गरमी का समय था. मुझे सुबह जयपुर के लिए निकलना था. पारा इतना ज्यादा था कि पूछो मत. ट्रेन में बैठा ही था कि सामने वाली सीट पर क्रौप टौप और जींस पहनी एक 20-22 साल की लड़की बैठ गई. लड़की कान में हैडफोन लगा कर अपनी धुन में गाना सुन रही थी, और बाहर प्लेटफौर्म पर होने वाली हलचल देख रही थी.

ट्रेन के कोच में अधिकतर मर्दों की नजरें लड़की की नाभि पर अटकी हुई थीं, वही नाभि जिसे ‘बेली बटन’ के नाम से भी जाना जाता है. यह नाभि नवजात समय में मां और बच्चे के जुड़ाव की एक मात्र कड़ी गर्भनाल को अलग करने के चलते बनती है. वहां मेरी बगल में बैठा अधेड़ आदमी तो टकटकी लगाए देख ही रहा था.

उस अनजान अधेड़ सहयात्री ने मेरे कान में फुसफुसाना शुरू किया, ‘“क्या हो गया आजकल की लड़कियों को... कपड़े देखो.’” मैं ने पूछा, ‘क्यों क्या हुआ?’ वह उसी फुसफुसाहट में अश्लील और मादकता सी मुसकराहट के साथ कहने लगा, ‘“बताओ, पेट का छेद दिख रहा है. कमर दिखाने का क्या मतलब?”’ यह वही महाशय थे जो गरमी के चलते सफर में शर्ट खोल कर बनियान में बैठे थे, और बनियान को आधे पेट ऊपर धकेले हुए थे.

उस के इस कमैंट से मैं थोड़ा ठिठका, थोड़ा असहज हुआ. कम से कम खुले में उस के ऐसे कहने की उम्मीद नहीं थी. तभी मेरी नजर उस लड़की की बगल में बैठी एक तीसएक वर्ष की उम्र की महिला पर पड़ी. महिला के साथ एक बच्चा था. पति कहीं बाहर प्लेटफौर्म पर सामान लेने गया लगता था. महिला ने साड़ी पहनी थी. साड़ी भारतीय परंपरागत परिधान है. जितना तन उस लड़की का ढका था उतना ही भारतीय परिधाम में उस महिला का भी ढका रहा होगा. यहां तक कि साडी में कमर और नाभि भी दिखाई दे रही थी, जिसे पल्लू से फौर्मैलिटी के लिए ढका गया था क्योंकि गरमी इतनी थी कि वही पल्लू उस के लिए जी का जंजाल जैसा बना हुआ था. पर दावे के साथ कहा जा सकता है उस अधेड़िया को साड़ी वाली महिला के परिधान से कोई दिक्कत थी नहीं.

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