टीनएजर्स को अब अपने पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ना होगा, अपने हर छोटेबड़े निर्णयों के लिए पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ना होगा. अपने सपनों, ख्वाइशों की उड़ान खुद के बल पर भरनी होगी तभी वे जीवन की रेस में आगे बढ़ पाएंगे.

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“यार मुझे समझ नहीं आ रहा मैं अपने पेरैंट्स को कैसे समझाऊं? मैं कुकिंग की लाइन को अपना कैरियर बनाना चाहता हूं और अपने देश के फूड कल्चर को विदेश तक ले जाना चाहता हूं. तुझे तो पता है बचपन से ही मुझे किचन में नई नई रैसिपी ट्राइ करने का शौक था और मम्मी की एब्सेंस में भी मैं किचन में कुछ न कुछ नया बनाता रहता था.

“लेकिन मेरे मम्मीपापा को जब मैं ने अपने इस सपने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे इस निर्णय को गलत ठहराते हुए कहा ‘नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता, क्या तुम सोसाइटी में हमारा मजाक बनवा कर हमारी नायक कटवाओगे. तुम शुरू से क्लास में टौपर रहे हो. ये कुकिंगवुकिंग कर के कुछ नहीं होने वाला. तुम्हें तो हायर स्टडीस कर के किसी बड़ी कंपनी में सीनियर पोस्ट हासिल करनी है.”

एक टीनएजर होने के नाते मैं शिशिर की भावनाओं जो समझ रहा था और मन ही मन हैरान हो रहा था हर पेरैंट्स की तरह शिशिर के पेरैंट्स को भी आखिर शिशिर का पैशन क्यों नहीं दिखाई नहीं दे रहा और क्यों शिशिर भी बिना अपने पेरैंट्स की सहमति के अपने लिए सही निर्णय नहीं ले पा रहा क्यों अपने पेरैंट्स के खिलाफ जा कर अपने लिए सही निर्णय लेने का कान्फिडैंस उस में नहीं है ?

लेकिन मैं ने मन ही मन उसे सही राय देने का सोच लिया था कि वह अपने मन की करे क्योंकि जब वह अपने पैशन को फौलो कर के सफल होगा तो सब से ज्यादा प्राउड फील उस के ही पेरैंट्स को होगा. क्योंकि शिशिर से बेहतर उस के कैरियर के लिए निर्णय कोई और नहीं ले सकता.

टीनएजर्स पेरैंट्स की उंगली थामना छोड़ें

आज के हर टीनएजर को यह समझना होगा कि अब वह दूध पीता बच्चा नहीं रहा. अब वह बड़ा हो गया है. एक टीनएजर है जो 5 या 6 फीट लंबा है. उसे अब अपनी जिंदगी के हर छोटेछोटे निर्णयों के लिए पेरैंट्स पर डिपेंडेंट होने या उन का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है. अब उन्हें पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ कर जीवन की रेस में आगे बढ़ने के लिए लंबी दौड़ लगानी होगी वरना वह औरों से पीछे रह जाएगा. बदलते समय के साथ उसे कान्फिडैंट बन कर अपना अच्छा बुरा खुद सोचना होगा. अपनी लाइफ में सक्सैसफुल होने के लिए रिस्क लेने होंगे और अपने निर्णयों पर पेरैंट्स की सिर्फ मोहर लगवानी होगी.

कुएं के मेंढक न बनें

“मौम, मैं बाहर खेलने जाऊं, क्या मैं स्कूल ट्रिप पर जा सकता हूं? डैड, क्या मैं अपने फ्रैंड की बर्थ डे पार्टी पर जा सकता हूं? क्या मैं अपनी फ्रेंड के साथ ओन्ली गर्ल्स ट्रिप पर जा सकती हूं.”
डे टू डे लाइफ की ऐसी छोटीछोटी बातों पर पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ कर टीनएजर्स अपने निर्णय खुद लें और जिंदगी को भरपूर जीएं वरना वे कुएं के मेंढक बन कर जाएंगे.

बदलनी होगी सोच

विदेशों में बच्चे छोटी उम्र में ही आत्मनिर्भर बन जाते हैं. पांच-छह साल की उम्र से वे मांबाप से अलगअलग बेडरूम में सोते हैं और 15-16 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते तो वे अलग घर में रहने लगते हैं और इसी उम्र से वे अपने निर्णय खुद लेने लगते हैं. परंतु भारतीय परिवारों में ऐसा नहीं होता. हमारे परिवारों में बच्चे चाहें जितना मर्जी बड़े हो जाएं उन्हें बच्चा ही समझा जाता है और उन से उम्मीद की जाती है कि वे हर बात पेरैंट्स से पूछ कर करें या उन की रजामंदी लें जो कि सही नहीं है. टीनएजर्स जितना अपने जीवन के निर्णय खुद लेंगे उतना ही उन में कान्फिडेंस आएगा और जीवन में उन के सफल होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.

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