Dr. Manmohan Singh  के निधन के बाद उनपर बनी फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को ले कर इस के क्रिएटिव डायरेक्टर द्वारा फिल्म की आलोचना करने पर फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के बीच बहस छिड़ गई.

संजय बारू की किताब पर सवाल

कहते हैं सच्चाई आखिरकार सामने आ ही जाती है, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ पर आधारित अनुपम खेर अभिनीत फिल्म इन दिनों चर्चा में आ गई है.और परत दर परत सच्चाई सामने आ रही है कि दरअसल ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म डा. मनमोहन सिंह की छवि को आघात पहुंचाने के लिए बनाया गया था. दरअसल, किसी भी घटनाक्रम, स्थितियों को देखने का तरीका सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है.
जहां तक बात संजय बारू की किताब का सवाल है वह पहले से ही नकारात्मक भाव लिए हुए थी और एक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार होने के कारण उन्हें इसलिए हाथोंहाथ लिया गया और कहा जाता है उन्होंने व्यवसायिक लाभ उठाया.

डा. मनमोहन सिंह और जीडीपी

डा. मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया था और दुनिया भर के बड़े लोगों ने उन के अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री रहते उन के योगदान होने का लोहा माना और सब से बड़ी बात उन के समय काल 10 वर्ष में जो भारत की जीडीपी ऊंचाई हासिल कर रही थी, उस के बारे में कहा जाता है,भूतो न भविष्यति. इस से स्पष्ट हो जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का कद कितना बड़ा था, काम देश को कितना आगे ले जाने वाला था. शायद यही कारण है कि नरेंद्र मोदी की सरकार लाख कोशिश करने के बाद भी उन की लोकप्रियता के तूफान को रोक नहीं पाई है और मीडिया व जनमानस में डाक्टर मनमोहन सिंह को उन के योगदान को याद किया जा रहा है.

आइए अब आप को बताते हैं- ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ किस तरह अब सच्चाई की धरातल पर तारतार हो कर के देशदुनिया के सामने आ गई है. इस फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर हैं हंसल मेहता. जिन्होंने वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी की एक पोस्ट पर सहमति जता कर बता दिया की सच्चाई यह है. इस पर डाक्टर मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अनुपम खेर उखड़ गए, बोले- ‘डबल स्टैंडर्ड, आप क्रिएटिव डायरेक्टर थे, फीस भी ली होगी.’
पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निधन के बाद फिल्म इंडस्ट्री के दो कलाकारों के बीच उन पर बनी फिल्म पर बहस छिड़ गई जिस में दोनों की अपनीअपनी भूमिका थी. दरअसल, एक जर्नलिस्ट ने मनमोहन सिंह पर बनी फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की आलोचना की, जिस में अनुपम खेर ने उन की भूमिका निभाई थी.

 हंसल मेहता का ‘+100’ वाला मामला

इस आलोचना पर फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर रहे हंसल मेहता ने सहमति जता दी, जिस पर अनुपम खेर भड़क गए. लेखक और जर्नलिस्ट वीर सांघवी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट शेयर कर आरोप लगाए कि फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ने मनमोहन सिंह की छवि बिगाड़ी थी. उन की पोस्ट के जवाब में फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर हंसल मेहता ने ‘+100’ लिखा और दबे शब्दों में सहमति जता दी.
इधर, अपनी ही फिल्म की आलोचना करने वाले हंसल मेहता का बयान आते ही फिल्म में लीड रोल निभाने वाले अनुपम खेर भड़क गए. उन्होंने जवाब में लिखा, इस थ्रेड में पाखंडी वीर सांघवी नहीं है. उन्हें किसी फिल्म को पसंद न करने की आजादी है. लेकिन हंसल मेहता ‘द एक्सीडेंट प्राइम मिनिस्टर’ के क्रिएटिव डायरेक्टर हैं. जो इंग्लैंड में फिल्म की पूरी शूटिंग के दौरान मौजूद थे. अपना क्रिएटिव इनपुट दे रहे हैं और इस के लिए फीस भी ली होगी.
आगे अनुपम खेर ने लिखा, उन के लिए वीर सांघवी की टिप्पणी पर 100% कहना बहुत ही गड़बड़ और डबल स्टैंडर्ड से भरा है.

ऐसा नहीं है कि मैं सांघवी से सहमत हूं लेकिन हम सभी बुरा या उदासीन काम करने में सक्षम हैं हमें इसे अपनाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि हंसल मेहता कुछ खास वर्ग के लोगों से कुछ पैसा कमाने की कोशिश कर रहे हैं. अरे हंसल, बड़े हो जाओ. मेरे पास अभी भी शूटिंग के हमारे सभी वीडियो और तस्वीरें हैं. इसी के साथ अनुपम खेर ने हंसल मेहता का 2019 में किया गया ट्वीट भी शेयर किया है, जिस में उन्होंने ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म’ और उन के एक्टर्स की तारीफ की थी.

