सुबह पांच बजे, 13 अगस्त, 2023, दामया घाटी.

महेश सार्थक ने अपने विस्फोटक सूचक यंत्र को यहांवहां घुमाया और कदम उठाने से पहले उच्च आवाज वाले अलार्म की खतरे की घंटी को सुनने के लिए उस पर पूरा ध्यान दिया. सूर्य अभी तक क्षितिज के नीचे ही था, उस का उदय नहीं हुआ था और दामया नदी के पानी से पोषित ‘तहली ज़ोन’ अभी भी ठंडा और नम था और इसी वजह से सैनिकों का जमावड़ा था. वातावरण में मौन इस वक़्त अच्छी बात लग रही थी. यही वह आवाज थी जिसे इस वक़्त हर सैनिक सुनना चाहता था. महेश ने सूखी नदी के किनारे विस्फोटकों की अपनी धीमी खोज जारी रखी.

लांस नायक महेश सार्थक अपनी टुकड़ी की ओर से गश्त पर जाने वाला पहला सैनिक था. जिम्मेदारी लेना उस के कर्तव्यों में से एक था. उस के पीछे मूक मानव श्रृंखला में एक सैनिक कंपनी थी, जिस में 130 सैनिक थे और हर सैनिक पूरी तरह से महेश के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर रहा था. भारतीय बेस के आसपास आतंकवादियों ने भूमिगत विस्फोटक खानों जाल बुन दिया था.

महेश सार्थक अपने काम में माहिर था, इसीलिए शायद उसे कंपनी की ओर से सब से पहले जाने के लिए कहा गया था. पांच महीने पहले दामया पहुंचने के बाद से उस ने जितने गश्त किए थे, उस की गिनती वह खो चुका था. अब उस के पास बस एक और महीना था और फिर घरवापसी अपनी मंगेतर के पास. दो महीने पहले छुट्टी ले कर जब वह घर गया था तो उस ने शादी की बात उठाई थी. तुरंत हामी मिलने पर उस ने 2024 की शुरुआत में शादी करने का फैसला कर लिया.

शरीर से मजबूत वह एक हट्टाकट्टा इंसान था, लेकिन चेहरे पर कोई गंभीर भाव नहीं थे. उलटे, सब के साथ मुसकरा कर ही बात करता था. 25 वर्षीय यह जवान इस वक़्त दामया के सब से खतरनाक और विस्फोटकग्रस्त क्षेत्रों में से एक के बीच से एक सुरक्षित मार्ग ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था. अपनी पूरी कंपनी की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस के सिर पर थी. जब भी वह भारतीय बेस छोड़ कर आतंकवादियों से बदहवास इस इलाके में औपरेशन के लिए निकलता, उस के पेट से एक अजीब लहर उठती. शायद किसी भयावह आशंका से उत्पन्न लहर. पांच महीनों से लगातार उठने वाली इस लहर की उसे आदत हो गई थी. उस ने इस लहर के साथ जीना सीख लिया था और यह स्वीकार कर लिया था कि गलत जगह पर एक कदम का मतलब तुरंत मौत या अंगभंग हो सकता है.

इस अजीबोगरीब लहर का साथ शायद अच्छा था. इसी लहर की वजह से शायद उसे अपनी और अपने साथियों की परवा थी. इस लहर ने उस की इंद्रियों को पैना कर दिया था और उसे जिंदा रखा था.

महेश हमेशा इस बात पर जोर दिया करता था कि गश्त में अगला आदमी उस से कम से कम 5 मीटर पीछे रहे – उस के द्वारा धीमे स्वर में दिए गए आदेश को सुनने के लिए यह काफी था, लेकिन यह इतनी दूरी जरूर थी कि अगर गलती से महेश आतंकवादियों द्वारा रखे गए विस्फोटक पर पांव रख देता है तो पीछे वाले व्यक्ति को कुछ न हो.

