Hindi Story : अपने अधूरे प्यार को पाने की लालसा एक बार फिर मन में बलवती हो उठी थी. लेकिन रोज ने मुझे ऐसा आईना दिखाया कि उस में अपना चेहरा देख मुझे शर्म आ रही थी.
दादाजी मुझे बहुत स्नेह करते थे. मैं केवल उन के लिए हुक्का भर कर स्कूल चला जाता था. पढ़ने में तेज था, इसलिए 12वीं में मैरिट लिस्ट में आया था. उन्हीं दिनों एनडीए यानी सेना में अफसर बनने के लिए नैशनल डिफैंस अकादमी के लिए वैकेंसी निकली. मैं ने दादाजी के सहयोग से फौर्म भर कर भेज दिया. पूरे भारत में परीक्षा एकसाथ हुई थी. मैं सफल कैंडिडेट था.
मैं 4 साल के लिए नैशनल डिफैंस अकादमी में चला गया. वहां ट्रेनिंग के साथ ग्रेजुएशन करवाई जानी थी. फिर हमारे दिमागों के हिसाब से हमें सेना के तीनों अंगों में भेजा जाना था. किसी को नेवी में जगह मिली तो वे नेवल अकादमी में ट्रेनिंग के लिए चले गए. किसी को एयरफोर्स में जगह मिली, वे एयरफोर्स अकादमी में चले गए. मु?ो सेना आयुद्ध कोर में जगह मिली. मैं आईएमए देहरादून में आ गया था.
अंतिम परेड में मैं ने अपने दादू को बुलाया था. जब मैं बहुत छोटा था तभी मांबाप दुनिया छोड़ गए थे. मु?ो दादू ने ही पाला था. अफसर बनने के बाद मैं कई जगह पोस्ट हुआ. एक लंबी सेवा कर के मैं कर्नल रैंक से रिटायर्ड हुआ था. इस बीच, दादू मु?ो छोड़ कर चले गए थे. मेरे लिए जमीन का 500 गज का एक टुकड़ा छोड़ गए थे. पुश्तैनी जमीन और मकान चाचा को दे दिया था. मैं ने कोई एतराज नहीं किया था. सर्विस में रहते मैं ने 500 गज में कोठी बनवा ली थी.
शादी हुई थी. एक बेटा भी हुआ. लेकिन वह अपनी मां को ले कर विदेश में बस गया. मैं अपना देश छोड़ कर जाना नहीं चाहता था, नहीं गया.
मैं जब यहां शिफ्ट हुआ तो नितांत अकेला था. मैं ने अपने पुराने नौकर गिरधारी और उस की पत्नी दीपा को घर के रोज के कामों, जैसे साफसफाई और खाना बनाने आदि के लिए रख लिया था.
यहां कलानौर में मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं. राजबीर, प्यार से मैं उसे रोज कहा करता था. सुंदर, सजीली और गुगलीमुगली थी. वह 7वीं में मेरी कलास में आई थी. पढ़ाई के कारण मेरी उस से दोस्ती हुई थी. वह भी पढ़ने में बहुत तेज थी. 12वीं में मेरे साथ वह भी मैरिट लिस्ट में थी. मैं सेना में चला गया था. वह कहां चली गई थी, पता नहीं चला था. आज याद आई तो मैं ने गिरधारी से पूछा. उस ने कहा, ‘‘आजकल वह यहीं रह रही है. गुरदासपुर में प्रोफैसर है. रोज आतीजाती है.’’
बस, उस ने इतना ही बताया. कल संडे था. उस की छुट्टी होगी. मैं ने उस से मिलने का मन बना लिया था. मैं नाश्ता कर के ऐसे ही मिलने के लिए निकला. मन के भीतर आज भी उस के लिए आकर्षण था चाहे हम एकदूसरे से इस का इजहार नहीं कर पाए थे.
मुझे याद है, मैं उस समय 10वीं में पढ़ता था. सुबह उठ कर नहर के किनारे घूमा करता था और लहरों में खो जाता था. मन से मैं नदी से प्रश्न पूछता था, ‘हे नदी, अगर तुम अपनी आई पर आओ तो अपने बहाव में बड़ेबड़े पहाड़, पत्थर और वृक्षों को बहा कर ले जाती हो. लेकिन बीच मध्य में एक पतली शहतूत की टहनी का तुम कुछ बिगाड़ नहीं सकती हो?’
