बीती 3 अप्रैल की दोपहर एक भक्त चैनल नाम इंडिया टीवी की एक एंकर ओपिनियन पोल या सर्वे टाइप कोई प्रोग्राम संचालित कर रही थी. वह मन, वचन और कर्म से ही भक्तिन दिख रही थी. कमी बस भगवा पोशाक की खल रही थी. लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर किए गए इस सर्वे में आखिरकार वह यह साबित करने में कामयाब हो ही गई कि भाजपा और उस का गठबंधन इस बार 399 सीटें ले जा रहा है. यानी नरेंद्र मोदी और भाजपा अपने अब की बार 400 पार के नारे यानी टारगेट से महज एक सीट से पिछड़ रहे हैं. नहीं तो यह भविष्यवाणी सौ टका सच होने वाली है. वह चाहतीं तो और थोड़ी जोड़तोड़ कर पूरी 400 भी बता सकतीं थीं लेकिन बेहद बचकाने तरीके से 399 बता कर वह दर्शकों का भरोसा लूटने की कोशिश करती आईं तो उन पर तरस आना स्वभाविक बात है.

भविष्यवाणी कैसे सच होने वाली है, यह भी इस न्यूज चैनल सहित तमाम भक्त चैनल अपनेअपने तरीके और अंदाज से बता रहे हैं. वे स्क्रीन पर एकएक प्रदेश का आंकड़ा दिखाते बताते हैं कि भाजपा और उस का गठबंधन कहां से कितनी सीटें ले जा रहा है और क्यों ले जा रहा है. अगर आप के पास फालतू वक्त जाया करने के हैं और आप जुए सट्टे के शौकीन या लती हैं तो आप को ऐसे प्रोग्राम जरुर देखना चाहिए.

तय यह भी है कि अगर आप इन अहर्ताओं को पूरा करते हैं तो निश्चित ही आप या तो बेरोजगार हैं फुरसतिये हैं या कि फिर जिस की संभावना ज्यादा है खतरनाक तरीके के अंधभक्त हैं. इस में आप का कोई दोष भी नहीं क्योंकि 22 जनवरी को अयोध्या जलसे के दौरान सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस पोस्ट में भी आप की अंगुली भी स्क्रीन पर फौरवर्ड वाले बटन पर दबी थी कि चुनाव की जरूरत क्या है मोदी जी को यूं ही शपथ दिलाए देते हैं.

इतना यानि अति आत्मविश्वास आमतौर पर डरे हुए लोगों में ही हो सकता है कि वे चुनाव से डरें और ईडी, आईटी, सीबीआई वगैरह जैसी सरकारी एजेंसियों की निष्ठां के चलते लोकतंत्र ( अगर कहीं बचा हो तो उस के ) रहे सहे अवशेष भी ढहाने में अपना योगदान दें. ठीक वैसे ही जैसे कभी अयोध्या का विवादित ढांचा ढहाने में दिया था. जो भक्त उस वक्त अयोध्या नहीं जा पाए थे उन्होंने घर बैठेबैठे ही यह ढांचा ढहा दिया था. इस से जाहिर हो गया था कि कल्पनाशक्ति की सीमाएं नहीं होतीं जिस के सहारे तमाम सुख और इच्छित कार्य बिना साक्षात मौजूद हुए सम्पन्न किए जा सकते हैं.

इस में इकलौती खोट या कमी खुद से और दुनिया से झूठ बोलने की होती है जिस में 8 – 10 करोड़ इतने माहिर हो चुके हैं कि उन्हें चुनौती देना आ भक्त मुझे मार जैसी कहावत को चरितार्थ करना है .

भक्ति कोई खास हर्ज की बात नहीं है लेकिन वह खतरा तब बन जाती है जब लोग उस का इस्तेमाल विध्वंस में करने लगते हैं. वे किसी जीते जागते इंसान जो हमारी आप की तरह कमजोरियों से मुक्त नहीं होता को देवता मान लेते हैं. फिर उस का कोई काम बुरा नहीं लगता बल्कि उस के उलटेसुलटे कामों को भी लोग सही ठहराने की कोशिश में जुट जाते हैं. नरेंद्र मोदी को देवता बना देने वाले लोग वही गलती कर रहे हैं जो कई लोगों ने 70-80 के दशक में इंदिरा गांधी को देवी बना कर की थी.

