साथ मुख्य भूमिकाओं में से एक की भूमिका निभाने के बावजूद सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार जीता. पर वह कहती हैं, ‘‘पृथ्वीराज सुकुमारन ने इस फिल्म के मुख्य किरदार नजीब के जीवन और उस की दिल दहला देने वाली पीड़ा को दिखाने के लिए समय और मेहनत दी है और शारीरिक रूप से भी बदलाव किया है.

“हम सभी जानते हैं कि यह फिल्म ‘एम्पुराण’ की वजह से है लेकिन पुरस्कार राजनीतिक नहीं हो सकते. पृथ्वीराज सुकुमारन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘एल2: एम्पुराण’ ने 2002 के गुजरात दंगों को दर्शाने वाले दृश्यों को शामिल करने के लिए सुर्खियां बटोरीं. फिल्म को दक्षिणपंथी समूहों से भारी विरोध का सामना करना पड़ा, जिस के बाद निर्माताओं ने स्वेच्छा से 2 मिनट से ज्यादा दृश्यों पर कैंची चलाने के साथ ही खलनायक का नाम भी बदल दिया. इस के बावजूद उन्हें पुरस्कृत न करना गलत है.’’ उर्वशी ने केंद्रीय राज्यमंत्री गोपी से इस की जांच करने की भी मांग की है.

वहीं जूरी के चेयरपर्सन और फिल्ममेकर आशुतोष गोवारिकर को ब्लेसी निर्देशित फिल्म की कहानी और एक्टिंग को ले कर चिंता थी. जूरी के अध्यक्ष आशुतोष गोवारीकर और अन्य लोगों को भी लगा कि एडोप्टेशन में नैचुरल नहीं है और परफौर्मेंस भी प्रामाणिक नहीं लगता.

प्रदीप नायर के अनुसार, ‘आदुजीविथम’ को सर्वश्रेष्ठ गायक और सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए भी विचार किया गया था. लेकिन किसी भी कैटेगरी में अवार्ड न जीतने का कारण ‘तकनीकी चूक’ रही. उन के अनुसार, फिल्म में हाकिम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता केआर गोकुल के नाम पर भी विचार किया गया था, लेकिन उन्हें भी पुरस्कार नहीं दिया गया.

बेन्यामिन के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में पृथ्वीराज सुकुमारन ने नजीब की भूमिका निभाई है, जो एक मलयाली आप्रवासी मजदूर है, जिसे सऊदी अरब में गुलाम बना कर ले जाया जाता है.

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार शाहरुख खान के साथ ही फिल्म ‘‘ट्वेल्थ फेल’ के लिए विक्रांत मैसे को भी मिला है. यानी कि इस पुरस्कार राशि को शाहरुख खान और विक्रांत मैसे में बांटा जाएगा. विक्रांत मैसे की फिल्म ‘ट्वेल्थ फेल’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का भी पुरस्कार मिला है.

यह कितनी अजीब बात है सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले अभिनेता विक्रांत मैसे की हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘‘आंखों की गुस्ताखियां’ बाक्स आफिस पर 7 दिन के अंदर महज 30 लाख रूपए ही एकत्र कर सकी. इस फिल्म की निर्माता को इस फिल्म का निर्माण करने के लिए अपने जेवर व मकान भी बेचना पड़ा.

वैसे विक्रांत मैसे को पुरस्कार मिलने से किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ, हां, अगर उन्हें अवार्ड न मिलता, तो यह अनहोनी कही जाती. नवंबर 2024 में जब सरकार परस्त प्रपोगंडा फिल्म ‘‘द साबरमती रिपोर्ट’ रिलीज हुई थी, तभी लोगों ने मान लिया था कि विक्रांत मैसे को जल्द ही ‘सरकारी मलाई’ मिलने वाली है. इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान जिस तरह से विक्रांत मैसे ने गिरगिट की तरह रंग बदला था, उस से सभी लोग आश्चर्य चकित हो कर रह गए थे. जहां तक 27 फरवरी 2002 के गोधरा कांड पर आधारित फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ और इस में विक्रात मैसे के अभिनय का सवाल है तो इस फिल्म की रिव्यू लिखते हुए हम ने इसे एक स्टार दिया था. गोधरा स्टेशन के नजदीक ट्रैन की दो बोगियों में आग लगने के बाद भड़के दंगों पर यह फिल्म पूरी तरह से खामोश रहती है.

