निम्मो खूब तेज दौड़ी. पीछे मुड़मुड़ कर देखती जाती. हंसती खिलखिलाती. चौदह साल की उम्र में भागने की गति देखते ही बनती है. उस के आनंद का ठिकाना न था. उसे लगा, आज तो अहमर और अमान को उस ने पछाड़ ही दिया पर उस के पेट में अचानक तेज दर्द की लहर उठी. ओह, मां ने पिछले महीने सम?ाया तो था पर उसे इस बात पर ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिला था कि लो, अब यह दूसरे महीने में फिर पीरियड की शुरुआत थी. उस ने महसूस किया, उस की फ्रौक कुछ गीली हो गई है. वह वहीं धम्म से बैठ गई. तेजतेज धौंकनी सी चलती सांसों को काबू किया और पीछेपीछे आराम से चलते अहमर और अमान को हंसते हुए आते देखा तो सकुचा गई. अहमर ने दूर से ही कहा, ‘‘जोश ठंडा हो गया न?’’ वह कुछ नहीं बोली, पेट पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘मु?ो घर जाना है.’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं. बस, घर जाना है.’’
‘‘खेलेगी नहीं?’’
‘‘आज नहीं.’’
‘‘पर हुआ क्या है?’’
‘‘तुम दोनों को नहीं पता होगा. मां कहती है लड़कों को इस बारे में कुछ नहीं बताना. लड़कों से ऐसी बातें नहीं करनी हैं.’’
अहमर और अमान ने एकदूसरे को देखा, फिर मुसकराए. अमान ने कहा, ‘‘तु?ो पीरियड होने लगा?’’
‘‘तुम्हें यह सब पता है?’’
दोनों हंस पड़े, ‘‘तू कितनी बुद्धू है. आजकल सब को सबकुछ पता रहता है. सुन, तु?ो कोई दिक्कत हो रही है?’’
‘‘हां, पेट में बहुत दर्द है.’’
‘‘चल, तु?ो घर छोड़ आएं, तेरी मां अभी घर लौट आई होगी?’’
‘‘नहीं, पिताजी भी कुछ देर से आएंगे.’’
‘‘चल, घर चल.’’
तीनों की टोली सब मस्ती भूल घर लौट चली. तीनों बनारस के बाहरी नए बसे इलाके की एक छोटी सी बस्ती में रहते थे. तीनों में खूब प्यार था. घर भी थोड़ी दूरी पर थे. निम्मो के पिता श्याम गोदौलिया की कपड़े की दुकान में काम करते थे. मां इंदु संजय गांधी नगर के कुछ घरों में खाना बनाने का काम करती थीं. ये आम गरीब परिवार थे. इन्हें हिंदूमुसलिम की राजनीति से कोई मतलब न था, दिन में सब मेहनत करते, रात को पड़ कर सो जाते. संघर्ष और मेहनत का फिर एक और दिन निकलता, जीने की जद्दोजेहद में किसी से नफरत करने का न समय बचता, न हिम्मत.
ये तीनों बच्चे चौदहपंद्रह की उम्र के थे. एक सरकारी स्कूल में एकसाथ ही जाते, एकसाथ ही खेलते. छोटीछोटी ?ाग्गियों की इस बस्ती में सब कुछ न कुछ करते रहते. ये तीनों अपने जीवन को इतनी कमियों के साथ जीते हुए भी साथसाथ खुश रहते. अहमर और अमान दोनों के ही दिलों में निम्मो के लिए एक खास जगह थी. दोनों ही यह बात जानते भी थे. अहमर के पिता तारिक किसी होटल में काम करते थे, अम्मी नजमा कुछ घरों में काम करती. अमान के पिता अली एक टेलर के साथ काम करते, अम्मी अरीशा कभी उन कपड़ों में तुरपाई करती, कभी गोटे लगाती, कभी साड़ी में फौल लगाती. सब मातापिता यही सोचते कि बच्चे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं तो जिंदगी कुछ आसान हो.
तारिक कभीकभी होटल की बची बिरयानी घर ले आते तो अहमर, अमान को साथ लिए निम्मो के लिए जरूर ले जाता. निम्मो के मातापिता तीनों का आपस का प्यार देख खुश होते. निम्मो की 17 साल की बड़ी बहन रीना जौनपुर में अपने भरेपूरे ससुराल में रहती थी. वह जब भी आती, तीनों बच्चे उस के पिनपिने से गोलू से खूब खेलते. उसे थपकी देदे कर सुलाते. रीना अपने सिर पर हाथ मारती हुई कहती, ‘‘अरे, तुम लोग स्कूल जाओ, इस से आ कर खेलना. सब स्कूल न जाने के बहाने हैं, जानती हूं.’’
