पिछले दिनों अपने बच्चे के छुट्टियों के होमवर्क और असाइनमैंट के बारे में शिकायत करने वाली एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिस में महिला स्कूल से नाराज थी कि वे ऐसा होमवर्क क्यों देते हैं जिसे बच्चे खुद क्यों नहीं कर सकते?

पेरैंट्स के लिए सजा

याद कीजिए एक समय वह भी था जब स्‍कूल में पढ़ने वाले बच्‍चों को मईजून की गर्मी की छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार रहता था क्योंकि वे उन छुट्टियों में अपने दादादादी, नानानानी के घर या किसी पर्यटन स्थल पर जा कर मस्ती करते थे और दो महीने गर्मी की छुट्टियों का पूरा मजा लेते थे. लेकिन अब गर्मी की छुट्टियां बच्चों के साथसाथ पेरैंट्स के लिए मजे की जगह सजा बन गई हैं.

क्योंकि अब गर्मी की छुट्टियों में बच्‍चों को करने के लिए इतना भारी भरकम होमवर्क दे दिया जाता है कि बच्‍चा और पेरैंट्स पूरी छुट्टियां उस होमवर्क को ही करने में लगा देता है.

किस के लिए होमवर्क

हाल ही में हरियाणा के कई स्‍कूलों में छोटेछोटे बच्‍चों को स्‍कूल की ओर से जो हौलिडे होमवर्क दिया गया उस को देख कर पेरैंट्स के तो दिमाग की बत्ती ही हिल गई . दरअसल, स्कूल की ओर से नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी और प्राइमरी क्लासेस के बच्‍चों को जो होमवर्क दिया कि उसे देख कर पेरैंट्स एकदूसरे से पूछने लगे कि ये स्‍कूल का होमवर्क है या नासा का प्रोजेक्‍ट? कहीं स्‍कूल वाले नर्सरी के बच्‍चों को वैज्ञानिक तो नहीं बनाने जा रहे हैं?

हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने हौलिडे होमवर्क को ले कर सीबीएसई के अलावा मुख्‍यमंत्री, शिक्षा मंत्री और बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग में शिकायत भी की. पेरैंट्स ने प्राइवेट स्कूल मैनेजमैंट पर आरोप लगाते हुए बताया कि कई सारे स्‍कूलों में गर्मी की छुट्टियों में नर्सरी, एलकेजी यूकेजी से ले कर प्राथमिक क्लास के बच्चों को भारीभरकम होमवर्क के रूप में इलैक्ट्रिक ‌सर्किट, एम्यूजमैंट पार्क का थ्रीडी मौडल, दिल्ली मैट्रो और फ्लाईओवर का प्रोजेक्ट बनाने, थर्माकोल का आइफिल टावर बनाने, कंप्यूटर का वर्किंग मौडल, संस्कृति से गणित के फार्मूलों की डिक्शनरी बनाने का प्रोजेक्‍ट दिया गया है.

मां-बाप की मुसीबत और जेब कटाई

पेरैंट्स ने सीबीएसई से शिकायत करते हुए कहा कि इतने छोटे बच्‍चों को ऐसे प्रोफैशनल प्रोजेक्‍ट बनाने के लिए दिए गए हैं जिन की कोई भी जानकारी छात्रों को नहीं है. वे प्रोजेक्ट पेरैंट्स को करने पड़ रहे हैं लेकिन जो पेरैंट्स वर्किंग हैं या जो पेरैंट्स ज्यादा एजुकेटेड नहीं हैं उन्‍हें पैसा दे कर मजबूरी में मार्केट से प्रोफैशनल व्यक्तियों से होमवर्क पूरा कराना पड़ता है. इस से न केवल पेरैंट्स की जेब खाली हो रही है बल्कि प्रोफैशनल लोगों व दुकानदारों की कमाई हो रही है. स्कूल मैनजमैंट और प्रोफैशनल लोगों व दुकानदारों की मिलीभगत से जहां उन का धंधा फलफूल रहा है वहीं पेरैंट्स की जेबें कट रही हैं.

सब से बड़ी बात पैसे दे कर बनवाए गए इन प्रोजेक्ट्स और हौलिडे होमवर्क से तो बच्चों को तो कुछ सीखने को मिलता ही नहीं और पेरैंट्स की जेबें काट कर बनवाए गए ये प्रोजेक्ट्स बाद में स्टोर रूम में फेंक दिए जाते हैं या कबाड़ी को बेच दिए जाते हैं.

सिस्टम में बदलाव की जरूरत

हौलिडे होमवर्क के इस खेल में शामिल दोषी स्कूलों के खिलाफ उचित कार्यवाही की जानी चाहिए और ऐसे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव किया जाना चाहिए जिस में पेरैंट्स और बच्चों दोनों को भुगतान करना पड़ रहा है.

फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम

बच्चों को जो हौलिडे होमवर्क दिया जाता है उस में कहीं न कहीं स्कूल अगर दुनिया के बेहतरीन स्कूलों के बारे में गूगल पर सर्च किया जाए तो फिनलैंड सब से ऊपर होगा. यहां का एजुकेशन सिस्टम अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य देशों से एकदम अलग है. फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम स्टूडैंट्स को एक अलग तरह की स्वतंत्रता देने के साथ-साथ उन की क्रिएटिविटी को भी निखारने की दिशा में काम करता है. फिनलैंड की पढ़ाई का पूरा पैटर्न स्टूडैंट्स फ्रैंडली है. वहां न तो बच्चों को होमवर्क मिलता है और न ही कौपियां चेक कर के उन्हें नंबर दिए जाते हैं.

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