संसद में शीत सत्र चल रहा है लेकिन भीतर का माहौल बिलकुल गरम है. राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इस की धुरी बन गए हैं.
“मैं ने हमेशा कहा है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए हमें एकजुट रहना होगा. जो लोग देश की एकता और अखंडता के खिलाफ बोलते हैं, वे देशद्रोही हैं.” जगदीप धनखड़, सभापति, राज्यसभा, उपराष्ट्रपति. यह उद्धरण जगदीप धनखड़ की चाटुकारिता और सरकार के प्रति अनुकूलता को दर्शाता है. दरअसल, वे सरकार के प्रति अत्यधिक अनुकूल हैं और आलोचना को बर्दाश्त नहीं करते हैं. उन के कार्यकाल में राज्यसभा में लिए गए कुछ फैसले भी उन के विपक्ष के प्रति सोच को उजागर करते हैं.
इन में से कुछ प्रमुख फैसले हैं :
– विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसे विपक्ष ने उन के खिलाफ पेश किया था.
– विपक्षी सांसदों को निलंबित करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का फैसला किया, जिसे विपक्ष ने उन के खिलाफ प्रदर्शन के रूप में देखा.
– संसदीय नियमों का पालन न करना : जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने संसदीय नियमों का पालन नहीं किया और विपक्ष को बोलने का मौका नहीं दिया.
– विपक्ष की याचिकाओं को खारिज करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की कई याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिन में सरकार की नीतियों की आलोचना की गई थी.
– संसदीय समितियों की रिपोर्टों को दबाना : जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने संसदीय समितियों की रिपोर्टों को दबाने का प्रयास किया, जिन में सरकार की नीतियों की आलोचना की गई थी.
एक बार फिर उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए जगदीप धनखड़ ने अपनी बात को कुछ उलटपुलट कर के दोहराया है. 2014 के पश्चात नरेंद्र मोदी की सरकार के दरमियान जबजब प्रधानमंत्री गृहमंत्री या सरकार के किसी बड़े चेहरे पर कोई सवाल उठता है तो कहा जाने लगा है कि यह तो भारत की छवि खराब करने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसा पहले कांग्रेस की सरकार या अन्य किसी सरकार के दरमियान कभी नहीं हुआ. यह एक ऐसी बारीक रेखा है जिसे आम आदमी नहीं समझ सकता.
दरअसल 5 वर्षों के लिए इस देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए देश की जनता द्वारा सरकार चुनी जाती है. वह कोई देश नहीं होती है यह स्पष्ट है मगर यह खेल हमारे देश मंि चल रहा है कि इन दिनों जब सरकार पर कोई सवाल खड़ा होता है तो कहा जाता है कि देश की छवि खराब की जा रही है और इस तरह अपनेआप को बचाया जाता रहा है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों पर विवाद की स्थिति है, वे अपनेआप को भारत समझते हैं, यह अतिशयोक्ति पूर्ण है. दरअसल विपक्ष के सवालों का जवाब देना और संवाद में शामिल होना लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
उपराष्ट्रपति पद की गरिमा और संवैधानिक भूमिका को ध्यान में रखना चाहिए. वे सवालों से बच नहीं सकते हैं और न ही अखंडता के सवाल को उठा सकते हैं. संविधान के मुताबिक लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण है, और उन्हें सरकार और उस के अधिकारियों के कार्यों की आलोचना करने का अधिकार है. उपराष्ट्रपति को भी इस आलोचना का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इस का जवाब देना चाहिए. जब विपक्ष को अधिकार है तो फिर संप्रभुता और अखंडता कहां से आ गई, यह एक जटिल मुद्दा बन कर सामने है.
दरअसल, संप्रभुता और अखंडता दो अलगअलग अवधारणाएं हैं जो एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं. संप्रभुता का अर्थ है किसी भौगोलिक क्षेत्र या जन समूह पर सत्ता या प्रभुत्व का सम्पूर्ण नियंत्रण. अखंडता का अर्थ है किसी देश या राज्य की एकता और अखंडता को बनाए रखना.
जब विपक्ष को अधिकार है, तो उन के सवाल और व्यवहार देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित नहीं करता है. विपक्ष का अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है, और यह अधिकार विपक्ष को सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करने और उन्हें सुधारने के लिए प्रेरित करने के लिए दिया गया है.
यह महत्वपूर्ण है कि विपक्ष अपने अधिकार का उपयोग संविधान के अनुसार करे और सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करने के लिए प्रेरित करे, न कि उन्हें बाधित करने की कोशिश करे. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों पर चर्चा का माहौल बन सकता है, विपक्ष के सवालों का जवाब देना और संवाद में शामिल होना सरकार सत्ता का दायित्व है यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
यहां उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कुछ बयानों पर पहले भी विवाद हुआ है
– राज्यसभा में विपक्ष के सदस्यों द्वारा उन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर उन्होंने कहा था कि यह देश की अखंडता और भारत की बात करने का समय है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति को पद की गरिमा और संवैधानिक भूमिका को ध्यान में रखना चाहिए. और व्यवहार मर्यादित रखना चाहिए.
मजेदार है कि भाजपा शासन काल में कई घटनाएं घटित हुई हैं जब प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या उपराष्ट्रपति की आलोचना को देश और अखंडता का सवाल बना दिया गया है.
जबजब प्रधानमंत्री की आलोचना
जब विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें देशद्रोही या राष्ट्र-विरोधी बता दिया जाता है. जब विपक्षी दल गृहमंत्री अमित शाह की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया जाता है. जब विपक्षी दल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें संविधान की अवहेलना करने वाला बता दिया जाता है. इन उदाहरणों से पता चलता है कि भाजपा शासन काल में आलोचना को अकसर देश और अखंडता का सवाल बना दिया जाता है, जो लोकतंत्र के मूल्यों के विरुद्ध है.