फिर उसे निम्मो की शादी की चिंता हो जाती, पूछती, ‘‘मां, इस की उम्र में मेरी शादी आप ने कर दी थी, इस की क्यों नहीं कर रही हो?’’
‘‘अभी छोटी है, कर देंगे.’’
‘‘छोटी है, पीरियड होने लगा है, अब क्या छोटी? सारा दिन लड़कों के साथ खेलती है, इसे रोको.’’
पर अकसर घरों में छोटा बच्चा हमेशा छोटा ही बना रहता है, वह चाहे कितना ही बड़ा हो जाए. इसलिए नमिता हमेशा लाड़ में निम्मो ही बनी रहती. कुछ दिन और बीते. युवा मन अब एकदूसरे के साथ कुछ और अलग अंदाज में धड़कने लगे थे. अब एकदूसरे को छूते हुए तीनों को कुछ अलग सा रोमांच हो आता और एक दिन ऐसे पल आ गए जो उन तीनों के जीवन में आने नहीं चाहिए थे.
निम्मो के साथ दोनों के शारीरिक संबंध बन गए. अब तक उन की जो अल्हड़ सी दुनिया थी, अब उस में देहसुख शामिल हुआ तो तीनों अब नए उत्साह से भरे करीब आने की जगहें ढूंढ़ते. जिस का घर खाली होता, वह प्रेम की नदी में डूब जाता. निम्मो अब सिर से पैर तक इस आनंद में खोई रहती. नएनए प्रयोग होते. अंतरंग पलों के वीडियो बनाए जाते. फिर अपनेअपने फोन में उन को बाद में देख कर हंसा जाता, हंसीठिठोली की जाती.
गरीब से गरीब बच्चों के पास आजकल सस्ते से सस्ते मोबाइल तो मिल ही जाते हैं, चाहे उन के पास कुछ और हो या न हो. तीनों का तनमन का साथ ऐसा ही बना रहा. कुछ महीने और बीत गए. निम्मो का इस तरफ ध्यान ही नहीं गया कि उसे काफी दिन से पीरियड हुआ नहीं है. एक दिन रात को अपने मातापिता के साथ खाना खाते हुए उसे उबकाई आई. उस ने खूब उलटियां कीं. इंदु ने पूछा, ‘‘क्या उलटासीधा खाया था, निम्मो?’’
‘‘कुछ नहीं, अम्मा. जो आप बना कर रख गई थीं, वही तो खाया था,’’ पस्त सी निम्मो ने जमीन पर बिछे बिस्तर पर लेटते हुए कहा.
‘‘ठीक है, चल, आराम कर ले, कल स्कूल न जाना.’’
निम्मो मुसकरा दी तो श्याम हंस पड़े, ‘‘सारे बच्चे स्कूल न जाने पर कितना खुश होते हैं न, चाहे हमारे जैसे गरीब हों या अमीर.’’
अगली सुबह श्याम और इंदु अपनेअपने काम पर चले गए तो अहमर और अमान स्कूल जाने के लिए तैयार हो कर निम्मो को लेने आए तो उस ने चहकते हुए कहा, ‘‘आज मैं स्कूल नहीं जा रही.’’
‘‘क्यों?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.
‘‘रात में उलटियां हुईं तो अम्मा ने कहा, आज आराम कर लूं.’’
‘‘चल, फिर हम भी नहीं जाते,’’ कहते हुए दोनों ने अपने बैग भी कंधे से उतार दिए तो निम्मो जोर से हंसी.
आसपास के घरों के लोग काम पर निकल चुके थे. अहमर ने छोटा सा
दरवाजा बंद कर दिया और वहीं जमीन पर बैठ गया, बोला, ‘‘अब तू ठीक
है, निम्मो?’’
‘‘ठीक नहीं भी है तो अभी हम कर देंगे ठीक,’’ कहतेकहते अमान ने नीचे बैठी निम्मो को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, बोला, ‘‘सच निम्मो, अहमर, हम सारी उम्र ऐसे ही रह लेंगे, है न? हमें और कुछ चाहिए ही नहीं.’’