मुझे लगा, नदी ने जवाब दिया था, ‘वह मेरे सामने झुक जाती है.’
मैं ने समझ लिया था कि झुक कर जीना खराब नहीं है. झुक कर सीधे न होना खराब है. ?ाकना एक समस्या है, जिस का समाधान निकाल कर आगे बढ़ना ही जीवनधारा है. मेरे नन्हे मन में उस समय ?ाकने वाली बात ऐसी ही समझ में आई थी.
उस रोज, रोज ने मुझे एकदम सामने आ कर चौंका दिया था. नदी की ओर उछाला गया यही प्रश्न मैं ने रोज से किया था. उस ने हंस कर कहा था, ‘छोड़ो न ये फिलौसफी की बातें. कितना अच्छा मौसम है, कुछ और बातें करो न.’
उस रोज शायद पहली बार हम एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे. कुछ न कह कर थोड़ी देर हम घूमे थे और लौट आए थे. स्कूल में भी हम अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे. लेकिन जब भी अकेले में मिलते थे, वह अपनी खूबसूरत आंखों सें मुझे देखती, फिर उन्हें झुका कर भाग जाती थी. इन सब का, आंखमिचौनी का हमारी पढ़ाई पर असर नहीं पड़ा था. मैं 4 साल की ट्रेनिंग पर जाने से पहले उस से मिलने गया था. विदा करने पर उस की आंखें डबडबाई महसूस हुई थीं मुझे . मैं उन आंखों को कभी भूल नहीं पाया था. आज बरसों बाद जब मैं उस से मिलने जा रहा था तो मुझे सब याद आ रहा था.
मैं ने उस के घर की घंटी बजाई तो एक अनजान औरत ने दरवाजा खोला. मैं ने उसे अपना परिचय देते हुए राजबीर से मिलने की इच्छा जाहिर की.
उस ने कहा, ‘‘ठहरें, मैं पूछती हूं.’’
थोड़ी देर बाद उस ने मुझे ड्राइंगरूम में ला कर बैठा दिया. रोज आई तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया था. गुगलीमुगली से वह एकदम पतली हो गई थी. खूबसूरत आंखों पर मोटा चश्मा लग गया था. जीवन के 50 साल पार करने पर भी उस की खूबसूरती में कमी नहीं आई थी.
मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो रोज, तुम इतनी बदल कैसे गईं, गुगलीमुगली से इतनी दुबली कैसे हो गईं?’’
‘‘देख लें, आप की रोज को वक्त और ठोकरों ने इतना घिसा दिया कि मैं ऐसी हो गई.’’
मैं ने उस की आंखों में बचपन जैसा प्यार देखा. आंखें नम भी थीं.
उस ने बात बदल दी. शायद इस पर वह आगे बात नहीं करना चाहती थी. उस ने पूछा, ‘‘आप को तो विदेश में होना चाहिए था. आप यहां कैसे?’’
मैं जल्दी से उस की बात का उत्तर नहीं दे पाया था. फिर कहा, ‘‘रोज, मैं अपना देश छोड़ कर जाना नहीं चाहता था और वे यहां मेरे साथ रहना नहीं चाहते थे. इसलिए वे विदेश में हैं और मैं यहां.’’
‘‘कैसी विडंबना है कि आप की रोज भी बिखर गई और आप भी बिखर गए हैं.’’
‘‘यह बिखरनामिलना थोड़े से बदलाव के साथ सब के साथ है. मेरा मोह मेरे गांव कलानौर के साथ था. मैं यहां रह गया. मेरी पत्नी और बेटे का मोह विदेश से था वे वहां चले गए और बस गए. मैं नहीं रहूंगा तो मेरी बनाई यह कोठी भी नहीं रहेगी, जैसे दादू का पुराना मकान बेच कर चाचू दिल्ली में बस गए हैं.’’
‘‘आप ठीक कहते हैं. मेरी शादी हुई और मैं भी बिखर गई. 2 साल में ही मुझे मानसिक व शारीरिक रूप से इतना टौर्चर किया गया कि मेरे सारे मोह छूट गए. एक बेटा हुआ. वह भी उन के पास है. यह देखो, मेरे शरीर पर पड़े निशानों से आप अनुमान लगा सकते हो.’’
