रेटिंग: एक स्टार
निर्माता : किरण देवहंस
लेखक : अबान भरूचा देवहंस और सनी शर्मा
निर्देशक : अबान भरूचा देवहंस
कलाकार : मनोज बाजपेयी, प्राची देसाई, साहिल वैद, वकार शेख, दिनकर शर्मा, पारुल गुलाटी, चेतन शर्मा, श्रुति बापना और नीना कुलकर्णी
अवधि : 2 घंटे 25 मिनट
ओटीटी प्लेटफौर्म : जी5 पर

जी5 पर ही कोविडकाल में रहस्य-रोमांच प्रधान फिल्म ‘साइलैंस : कैन यू हियर इट?’ स्ट्रीम हुई थी, जिसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था. इस में एसीपी अविनाश वर्मा के किरदार में मनोज बाजपेयी थे. उस के बाद इस के मुख्य किरदार अविनाश वर्मा के ही नाम पर जियो सिनेमा पर लंबी वैब सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ स्ट्रीम हुई, उसे भी दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था, जबकि जियो सिनेमा पर यह सीरीज मुफ्त में देखी जा सकती है.

मनोज बाजपेयी
मनोज बाजपेयी

इस के बावजूद जी5 पर 16 अप्रैल से अपने प्लेटफौर्म पर पहली असफल फिल्म का सीक्वअल ‘साइलैंस 2 : द नाइट ओवल बार शूटआउट’ स्ट्रीम कर रहा है जो कि एक नीरस सीरीज के अलावा कुछ नहीं है. इस में भी एसीपी अविनाश वर्मा के किरदार में मनोज बाजपेयी ही हैं. दर्शक इस से कहीं ज्यादा अच्छे रहस्य व रोमांच से भरपूर एपिसोड ‘सीआईडी’ और ‘क्राइम पैट्रोल’ में देख चुके हैं.

इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान फिल्म के पीआर के पसंदीदा पत्रकारों से बातचीत करते हुए मनोज बाजपेयी फिल्म की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे थे. मनोज बाजपेयी का दावा है कि ‘साइलैंस 2’ को दर्शकों की भारी मांग पर जी5 को बनानी पड़ी. हालांकि 8 दिसंबर, 2023 को प्रदर्शित उन की फिल्म ‘जोरम’ ने बौक्सऔफिस पर बामुश्किल 40 लाख रुपए ही कमाए थे और इस के निर्माता व निर्देशक देवाशीष मखीजा ने बयान दिया था कि वे डूब गए. उन्हें किराए के मकान में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा.

इतना ही नहीं, दर्शक ‘जोरम’ को मुफ्त में ‘जी5’ पर या यूट्यूब पर देख सकते हैं. इस के बावजूद ‘जोरम’ को दर्शक नहीं मिल रहे. शायद दर्शक मनोज बाजपेयी को बारबार एक ही तरह का अभिनय करते हुए नहीं देखना चाहता. खैर, ‘साइलैंस 2 : द नाइट ओवल बार शूटआउट’ की कमजोर कड़ियों में मनोज बाजपेयी और इस के लेखक व निर्देशक अबान देवहंस हैं.

साइलेंस 2 का एक दृश्य
साइलेंस 2 का एक दृश्य

कहानीः

कहानी एसीपी (सहायक पुलिस आयुक्त) अविनाश वर्मा की है. वे स्पैशल जांच शाखा के मुखिया हैं. उन के साथ 2 पुरुष और एक महिला इंस्पैक्टर व एक हवलदार हैं. मजेदार बात यह है कि यह यूनिट 24 घंटे गश्त करती रहती है. अचानक रात में डेढ़ बजे एसीपी अविनाश वर्मा सड़क पर लड़की की इज्जत बचा रहे हैं, तभी मुंबई पुलिस कमिश्नर फोन कर उन्हें ‘द नाइट ओवल बार’ में हुई गोलीबारी की जांच करने का आदेश देते हैं.

इस गोलीबारी में मंत्री के सैक्रेटरी व एक पत्रकार सहित 8-10 लोग मारे गए हैं. अविनाश वर्मा और उन की इकाई जांच करती है. इस गोलीबारी कांड की जांच करते हुए एसीपी वर्मा 15-16 साल की उम्र की लड़कियों के एक बड़े यौन तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ कराने की ओर ले जाता है.

समीक्षा

फिल्म की पहली कमजोर कड़ी इस की कहानी व पटकथा है. इस से अच्छे रहस्य-रोमांच से भरे उपन्यास वेद प्रकाश पाठक और ओम प्रकाश शर्मा लिख चुके हैं. यह अति लंबी व नीरस फिल्म है. इसे एडिटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था. फिल्म में एसीपी अविनाश वर्मा की कार्यशैली बिलकुल वनमैन शो जैसी ही है. मतलब, वे हर वक्त खुद को ही सुर्खियों में रखना चाहते हैं. जांच करने के बजाय वे लंबेलंबे संवाद बोलते हुए अपनी टीम व दर्शकों को रहस्य को सुलझाने का तरीका सिखाते हुए ही नजर आते हैं. तफ्तीश के दौरान जो मोड़ आते हैं उन में भी कोई नवीनता नहीं है.

फिल्मकार ने रहस्यरोमांच से भरपूर इस फिल्म में उपेक्षित बच्चों की मानसिक स्थिति व बिखरे हुए परिवार के बच्चों को होस्टल भेजे जाने से बच्चे के मन पर पड़ने वाले प्रभाव को उठाया है, पर इस पर वह दोचार मिनट से ज्यादा नहीं दे पाई. जबकि, इस फिल्म के साथ पूरा परिवार यानी कि अबान भरूचा देवहंस के पति किरण देवहंस व उन के बच्चे तानिया देवहंस व देव देवहंस भी जुड़े हुए हैं.

इस की मूल वजह यह है कि किरण या अबान देवहंस को उपेक्षित बच्चों या होस्टल में न चाहते हुए भी परवरिश पाने वाले बच्चों के मनोविज्ञान की न समझ है और न ही इस तरह के बच्चों से वे कभी मिले ही हैं. किरण देवहंस फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के भी कैमरामैन थे. यानी, वे लगभग 40 साल से फिल्म इंडस्ट्री में हैं, इस के बावजूद वे फिल्मों में हीरोईन बना देने के नाम पर लड़कियों के देहशोषण का मुद्दा भी ठीक से फिल्म में दिखाने में असफल रहे हैं.

फिल्मकार ने युवा पीढ़ी में बढ़ती ड्रग्स की लत पर भी रोशनी डालने का अप्रभावशाली प्रयास किया है. यह फिल्म रहस्यरोमांच प्रधान होने के बावजूद दशकों को बांधे रखने में कमजोर दिखाई देती है.

अभिनय

मनोज बाजपेयी और जी5 का साथ तो लंगोटिया यार जैसा है. जी5 की ही फिल्म ‘एक बंदा …’ में मनोज बाजपेयी ने अपने अभिनय की अलग छाप छोड़ी थी. इस के लिए उन्हें काफी सम्मान मिला, पर उस के बाद उन की फिल्में चली नहीं. फौरेंसिक लैब में काम करने वाले युवक विंस्टन के छोटे किरदार में दवे देवहंस अथवा आरती सिंह के किरदार में पारुल गुलाटी जरूर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं. संजना भाटिया के किरदार में प्राची देसाई का होना या न होना कोई माने नहीं रखता.

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