फिर प्यारमोहब्बतों का दौर शुरू हो गया. जोश में इन पलों की छोटीछोटी वीडियो क्लिप्स बनती रहीं. यहां कोई किसी को बेवकूफ नहीं बना रहा था, कोई किसी को धोखा नहीं दे रहा था. बस, एक अल्हड़पन था, एक नासम?ा थी जो सब को ले कर डूबने वाली थी.
तीनों को यही लग रहा था कि एकदूसरे का साथ अच्छा लगता है. बस, ऐसे ही रह लेंगे. इस में बुरा क्या है पर जब फिर अगले दिन ही निम्मो को सुबह उठते ही एक तेज चक्कर के साथ उलटी हुई तो अब इंदु के कान खड़े हुए. इंदु का अब इस बात पर ध्यान गया कि बहुत दिनों से इंदु ने पीरियड की कोई बात नहीं की. पीरियड के दर्द में स्कूल की छुट्टी नहीं की. एक अजीब सा डर उस के होश उड़ा गया. वह काम पर न जा कर पास की ही एक लेडी डाक्टर के पास निम्मो को ले गई. रास्ते में उस ने निम्मो से पूछा, ‘‘निम्मो, पीरियड कब हुआ था?’’
‘‘याद नहीं, अम्मा.’’
‘‘क्यों याद नहीं? हर महीने तो होता है.’’
‘‘अम्मा, बहुत दिनों से नहीं हुआ शायद.’’ साथ चलती निम्मो के पेट पर इंदु ने नजर डाली तो हलका सा उभार देख इंदु को लगा, उस के दिल की धड़कन जैसे रुकने ही वाली है, उस का पीला सा चेहरा इंदु को अपना संदेह सच साबित करता सा लगा. उस के कदम अचानक भारी हो गए. इस लड़की ने यह क्या कर दिया. डाक्टर ने भी इंदु के संदेह की पुष्टि की तो जैसे मांबेटी को काठ मार गया. डाक्टर ने निम्मो से कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जबरदस्ती हुई?’’
‘‘नहीं, हम सब दोस्त हैं,’’ सुबकती हुई निम्मो के मुंह से निकला.
‘‘इंदु, गर्भ गिरा नहीं सकते, 4 महीने हो चुके हैं. आराम से घर जा कर सोचो, क्या करना है.’’
बाहर आ कर इंदु जैसे पत्थर की तरह हो गई, चुपचाप घर की तरफ चलती रही. यह कितनी बड़ी मुसीबत में फंस गई उस की बेटी, अब क्या होगा, यह सवाल जैसे उस की जान ले रहा था, कितनी ही आशंकाएं लिए वह घर आई और एक कोने में बैठ कर फूटफूट कर रो दी. निम्मो ने उस के पैर पकड़ लिए, ‘‘माफ कर दो, अम्मा.’’
और सचमुच इंदु के पैरों पर सिर रख कर ‘‘नाराज न होना, अम्मा, गलती हो गई, कुछ पता नहीं था,’’ कहते हुए जब निम्मो भी रोई तो इंदु का कलेजा जैसे मोम हो गया. उस ने निम्मो को अपने सीने में भींच लिया. दोनों जारजार रोए जा रही थीं. इंदु ने कहा, ‘‘तु?ो नहीं पता बेटा, तू अपने साथ अनर्थ कर बैठी है, बड़ी तकलीफ उठाएगी.’’
अहमर और अमान रोज की तरह जब निम्मो से मिलने आए तो इंदु के चेहरे की सख्त मुद्रा देख उन की हिम्मत नहीं हुई कि निम्मो के बारे में पूछें. इंदु ने साफसाफ कहा, ‘‘अभी तुम दोनों जाओ, तब तक नहीं आना जब तक मैं बुलाऊं नहीं.’’
फौरन व्हाट्सऐप पर तीनों ने बात की. निम्मो ने जब उन्हें सब बताया तो उन के होश उड़ गए. निम्मो को किसी तकलीफ में डालने का दोनों का कोई इरादा नहीं था पर मौजमस्ती करते यह बड़ी गलती तीनों से ही हो गई थी. अब क्या होगा, सोच कर हर इंसान परेशान था. शाम को श्याम घर आए तो पत्नी और बेटी की शक्ल देख कर चौंके, हमेशा हंसती, चहकती बेटी निढाल पड़ी थी और इंदु अपने आंसू पोंछ रही थी. छोटा सा एक कमरा ही तो था, कहां जा कर अकेले में बात करती, निम्मो के सामने ही रोते हुए सब बता दिया. निम्मो चेहरे पर कपड़ा रखे सिसकती रही. सारी बात सुन कर श्याम का मन हुआ कि निम्मो को पीट डाले पर इंदु ने इशारे से रोक दिया कि कुछ न कहें. श्याम ने काफी देर बाद कहा, ‘‘निम्मो, जाओ, दोनों के मांबाप को अभी बुला कर लाना.’’
