जबलपुर हाईकोर्ट का यह फैसला एक बार फिर साल 1972 की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘दुश्मन’ की याद ताजा कर गया. दुलाल गुहा निर्देशित यह फिल्म न्याय में नए प्रयोग के लिए जानी जाती है, जिस का स्वागत करने के लिए दर्शक सिनेमाघरों की तरफ टूट पड़े थे. फिल्म के हीरो राजेश खन्ना (सुरजीत) ट्रक ड्राइवर के रोल में थे जिस के हाथों रामदीन नाम के किसान की सड़क हादसे में मौत हो जाती है जो अपने घर का कर्ताधर्ता है.
ऐसे हादसे गैरइरादतन हत्या के होते हैं, इसलिए इन में सजा ज्यादा नहीं होती. जज के रोल में रहमान थे जो रामदीन के घर वालों की बदहाली, गरीबी और दुर्दशा के मद्देनजर सुरजीत को रामदीन के घरवालों के भरणपोषण की सजा सुनाते हैं कि वह मृतक के खेतों में हल जोते, फसलें उगाए और रामदीन के बीवीबच्चों की परवरिश करे. शुरुआती आनाकानी के बाद सुरजीत का मन गांव में लग जाता है और कुछ दिनों में ही उसे अपने हाथों हुए अपराध का एहसास होता है तो वह पश्चात्ताप भी करता है. फिर फिल्म फार्मूला होती जाती है. राजेश खन्ना को गांव की लड़की मुमताज से प्यार हो जाता है. विलेन वगैरह भी आ जाते हैं और आखिर में सबकुछ ठीक हो जाता है. रामदीन की विधवा मालती भी सुरजीत को माफ़ कर देती है और दर्शक नम आंखें लिए थियेटर के बाहर निकलते हैं. मालती की भूमिका में मीना कुमारी ने जबरदस्त अभिनय किया था.
तब क़ानूनी हलकों में इस फिल्म को ले कर खासी बहस और चर्चा हुई थी और कानून से जुड़े लोग व बुद्धिजीवी दोफाड़ हो गए थे कि ऐसे फैसले होने चाहिए या नहीं और अगर हो भी गए तो क्या गारंटी है कि वे भी फिल्म की तरह कारगर होंगे.
अब सालों बाद ऐसी ही बहस जबलपुर हाईकोर्ट के एक फैसले को ले कर छिड़ी हुई है. पहले इस मामूली से लगने वाले मामले को थोड़े से में समझें- बीबीए फर्स्ट ईयर का छात्र अभिषेक शर्मा भोपाल के पिपलानी इलाके में रहता है. पढ़ाई के साथसाथ वह इस उम्र में होने वाला एक और काम छेड़छाड़ का भी कर रहा था जिस का तरीका वैसा ही गलत था जैसा कि ‘दुश्मन’ फिल्म में राजेश खन्ना का नशे में धुत हो कर ट्रक चलाना था. अभिषेक एक 17 साल की लड़की, बदला नाम मान लें प्रिया है, से एकतरफा प्यार करने लगा था और रातबिरात फोन करने लगा था. वह राह चलते उसे छेड़ता था, उस का पीछा करता था, कमैंट्स करता था जिस से प्रिया बेहद तंग आ गई थी. आखिर चूंकि लड़की थी, इसलिए लड़ नहीं पाई.
उस की ख़ामोशी को अभिषेक ने मजबूरी और कमजोरी समझ लिया तो उस के हौसले और भी बुलंद होने लगे. उसे लगा और बेहद गलत लगा कि लड़कियां ऐसे भी पटती हैं, वे पहले नाजनखरे दिखाती हैं, नानुकुर करती हैं और फिर प्यार के आगे हथियार डाल बगीचे में पेड़ के इर्दगिर्द गाना गाने को तैयार हो जाती हैं. इसी जिद और जनून की गिरफ्त में आते उस ने प्रिया को इंप्रैस करने की गरज से उस के नाम का टैटू भी अपने हाथ में बनवा लिया. इस पर भी बात न बनी तो वह प्रिया को धमकियां देने लगा.
आखिकार एक दिन प्रिया के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पुलिसथाने जा कर अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने पाक्सो एक्ट के तहत अभिषेक को जेल भेज दिया. अभिषेक ने जमानत के लिए भोपाल जिला अदालत में अर्जी दाखिल की जो कि रद्द हो गई. यह 13 अप्रैल, 2024 की बात है. चार दिनों बाद ही यह मजनू हाईकोर्ट जा पहुंचा जहां उस की अर्जी पर 16 मई को सुनवाई हुई.
यह फैसला आया
अभिषेक के अधिवक्ता सौरभ भूषण श्रीवास्तव ने अदालत में दलील दी कि अभिषेक की पढ़ाई चल रही है, ऐसे में अगर उसे सख्त सजा दी गई तो उस का कैरियर बरबाद हो जाएगा. अभिषेक के पेरैंट्स ने बेटे की करतूत पर माफ़ी भी मांगी. सौरभ भूषण ने अपने मुवक्किल के अच्छे चालचलन का भी हवाला दिया.
