Hindi Kavita : “चलो करें फिर से एक आज नई शुरुआत,
तोड़ दें हर बंधन, खोल दे मन के सारे द्वार,
स्वछंद हो मन -आँगन, पँख पसार दूर तलक फैले आसमान में,
कर खुद को मुक्त,
आज जो मन हो कर लेते हैं, जी भर कर जी ही लेते हैं। कितने बंधन लादे खुद पर।
सारा जीवन जीते रहे घुट -घुट कर।
पंछियों की उड़ान देखी,
जी किया इसी तरह उडूं विस्तृत नभ में,
खुद को हमने बाँध लिया क्यों जीवन -समर में
किन्तु कुछ कर न सके पँख ही कतरे गए,
अच्छा जो बीत गई वह गई बात,
चलो फिर से करें आज एक नई शुरुआत।
लेखिका : निमिषा वर्मा, समस्तीपुर, बिहार
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