उस के जाने के बाद श्याम ने इंदु से कहा, ‘‘मन तो हो रहा है दोनों लड़कों पर रेप का केस कर दूं पर निम्मो भी उतनी ही जिम्मेदार है. साथ ही, सब के पास वीडियो भी हैं. आज दोस्त हैं, केस करने पर उलटा मुश्किलें ही बढ़ेंगी. गर्भ गिर नहीं सकता. बच्चे का क्या करना है, मिल कर सोचना होगा.’’
इंदु ने सहमति में सिर हिलाया.
ऐसे पहली बार बुलाया गया था, सब आए, एकसाथ बैठे. श्याम ने सारी बात बताई. तीनों बच्चे एक कोने में सिर ?ाकाए बैठे थे. सारी बात सुन कर सब ने अपने सिर पकड़ लिए. सब अभी तक सुखदुख के साथी रहे थे. अब भी यह परेशानी सब की सा?ा थी. पहले तो निम्मो, अहमर और अमान को जबरदस्त डांट पड़ी, फिर अरीशा ने सम?ादारी का सबूत देते हुए कहा, ‘‘आप सब काम पर जाते हैं, मैं घर में रहती हूं, बच्चा तो अब जन्म लेगा ही. यहां रहे तो निम्मो को परेशानी हो सकती है. मेरी बड़ी बहन भदोही में अकेली रहती है, मैं इसे ले कर वहां चली जाती हूं. आप लोग जब चाहे, आ जाया करना. कोई पूछे तो बोल देना, रीना के पास गई है. अभी कुछ दिन तो चल ही जाएगा. अब सब को मिल कर देखना होगा. बच्चों ने गलती की है. इसे संभालना तो हमें ही होगा. निम्मो की जिंदगी का सवाल है.’’
अली बहुत गुस्से में थे, अमान को डांटते हुए बोले, ‘‘और अब निम्मो से मिलने की जरूरत नहीं है, अपने घर में रहो. बहुत बेवकूफी कर ली. पढ़ोलिखो. शुक्र करो कि श्याम भाई पुलिस केस नहीं कर रहे, हम सब से बैठ कर बात कर रहे हैं. कोई और होता तो तुम दोनों याद रखते.’’
आगे क्याक्या करना पड़ेगा, इस पर बहुत देर बात होती रही. सब बहुत उदास, परेशान थे. यह स्थिति ही ऐसी थी कि सब को बहुत सोचसम?ा कर कदम उठाना था. तीन युवा जिंदगियों का सवाल था. किसी का भविष्य चौपट न हो, इस बात पर बहुत विचार होता रहा. रात गहरा गई तो सब भारी मन से अपनेअपने घर चले गए.
अब निम्मो की पढ़ाई कुछ दिनों के लिए छूट गई. रीना आई तो सब जान कर रोने लगी. बहन थी, उस के आने वाले दुख उसे रुला रहे थे. छोटी बहन को गले से लगाए देर तक सिसकती रही. कुछ दिनों के बाद इंदु और नजमा के साथ निम्मो भदोही चली गई.
निम्मो की अजीब हालत थी. दोनों दोस्त खूब याद आते. चंचल बचपन अचानक जाने कहां गायब हो गया था और यौवन ने आते ही उस के जीवन में जो हलचल मचाई थी, कुछ सम?ा ही नहीं आ रहा था.
नजमा की बहन अंजुम बहुत स्नेहिल स्वभाव की महिला थी. उस का स्वभाव देख इंदु के दिल को कुछ तसल्ली मिली. अंजुम ने एकांत में इंदु से कहा, ‘‘चिंता न करो, बहन, मेरा तो कोई और है नहीं. आप लोगों के किसी काम आ जाऊंगी तो लगेगा कोई है. यह घर अपना ही सम?ाना. जब चाहो, आती रहना. अब बच्ची की देखभाल में मेरा मन लगा रहेगा. बाकी परेशानी तो इसे ही सहनी है.’’