आज सुबह मिशन का उद्देश्य दामया शहर के दक्षिणपश्चिम में एक मार्ग को साफ करना था. कुछ समय पहले तक जहां भारतीयों ने बेस बनाई थी, वह आतंकवादियों का अड्डा था. अब यह भारतीय सेना के कब्जे में था. इस बेस के सुरक्षित परिवेश से बाहर निकलने के आदेश की प्रतीक्षा करते हुए कई सैनिक शारीरिक रूप से बीमार हो गए थे.

यह एक खतरनाक मिशन था और हर कोई इस बात को जानता था. महेश के साथ 8 ऐसे जवान थे जो इस आगे बढ़ने वाली सेना की अग्रिम पंक्ति में थे और इस का महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे. इस से पीछे चलने वाली सेना सुदृढ हो गई थी. इस औपरेशन में वे वही काम कर रहे थे जो शतरंज के खेल में सामने की पंक्ति में 8 मोहरे करते हैं. सुबहसुबह के अंधेरे में सैनिक एक कतार में अपनी बेस से बाहर निकले. कोई कुछ नहीं बोला. धूल में चलते हुए केवल बूट के कदमों की नरम गड़गड़ाहट ही सुनी जा सकती थी. केवल आधा किलोमीटर चलने के बाद ही गोलाबारूद, पानी और वायरलैस यंत्र के बोझ से दबे हुए कई सैनिक भारी सांस लेने लगे. उन की वरदी पसीने से लथपथ शरीर से चिपक गई.

महेश इस मार्ग को जानता था और उसे कमर तक गहरे दामया नदी के ठंडे पानी व उस से आगे की घाटी में अपनी टीम को पहुंचाने में कोई परेशानी नहीं हुई. दुश्मन के किसी भी संकेत के लिए सचेत, नदी किनारे से संभल कर वह अपनी सेना की टुकड़ी को आगे ले आया.

कोई नहीं जानता था कि महेश ने उस क्लिक की आवाज को सुना या नहीं जो विस्फोटक पर उस के पांव पड़ने की वजह से हुई. लेकिन अगर उस ने सुना भी, तो भी प्रतिक्रिया करने का कोई समय नहीं था. देखते ही देखते विस्फोटक के अंदर का इलैक्ट्रिकल सर्किट पूरा हो गया, उस में बिजली का प्रवाह हुआ और 20 किलो के घरेलू बम के अंदर दबा डेटोनेटर फट गया. धमाके से महेश हवा में ऊपर उछला और धरती पर गिरा. घटनास्थल पर ही उस ने अपने दोनों पैर खो दिए.

हवलदार प्रसाद दीवान, एक बम निबटान विशेषज्ञ, ने कवर लिया क्योंकि विस्फोट की आवाज घाटी में फैल गई. धुएं और धूल का एक गाढ़ा भूरा गुबार दामया के आकाश में चमकने लगा.

कंपनी में बहुत पीछे हवलदार प्रसाद अनैच्छिक रूप से दबी हुई सांस में बुदबुदाने लगा. दामया में 4 महीनों के दौरान उस ने 80 बमों को निष्प्रभावी कर दिया था और अब वह घर में बने विस्फोटकों व पारंपरिक विस्फोटकों के फटने की आवाज के बीच अंतर बता सकता था. लेकिन इतना करने के बावजूद आज के इस धमाके से उस की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई.

हवलदार प्रसाद औपरेशन के दौरान विस्फोटक की खोज के मामले में सहायता प्रदान करने के लिए कंपनी से जुड़ा हुआ था. उस की टीम के 2 हिस्से थे– एक विस्फोटक निबटान टीम और एक खोजकर्ता टीम. धमाके से खोजकर्ता तुरंत कार्रवाई की तैयारी करने लगे. दो मिनट बाद ही कंपनी के सामने से किसी ने उन्हें आपातकालीन हैलिकौप्टर को भूमि पर उतारने के लिए मैदान साफ़ करने हेतु आगे बुलाया. और तब ही उन्हें पता चला कि एक व्यक्ति हताहत हुआ है.

कंपनी के आगे के भाग में विस्फोट का दृश्य बन गया था. महेश निश्चल पड़ा था, खून से लथपथ आंखें आसमान की ओर ताक रही थीं. हितेश और शंकर महेश के 2 सब से अच्छे साथी, 2 युवा सैनिक जो महेश के भाई जैसे बन गए थे. दोनों अपने घायल कमांडर की ओर धीरेधीरे सावधानी से बढ़े. उस की चोटों को देख कर उन के चेहरे दहशत से भर गए.

