हाल ही में नोएडा में एक महिला करिश्मा को कथित तौर पर दहेज की मांग पूरी नहीं कर पाने के कारण मार दिया गया. हत्या का आरोप उस के ससुराल वालों पर लगा. उन्होंने कथित तौर पर बहू को पीटपीट कर मार डाला. करिश्मा की शादी 4 दिसंबर, 2022 में विकास से हुई थी.

मृतका के भाई ने पुलिस को बताया कि दहेज की मांग में टोयोटा फौर्च्यूनर और 21 लाख रुपए नकद की मांग की गई थी. इस से पहले शादी में 11 लाख रुपए का सोना और एक कार दी गई थी. इस बीच करिश्मा को एक बेटी हो गई. इस के बाद विकास और उस का परिवार करिश्मा को और प्रताड़ित करने लगा. भाई ने आरोप लगाया कि मामला नहीं सुलझने पर करिश्मा के परिवार ने विकास के परिवार को 10 लाख रुपए और दिए लेकिन फिर भी लोग करिश्मा को प्रताड़ित करते रहे.

मृतका करिश्मा के भाई ने इस मामले की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई. शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 498 ए (महिला पर क्रूरता), 304 बी (दहेज हत्या), 323 (चोट पहुंचाना) और दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई. पुलिस ने आरोपी पति विकास भाटी उर्फ बिट्टू और उस के पिता सोमपाल भाटी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मृतक महिला के पति, ससुर, सास, ननंद और 2 जेठ के खिलाफ भी दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज किया.

इस 19 मार्च को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक पति ने अपनी पत्नी के सिर में गोली मार कर हत्या कर दी. मृतका के परिजनों ने पति पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाया. लखनऊ के मलिहाबाद इलाके में रहने वाले ऋषि यादव की 7 साल पहले वर्षा यादव से शादी हुई थी. शादी के बाद से ही दोनों के बीच अकसर झगड़ा हुआ करता था.

उस दिन भी किसी बात को ले कर वर्षा और ऋषि के बीच झगड़ा हो गया जिस के बाद गुस्से में आ कर ऋषि ने पत्नी के सिर में गोली मार दी. खून से लथपथ वर्षा जमीन पर गिरी पड़ी थी. जिस के बाद तत्काल उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन डाक्टरों ने वर्षा को मृत घोषित कर दिया. मृतका वर्षा के परिजनों ने पति ऋषि पर गंभीर आरोप लगाए. परिजनों का कहना था कि ऋषि अकसर दहेज में गाड़ी नहीं मिलने को ले कर परेशान करता था. दोनों के बीच इसे ले कर झगड़ा होता था. वो कहता था तुम्हारे परिवार ने सभी बहनों को गाड़ी दी लेकिन तुम्हें नहीं दी है. आरोपी पति को हिरासत में ले लिया गया.

हमारे देश में अनेक प्रकार की प्रथाएं हैं. ऐसी ही एक प्रथा है दहेज. दहेज मूल रूप से शादी के दौरान दुलहन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए जाने वाली भेंट है जैसे कि आभूषण, नकद, वाहन, घर, कपड़े आदि. कोई भी मातापिता अपनी बेटी के विवाह के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार अच्छे से अच्छा करने की कोशिश ही करते हैं. मगर कभीकभी लड़के और उस के परिवार वाले इस की और अधिक डिमांड करने लगते हैं और इस तरह दहेज हत्या की पृष्ठभूमि बनती है.

गलत भी हो सकते हैं आरोप

मगर इस तरह के मामलों में हमेशा लड़का पक्ष ही दोषी हो, ऐसा नहीं है. दरअसल कई दफा लड़कियां या उन के परिवार अपनी खुन्नस निकालने के लिए भी लड़के के परिवार पर तमाम आरोप लगाते हैं. 498 ए के तहत दहेज प्रताड़ना या क्रूरता का आरोप लगा कर पूरे परिवार को जेल की हवा खिला दी जाती है.