इंदु रोरो कर बेचैन सी इधरउधर घूमती, रातों को जागती, फिर कुछ दिन बाद वापस लौट आई पर उसे चैन न आया तो वापस निम्मो के पास ही चली गई. नजमा लौट गई. कभी कोई आ जाता, कभी कोई.
नियत समय पर निम्मो ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया जिस का नाम रखने की जिम्मेदारी इंदु ने अंजुम को ही दी, ‘‘दीदी, आप ही रखो इस का नाम. आप का ही साथ मिला तो हम इस परेशानी से निबट सके.’’
‘‘बहन, परेशानी कैसी, जिन का कोई नहीं होता उन्हें तो हर रिश्ते में अपनापन दिखता है. बच्चे के आने से मेरा सूना घरआंगन जैसे गा उठा है. इस का नाम गीत ही रख दो. आप लोगों ने बच्चे को ले कर पहले ही फैसला कर लिया था वरना मैं तो कहती हूं, मैं ही बच्चे को पाल लेती.’’
‘‘नहीं, दीदी, रमा-विनोद से कह दिया है, वे निसंतान हैं, दलित होने के कारण लोग उन से ज्यादा मतलब भी नहीं रखते. ज्यादा पूछताछ नहीं होगी. वे बच्चा पालने के लिए तैयार हो गए हैं. हम उन्हें इस का खर्चा देते रहेंगे. वे मान गए हैं. निम्मो को थोड़ा और पढ़ालिखा कर इस की शादी कर ही देंगे. आप की मदद से बड़ी मुश्किल से बाहर आ पाए. आप न होतीं तो बहुत ज्यादा परेशान हो जाते.’’
बहुत सारा धन्यवाद कहते हुए श्याम और इंदु निम्मो को ले कर वापस अपने घर आ गए. इस बीच अहमर और अमान निम्मो से फोन पर ही उस के हालचाल पूछते रहे थे. यह वह उम्र थी कि तीनों डर से गए थे. अहमर और अमान के मातापिता ने बहुत संजीदगी से दोनों को सम?ाते हुए भविष्य के लिए डराते हुए कहा था, ‘अगर निम्मो के मातापिता पुलिस में एक बार तुम्हारी शिकायत कर दें तो जेल में कब तक सड़ोगे, पता नहीं. जिंदगी खराब हो जाएगी. अब चुपचाप निम्मो की जिंदगी से दूर हो जाओ. उसे भी चैन से जीने दो. इतनी सी उम्र में बेचारी बहुत ?ोल गई.’
इन थोड़े महीनों की दूरी ने सब को थोड़ा और सम?ादार बना दिया था. तीनों थोड़े संजीदा हुए थे. बेवक्त के हंसीमजाक बिलकुल बंद हो गए थे. सब सम?ा रहे थे कि इस खुलेपन से क्या नुकसान हुआ है. इस कमसिन उम्र में निम्मो इतने दर्द ?ोल गई थी कि वह अंदर से पूरी तरह बदल गई थी. कोई जिद न करती. चुपचाप जो मिलता, खा लेती, कुछ न कहती.
कुछ दिनों बाद उस ने स्कूल जाना शुरू कर दिया था. अब स्कूल भी अलगअलग हो गए थे. सो, तीनों का आपस में मिलनाजुलना बहुत कम हो गया था. धीरेधीरे फोन पर भी दूरी होती गई.
रीना अकसर आती रहती. जैसेजैसे निम्मो बड़ी हो रही थी, अब वह उस के लिए किसी अच्छे रिश्ते की तलाश में रहती. समय अपनी रफ्तार से बीतता रहा. 7 वर्षों बाद जौनपुर में रहने वाले सोमेश से निम्मो का विवाह हो गया. श्याम और इंदु ने चैन की सांस ली. गीत रमा और विनोद के घर में पल रहा था. उस की देखरेख कैसे हो रही है, यह जानने के लिए अंजुम वहां कभी भी चक्कर काट आतीं. 2 साल बाद निम्मो ने वीर को जन्म दिया. सोमेश के घर निम्मो सुखी थी.
