दुनियाभर में बढ़ते हार्ट अटैक के मामलों की वजह कोरोना वैक्सीन को मानते हुए अनेक मुकदमे दुनियाभर की अदालतों में वैक्सीन कंपनियों के खिलाफ ठोंके जा रहे हैं. ब्रिटेन में हार्ट अटैक से होने वाली 81 मौतों के बाद ब्रिटेन की हाईकोर्ट में 50 से अधिक पीड़ित परिवारों ने एस्ट्राजेनेका कंपनी के खिलाफ केस किया है, जिस में कंपनी से 1,000 करोड़ रुपए के हर्जाने की मांग की गई है.

जैमी स्काट नामक व्यक्ति ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ ब्रिटेन की हाईकोर्ट में मामला दर्ज कराया है. स्काट का आरोप है कि वैक्सीन लेने के बाद उस के शरीर में खून के थक्के जमने की समस्या हुई और दिमाग में ब्लीडिंग हुई. इस से उस के मस्तिष्क को काफी नुकसान हुआ.
हालांकि, भारत में सीरम इंस्टिट्यूट की तरफ से अभी तक वैक्सीन को बाजार से वापस लेने संबंधी कोई फैसला नहीं लिया गया है. मगर भारत में भी कोविशील्ड को ले कर चिंता उठ रही है. इसे ले कर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है और वैक्सीन की सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर सुनवाई की मांग की गई है.

एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के साइड इफैक्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति भी दे दी है हालांकि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की है. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि वैक्सीन के साइड इफैक्ट और अन्य संभावित जोखिमों की जांच विशेषज्ञ पैनल से कराई जाए और इस की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए. याचिका में मुआवजे के लिए निर्देश की भी मांग की गई है. एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन भारत में कोविशील्ड के नाम से लगाई गई है, जिस का उत्पादन आदार पूनावाला की कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया ने किया है.

दुनियाभर में कोरोना वायरस की महामारी के दौरान लोगों को टीके मुहैया कराने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने अपनी बदनामी और हार्टअटैक के बढ़ते केसेस को देखते हुए यूरोप और दुनिया के अन्य देशों से अपनी वैक्सजेवरिया वैक्सीन को वापस मंगा लिया है.

ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मास्यूटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका का यह कदम ऐसे वक्त सामने आया है जब कंपनी ने कोर्ट में लिखित दस्तावेजों में स्वीकार किया कि कोरोना वैक्सीन के कुछ दुर्लभ मामलों में साइड इफैक्ट दिख सकते हैं. इस की वजह से कुछ लोगों में थ्रांबोसिस थ्रोंबोसाइटोपेनिया सिंड्रोम बीमारी के लक्षण देखे गए हैं, जिस में लोगों में खून के थक्के जमने लग जाते हैं, जो हार्टअटैक का कारण होता है.

गौरतलब है कि एस्ट्राजेनेका के लाइसैंस वाली कोविशील्ड वैक्सीन ही भारत में भी कोरोना से बचाव के लिए दी गई थी. भारत में लगाई गई कोविशील्ड वैक्सीन भी उसी फार्मूले पर बनी है जिस पर वैक्सजेवरिया वैक्सीन बनी है. भारत में कोविशील्ड का निर्माण सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया ने किया था, लेकिन अभी तक भारत में कोरोना वैक्सीन वापस लेने का कोई फैसला नहीं हुआ है.

यह सच है कि बीते 2 सालों के दौरान हार्टअटैक के मामलों में वृद्धि हुई है. जवान लोगों और बच्चों तक की हार्टअटैक से अचानक मौतें हुई हैं. कोई कसरत करतेकरते मर गया, कोई शादी की पार्टी में डांस करते हुए अचानक गिरा और चल बसा. वरमाला पहनाती हुई दुलहन अचानक गिरी और मर गई. ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं. यह असाधारण बात है और चिंता का विषय है. लेकिन 2020 में जब कोविड महामारी की शुरुआत हुई और लोगों की जानें जाने लगीं, उस वक़्त दुनियाभर की वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों पर जल्द से जल्द कोरोना का टीका बनाने का जबरदस्त दबाव था. हर मुल्क में साइंटिस्ट और डाक्टर रिसर्च में लगे थे.

हम जानते हैं कि वैक्सीन बनाने के लिए रिसर्च सालोंसाल चलती है. विज्ञान की दुनिया में कोई भी निष्कर्ष आखिरी निष्कर्ष नहीं होता है. प्लेग, चेचक, खसरा, पोलियो आदि की वैक्सीन तैयार होने में कई कई वर्ष लग गए. उन का पहले जानवरों पर और उस के बाद मनुष्य पर प्रयोग किया गया. कई प्रयोग विफल हुए पर आखिरकार वैक्सीन बनी और उस के इस्तेमाल से मनुष्य में संक्रमण के कारण तेजी से फैलने वाली इन बीमारियों पर काबू पाया जा सका.

