Best Hindi story : ससुराल में एक आज्ञाकारी बहू बन कर रह गई थी वसुधा. प्यार, अधिकार के बजाय औपचारिकता थी उस के व्यवहार में. लेकिन देवरानी तृप्ति ने बहू के रूप में सबकुछ बदल डाला.

आज फिर वसुधा बगैर नाश्ता किए रह गई क्योंकि जैसे ही वह अपनी नाश्ते की प्लेट ले कर बैठी, सास ने आवाज दे दी.
‘‘बहू, देखो वाशिंग मशीन चल चुकी है, कपड़े निकाल लो.’’
हमेशा की तरह बेजुबान सी आज्ञाकारी बहू के रूप में वह झट से प्लेट छोड़ कर ‘जी मांजी’ कहती व साड़ी का पल्लू संभालती मशीन से कपड़े निकाल कर फैलाने को दौड़ पड़ी. जब तक लौट कर आई, बर्फी जो उस घर की पामेरेनियन डौगी थी आराम से सैंडविच खा रही थी. मारे झल्लाहट और क्रोध के उस ने बर्फी को एक चपत लगाई और भुनभनाने लगी, ‘‘भुक्खड़ कहीं की, सुबह दी थी न इतनी ढेर सारी दूधब्रैड तु झे, फिर भी मेरा नाश्ता चट कर गई. पता नहीं कितना खाना चाहिए होता है तु झे?’’ यह कह कर फिर से एक चपत उस सफेद झबरे डौगी को लगाई.
वह समझ रही थी कि लालच में आ कर उस ने मालकिन का खाना खा लिया है, इसलिए कूंकूं करती वह भी वहीं पसर कर बैठ गई.
अब वसुधा ने पेट की भूख को चाय की गरमी से शांत करने की सोची और चाय चढ़ा दी. शायद अदरक कूटने की आवाज उस की सास तक पहुंच रही थी, वह हमेशा की तरह बोल उठी,
‘‘बहू, चाय बना रही हो तो 2 कप फीकी चाय भी निकाल देना अपने ससुरजी और मेरे लिए.’’
मन मार कर फिर उस ने ‘जी मांजी, बना रही हूं’ कह कर दूधचीनी चायपत्ती डाल कर चाय चढ़ाई. जो एक कप चाय 5 मिनट में मिल जाती वही बनाने में मजबूरन 15 मिनट लग गए.
वसुंधरा शादी के पहले बहुत धीरगंभीर और नाम के अनुरूप विस्तृत विचारधारा रखने वाली विनम्र तरुणी थी. शादी के बाद सास ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें वसुधा ही बुलाऊंगी, यह वसुंधरा बहुत बड़ा नाम है.’
विवाहोपरांत ऐसे लगा जैसे नाम के साथ ही उस ने अपना अस्तित्व भी सिकोड़ कर छोटा कर लिया. ननद, देवर, सास, ससुर, पति एक प्यारी सी गुडि़या जैसी बेटी मिट्ठी ही प्राथमिकताओं में सर्वोपरि रहते वसुंधरा से वसुधा बनी, वह शायद अपने मौलिक रूप में बची ही न रही.
देवर की शादी हुई, देवरानी भी कामकाजी आई. सभी बहुत खुश थे पर सब से ज्यादा खुश वसुधा थी. आखिर अब वह भी घर में एक पद ऊपर हो गई थी. उस की देवरानी आ गई और वह जेठानी हो गई थी.

शादी के दूसरे ही दिन औफिस जाते समय देवरानी तृप्ति प्लाजो और कुरता पहने तैयार खड़ी थी. वसुधा अवाक रह गई थी और सोच रही थी, अब तो पक्का यह डांट खाने वाली है.
उसे अपनी ओर विस्मय से देखते तृप्ति ने कहा, ‘‘अरे भाभी, साड़ी में काम करने में असुविधा होती है और बैंक में सब क्लाइंट को थोड़ी न बताना है कि मेरी नई शादी हुई है.’’