सब जानते हैं कि 498 और इस तरह के कुछ कानूनों की पकड़ में आने के बाद जमानत मिलनी बहुत कठिन हो जाती है और कई बार मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चला जाता है. ऐसे में जब पूरा परिवार जेल में हो तो हर सदस्य के जमानत के लिए अलगअलग लाखों देने पड़ सकते हैं. ऐसे मामलों में ससुराल पक्ष दोषी न हो तब भी पूरा परिवार गिरफ्त में आ जाता है और उन सब की जिंदगी खराब हो जाती है जो कहीं से भी उचित नहीं.

लड़कियां भी चाहती हैं दहेज

कुछ मामलों में इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि खुद लड़कियां दहेज चाहती हैं. दहेज के सामान का उपयोग लड़कियां खुद करती हैं. ज्यादा दहेज मिल ने पर वे ससुराल में ज्यादा रुतबा दिखा पाती हैं और यदि घर में देवरानी, जेठानी आदि हैं तो दहेज के जरिए उन के आगे खुद को सुपीरियर दिखाने से बाज नहीं आतीं. साथ ही, लड़कियां जानती हैं कि यही मौका है जब अपने पिता या भाई से दहेज के नाम पर रकम या गाड़ी आदि मांगी जा सकती है. बाद में लड़कियों को समान्यतया अपने मायके से कुछ नहीं मिलता खासकर कानून के मुताबिक अब संपति का हक मिलने के बावजूद वे इस मामले में दखल नहीं दे पातीं.

झगड़ों की वजह कुछ और भी हो सकती है

कभीकभी ऐसा भी होता है कि पतिपत्नी का मेल नहीं हो पा रहा हो या ईगो क्लैश कर रहा हो जिस से उन में झगड़े चल रहे हों. यह भी संभव है कि लड़की पति या ससुराल वालों के साथ सही रिश्ता नहीं बना पा रही हो और इसलिए घर में झगड़े हो रहे हों. झगड़ों के दौरान ससुराल वाले दहेज की बात उठाएं और इसी में मारपीट बढ़ते हुए इस अंजाम तक पहुंच जाए.

ऐसे में भले ही मारपीट या लड़ाईझगड़े दोनों की तरफ से होती है मगर अकसर फंस जाते हैं लड़के वाले. फिर उन का पूरा परिवार सलाखों के पीछे पहुंच जाता है. भले ही लड़के की ननद या जेठानी या दादा का इन सब में कोई हाथ न हो, फिर भी अगर दुर्भावनावश लड़की वाले उन्हें भी इन झमेलों में शामिल कर लें तो बचाव का उपाय नजर नहीं आता.

दहेज देने वाले मातापिता भी हैं कुसूरवार

लड़की की मौत के लिए वो मांबाप भी बराबर के जिम्मेदार हैं जो लड़की को विदा करते हुए कहते हैं कि पिता के घर से लड़की की डोली उठी है और अब पति के घर से अर्थी उठेगी. वे अपनी बेटी को अपने लिए बोलना, लड़ना और अपने आत्मसम्मान के लिए खड़े होना नहीं सिखाते. अपनी बेटी को पेड़ बनाने के बजाय लता बन कर रहने की सीख देते हैं.

समाज भी है दोषी

सब से बड़ा दोषी है हमारा समाज जिस को हम सब मिल कर बनाते हैं. खासकर इस समाज की औरतें सब से बड़ी दोषी हैं. जरा याद कीजिए जब भी हमारे आसपास किसी की शादी होती है तब लड़कों को हमेशा दूल्हे की साली और दुलहन की सहेलियों को ले कर बात करते सुना जाता है. बुजुर्गों को खानेपीने की व्यवस्था और राजनीति की बात करते सुना जाता है मगर केवल औरतें ही होतीं हैं जो सब से पहले देखती हैं कि दुलहन के गले में पड़ा हार कितने तोले का है और असली है या नकली? गाड़ी कौन सी है? दूल्हे की अंगूठी कितने वजन की है वगैरह. जाहिर है जब हम मिल कर दहेज की ख्वाहिश करेंगे और दहेज मिलने पर तारीफ के पुल बांधेंगे तो हर कोई चाहेगा कि उसे खूब दहेज मिले चाहे वह लड़का हो या लड़की.

