Illegal Immigrants : मोबाइल कल्चर ने देश के युवा को किस तरह निकम्मा बना दिया है और किस तरह वे रील्स की जिंदगी को असली जिंदगी समझने लगे हैं, यह अमेरिका के नए खब्ती, डिक्टेटर टाइप प्रैसिडैंट डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इल्लीगल इमीग्रैंट्स को देश से निकालने की लाइन में लगे 104 इंडियन यूथ्स को इंडिया भेजने से पता चल रहा है. इन यूथ्स में 33 गुजरात के हैं, 33 हरियाणा के और 31 पंजाब के.

इन सभी यूथ ने घरवालों की जमापूंजी खर्च करा कर इल्लीगल तरीके से अमेरिका में घुसने की प्लानिंग की थी. और जब ग्राहक हो तो सप्लायर्स आ ही जाते हैं. मैनपावर का काम कर रहे ट्रैवल एजेंट युवाओं के पेरैंट्स से भारत में किस्तों में पैसे लेते रहते थे और अलगअलग देशों से होते हुए ये युवा अमेरिका में इल्लीगल तरीके से घुसेड़ दिए गए. अब पकड़े गए.

इन 104 भारतियों को हथकड़ियां पहना कर अमेरिकी मिलिट्री प्लेन से भारत लाया गया. अहमदाबाद न ले जा कर हवाई जहाज को अमृतसर में उतारा गया जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है ताकि गुजरात मौडल की इज्जत थोड़ी बची रहे. लेकिन आज सोशल मीडिया इतना तेज है कि असली बातें नकली व लुभावनी बातों के बीच से निकल ही आती हैं. अमेरिकी मिलिट्री प्लेन के अमृतसर के हवाई अड्डे पर उतरने की रील्स सामने आईं तो सोशल मीडिया ने उन रील्स की पोल खोल दी जिन में कौंपटन जैसे शहरों में 60 फीसदी इडियंस के होने की बात बताई जाती है और अमेरिका या दूसरे देशों में इंडियन ओरिजिन के बड़ेबड़े नेताओं के होने के दावे किए जाते हैं.

यह ठीक है कि इंडियन यूथ टैलेंट में किसी से कम नहीं है पर जब कोई देश उन्हें न बुलाए तो वहां जबरदस्ती चोरीछिपे छिप जाना और पूरी वहां की पौपुलेशन में घुलमिल जाना किसी भी ढंग से सही नहीं कहा जा सकता.

वे यूथ असल में रील्र्स के दीवाने उसी तरह हैं जैसे पुराने किस्म के लोग कुंभ जैसे स्टंटस के दीवाने हैं. उन्हें लगता है कि अगर इतने लोग ऐक्सेस पा रहे हैं या कुछ कर रहे हैं तो सही ही होगा. सोशल मीडिया अपनी रिपीटीटिव कैपेसिटी से यूथ की एनालिसिस और ट्रुथ ढूंढ़ने की इंस्टिंक्ट को खत्म कर देता है.

जैसे लोग कुंभ जाते समय यह भूलते रहे कि एक दिन में 1 करोड़ लोग कैसे छोटी सी जगह में डुबकी लगा सकते हैं वैसे ही सोशल मीडिया के स्लेव भूल गए कि भारत से यूरोप या अमेरिका जाना नेपाल जाने की तरह नहीं है. वहां जाने के रस्ते में न सिर्फ बड़े सुदर बीच में हैं बल्कि होस्टाइल कंट्रोल सिस्टम भी है.

इल्लीगल इमीग्रैंट्स को बाहर निकालना डोनाल्ड ट्रंप का वैसा ही हथियार है जैसा नरेंद्र मोदी का अपने देश के मुसलिम नागरिकों को परेशान कर हिंदुओं के वोटों का अपनी पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकरण करना एक हथियार है. डोनाल्ड ट्रंप 7,50,000 इल्लीगल इंडियंस को भारत भेज पाएंगे, इस में शक है क्योंकि हर बार भारीभरकम सी-17 मिलिट्री प्लेन को आधा खाली भेजना आसान और कम खर्चीला नहीं है.

इन यूथ्स को बहकाने के लिए सोशल मीडिया पूरी तरह रिस्पौंसिबल है क्योंकि इस में फैक्ट और फिक्शन को इस तरह मिक्स कर दिया गया है कि पहले के धर्मभीरु लोगों की तरह आज का यूथ साइंस, टैक्नोलौजी पढ़ कर भी बेवकूफ बन कर रह गया है. होश संभालते ही वह मोबाइल का गुलाम हो जाता है और सोशल मीडिया पर वही उसे दिखता है जो फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब उसे दिखाना चाहते हैं. इन सब प्लेटफौर्मों का काम है कि देखने वालों को वही दिखाया जाए और बारबार दिखाया जाए जो वे देखना चाहते हैं.

देश से डंकी बन कर निकले यूथ्स की पहली बड़ी खेप सुर्खियां बन कर लौटी है तो शायद यूथ्स के ब्रेन में अब यह अक्ल आ जाए कि जिंदगी स्क्रीन से बाहर प्रैक्टिकली बहुत बेरहम है. चमकदमक के पीछे जो जिंदगी है वह भारत के बदबूदार, बेरोजगारी से भरे, बिखरे शहरों से कम बदतर नहीं है.

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