तृप्ति पैंसिल हील पहने टकटक करती रसोई मे आ गई और कहने लगी, ‘‘वाव, आलू के परांठे बने हैं नाश्ते में, मु झ से तो कंट्रोल नहीं होता. मैं ले लेती हूं’’ कहतेकहते उस ने 2 परांठे फोल्ड किए और खातेखाते ‘बाय भाभी’ बोलती बाहर निकल गई. वसुधा कैसे रोकती कि रुको तृप्ति, अभी ठाकुरजी को भोग लगा कर नाश्ता लगाती हूं. यह अंधविश्वास ससुराल में उस ने पहले दिन से देखा था.

अपनी आरामकुरसी पर बैठी सास सब देख रही थी और वहीं से वसुधा को आवाज दी, ‘‘बड़ी बहू, जरा यहां तो आना.’’

वह आज बड़ी बहू तो हो गई थी पर अभी भी उसे अपने बड़े होने का एहसास नहीं हो पा रहा था. सासुमां उबल रही थी, ‘‘कैसी लड़की है तृप्ति, कम से कम पूछना तो चाहिए. रसोई जूठी कर दी, अभी मेरे ठाकुरजी भूखे ही हैं. अच्छा सुनो, अब तुम देशी घी का हलवा बना दो और भोग लगा दो.’’
‘‘जी मांजी’’ कह वसुधा फिर रसोई में चली गई. अभी हलवे में शक्कर डाली ही थी कि पति अमर ने आवाज दे दी, ‘‘अरे वसुधा, देखो मिट्ठी उठ गई है और रो रही है. जल्दी आओ, मु झे औफिस के लिए निकलना है.’’
उस ने जल्दीजल्दी भोग लगा कर सास और ससुर को नाश्ता दिया और अमर का नाश्ता टेबल पर रख मिट्ठी को गोद में उठा लिया. वह उस का आंचल पकड़ कर रोए जा रही थी.
अब देवर समर भी तैयार हो कर आ गए और ननद विजया भी कालेज जाने को तैयार थी. देवर ने मिट्ठी को गोद में ले लिया और कहने लगा, ‘‘अले अले, मेला बच्चा क्यों लो लहा है?’’
मिट्ठी ‘मां मां’ कह रोए जा रही थी.
ननद ने कहा, ‘‘भाभी, आप मिट्ठी को देखिए, मैं अपना और समर भैया का नाश्ता लगा लेती हूं.’’
वसुधा मिट्ठी को सीने से चिपकाए अपने कमरे में चली गई.
शाम को फिर जब सब अपनेअपने औफिस से आ गए तो सासुमां ने तृप्ति को आवाज दी, ‘‘छोटी बहू, जरा यहां तो आना.’’
‘‘जी मांजी’’ कह कर वह आ गई.
‘‘सुनो बहू, आज तक वसुधा ने घर की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई है. अब तुम आ गई हो तो थोड़ा उस का हाथ बंटाओ. शाम का खाना आज से तुम पकाओ, उसे अपनी बच्ची के लिए थोड़ा वक्त मिल जाएगा.’’
‘‘ठीक है मां, मैं कुछ प्लान करती हूं,’’ तृप्ति ने कहा.
जब वसुधा शाम को किचन में आई तो तृप्ति ने उसे यह कह कर हटा दिया कि ‘‘भाभी, इट्स माई जौब एंड आई विल डू दिस इन माई वे. आप आराम करिए, अब तक बहुत काम कर लिया आप ने.’’

वसुधा कहती रह गई, ‘‘लाओ मैं कुछ मदद कर दूं,’’ पर तृप्ति ने उसे कमरे में भेज दिया. थोड़ी देर बाद बहुत जोर से हंसने की आवाजें सुन वसुधा ने अपने कमरे से देखा तो देवर समर सब्जी काट रहे थे, तृप्ति मिक्सी चला कर मसाले पीस रही थी और ननद चाय बना रही थी. वसुधा अवाक रह गई और सोचने लगी, बहुत चालू लड़की है यह. इस ने तो शातिराना अंदाज में काम बांट दिए और अपना काम हलका कर लिया.