सरकारी दामाद की चाहत

सब को सरकारी नौकरी वाला दामाद चाहिए या यों कहें कि पैसे वाला ही चाहिए. समाज में यह एक चलन बन गया है कि अच्छे लड़के मतलब अच्छी नौकरी. बाकी लड़के का चरित्र, परिवार, परिवार के लोगों का व्यवहार ये सब बेकार के मुद्दे हैं. यदि सरकारी नौकरी वाला दामाद बेटी को दारू पी कर पीटे तब मांबाप समझाते हैं कि क्या करें बेटी, यही तेरा समय है. बरदाश्त कर ले. वहीं अगर लड़की मरजी से शादी करे और रिश्ता न चले तब मांबाप बोलते हैं कि भुगतो. मांबाप बेटी के पैदा होते ही उस की शादी के लिए पैसे जोड़ने लगते हैं. क्या यह बेहतर नहीं कि उसी पैसे से लड़की को पढ़ाओलिखाओ, काबिल बनाओ और जब कोई लड़के वाला दहेज मांगे तो झाड़ू मार कर उसे बाहर का रास्ता दिखाओ.

दहेज न मांगना नाकारेपन के टैग जैसा

कभीकभी लगता है कि दहेज लेना सही भी है और जरूरी भी क्योंकि आप दहेज की मांग न करो तब लड़की के घरवालों को लगता है कि लड़का नकारा है. शायद इसलिए कुछ भी मांग नहीं की गई है. सोचिए हमारा समाज कितना दोगला है. इस बात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि एक सरकारी नौकरी वाला लड़का जिस को पैसे की कोई कमी नहीं है उसे एक लड़की का बाप 15-20 लाख रुपए तक देने को तैयार रहता है. मगर जो लड़का अच्छा है, मेहनत भी करता है लेकिन उस की कमाई कम है तो उस को 15-20 लाख रुपए तो दूर की बात है, कोई बाप अपनी बेटी की बात भी नहीं चलाएगा.

लड़कियां भी कम दोषी नहीं

आजकल की ज्यादातर लड़कियों को भी यही लगता है कि लड़का तो पैसे वाला होना चाहिए बाकी तो ठोकपीट कर सही कर ही लेंगे. लड़कियों को क्या पता नहीं होता है कि उन की ज़िंदगी का सौदा कितने में हो रहा है? फिर भी वे ऐसे ही सौदे चाहती हैं.

आजकल लड़कियां अनपढ़ भी नहीं होतीं कि अपना भलाबुरा न सोच सकें या चार पैसे कमा कर आत्मनिर्भर न बन सकें. जब भी किसी लड़की को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है तब क्या वह उसी समय घर छोड़ कर अलग नहीं रह सकती? जिंदगी जाने से तो अच्छा है न कि वह न मायके वालों पर बोझ बने और न अत्याचार सहे, बल्कि अलग हो जाए और कोई नौकरी ढूंढे.

जरूरी नहीं कि हर ससुरालवाले वहशी/दरिंदे ही हों. कहीं न कहीं गलती तो लड़की की भी होती होगी, तभी रिश्तों में खटास आने लगती है और फिर कुछ हादसा हो जाए तो मायके वाले सारा दोष ससुराल वालों पर मढ़ कर उन्हें हत्यारा घोषित कराने में लग जाते हैं. वैसे भी, अच्छे खातेपीते घर के लोगों को दहेज की गाड़ी के पीछे कानून के पचड़ों में फंसने की ख्वाहिश नहीं हो सकती.