रोज ने अपनी टांगों, बाजुओं पर पड़े निशान दिखा दिए, ‘‘शरीर पर और जगह भी निशान हैं जो मैं दिखा नहीं सकती.’’
‘‘पर ऐसा क्यों हुआ, रोज?’’
‘‘पता नहीं ऐसा क्यों हुआ. लड़की बहुत से सपने ले कर अपनी ससुराल जाती है. वह घर बसाने जाती है, बिगाड़ने नहीं. मैं भी गई थी. आदमी के मिलने व बरतने पर ही पता चलता है कि कौन कैसा है. बहुत अमीर थे लेकिन साइको थे. वे मुझे मारने का बहाना ढूंढ़ते रहते थे. मैं ने अपनी ओर से बहुत सहन किया और प्यार से समझने की कोशिश भी की लेकिन उन के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया.
‘‘मैं गुरदासपुर नईनई प्रोफैसर लगी थी. वे चाहते थे मैं नौकरी छोड़ कर घर को संभालूं. घर संभालने के लिए नौकरचाकर थे. मेरी घर में जरूरत नहीं थी. मैं नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थी. इस बात पर भी वे उखड़े रहते थे. मैं प्रैग्नैंट हुई तो मैं
ने लंबी छुट्टी ले ली. बेटा हुआ. बेटे को संभालने के लिए एक दाई तय कर के फिर नौकरी जौइन कर ली. मेरे पीरियड खाली होते तो मैं आ कर ब्रैस्ट फीडिंग दे जाती. उन का नौकरी न करने का आग्रह और रोजरोज मारना मुझ से बरदाश्त न हुआ.
‘‘बेटे को साथ ले कर बाऊजी मुझे यहां ले आए. मैं ने तलाक का मुकदमा किया और महिला जज को मैं ने अपने शरीर के जख्म भी दिखाए. उन्होंने मु?ो कुछ देर साथ रहने के लिए भी नहीं कहा और तलाक मंजूर कर लिया. लेकिन बेटे का अधिकार मुझे नहीं मिला. मैं ने बेटे का मोह भी छोड़ दिया हालांकि कोर्ट ने महीने में 2 बार मिलने की इजाजत दी थी. सोचा, आदमी नहीं तो बेटा भी नहीं.’’
आगे मैं सुन नहीं पाया था. जल्दी से वहां से चला आया था. मन दुखी था. रोज ने मु?ो रोकने की कोशिश भी नहीं की. मैं सोचता रहा कि ऐसे साइको आदमी से उस के मांबाप ने शादी क्यों की? इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं था. नहर के किनारे रोज मुझे सैर करती रोज मिलती. मैं ने उस से मन का यह प्रश्न पूछा था. उस ने कहा, ‘‘कोर्ट ने भी उन के मांबाप से यही प्रश्न पूछा था. उन का उत्तर था, सोचा था कि शादी के बाद ठीक हो जाएगा.
‘‘आगे जज ने कहा था, इस का मतलब है कि जानते हुए कि आप का बेटा साइको है, आप ने शादी की और एक अच्छी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी. आप को भी सजा मिलनी चाहिए. मैं आप को जेल तो नहीं भेजती लेकिन 10 लाख रुपए का जुर्माना करती हूं जिसे आप रोज के अकांउट में जमा कर के रसीद कोर्ट में जमा करेंगे. रोज जो दहेज अपने साथ लाई थी, एकएक चीज वापस की जाएगी. इस के लिए 2 इंस्पैक्टर तय किए जाएंगे. रोज का कोई सामान वहां नहीं छूटना चाहिए.
‘‘एक हफ्ते में सारा सामान लौट आया था. 10 लाख रुपए भी मेरे अकाउंट में जमा हो गए थे. तब से मैं यहां हूं. मां, बाऊजी इसी गम में चले गए.
‘‘मैं ने कई बार नहर के किनारे घूमते हुए नहर से पूछा था कि तुम तो कहती थीं शहतूत की टहनी मेरे सामने झुक जाती थी इसलिए मैं उसे उखाड़ नहीं पाती थी.’ मैं ने तो झुक कर भी देखा. फिर मैं क्यों उखड़ गई? नदी कुछ देर उग्र हुई, फिर शांत हो कर बहती रही. शायद उस के पास भी मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं था.’’