खैर, सब ने खाना खा लिया. अब तृप्ति और वसुधा टेबल पर बैठी खा रही थीं. तृप्ति ने कहा, ‘‘दी, देखा आप ने, शेयरिंग इज केयरिंग बांटने से कैसे झट से काम हो जाता है.’’ तभी सास की आवाज आई, ‘‘बड़ी बहू, जरा एक गिलास गरम पानी ले कर आओ.’’

जैसे ही वसुधा उठने को तत्पर हुई, तृप्ति ने उस का हाथ पकड़ कर बैठा दिया, ‘‘दी, खाना खत्म कर के उठिए, ऐसे में मां अन्नपूर्णा का अपमान होता है.’’

वसुधा अचकचाहट में बैठ गई पर बारबार सास के कमरे की तरफ देखे जा रही थी. सास ने फिर से आवाज दी, ‘‘अरे बड़ी बहू, जरा गुनगुना पानी तो दे जाओ, दवा खानी है.’’ इस बार तृप्ति बोल उठी, ‘‘लाती हूं मां. बस, खाना खा कर ले आती हूं.’’

वसुधा अवाक रह गई. तृप्ति ने आराम से खाना खत्म किया और पानी गरम करने को रख दिया. अंदर सास भन्नाई बैठी थी क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि जब एक आवाज में पानी न मिला हो.

वसुधा सोच रही थी, कितनी बिंदास है तृप्ति. कभी भी उसे परेशान या उदास नहीं देखा. अपनी मरजी से जिंदगी जी रही है. जबकि मैं सारी उम्र बस घरपरिवार को खुद से ऊपर रखती रही. परिणाम क्या रहा, खुद का अवसाद और कुढ़ना.

छोटी बूआ की बेटी निहारिका की शादी थी. सासुमां यानी बूआ की बड़ी भाभी की राय हमेशा से सर्वाधिक मान्य होती पर इस बार जब खरीदारी करने और शादी की योजनाओं की तैयारी में हाईटैक बहू तृप्ति ने बढ़चढ़ कर योगदान दिया, सासुमां कुछ राय देती, इस से पहले ही उस ने बूआजी को भी अपने सम्मोहिनी वशीकरण मंत्र से मुग्ध कर लिया.

‘‘बूआजी, यह देखिए आजकल हाईटैक जमाना है, सबकुछ उंगलियों की एक क्लिक पर उपलब्ध है. पार्लर से ले कर फूलों की सजावट और भी जो कहिए सबकुछ यहीं से घर बैठेबैठे बुक कर देती हूं.’’ तृप्ति ने यहां भी अपनी धाक जमा ली थी.

अभी तक घर की सभी शादियों में सासुमां की ही राय मान्य होती. खुद को महत्त्व न मिलते देख सासुमां ने कहा, ‘‘सुनो छोटी, आज शाम को मैं ने अपने खानदानी ज्वैलर्स कन्हैया लाल को बुलाया है. लेटैस्ट गहनों और टीका व नथिया सब की डिजाइन देख कर परख कर पसंद कर लेना.’’

तृप्ति फिर बीच में कूद पड़ी, ‘‘ओह, सुनार आ रहा है पर निहारिका एक बार तनिष्क की डिजाइन जरूर देख लो, बहुत खूबसूरत और आधुनिक कशीदाकारी के गहने होते हैं. और तो और, बूआजी, सोना भी खरा पूरे चौबीस कैरेट गोल्ड होता है.’’ उस ने अपनी सम झदार सलाह दे डाली जो सम्मोहिनी वशीकरण मंत्र से पूर्ववत प्रभावित निहारिका को भा भी गई और वह कहने लगी, ‘‘भाभी बिलकुल सच कह रही हैं, मामी. मां, आप सब का जमाना अब गया. अब तो सच में सब गहने भी ब्रैंडेड ही पहनते हैं.’’