लड़की अगर एक समृद्ध परिवार से आती है तो उसे जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होती. वह पढ़ीलिखी और कमाने में सक्षम होती है. मगर नौकरी के बजाय वह शादी कर के सैटल होने को वरीयता देती है. उसे अपने लिए लड़का डाक्टर या बड़ा सरकारी अफसर चाहिए होता है. मांबाप भी ऐसे घर में अपनी बेटी की शादी करने के लिए बावले रहते हैं ताकि रिश्तेदारों में नाक ऊंची हो सके. बेटी भी ससुराल में आराम की जिंदगी चाहती है, इसलिए धनी परिवार ढूंढती है और साथ में, बढ़िया दहेज भी ताकि वहां उस की पूछ हो, लोग उस से दब कर रहें.

वह अपने साथ लकदक दहेज ले कर आती है. खासी पढ़ीलिखी और डिग्रियों वाली होने के बावजूद वह नौकरी के चक्कर में नहीं फंसती. लड़की के पिता अपनी मूंछों पर ताव देते हुए कहते हैं कि बेटी के घर में पैसों की कोई कमी है जो हम अपनी लड़की को पैसे कमाने बाहर भेजें. पति भी उसी शौविनिस्ट मेल क्लब का मैंबर होता है जो पत्नी से काम नहीं करवाना चाहता. पत्नी पढ़ीलिखी चाहिए ताकि समाज में रुतबा दिखा सके लेकिन उस पढ़ाई के जरिए पैसे कमाने वाली नहीं चाहिए होती है.

लड़की को विदा करते हुए मां गीत गाती है कि- ‘महलों का राजा मिला, रानी बेटी राज करेगी…’ लड़की भी यह सोचकर पति के राजमहल में आती है कि पैर पर पैर चढ़ा कर राज करेगी. लेकिन सब इतना आसान नहीं होता. ससुराल वालों को लड़की की कमाई का पैसा तो नहीं चाहिए लेकिन लड़की से पैसा जरूर चाहिए होता है. एक दिन खबर आती है कि लड़की जला कर मार डाली गई.

अब लड़की के मांबाप, भाई सब रोरो कर धरतीआसमान एक कर देते हैं. कोर्टकचहरी के चक्कर काटते हैं. दहेज हत्या का मुकदमा चलाते हैं. वे कसम खाते हैं कि अपनी मरी हुई बेटी का बदला लेना है. उस के ससुराल वालों को जेल भिजवाना है.

सवाल यह उठता है कि जब सैकड़ों बार उन की बेटी ने उन्हें रोरो कर फोन किया था कि ये लोग मुझे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, पति हाथ उठाता है, सास ताने देती है तो पिता और भाई का कलेजा क्यों नहीं पसीजा? तब तो उन्होंने लड़की को संस्कारों की याद दिलाई. सहनशीलता का सबक सिखाया, बरदाश्त करने का पाठ पढ़ाया. उन की मांगें पूरी करने का वादा किया. लड़की खुद भी अगर प्रताड़ना सह कर रोती रही तो क्या यह बेहतर नहीं होता कि ससुराल छोड़ कर अलग रहती.

जो बाप अपनी बेटी को वापस लेने न आ सका, बाद में उस ने दुनिया के सारी कोर्टकचहरियां नाप डालीं ताकि लड़की के पति और ससुर को जेल भिजवा सके. आईपीसी की कोई धारा, देश का कोई न्यायालय इन सारे पिताओं को कठघरे में खड़ा कर के यह सवाल नहीं पूछता कि जब आप की बेटियां आप को फोन कर के कह रही थीं कि मेरा पति मुझे मार रहा था, प्रताड़ित कर रहा था तो आप आए क्यों नहीं और बेटी को बचाया क्यों नहीं. आप ने और ज्यादा दहेज क्यों दिया. क्यों अपनी बेटी को एडजस्ट करने और सहने का पाठ पढ़ाया. लड़की को संपत्ति में बराबर का अधिकार देने के नाम पर जिन को काठ मार जाता है वे बापभाई भरभर कर दहेज देते हैं. यह कैसा मजाक है?