‘‘हां रोज, कई बातों और प्रश्नों के उत्तर नहीं होते. इसलिए नदी भी अपना गुस्सा दिखा कर शांत हो गई थी.’’
हम दोनों यों ही चुपचाप नदी के किनारे घूमते रहे थे. फिर मैं ने पूछा, ‘‘रोज, तुम्हारे मन ने किसी और पुरुष को एडमायर नहीं किया था?’’
वह बहुत देर चुप रही थी. शायद कहने की हिम्मत जुटा रही थी. फिर कहा, ‘‘तुम्हें किया था लेकिन तुम बहुत पहले मेरे हाथ से निकल गए थे. मैं अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई थी. वह समय ही ऐसा था. इस गलती की सजा मैं आज भुगत रही हूं.’’
‘‘हां रोज, गलती समझो या लोकलाज. उस समय ‘आई लव यू’ कहने का जमाना नहीं था. लेकिन आज है. क्या हम अब से अपनी वह जिंदगी शुरू नहीं कर सकते?’’
‘‘कैसे?’’
‘‘मैं ने अपनी पत्नी को बहुत बार लिखा कि वह मेरे साथ आ कर रहे. उस ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि वह मुझे छोड़ सकती है लेकिन आ कर मेरे साथ रह नहीं सकती. सो, उस से तलाक ले कर हम इस अधूरे प्यार को पूरा कर सकते हैं.’’
रोज ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और तेजी से अपने घर की ओर चल दी. मैं बहुत देर तक वहां की बैंच पर बैठा रहा. फिर घर लौट आया. 2 दिन रोज सैर के लिए नहीं आई. मेरे मन के भीतर पछतावा था कि मैं ने रोज से ऐसा क्यों कहा. तीसरे दिन वह मेरे साथ चुपचाप बैठ गई थी. मैं ने एक बार उसे देखा, फिर नहर की लहरों में खो गया था.
थोड़ी देर बैठने के बाद रोज ने प्यार, लेकिन दृढ़ता से कहा था, ‘‘मैं नारी हूं, पूर्ण नारी. क्या हुआ मैं ने तलाक लिया. मैं ने सृजन किया है. एक बेटे की मां हूं. मैं उस से मिलने नहीं जाती लेकिन वह मुझ से मिलने आता है. मुझे मां का एहसास दे कर चला जाता है. लोकलाज से ही सही, मैं उम्र के इस दौर में किसी बंधन में नहीं बंधूंगी. मैं पुरुष नहीं हूं जो ‘तू नहीं और सही’ की वृत्ति रखूं. इस अधूरे प्यार को दोस्ती के रूप में पूरा रहने दो. आप की पत्नी जीवित है. विदेश में होने पर भी वह आप की पत्नी है.
‘‘मैं स्वतंत्र हूं, बिलकुल स्वतंत्र. अपनी मरजी की मालिक. अपनी मरजी से उठती हूं. अपनी मरजी से बैठती हूं. अपनी मरजी से जाती हूं. नहर की इन लहरों ने भी अपने मूक संदेश में यही कहा कि तुम उखड़ी जरूर हो लेकिन स्थापित हो गई हो. तुम ने पति जैसे पहाड़ को अपने जीवन से उखाड़ फेंका है. मेरी तरह बहो शांत और शाश्वत. छोटीमोटी बाधाएं आएं तो उन्हें उखाड़ फेंको. तुम नारी हो, पुरुष नहीं.’’
फिर वह चुप हो गई थी. थोड़ी देर बैठ कर वह लौट गई थी, एक तरह से मेरे मुंह पर तमाचा मार कर, पूरे पुरुष समाज पर तमाचा मार कर ‘तू नहीं और सही’ वृति के लिए. मैं वापस लौट आया था. उस के बाद रोज मुझे कभी नहीं मिली. मैं ने समझ लिया कि मैं और रोज नदी के 2 किनारे हैं जो जीवन में कभी नहीं मिलते हैं चाहे लहरें कितना ही मिलाने की कोशिश करें. वे उग्र होने पर भी अपनी मर्यादा नहीं तोड़ती हैं.