Hindi Kavita : "चलो करें फिर से एक आज नई शुरुआत,
तोड़ दें हर बंधन, खोल दे मन के सारे द्वार,
स्वछंद हो मन -आँगन, पँख पसार दूर तलक फैले आसमान में,
कर खुद को मुक्त,
आज जो मन हो कर लेते हैं, जी भर कर जी ही लेते हैं। कितने बंधन लादे खुद पर।
सारा जीवन जीते रहे घुट -घुट कर।
पंछियों की उड़ान देखी,
जी किया इसी तरह उडूं विस्तृत नभ में,
खुद को हमने बाँध लिया क्यों जीवन -समर में
किन्तु कुछ कर न सके पँख ही कतरे गए,
अच्छा जो बीत गई वह गई बात,
चलो फिर से करें आज एक नई शुरुआत।
लेखिका : निमिषा वर्मा, समस्तीपुर, बिहार
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और