Donald Trump : अमेरिका में लोकतांत्रिक शक्तियों ने मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) गुट का मुकाबला करने की ठान ली है. बजाय दूसरे बहुत से देशों के जहां वोट के खेल से सत्ता हथियार कर बने तानाशाहों के सामने लोगों ने हथियार डाल दिए हैं, अमेरिका में पिछले 5 अप्रैल को वहां के 1,200 शहरों की राज्य विधानसभाओं, फैडरल सरकार के दफ्तरों, पोस्टऔफिसों, शहर के चौराहों आदि पर हजारोंहजारों की संख्या में जमा हुए लोगों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ नारे लगा व पोस्टर दिखा कर यह जता दिया कि डैमोक्रेसी को बचाने के लिए वे कुछ कर सकते हैं.
ये आंदोलनकारी फिर जमा होंगे और शायद तब तक आंदोलन जारी रखेंगे जब तक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को समझ न आ जाए कि 4 नवंबर, 2024 को चुनाव जीतने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें अमेरिका का तानाबाना पलटने का हक मिल गया है. अमेरिका की 5 अप्रैल की जन मुहिम की सफलता को देख कर यूरोप के कई देश, जहां चर्च और कट्टरपंथियों की मिलीजुली ताकतों ने कुछ पार्टियों पर कब्जा कर लिया है और वे सैंसिटिव मामलों की आड़ में वोटरों को उकसा कर लोकतंत्र की समाप्ति की तैयारी कर रहे थे, चौकन्ने हो गए हैं.
डोनाल्ड ट्रंप को मनमरजी के बहुत से फैसले लेने की छूट थी पर उन्होंने एकसाथ कई मोरचे खोल दिए, विदेशियों के खिलाफ ही नहीं बल्कि अमेरिकियों के खिलाफ भी. जैसे भारत में भारतीय मुसलिमों के खिलाफ लगातार माहौल बनाया जा रहा है कुछ वैसा ही डोनाल्ड ट्रंप की पिट्ठू सेना मागा ने इमीग्रैंट्स के खिलाफ बनाया जिन में दक्षिणी अमेरिका, पश्चिम एशिया, भारत, फिलीपींस जैसे देशो से कागजों या बिना कागजों के अमेरिका में घुसे लोगों को अमेरिका का दुश्मन घोषित कर दिया जबकि वे वहां के खेतों, फैक्ट्रियों, रैस्तरांओं, सडक़ों की सफाई, कंस्ट्रक्शन में लगे थे और अमेरिका को अमीर बना रहे थे.
यह नहीं, ट्रंप ने दूसरे देशों से कस्टम ड्यूटी का लफड़ा भी ले लिया जिस से आयात महंगा हो गया और निर्यात बढ़ा नहीं. तीसरी ओर आम अमेरिकी से मैडिकेयर की सुविधा छीन ली. ओबामा के युग में जो सस्ती मैडिकल हैल्प मिलनी शुरू हुई थी, वह बंद कर दी.
अमेरिकी मागा ने स्कूलों की किताबों को बदलना शुरू कर दिया और कहलवाना शुरू कर दिया कि न तो कभी गोरों ने कालों पर अत्याचार किए थे और न हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ मुहिम में लाखों मारे थे. यही हमारे यहां भारत में भी हो रहा है. सारी किताबें दोबारा लिखाई जा रही हैं. चिकित्सा के नाम पर आयुर्वेदिक इलाज थोपा जा रहा है. असली चिकित्सा महंगी होती जा रही है.
ट्रंप के कदम अमेरिका के लोकतांत्रिक तानेबाने को तोड़ रहे हैं जो यूरोप के कितने ही देशों में हो रहा है और हमारे भारत में भी हो रहा है. अमेरिका के डैमोक्रेट्स ने 1,200 शहरों में 1,400 जगह आंदोलन कर के, धरनेप्रदर्शन कर के सोते हुए लोकतांत्रिक लोगों को नींद से जगा दिया है. जागनेजगाने की यह गोली क्या यूरोप, भारत, एशिया के दूसरे लोकतांत्रिक देश लेंगे?
1977 में जनता ने जता दिया था कि भारत में इमरजैंसी जैसी हालत स्वीकार नहीं है. 1989 में कांग्रेस को भारी बहुमत दिला कर यह बता दिया था कि भारत की अखंडता से खिलवाड़ संभव नहीं है. अमेरिका ने लोकतंत्र को बचाने और फैलाने में पिछले 200 सालों में बहुतकुछ किया है. उसे हाथ से निकलने न दें. दूसरे देश लोकतंत्र की कीमत समझें. एक सिरफिरी पार्टी लोकतंत्र को नष्ट कर सकती है.