हिंदी भाषी राज्यों के जो तीन प्रमुख शहर सियासी तौर पर कायस्थ बाहुल्य माने जाते हैं उन में प्रयागराज और पटना से भी पहले भोपाल का नाम शुमार किया जाता है. पिछले 15 सालों से कायस्थों की धार्मिक चेतना और पहचान इतने उफान पर हैं कि देखते ही देखते दूसरे छोटेबड़े शहरों की तरह भोपाल में भी उन के आराध्य भगवान चित्रगुप्त के तीन मंदिर बन गए हैं. ये तीनों ही मंदिर टीटी मगर, 1100 क्वार्टर्स और नेवरी स्थित मंदिर हालाँकि बहुत छोटे हैं लेकिन उन में तबियत से पूजापाठ यज्ञहवन सहित दूसरे कर्मकांड भी होते हैं.

बीती 10 अगस्त को भोपाल के कायस्थों का उत्साह देखते ही बनता था क्योंकि इस दिन उन के पहले महामंडलेश्वर चित्रगुप्त पीठ वृन्दावन के संजीव सक्सेना उर्फ़ श्रीश्री 1008 सच्चिदानंद पशुपतिजी अपने लाव लश्कर सहित पधार रहे थे. मौका था उक्त चित्रगुप्त पीठ के गर्भ गृह में स्थापित होने वाली शिला चरण पादुका एवं प्रभु का विग्रह पूजन के लिए देश भर में घूम रही दिव्य यात्रा का स्वागत समारोह पूर्वक करने का. इस बाबत कोई डेढ़ दर्जन छोटेबड़े कायस्थ संगठनों ने इस यात्रा के स्वागत की अपील इन शब्दों के साथ की थी कि आइए हम सभी इस दिव्य यात्रा के सहभागी बन कर इस स्वर्णिम पल के साक्षी बनें.

बढ़चढ़ कर भोपाली कायस्थ इस यात्रा के सहभागी और साक्षी बने. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस से उन की समस्याएं हल हो जाएंगी जिन का रोना वे रोते रहते हैं. उन की संतानों को रोजगार मिलने लगेगा और खासतौर से लड़कियों की शादी वक्त पर होने लगेगी और दहेज प्रथा भी खत्म हो जाएगी. उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि भगवान चित्रगुप्त प्रसन्न हो कर उन्हें वह सम्मान, वैभव और संपन्नता प्रदान करेंगे जिन के किस्सेकहानी वे बड़ी कसक और चाव से सुनाते हैं कि हमारे पूर्वज राजा और जमींदार हुआ करते थे.

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