मनमोहन सिंह को मौनी बाबा कहने वाले भौंचक्‍क

विवाद बढ़ने के बाद हंसल मेहता ने भी पलटवार किया. उन्होंने पोस्ट कर लिखा-“मिस्टर खेर, जाहिर है मैं अपनी गलतियों का मालिक हूं. मैं स्वीकार कर सकता हूं कि मुझ से गलती हुई. क्या मैं नहीं कर सकता सर? मैं ने अपना काम उतना प्रोफेशनली किया, जितनी मुझे अनुमति थी. क्या आप इस से इनकार कर सकते हैं? लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि मुझे फिल्म का बचाव करते रहना होगा. पैसे कमाने और पाखंड की बात पर मैं आदरपूर्वक यही कहूंगा कि आप लोगों को वैसे ही देखते हैं, जैसा खुद को.”
कुल मिला कर के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के जीवन के एक पक्ष को जिसे संजय बारू ने मीडिया सलाहकार के रूप में देखा और लिखा, वह एक पक्ष हो सकता है जबकि होना यह चाहिए कि डाक्टर मनमोहन सिंह का संपूर्ण आकलन करते हुए यह फिल्म नहीं बन पाई और इसीलिए दर्शकों ने भी इसे नकार दिया था.

मनमोहन सिंह को अक्सर मौनी बाबा या गूंगा कह कर चिढ़ाते रहने वाले भी उस वक्त भौंचक्क रह गए जब आमलोगों ने अपनी डीपी और स्टेट्स पर उन की तस्वीर लगाई. ये वे लोग थे जिन्हें आमतौर पर राजनीति से कोई खास सरोकार नहीं होता लेकिन उन्होंने अपनी भावनाएं सोशल मीडिया पर उतने ही शिष्ट तरीके से प्रदर्शित कीं जितने शिष्ट खुद मनमोहन सिंह थे. उन्होंने कभी लोकप्रियता बटोरने सस्ते तो दूर महंगे हथकंडे भी नही अपनाए.
शांत, सौम्य और गहरी नजर रखने वाले मनमोहन सिंह ऐसा नहीं है कि 2014 के बाद या उस से पहले भाजपा की नफरत फैलाऊ राजनीति पर खामोश रहे हों. उन्हें देश की चिंता थी, लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मई के आखिरी सप्ताह में उन्होंने पंजाब के मतदाताओं के नाम जारी एक पत्र में लिखा था, मोदी ने नफरत फैलाने वाले भाषणों का सब से क्रूर रूप अपनाया है जो पूरी तरह से विभाजनकारी है अतीत में किसी भी पीएम ने समाज के किसी खास वर्ग को या विपक्ष को निशाना बनाने के लिए इस तरह के घृणित असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है.

भाजपा का कौपीराइट

इस के पहले एक पब्लिक मीटिंग में भी मोदी पर हमलावर होते उन्होंने कहा था मैं ने कभी भी अपने जीवन में एक समुदाय को दूसरे से अलग नहीं किया यह पूरी तरह से भाजपा का कौपीराइट है. मनमोहन सिंह ने भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों को भी कटघरे में खड़ा करते कहा था भाजपा सरकार के कार्यकाल में औसत जीडीपी वृद्धि दर गिर कर 6 फीसदी से नीचे आ गई है जबकि कांग्रेस यूपीए के कार्यकाल के दौरान यह 8 फीसदी के लगभग थी अभूतपूर्व बेरोजगारी और बेलगाम मुद्रास्फीति ने असमानता को बहुत बढ़ा दिया है जो अब 100 साल के उच्चतम स्तर पर है. केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को भी उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा करार दिया था.

जाहिर ये विचार सिर्फ चुनावी राजनीति का हिस्सा नहीं थे बल्कि उन में एक आर्थिक दर्शन भी था जिसे कम लोग ही समझ पाए और जिन्होंने समझा वे वो लोग थे जो बंद कमरों में बहस या चर्चा कर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान लेते हैं. मनमोहन सिंह के निधन के बाद एक अदृश्य बैचेनी आमलोगों में देखी गई उस के माने यही हैं कि लोग मौजूदा प्रधानमंत्री की 10 – 12 फीसदी लोगों को खुश करने बनी धार्मिक नीतियों को अब और ढोने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं लेकिन अब कर कुछ नही पा रहे हैं ऐसे मनमोहन सिंह के निधन के बाद लोगों ने उन्हें शिद्दत से याद किया जबकि उन के कोई सीधे राजनैतिक सरोकार उन से नहीं थे. उन के पास अर्जित लोकप्रियता थी जिस का खौफ उन के अंतिम संस्कार के समय में भी जानबूझ कर खड़े किए गए विवादों की शक्ल में भी देखने में आया था.

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