इस के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म के पुरस्कार से ‘धर्मा प्रोडकशन’ की फिल्म ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’ को दिया जाना भी कम आश्चर्य जनक नहीं है. सभी को पता है कि धर्मा प्रोडक्शन के मालिक करण जोहर हैं, पर अब इस कंपनी की आधी हिस्सेदारी आदार पूनावाला के पास है. यह वही आदार पूनावाला हैं, जिन पर देश के प्रधानमंत्री को गर्व है. आदार पूनावाला की ही कंपनी ने प्रधान मंत्री द्वारा तय समय सीमा से पहले करोना वायरस वैक्सीन बना कर इतिहास रचा था. यह अलग बात है कि अब इसी करोना वायरस वैक्सीन को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है.

2020 में करण जोहर को पद्मश्री से नवाजा गया और अब करण जोहर निर्देशित व धर्मा प्रोडक्षन निर्मित फिल्म ‘‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’’ को सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म के स्वर्ण कमल पुरस्कार से नवाजा गया. ज्यूरी कितनी इमानदार रही इस का अहसास इसी बात से किया जा सकता है कि ज्यूरी ने जिसे सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म का पुरस्कार दिया, वही फिल्म यानी कि ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’ बौक्स औफिस पर अपनी लागत तक वसूल नहीं पाई.

विक्की कौशल अभिनीत फिल्म ‘‘सैम बहादुर’ को बेस्ट फीचर फिल्म प्रमोटिंग नैशनल, सोशल और इनवायरमेंटल वैल्यू के पुरस्कार से नवाजा गया.

धार्मिक एनीमेशन तेलुगु फिल्म ‘हनु मान’ को सर्वश्रेष्ठ एनीमेशन फिल्म के ‘स्वर्ण कमल’ पुरस्कार के साथ ही इस फिल्म के एनीमेटर जेट्टी वेंकट कुमार को स्वर्ण कमल पुरस्कार और वीएफएक्स सुपरवाइजर के तौर पर जेट्टी वेंकट कुमार को ही रजत कमल पुरस्कार भी मिला. मतलब कि हिंदू धर्म के महिमा मंडन को सरकारी मलाई.

सर्वाधिक आश्चर्य तो सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के स्वर्ण कमल पुरस्कार से फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ के निर्देशक सुदीप्तो सेन को नवाजा जाना है. इस प्रपोगंडा और धर्म के नाम पर विभाजन पैदा करने वाली फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन ही इस फिल्म के सह लेखक हैं, जिन्हें अदालत से गलत तथ्य परोसने के लिए दांत पड़ी, तब फिल्म में इन्हें डिस्क्लेमर जोड़ कर सफाई देनी पड़ी थी. मगर आशुतोष गेावारीकर जैसे निर्देशक ने सुदीप्तो सेन को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक चुन कर साबित कर दिया कि वह खुद कितने अच्छे निर्देशक हैं.

जब हम ने यह फिल्म देखी थी तो हमें सुदीप्तो सेन की अपरिपक्व व असंवेदनशील लेखक तथा अपरिपक्व निर्देशक की छवि उभरी थी. पूरी फिल्म में निर्देशक भ्रमित नजर आता है. फिल्म में संवाद है कि एक मुख्यमंत्री ने कहा था कि यदि इसी तरह से राज्य में धर्मांतरण होता रहा, तो एक दिन केरला राज्य इस्लामिक राज्य बन जाएगा. यहां पर फिल्मकार को उस मुख्यमंत्री का नाम उजागर करने से परहेज नहीं करना चाहिए था.

बहरहाल, फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ के निर्देशक सुदीप्तो सेन का दावा है कि 2016 और 2018 के बीच केरल में 32,000 महिलाएं आईएसआईएस में शामिल हुई थीं. इतना ही नहीं फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन और रचनात्मक निर्माता विपुल अमृतलाल शाह जोर दे कर कहते हैं कि उन की फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ केरल की ‘32,000 युवा लड़कियों की सच्ची कहानी‘ पर आधारित है, जिन्हें इसलाम धर्म स्वीकार करवाने के बाद अफगानिस्तान-तुर्की-सीरिया की सीमा पर आईएसआईएस शिविरों में बंदी बना कर रखा गया था. जिन का काम इसलाम के जेहादियों की सैक्स भूख को शांत करना था. इन शिविरों में हर लड़की के साथ हर दिन कई बार बलात्कार किया जाता था. यदि यह सच है, तो केरला सरकार ही नहीं केंद्र सरकार की भी इस मसले पर चुप्पी समझ से परे है.