भारतीय बेस को एक जरूरी संदेश भेजा गया. ‘विस्फोटक हमला.घायल.’

‘चिंता मत करो, महेश, हम तुम्हें बाहर निकालने वाले हैं, दोस्त. सबकुछ ठीक हो जाएगा,’ हितेश ने कहा. सैनिकों ने महेश के जर्जर हुए शरीर को एक स्ट्रेचर पर उठा लिया. उस के पैरों के स्थान पर रक्तरोधक लगाया. उस के तीव्र दर्द के निदान के लिए मार्फिन दी. हितेश और शंकर ने स्ट्रेचर उठा लिया और तेजी से उस मैदान की तरफ बढ़ने लगे जहां आपातकालीन हैलिकौप्टर ज़मीन पर उतरने वाला था. जब अचानक हितेश की नज़र महेश पर पड़ी तो उस ने देखा कि महेश ने सांस लेना बंद कर दिया था. ‘महेश, दोस्त, सांस लो,’ हितेश रोया.

हितेश द्वारा बोले गए ये उस के अंतिम शब्द थे.

महेश के शरीर से थोड़ी हरकत देख कर हितेश और शंकर ने जैसे ही स्ट्रेचर पर लेटे महेश को आगे ले जाना चाहा, वैसे ही एक और बड़े पैमाने पर विस्फोट हुआ. हितेश और शंकर मारे गए. फिर चीखपुकार शुरू हो गई.

‘क्या हो रहा है?’ कंपनी के एकदम पीछे खड़े हवलदार टिल्लू सारथी ने कहा. दूर कंपनी के सामने से घबराहट की आवाजें तेज होती गईं.

‘प्रकृति ही जाने,’ हवलदार प्रसाद ने उत्तर दिया, ‘लेकिन जरूर कुछ बुरा है.’

हवलदार टिल्लू खोजकर्ता टीम का प्रमुख सदस्य था. दोनों ने एकदूसरे को देखा लेकिन कोई नहीं बोला. यह एक मूक पुष्टि थी कि कुछ बहुत बुरा घटा है.

कंपनी के पीछे मौजूद खोजकर्ता टीम ने कार्रवाई के लिए खुद को तैयार किया. हवलदार प्रसाद ने अपने उपकरणों की जांच की. उस ने यह सुनिश्चित किया कि उन के वायरकटर उस के शरीर के सुरक्षा कवच के सामने और विस्फोटक सूचक यंत्र बगल में सुरक्षित हैं. उस के बाकी के आवश्यक उपकरण उस के बैग में समाहित थे. अभी उस की तैयारियां पूरी ही हो रही थीं कि काले-लाल चेहरे वाला एक युवा सिपाही सामने की ओर से आया. ‘हमें आगे खोज दल की जरूरत है,’ वह हकलाया, ‘आगे कई लोग हताहत हुए हैं.’

हवलदार प्रसाद ने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा, ‘हिम्मत रखो.’ फिर अपने सहयोगी हवलदार टिल्लू की ओर मुड़ कर कहा, ‘टिल्लू, सावधान रहना. कुछ पता नहीं कि आगे क्याक्या, कहांकहां रखा हुआ हो सकता है.’

हवलदार प्रसाद ने अंतिम ब्रीफिंग के लिए अपनी टीम को इकट्ठा किया. ‘पता नहीं आगे क्या चल रहा है, लेकिन कुछ अच्छा प्रतीत नहीं हो रहा. सब लोग होशियार रहना,’ अपनी टीम के साथ खोजकर्ताओं में से एक की ओर मुड़ते हुए उस ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि कंपनी के सामने चल रहे साथियों से कुछ छूट गया है या नहीं, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप घटनास्थल तक का रास्ता साफ कर दें. जहां पर घायल हैं वहां से करीब 30 मीटर की दूरी पर हम रुकेंगे और आकलन करेंगे. हर कोई एक पंक्ति में एकदूसरे के आगेपीछे चलेगा.’