अपने अतीत के बारे में किसी से बात न करे, यह उसे मायके से बारबार सम?ा दिया गया था. सोमेश सरल स्वभाव का इंसान था. उस के मातापिता निम्मो को खूब स्नेह देते. कुल मिला कर सब अपनेअपने जीवन में रचबस गए थे. अहमर और अमान की शादी भी हो गई थी. अब किसी के जीवन में कोई परेशानी नहीं है. सब ठीक हो गया है. यह सोच कर अब निम्मो के मायके आने पर अहमर और अमान से आमनासामना होने पर मुंह नहीं घुमाए जाते थे. थोड़ा हंसबोल लिया जाता था पर समय कब करवट लेले, भला कभी कोई जान सका है.
रमा बीमार रहने लगी थी. विनोद परेशान था. गांव में उन की बस्ती भी अलग और कुछ दूर थी. रमा के लिए वहां से बारबार डाक्टर तक जाना भी जब मुश्किल होने लगा तो विनोद और रमा ने एकदूसरे से सलाह की और गीत को बुला कर उस के जन्म से ले कर आज तक का सच बता दिया. गीत यह सब सुन कर रोने लगा. चुप ही न हुआ तो विनोद ने अंजुम के पास जा कर कहा, ‘‘अब आप ही गीत को देखिए, हम अब और देखभाल नहीं कर पाएंगे.’’
नजमा अकेली थीं, बीमार थीं, कुछ सम?ा न आया तो बोलीं, ‘‘अब मैं अपना काम ही बहुत मुश्किल से करती हूं, मैं तो गीत की जिम्मेदारी उठा नहीं पाऊंगी. तुम जा कर गीत के नानानानी से मिल कर देखो, क्या कहते हैं वे. मैं तो जिस के लिए जितना कर सकती थी, कर दिया, भाई. अब तो मेरी भी उम्र हो गई.’’
विनोद श्याम और इंदु के घर पहुंचा तो उसे देख कर दोनों चौंके. विनोद ने गीत को अब अपने पास न रखने की मजबूरी बताई तो दोनों ने सिर पकड़ लिया. बड़ी परेशानी की बात थी. श्याम ने कहा, ‘‘क्या करें, कुछ सम?ा नहीं आ रहा, किसी को क्या जवाब देंगे कि यह बच्चा कौन है, कहीं निम्मो के जीवन में कोई परेशानी न आ जाए. अभी तुम जाओ, कुछ रास्ता निकालते हैं कि क्या हो सकता है.’’
इंदु ने कुछ रुपए भी उस के हाथ में रख दिए. वह परेशान सा लौट गया. 7 साल के गीत का चेहरा देख रमा और विनोद का कलेजा मुंह को आता. क्या होगा इस का. शुरू में तो उन्होंने पैसे के लिए बच्चे को पालने की जिम्मेदारी संभाल ली थी पर अब बच्चे से उन्हें बहुत लगाव हो गया था. लेकिन रमा कैंसर की लास्ट स्टेज पर थी. अब वह चाह कर भी गीत की देखरेख नहीं कर पा रही थी. विनोद ही मजदूरी के साथसाथ सब काम करता, रमा का ध्यान रखता. अब उसे सम?ा आ गया था कि गीत की जिम्मेदारी से सब बच रहे हैं. उसे ही इस बच्चे के बारे में कुछ सोचना होगा. गांव में एक ‘सनाथ’ नाम की संस्था का औफिस था. यह एनजीओ अनाथ बच्चों के लिए काम करती थी. इस में सुधाजी, जिन्हें सब दीदी कहते थे, इस की प्रमुख थी. विनोद ने उन के पास जा कर उन्हें पूरी बात बताई.
वे गीत की पूरी कहानी सुन कर हैरान हुई, बोलीं, ‘‘एक बच्चे के जीवन का प्रश्न है, उस का पिता कौन है?’’
‘‘यह तो नहीं पता, दीदी.’’
‘‘मु?ो अंजुम का पता दो, मैं जा कर बात
करती हूं.’’
सुधा उसी समय अंजुम के पास पहुंची, अपना परिचय दिया. अंजुम सम?ा गई कि अब बात उतनी आसान नहीं रह गई है जितनी अब तक लग रही थी. सुधा ने अंजुम से अमान और अहमर का पता किया और वहां जा कर अपना परिचय देते हुए दोनों को फोन कर के एक जगह बुलाया. दोनों घबरा गए. कितने ही बेकसूर आज यों ही फंसा दिए जाते हैं. उन दोनों से तो गलती हुई थी. वे किसी भी चक्कर में फंस सकते हैं, यह वे सम?ा रहे थे. सुधा ने बहुत चतुराई से एक डाक्टर से गीत, अहमर और अमान के ब्लड सैंपल दिलवाए और प्रूव कर दिया कि गीत अमान का बेटा है.