वैसे 2021 में ‘द हिंदू’ अखबार में अफगानिस्तान की जेल मे 4 लड़कियों की कहानी बताई गई थी. फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में धार्मिक वैमनयता को बढ़ाने के साथ ही दर्शकों का ‘ब्रेनवाश’ करती है. फिल्म कहती है कि कोई भी मुसलमान अच्छा नहीं होता. नास्तिकता व साम्यवाद में अंतर नहीं है. राष्ट्रीय पुरस्कार की मर्यादा को बरकरार रखने के लिए ज्यूरी के अध्यक्ष आशुतोष गोवारीकर को खास अजेंडे के तहत बनाई गई फिल्मों से दूरी बना कर रखना चाहिए था. ‘लगान’, ‘स्वदेश’, ‘जोधा अकबर’, ‘पानीपत’, ‘मोहन जोदाड़ो’ जैसी बेहतरीन फिल्म के बेहतरीन निर्देशक आशुतोष गोवारीकर ने नैशनल अर्वाड की ज्यूरी के अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए किसी दबाव में काम किया हो तो बात अलग है.

फिल्म ‘द केरला स्टेारी’ को पुरस्कृत किए जाने पर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी अपनी निराशा व्यक्त की. वहीं ‘काक्षी : अम्मिनिपिला’ और ‘केरल क्राइम फाइल्स 2’ से शोहरत हासिल करने वाली मशहूर अभिनेत्री फर्रा शिबला ने जूरी की आलोचना करते हुए अपने इंस्टाग्राम पर एक लंबा पोस्ट लिखा है. फर्रा ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया, “राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भारतीय सिनेमा में सब से प्रतिष्ठित सम्मान है, जो फिल्म निर्माण में उत्कृष्ट योगदान और उत्कृष्टता का जश्न मनाते हैं. हालांकि, ‘द केरल स्टोरी’ इन मानकों पर खरी नहीं उतरती. फिल्म की कहानी मनगढ़ंत है, जिस का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है. यह केरल के वास्तविक सार, उसकी भाषा, रीतिरिवाजों, परंपराओं या सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने में विफल है.’’

इतना ही नहीं ‘पुणे फिल्म संस्थान’ के छात्र संघ अध्यक्ष गीतांजलि साहू और महासचिव वर्षा दासगुप्ता द्वारा हस्ताक्षरित बयानजारी कर कड़ा विरोध जताया है. उन्होंने लिखा, “यह फैसला न केवल निराशाजनक है, बल्कि खतरनाक भी है. सरकार ने एक बार फिर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. अगर सिनेमा के नाम पर कोई दुष्प्रचार उस के बहुसंख्यकवादी, नफरत से भरे एजेंडे से मेल खाता है, तो वह उसे पुरस्कृत करेगा. द केरल स्टोरी कोई फिल्म नहीं, बल्कि एक हथियार है. यह एक झूठा आख्यान है जिस का उद्देश्य मुसलिम समुदाय को बदनाम करना और एक ऐसे पूरे राज्य को बदनाम करना है जो ऐतिहासिक रूप से सांप्रदायिक सद्भाव, शिक्षा और प्रतिरोध के लिए खड़ा रहा है.’’
एसोसिएशन ने सिनेमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे एक ‘सरकार द्वारा समर्थित संस्था’ ईमानदार कला को मान्यता देने के बजाय हिंसा को वैध बना रही है.

इतना ही नहीं जूरी के एक मात्र मलयाली सदस्य प्रदीप नायर ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए ‘द केरला स्टोरी’ को चुने जाने पर आपत्ति जताई थी. प्रदीप ने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा है, ‘पैनल में एक मलयाली होने के नाते, मैं ने गंभीर आपत्तियां उठाईं. मैं ने सवाल किया कि केरल जैसे राज्य को बदनाम करने वाली और दुष्प्रचार का काम करने वाली फिल्म को राष्ट्रीय सम्मान कैसे माना जा सकता है. मैं ने अपनी चिंताएं सीधे जूरी अध्यक्ष तक भी पहुंचाई लेकिन जूरी के बाकी सदस्यों ने तर्क दिया कि भले ही फिल्म विवादास्पद थी, लेकिन इस में एक प्रासंगिक सामाजिक मुद्दे को उठाया गया है.’’

कुल मिला कर 71 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की ज्यूरी ने पूरी तरह से किसी न किसी के इशारे पर अंधभक्त हो कर काम किया है. इसी वजह से एक खास तरह की सोच रखने वाले फिल्मकारों की प्रपोगंडा व आधार हीन तथा धार्मिक वैमनस्यता बढ़ाने वाली फिल्में पुरस्कृत की गई. इतना ही नहीं पूरी सूची पर गंभीरता से नजर दौड़ाने पर यह भी बात उभर कर आती है कि ज्यूरी के अध्यक्ष व सदस्यों ने निर्णय लेते समय अपने निजी हितों व अपने भावी कैरियर को भी सर्वोपरी रखा.

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