किनारे के दोनों ओर के नरकट नदी के तल के साथसाथ लंबे और मोटे होते जा रहे थे और घायलों की चीखों को वापस विस्फोट के इन शिकारियों की ओर ले आ रहे थे. जैसेजैसे यह दस्ता सामने नरसंहार के दृश्य के करीब आता गया, उन्होंने सैनिकों को उन के पेट के बल लेटे, सिर पर दोनों हाथ रखे सिर को बचाते होने की अवस्था में पाया. कुछ सिपाही शून्य में ताक रहे थे. उन के चेहरों पर दहशत के भाव अपनी कहानी खुद बयां कर रहे थे.

प्रमुख खोजकर्ता रुक गया और हवलदार प्रसाद उस की तरफ बढ़ गया. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. खोजकर्ता धीरेधीरे मृतकों और घायलों तक पहुंचने के लिए रास्ता सुरक्षित कर रहे थे. सामने पहुंच कर हवलदार प्रसाद के चेहरे से पसीने की बूंदें बहने लगीं और तबाही की भयावहता को देखते हुए उस ने ज़ोर से सांस ली. मृत और घायल – कुल छह सैनिक – 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले हुए थे. अघायल सैनिक भी इस विस्फोटक खदान के अंदर फंसे हुए थे. उन्हें भी मुक्त करना होगा. दूर कुछ सिपाहियों की अनियंत्रित आवाजें सुनाई दे रही थीं. अब केवल खोजकर्ता ही चल रहे थे, घायलों को प्रोत्साहन के दो शब्द के अलावा उन का मौन उन की एकाग्रता को दर्शा रहा था.

जहां हवलदार प्रसाद खड़ा था, उस के सब से नजदीक के शरीर के पैर नहीं थे और केवल एक हाथ था, खून से लथपथ सैनिक विस्फोट की चपेट में आ गया था. बम के चलते बने गड्ढे के दूसरी तरफ एक और सैनिक पड़ा हुआ था. यह उस सैनिक का मृत शरीर था जो अजीब तरह से मुड़ा हुआ था और उस के पैर नहीं थे. विस्फोट ने दोनों सैनिकों को विपरीत दिशाओं में लगभग 20 मीटर की दूरी तक उछाला था. अपने अनुभव से हवलदार प्रसाद ने ज्ञात किया कि यह 20-30 किलोग्राम भारी उपकरण था, जो घर में ही बना हुआ विस्फोटक था. एक बम दस्ते के रूप में अपनी जिंदगी में पहली बार हवलदार प्रसाद का सामना एक बड़े पैमाने पर हुई विस्फोटक घटना से हुआ था.

अपने आसपास की बरबादी को देख कर हवलदार प्रसाद को 3 हफ्ते पहले सेना के औपरेशन के दौरान मारे गए बमनिरोधक विशेषज्ञ हवलदार मनोज शर्मा की मौत दिमाग में घूमने लगी.

लेकिन इस वक़्त समय था ध्यान केंद्रित करने का, एक योजना तैयार करने का, यह पता लगाने की कोशिश करने का कि क्या चल रहा था. दो विस्फोटों के आकार और स्थिति ने उसे बताया कि बमों को एक केंद्रीय बैटरी स्रोत से जोड़ा गया होगा. लेकिन वह स्रोत कहां था? घायलों की प्राथमिकता थी, मृतकों को बाद में एकत्रित किया जाएगा, यह हमेशा का नियम था. लेकिन अब महत्त्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना था कि कोई और हताहत न हो. खोजकर्ताओं में से एक ने जमीन का हर टुकड़ा अच्छे से छान मार लिया और अपने खोजी उपकरण से मार्ग को साफ़ और सुरक्षित करते हुए दर्दनाक व घायल अवस्था में पड़े हुए एक सैनिक तक पहुंचने में कामयाब हो गया. वहीं उस घायल सैनिक के पास उस का उपकरण बजा जिस से विस्फोटक वहां मौजूद होने का अंदेशा हुआ. उस ने तुरंत सभी से कहा, ‘एक यहां है.’ विस्फोटक उस जगह से एक हाथ की दूरी पर था जहां घायल लेटा हुआ था.