वैसे भी, दहेज देने की शुरुआत लड़की के मांबाप ही करते हैं. अगर वे शुरू में ही दहेज देने से इनकार कर दें तो आगे इस दहेज की ललक नहीं बढ़ेगी. लड़की वाले तो अच्छा कमाऊ लड़के की चाह में ज्यादा से ज्यादा दहेज दे कर पढ़ालिखा अमीर और वेल एस्टैब्लिशड लड़के की तलाश में रहते हैं. इस के विपरीत यदि वे लड़की को अपने पसंद के किसी साधारण मगर प्यार करने वाले लड़के से करने दें तो नजारा ही कुछ और होगा.

इसलिए दहेजप्रथा को ले कर रोते रहने या किसी को आरोपी साबित करने के बजाय यदि हम इस की जड़ को ही खत्म करने पर ध्यान दें या लड़कियों को भी अपने बल पर रहने की आदत डालें तो ऐसा नहीं होगा. लड़कियों को लता के बजाय पेड़ बनने की शिक्षा देनी चाहिए.

क्या कहता है कानून

यदि वर या उस के परिवार द्वारा दहेज के लिए वधु या उस के परिवार पर जोरजबरदस्ती की गई तो वह कानूनी अपराध की श्रेणी में आएगा. कई लोग दहेज के लालच में आ कर अपनी बहु एवं अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हैं, उन्हें चोट पहुंचाते हैं.

कई बार महिलाओं की मौत भी हो जाती है. इस के मद्देनजर दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 में लागू किया गया. इस के अनुसार दहेज मांगना, लेना और देना कानूनी अपराध है. इस कानून को और सशक्त बनाने के लिए और औरतों के प्रति क्रूरता व अपराध को कम करने के लिए आईपीसी की धारा 498ए और 198ए में नए कानून जोड़े गए.

दहेज प्रतिषेध अधिनियम- इस कानून में धारा 3 के तहत यदि कोई भी व्यक्ति दहेज मांगे, ले या दे तो उसे कानूनी रूप से कम से कम 5 साल की जेल कैद और 15,000 रुपए जुर्माना देना होगा.

यदि लड़की के मातापिता अपनी मरजी से लड़की को कुछ भेंट देना चाहते हैं तो वह भेंट लड़की के पास ही रहनी चाहिए न कि उस के परिवार या लड़के के पास. ऐसा करने पर कम से कम 6 महीने की जेल और 10,000 रुपए जुर्माना है.

धारा 304बी के तहत यदि किसी भी महिला की मौत जलने से, या अनजान परिस्थितियों में शादी के 7 साल के अंदर अंदर हो जाती है और यदि कोई सबूत मिलता है जिस से यह साबित हो जाए कि मरने से पहले महिला शारीरिक, मानसिक शोषण का शिकार थी तो उस की मौत का जिम्मेदार उस के पति और उस के घरवालों को माना जाएगा. ऐसा होने पर कम से कम 7 साल से ले कर उम्रकैद तक की सजा है.

धारा 302 के तहत यदि कोई पति अपनी पति को दहेज न मिलने पर जान से मार देता है तो उसे फांसी की सजा सुनाई जा सकती है.

धारा 498ए- इस धारा के चलते यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को या पुरुष के घरवाले उसे नुकसान पहुचाएं, उस का शोषण करें, तो उन्हें 3 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है. साथ ही, जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने शादी के 7 साल के भीतर मौत को ले कर अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने दहेजहत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि मौत का कारण पता न हो तो शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में सभी अस्वाभाविक मौत को दहेजहत्या नहीं माना जा सकता है.

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया. व्यक्ति को हाईकोर्ट ने सैक्शन 304 बी (दहेज हत्या) और सैक्शन 498 ए (क्रूरता) के मामले में दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी.

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