कोविड महामारी की वैक्सीन बनाने के लिए डाक्टर्स और रिसर्चर्स को ज्यादा समय नहीं मिला. दुनियाभर में लोग कोविड के कारण धड़ाधड़ मर रहे थे. ऐसे में जल्दीजल्दी में जो दवा बन पाई उसे तुरंत बाजार में उतार दिया गया. वैक्सीन के कारण अनेक लोगों की जानें बच भी गईं. ऐसा नहीं है कि वैक्सीन पर रिसर्च बंद हो गई है. यह रिसर्च जारी है ताकि परफैक्ट वैक्सीन प्राप्त की जा सके. हाल ही में कोरोना के एक और नए वैरिएंट की आहट सुनी गई है. कोरोना कभी भी वापस पलट सकता है. इसलिए दुनियाभर के डाक्टर और साइंटिस्ट बेहतर से बेहतर वैक्सीन बनाने पर कार्य कर रहे हैं.

विज्ञान निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. विज्ञान मानता है कि ब्रह्मांड में अनेकानेक चीजें ऐसी हैं जिन तक मनुष्य अभी पहुंच नहीं पाया है. इसलिए विज्ञान लगातार खोजों और प्रयोगों में जुटा है. प्रयोग सफल भी होते हैं और असफल भी. जबकि धर्म खोज में विश्वास ही नहीं करता है. विज्ञान और धर्म में मूल भिन्नता ही यह है कि धर्म आखिरी निष्कर्ष पर पहुंच चुका है. हजारों साल पहले धर्म ने चीजों की जैसी व्याख्या कर दी, हजारों साल बाद तक धर्म को मानने वाले लोग उन व्याख्याओं को ही आखिरी सत्य मानेंगे. जबकि विज्ञान के लिए आखिरी सत्य कुछ भी नहीं है.

धर्म ने कह दिया, एक ईश्वर है. एक स्वर्ग है. एक नरक है. एक यमराज हैं जो मनुष्य के प्राण हर कर ले जाते हैं. चित्रगुप्त हर मनुष्य के अच्छेबुरे कर्मों का लेखाजोखा रखते हैं आदिआदि. धर्म को मानने वाला इन बातों पर कोई सवाल नहीं उठाएगा. वह इसी को ज्यों का त्यों मान लेगा. मगर विज्ञान इन तमाम बातों पर सवाल उठाएगा, तर्क करेगा, खोज करेगा.

धर्म के अनुसार सूर्य एक भगवान है, उस की पूजा करनी चाहिए. जबकि, विज्ञान के अनुसार सूर्य एक आग का गोला है, जहां एटम के बीच लगातार होने वाले फ्यूजन से जबरदस्त ऊर्जा और प्रकाश उत्पन्न हो रहा है. यानी, धर्म एक जगह ठिठका खड़ा है जबकि विज्ञान लगातार गतिमान है.

आप को याद होगा बचपन में सिरदर्द होने पर आप को एनासिन की टेबलेट खाने को दी जाती थी. सालोंसाल एनासिन के विज्ञापन टीवी पर छाए रहे. अचानक एनासिन बाजार से गायब हो गई. क्यों? क्योंकि डाक्टर्स ने एनासिन के कुछ साइड इफैक्ट देखे. फिर प्रयोग हुए और एनासिन से बेहतर दवाएं बनीं व बाजार में लाई गईं.

इसी तरह ब्रूफेन, एस्पिरिन, डिस्पिरिन, वोवरन जैसी दवाएं भी अब प्रतिबंधित कर दी गई हैं, क्योंकि इन के कुछ साइड इफैक्ट सामने आए. जबकि इस से पहले ये दवाएं बाजार में धड़ाधड़ बिकती रहीं और लोग उन का फायदा उठाते रहे. मगर विज्ञान इन से भी बेहतर उत्पाद बनाने की ओर अग्रसर है. यही बात कोरोना वैक्सीन के साथ भी है. लगातार शोध हो रहे हैं. अगर खून का थक्का बनने की घटनाएं सामने आईं हैं तो उस के कारणों को खोजा जा रहा है और पहले से बेहतर वैक्सीन बनाने की तरफ शोध जारी है.

हाल ही में स्वास्थ्य कारणों से डेनमार्क और नौर्वे में हाई कैफीन वाले एनर्जी ड्रिंक्स की बिक्री पर रोक लगा दी गई है. इसे जान के लिए खतरा बताया जा रहा है. जबकि सालों से लोग इस का सेवन कर रहे थे. जिम करने वाले युवाओं और किशोरों को प्रोटीन सप्लीमैंट के अधिक सेवन से बचने की हिदायतें अकसर डाक्टर देते हैं क्योंकि इन के खतरनाक साइड इफैक्ट दिखे हैं. रिसर्च जारी है. हो सकता है जल्दी ही बेहतर सप्लीमैंट्स बाजार में आ जाएं. ये लगातार होने वाली खोजें हैं. किसी भी खोज को अंतिम खोज नहीं कहा जा सकता.

हां, कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने कोविड काल में खूब धन कमाया है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. सीरम इंस्टिट्यूट ने भी कोरोनाकाल में मोदी सरकार को करोड़ों रुपयों का चंदा दे कर अपनी वैक्सीन बेचने के लिए भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों के बाजारों पर कब्जा किया. किसी दूसरी कंपनी की वैक्सीन को बाजार में जगह नहीं बनाने दी. मगर उस वैक्सीन को बनाने के लिए भी डाक्टर्स ने काफी मेहनत की. उन की मेहनत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. अगर उस समय कोरोना वैक्सीन बाजार में न आती और जान जाने के डर से थरथराते लोग अगर बाबाजी के आयुर्वेदिक उपचारों के भरोसे रहते तो न जाने देश में कितने लाख लोग और मर जाते.

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