अब निर्णायक समय आ गया था. हर कोई जानता था कि आतंकवादी विस्फोट की आवाज की ओर बढ़ रहे होंगे और हताहतों को निकालने के लिए आए सैनिकों पर घात लगा कर हमला करने की उम्मीद कर रहे होंगे. एक सुरक्षात्मक घेरा डालने, दूरस्थ वाहनों का उपयोग करने, या प्रसाद के लिए अपना सुरक्षात्मक बम सूट पहनने का समय नहीं था. यह आपातकालीन श्रेणी की कार्रवाई थी, जिस का अभ्यास केवल 2 ही परिस्थितियों में कराया जाता था- या तो एक बंधक परिदृश्य जहां एक निर्दोष व्यक्ति को विस्फोटकों से बांध दिया गया हो, या फिर ऐसा कुछ जहां कार्रवाई न करने का अर्थ एक बड़े पैमाने पर दुर्घटना की आशंका और ज्यादा से ज्यादा हताहतों की संख्या निश्चित हो.

दोनों ही स्थितियों में खुद की जान की कीमत पर भी दूसरे लोगों की जान बचाने पर जोर दिया जाता था. हवलदार प्रसाद जानता था कि क्या करना है. बैटरी के स्रोत को ढूंढना होगा, उस ने मन ही मन सोचा. वह रेंगते हुए उस ओर पहुंचा जहां उसे लगा कि सब से पहले वाले बम को दफनाया गया था. उस ने पहले विस्फोटक की प्रैशर प्लेट और फिर 20 किलो के बम का पता लगाया. बम को खोज कर उस ने घायल को सांत्वना दी कि वह ठीक हो जाएगा और उस से शांत रहने का आग्रह किया. उस ने बम से जुड़ा हुआ एक तार ढूंढ़ निकाला और उसे काट दिया. तार काटते वक़्त वह सोच रहा था कि कहीं आतंकवादियों ने ऐसा सर्किट न बनाया हो कि तार के काटने मात्र से ही एक और विस्फोट हो जाए. अगर आतंकवादियों ने ऐसा किया है तो चंद सैकंडों में उसके भी परखच्चे उड़ जायेंगे. लेकिन तार काटने से कोई धमाका नहीं हुआ.

निष्प्रभावीकरण को पूरा करने से पहले ही एक खोजकर्ता ने महेश, जो अभी भी जीवित था और जमीन पर तड़प रहा था, के पास एक और विस्फोटक पाया. जैसे ही प्रसाद ने इस विस्फोटक तक पहुंचने का अपना मार्ग साफ किया, एक तार उन क्षेत्रों में जाता दिखाई दिया जहां बम रखे गए थे. इस बात की पूरी संभावना थी कि प्रसाद द्वारा किया जा रहा यह अभियान अब किसी छिपे हुए आतंकवादी द्वारा लक्षित किया जा रहा हो.

खोजकर्ताओं को यह भी स्वीकार करना पड़ा कि किसी भी अन्य विस्फोटक में अब बहुत कम धातु प्राप्त होने के आसार हो सकते हैं और इस तरह वे अब अपने विस्फोटक सूचक यंत्रों पर भरोसा नहीं कर सकते. अब तक आसमान में सूरज उगना शुरू हो गया था और भारतीय बेस के खुफिया अधिकारियों द्वारा बम खोजने वालों को चेतावनी दी जा रही थी कि आतंकवादी दामया क्षेत्र में बढ़ रहे हैं. हवलदार प्रसाद इस संदेश को सुन कर हरकत में आ गया. एक और विस्फोटक मिला. एक बार फिर यह एक प्रैशरप्लेट वाला विस्फोटक था जो एक केंद्रीय बैटरी स्रोत से जुड़ा था. इस से तुरंत प्रसाद को समझ आ गया कि वह एक जटिल उपकरण प्रणाली वाले विस्फोटक के साथ जूझ रहा था. ऐसा विस्फोटक जो दामया में नहीं देखा गया था. वह अब पूरी तरह से एक नई खतरनाक दुनिया में प्रवेश कर चुका था जहां उसे केवल अपनी बुद्धि और कौशल पर भरोसा करना था. बेहद तनावपूर्ण स्थिति में भी उसे तुरंत यह जानकारी हो गई कि सभी बमों को ठीक उसी तरह से बिछाया गया है जैसे कि विस्फोटक क्रमांक एक और दो थे- एक प्रैशरप्लेट उपकरण जो 20 किलो की विस्फोटक सामग्री के ऊपर रखा गया था. इस बात की भी पूरी संभावना थी कि यदि एक बम फटा तो वे सभी एक ही समय में फटेंगे.