इन दलीलों से इत्तफाक रखते और अभिषेक के भविष्य को गंभीरता से लेते जस्टिस आनंद पाठक ने लीक से हट कर फैसला सुनाया जो जल्द ही चर्चा का विषय बन गया. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि छात्र को बेहतर नागरिक बनाने, उस की उम्र और भविष्य को देखते हुए समाजसेवा का आदेश दिया गया है ताकि उसे समाज की मुख्यधारा में आने का मौका मिले. दो महीने की अस्थाई जमानत की शर्त हाईकोर्ट ने यह रखी कि उसे सप्ताह में 2 दिन शनिवार और इतवार को भोपाल के जिला अस्पताल जा कर मरीजों की सेवा करनी होगी जिस के लिए उसे कोई भुगतान नहीं किया जाएगा. इस दौरान अगर उस के आचरण में सुधार दिखता है तो जमानत नियमित कर दी जाएगी.
अदालत ने यह भी कहा कि युवक अस्पताल में मरीजों के लिए परेशानी का कारण नहीं बनेगा. अगर उस के दुर्व्यवहार या आचरण की जानकारी या शिकायत आती है तो जमानत ख़ारिज कर दी जाएगी. अपने आदेश में जस्टिस आनंद पाठक ने यह भी लिखा कि भोपाल के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारी उसे बाह्य विभाग में कार्य करने की अनुमति देंगे, इस के बाद रिपोर्ट प्रदान करेंगे.
इत्तफाक से इन्हीं दिनों पुणे में हुए हादसे की भी चर्चा लोगों में थी जिस में एक नाबालिग ने आधीरात को बाइकसवार अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा को हाई स्पीड पोर्शे कार से कुचल दिया था. आरोपी 12 बी में पास होने का जश्न मना कर घर लौट रहा था लेकिन ‘दुश्मन’ फिल्म के ड्राइवर राजेश खन्ना की तरह नशे में धुत था. लोग आरोपी के घर वालों को कोस रहे थे कि कैसे लापरवाह लोग हैं जिन्होंने नाबालिग बेटे को कार सौंप दी. चर्चाएं खत्म होतीं, इस के पहले ही यह खबर भी आ गई कि निचली अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी और मामूली शर्तें ये रखीं कि वह ऐक्सिडैंट पर 300 शब्दों में निबंध लिखे और 15 दिन ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करे. शराब की लत छुड़ाने के लिए उस की काउंसलिंग की बात भी अदालत ने कही. इस पर खूब हल्ला मचा जिस के चलते इस आरोपी के मां, बाप और दादा को भी पेश होना पड़ा.
फर्क क्या
इंसाफ के तराजू पर देखा जाए तो जबलपुर और पुणे के फैसलों में कोई खास फर्क नही है सिवा इस के कि पुणे वाले आरोपी के हाथों 2 लोगों की मौत हुई थी. कहा जा सकता है कि पुणे के मामले में भी अदालत की मंशा आरोपी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसे एक मौका देने की थी. लेकिन इस पर बवंडर मचा तो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा. रोजरोज नईनई बातें सामने आ रही हैं. यह ठीक है कि यह हादसा गंभीर था और गलती पेरैंट्स की भी थी, मुमकिन है सजा उन्हें भी भुगतनी पड़े.
अभिषेक के मामले पर सौरभ भूषण का कहना है कि ऐसे फैसलों से आरोपी को अपनी गलती का एहसास होगा और वह उसे सुधारने की कोशिश भी करेगा.
लेकिन क्या इसे प्रिया को इंसाफ मिलना कहा जा सकता है? इस का तर्कपूर्ण और ठोस जवाब किसी के पास नहीं कि उस ने 2 साल अभिषेक की ज्यादतियों और मानसिक यातना को बरदाश्त किया है. उस दौरान सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते और राह चलते वह किस दहशत में रही होगी, यह तो कोई और भुक्तभोगी लड़की ही बता सकती है. उस के कैरियर को हुए नुकसान की भरपाई कौन और कैसे करेगा. मुमकिन है अभिषेक को अपनी गलती का एहसास हो और वह सुधर भी जाए जो कि अदालत की उम्मीद और मंशा दोनों है. यह ठीक है कि कम उम्र लड़कों को सबक मिलना चाहिए वह भी बिना किसी सख्त सजा के तो यह इस मामले में देखने में आया है.
प्रिया की राय अगर अदालत इस बारे में लेती तो तसवीर कुछ और भी हो सकती थी. प्रिया जैसी पीड़िताओं को लंबे वक्त तक ऐसे लफंगो की ज्यादतियां बरदाश्त करने के बजाय तुरंत ही कानून की मदद लेनी चाहिए. अगर सहती रहेंगी तो कोई भी हादसा उन के साथ पेश आ सकता है जो अभिषेक बेखौफ हो कर उसे धमकियां देने लगा था, कल को वह साजिशन जबरदस्ती भी कर सकता था.