सासुमां के चेहरे के उडे़ रंग बता रहे थे कि उन्हें तृप्ति की वजह से हाशिए पर कर दिया गया है जिसे वह बिलकुल भी नहीं पचा पा रही है. वसुधा सबकुछ समझ रही थी.

धूमधाम से शादी संपन्न हुई. पूरे समारोह में फिर से तृप्तितृप्ति की ही गूंज रही चाहे वह लेडीज संगीत में नाचना हो या फिर कोई देनेलेने की राय. बूआजी को भी अब तृप्ति पर ही सब से ज्यादा भरोसा था. निमंत्रण का पर्स जो अब तक सासुमां के पास रखा रहता था, वह तृप्ति ने संभाल लिया था. सासुमां ने आज सुबह सब को आंगन में बुलाया था. वसुधा सशंकित थी और जान रही थी कि कुछ तो गड़बड़ी होगी. लेकिन अनुभवी सासुमां ने बड़ी सावधानी से अपनी बात रखी.

‘‘मैं ने तुम सब को इसलिए बुलाया है कि मैं और तुम्हारे पापा कल सुबह गांव जा रहे हैं. यहां तो सब ठीक चल रहा है लेकिन गांव का घर किसी के न रहने से गिरपड़ रहा है. अब जब हम दोनों वहां रहेंगे तो सबकुछ सही हो जाएगा.’’
अमर ने कहा, ‘‘क्या हो गया मां, तुम नाराज हो क्या?’’
‘‘अरे, मैं भला क्यों नाराज होने लगी. मु झे कोई शिकायत नहीं है. बस, वह पुश्तैनी संपत्ति है, उस की भी देखभाल होनी चाहिए.’’
समर बोल पड़ा, ‘‘मां, इस घर में आए कुछ परिवर्तनों के कारण तुम जा रही हो पर तुम न जाओ मां, जैसे कहोगी वैसा ही पूर्व के जैसा हो जाएगा. पर प्लीज, तुम मत जाओ,’’ समर भर्राए गले से बोल पड़ा.

तृप्ति चुपचाप अपने कमरे में चली गई. वसुधा रसोई में लौट गई, वह जानती थी, यह सब मांजी ने तृप्ति के कारण ही निर्णय लिया है. वह खाना बनाने में जुट गई. रात का खाना तृप्ति सब की मदद ले कर बनाती थी पर रसोई में किसी को न पा कर वसुधा ने सोचा कि वह खुद ही खाने की तैयारी करे पर उसे सासुमां के कमरे से जोरजोर की हंसने की आवाजें सुनाई दे रही थीं. वह धीरेधीरे सासुमां के कमरे में पहुंच गई. वहां का नजारा अजीब ही था. तृप्ति सासुमां की गोद में सिर रख कर जमीन पर बैठी थी और सासुमां उस का सिर सहला रही थीं. वसुधा को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘आओ बेटी, यहां आओ, मेरे पास बैठो.’’ वसुधा स्तब्ध थी. आज वह बहू, फिर बड़ी बहू से बेटी कैसे बन गई.

वसुधा धीरे से बैठ गई. सासुमां ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखो न, तृप्ति ने आ कर रोरो कर मु झे भावनात्मक रूप से कमजोर बना दिया और कसम दे कर रोक लिया, कहने लगी कि कल उस का बर्थडे है, यहां तो उस के मां और पापा हम दोनों ही हैं, हम चले गए तो उसे आशीर्वाद कौन देगा. शादी के बाद यह उस का पहला बर्थडे है. बिना हम सब के आशीर्वाद के वह नहीं मना सकती. इसलिए या तो हम रुकें या फिर वह भी गांव चलेगी, बतातेबताते सासुमां हंसने लगी, ‘एकदम बच्चों जैसी जिद पकड़ ली इस ने, आखिर हार कर हमें रुकना पड़ा.’’