सुधा गीत के साथ अमान के घर गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. अमान की पत्नी सबा ने उन से आने का कारण पूछा तो सुधा ने पूरी कहानी सुना दी, कहा, ‘‘अब इस बच्चे की जिम्मेदारी तुम लोगों में से किसी को लेनी ही होगी. अगर यह अनाथ होता तो मैं देख लेती पर अमान और निम्मो हैं तो किसी को तो इस के बारे में सोचना ही होगा. कोई भी परिवार इस बच्चे की जिम्मेदारी ले.’’ सबा चिल्लाने लगी, ‘‘मेरे साथ धोखा हुआ है, मैं किसी और औरत के बच्चे को क्यों पालूं?’’
सुधा ने निम्मो को फोन कर के आने के लिए कहा था. वह अपने पति के साथ
आई. अब सब को सबकुछ पता चल गया था. सोमेश ने सिर पकड़ लिया. सुधा
ने कहा, ‘‘तुम लोगों को लग रहा होगा कि मैं ने तुम लोगों के सुखी जीवन की शांति छीन ली, देखिए, मैं बच्चों की भलाई के लिए काम करती हूं, अनाथ बच्चों को पढ़ातीलिखाती हूं, हमें कई लोग सपोर्ट करते हैं पर जिस बच्चे के मातापिता जिंदा हैं, उन का फर्ज बनता है कि वे कोई रास्ता निकालें, गलतियां सब से होती हैं पर बड़ों की लापरवाही एक मासूम क्यों ?ोले. अब आप लोग देखो, मैं चलती हूं. हां, गीत के साथ कोई अन्याय नहीं होने दूंगी, यह याद रखना.’’
उन के वहां से जाते ही सोमेश ने कहा, ‘‘तुम्हें जो करना है, करो. मैं शायद तुम्हारे साथ न रह पाऊं. तुम सब ने मु?ा से ?ाठ बोला है, मु?ो धोखा दिया है. मैं अपने बच्चे को खुद देख लूंगा.’’ यह सब गुस्से में कहता हुआ सोमेश वहां से चला गया. सबा ने अमान को घूरते हुए कहा, ‘‘मु?ा से उम्मीद भी मत करना कि मैं तुम्हारी रंगरलियों के नतीजे को संभालूंगी. जो किया था, अब भरो.’’
गीत बड़ी देर से चुप था पर अब जोरजोर से घबरा कर रो पड़ा. हैरानपरेशान खड़ी निम्मो ने उसे चुप करवाने के लिए अपने पास बुलाया तो वह उस के आंचल में छिप गया. थके कदमों से निम्मो अपमानित सी अमान के घर से निकली तो गीत भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा. सबा ने कहा, ‘‘अमान, तुम भी जाओ, मैं अकेली अपने बच्चे के साथ जी लूंगी. निम्मो और इस नाजायज बच्चे का साया भी अपने घर पर पड़ने नहीं दूंगी.’’
अमान थोड़ी देर सोचता रहा, फिर कुछ सम?ा न आया तो निम्मो और गीत के पीछे कदम बढ़ा दिए. गीत के चेहरे पर एक सुकून था. वह पीछे मुड़ कर अमान को देखता रहा. फिर अमान से पूछने लगा, ‘‘अब हम तीनों साथ रहेंगे न? अब मैं भी अपने असली मम्मीपापा के साथ रहा करूंगा?’’
निम्मो की आंखों से आंसू बहे चले जा रहे थे. उसे कुछ सम?ा नहीं आ रहा था. जिंदगी कैसे मोड़ पर ले आई थी. सब बिखर गया था. कैसे समेटा जाएगा, कोई राह नहीं दिखती थी. अमान दोनों के पीछे ही चल रहा था. कहां जाएंगे, कैसे रहेंगे, कोई ठिकाना नहीं था. बड़ी उल?ान की घड़ी थी. कहीं दूर से ‘जिंदगी, कैसी है पहेली हाय…’ गीत के बोल कानों में पड़े तो दोनों ने एक ठंडी सांस ली. दोनों की आंखों से आंसू बह गए. कोई किसी की तरफ देख नहीं रहा था. बस, चलते जा रहे थे, पता नहीं कहां. द्य