फिर से प्रसाद ने इसे भी निष्प्रभावी किया और सावधानी बरती, कोई भी त्रुटि घातक साबित हो सकती थी. इस उपकरण के निष्प्रभावी होने के दो मिनट से भी कम समय के बाद मृत सैनिकों में से एक के पास एक और विस्फोटक खोजा गया. यह विस्फोट उपकरण वहां रखा गया था जहां से सैनिकों को हताहतों को ले जाने के लिए गुजरना होता. इसे भी प्रसाद ने पूरी तन्मयता के साथ निष्क्रिय किया.

जैसे ही सूरज ने वादी को रोशन करना शुरू किया, चारों ओर अशांत मिट्टी के काले धब्बे दिखने लगे. प्रत्येक स्थल के नीचे एक बम छिपा हुआ था. दो हज़ार स्क्वायर मीटर के क्षेत्र में बम खोजने वालों को 7 बम मिले. इस के अलावा उन्होंने जमीनी निशानों से अन्य 6 उपकरणों के स्थानों की पहचान की. आतंकवादियों द्वारा एक विस्फोटक उपकरण लगाए जाने के बाद वहां के आसपास की धरती पर ये निशान अब सूरज की रोशनी में साफ़ नज़र आ रहे थे.

इस से पहले कि घायलों को निकाला जा सके, निष्कर्षण मार्ग पर खोजे गए 2 और उपकरणों को प्रसाद ने निष्प्रभावी किया.

नरसंहार के बावजूद हवलदार प्रसाद तब तक अपना संयम बनाए रखने में कामयाब रहा जब तक कि स्ट्रेचर ले कर चिकित्सा दल नहीं पहुंचा. कंपनी में पीछे मौजूद सैनिक जब आगे पहुंचे और उन्हें पता चला कि कौन मृत है या गंभीर रूप से जख्मी हो गया है, तो बरबस उन की आंखों से आसूं निकल आए. यह स्पष्ट था कि टीम के युवा सैनिकों का आपस में भाईचारा था. उन में से एक ने जब अपने दोस्त को दामया नदी की धूल में मृत पड़ा देखा तो बेकाबू हो कर रोने लगा. औपरेशन में शामिल सभी लोगों को अचानक जो कुछ हुआ था उस की पूरी भयावहता महसूस होने लगी. उस समय तक हवलदार प्रसाद और उन की टीम पूरी तरह से आतंकवादी बमों का पता लगाने व उन्हें बेअसर करने पर ध्यान केंद्रित कर रही थी.

हवलदार प्रसाद के घटनास्थल पर पहुंचने के ठीक 45 मिनट बाद 13 विस्फोटक उपकरणों का पता लगा लिया गया था और उन्हें निष्क्रिय कर दिया गया था. बमों के बेअसर होने के बाद घायलों और मृतकों को वहां से निकाला गया. लांस नायक महेश सार्थक को भारतीय बेस से मिलिट्री अस्पताल तक पहुंचाया गया. युद्ध के मैदान से निकाले जाने के कुछ महीनों बाद उन की स्थिति में सुधार आया. अन्य घायल सैनिकों की भी हालत में सुधार आया.

भारतीय बेस से आधुनिक हथियारों से लैस भारतीय सेना के जवानों की टुकड़ी ने दामया घाटी में अग्रसर होते आतंकवादियों के चारों ओर घेरा डाल दिया और उन्हें मार गिराया.

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