वसुधा बोल उठी, ‘‘यह तो बहुत अच्छा किया मांजी जो आप रुक गईं. मैं चाय बनाती हूं’’ कह कर वह रसोई की ओर जाने को मुड़ी ही थी कि तृप्ति उठ गई, कहने लगी, ‘‘वेट वेट, भाभी, मैं भी आती हूं.’’ और उस ने सब से पहले सासुमां को कस के गले लगा कर कहा, ‘‘थैंक्यू सो मच मां. आप नहीं जानतीं कि आज मैं कितनी खुश हूं जो आप को रोक सकी.’’ सासुमां हंस रही थी और तृप्ति वसुधा का हाथ पकड़ कर रसोई की तरफ चल दी.

वसुधा ने कहा, ‘‘तू ने असंभव को संभव कर दिया, तृप्ति. सासुमां को मनाना किसी के वश का नहीं था.’’ तृप्ति बोल उठी, ‘‘अरे भाभी, थोड़ा ग्लिसरीन लगाया और थोड़ा सा झूठ बोलने से अगर वह मान जाती है तो मैं ने सोचा, हर्ज ही क्या है.’’
‘‘क्या कह रही हो तृप्ति, तुम ने ग्लिसरीन लगाई रोने के लिए और कल तुम्हारा बर्थडे नहीं है?’’ वसुधा अवाक थी.

कल मेरा बर्थडे भले न हो, दी, लेकिन मांजी का वरदहस्त इस घर पर होना ही चाहिए वरना यह घरौंदा तिनके के जैसे बिखर जाएगा. बस, इसी की कोशिश की मैं ने कि वृक्ष अपनी जड़ों से न अलग हो सके.

चाय बन गई थी, उबलते हुए अपना रंग छोड़ रही थी और वसुधा सोच रही थी कि मैं ने तो कभी भी इतने हठ, अधिकार और प्यार से कुछ भी नहीं किया. दरअसल मैं सारा दिन काम करती झल्लाती रहती थी और औपचारिकताओं के तानेबाने के साथ बंधी ससुराल में बंधन महसूस करती रह गई. मैं ने जैसे औपचारिक व्यवहार किया, बदले में भी औपचारिक प्यार मिला. इस लड़की तृप्ति ने तो हृदय से बिना किसी बाहृय आवरण के संपूर्णता के साथ बिना लागलपेट उन बंधनों को काट कर स्वच्छंद माहौल बना लिया और फिर प्यार के मंत्र फूंक कर सब को अपना बना लिया.

मु झे दुख हो रहा था सासुमां के जाने का पर मेरा हृदय तो निर्विकार भाव में था. मैं ने एक बार भी उन्हें नहीं रोका और इस ने जुगत लगा कर उन्हें रोक भी लिया. सच में तृप्ति के वशीकरण सम्मोहिनी मंत्र केवल ढाई शब्द से बने हैं- प्यार.

तभी तृप्ति ने टोका, ‘‘अरे दी, आज सब को कड़क चाय पिलाएंगे. क्या चाय उबल गई है, लाइए मैं सब को दे आती हूं और मेरी मिट्ठी के लिए दूध के साथ बिस्कुट निकाल लाइए, वह मेरे साथ खेलखेल के खा लेती है.’’

‘‘हांहां, लाती हूं,’’ वसुधा ने कहा और मन में सोचने लगी, तुम्हारा वशीकरण सम्मोहिनी मंत्र उस छोटी बच्ची पर भला कैसे न चलता और मैं भी कहां अछूती रही तृप्ति के सम्मोहिनी मंत्र के मायाजाल से. बांध लिया इस ने मु झे भी अपने प्रेमपाश में.

लेखिका : अरुणिमा

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