राजनीति में तब से यह पद या स्थान रिक्त था जो अब इस हद तक भरा जा चुका है कि चारों तरफ से आठों पहर एक ही आवाज आ रही है 400 पार, अब की बार 400 पार
जब यही बात न्यूज चैनल वाले कहते हैं तो शर्माशर्मी में उन्हें इसे साबित भी करना पड़ता है. इस तरह का आस्था प्रधान चुनावी विश्लेषण एक तरह से एक ही खिलाड़ी द्वारा दोनों तरफ से खेला जाने वाला शतरंज का खेल होता है. जिस में सफेद या काले मोहरे जिन्हें हराना हो हराया जा सकता है. अगर सफेद मोहरों को जिताना है तो काले मोहरों की तरफ से कमजोर चालें चली जाती हैं. यही इन दिनों मीडिया में हो रहा है जिस में नतीजों से पहले ही भगवा मोहरे जीते घोषित कर दिए गए हैं. बात कुछकुछ चित भी मेरी पट भी मेरी, सिक्का मेरी मीडिया कंपनी के मालिक का जैसी है.

इस में न तो झूठ बोलने पर गिल्ट फील होती है और न ही अपने धंधे से बेईमानी करने पर पछतावा होता. बल्कि मिथ्या गर्व जरुर होता है कि हम राष्ट्रहित की बात कर रहे हैं हिंदू राष्ट्र के यज्ञ में अपनी हैसियत के मुताबिक आहुति डाल रहे हैं और एक ऐसी संस्कृति की रक्षा या पुनर्स्थापना करने वालों के हाथ मजबूत कर रहे हैं जो कभी विश्वगुरु थी और अब फिर होने जा रही है.

यह और बात है कि सारा प्रपंच और खेल पैसों का ही है लेकिन उन साधु संतों सरीखा है जो माला फेरते नजरों से चढ़ावा गिन लेते हैं और फिर विरक्त होने का दिखावा करते कहते हैं कि हम तो सन्यासी हैं, हमें मोह माया और इस धन दौलत से क्या लेनादेना. हकीकत में यह अर्थ ही उन का धर्म और मोक्ष भी है जो उन्हें इश्तहारों और दूसरी सहूलियतों की शक्ल में मिलता है. ये न्यूज चैनल मीडिया के मंदिर हैं जिन में भंडारा सियासी दान से होता है. इन की भक्ति का तरीका और मिजाज पेशे के मुताबिक अलग है लेकिन जैसा भी है, है तो जो भक्ति के विभिन्न भेदों और स्वरूपों में से एक है.

गीता में कृष्ण ने अध्याय 7 श्लोक 16 में ऐसे भक्तों को अर्थार्थी भक्त कहा है. अर्थार्थी भक्त वह है जो भोग, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त करने के लिए भगवान का भजन करता है. उस के लिए भोग पदार्थ व धन मुख्य होता है और भगवान का भजन गौण.

इधर भक्तों ने इस व्याख्या को थोड़ा पलट दिया है मोदी का भजन उन के लिए गौण नहीं बल्कि प्रधान है. उसी से इन्हें मनचाहा भोजन धन और भोग विलास के साधन मिलते हैं. इसी खुराक और भक्ति से उन्होंने साबित किया और 4 जून तक और चिल्लाचिल्ला कर साबित करते रहेंगे कि भाजपा गठबंधन कैसे 400 पार जा रहा है.

सी वोटर, सर्वे करने के लिए कुख्यात है उस के मुताबिक देश भर में 200 ऐसी सीटें हैं जिन पर भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है. 2019 में इन सीटों पर भाजपा का वोट शेयर 55.3 फीसदी था जबकि कांग्रेस का 31.7 और अन्य दलों का 13 फीसदी था. भाजपा ने 185 कांग्रेस ने 9 और अन्य दलों ने 6 सीटें जीती थीं.

अब नई आंकड़ेबाजी के मुताबिक 2024 के चुनाव में भाजपा को 182 सीटें 55.4 फीसदी वोटों के साथ मिलने वाली हैं. कांग्रेस को 18 सीटें 33.5 फीसदी वोटों के साथ मिलेंगी .अन्यों का खाता इस बार नहीं खुलेगा लेकिन उन्हें 11.1 फीसदी वोट मिलेंगे.

543 में 243 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर भाजपा का वोट शेयर 35.5 फीसदी था और उसे 118 सीटें मिली थीं. जो बढ़ कर 122 होने वाली हैं और वोट शेयर 39 फीसदी हो जाएगा. कांग्रेस को पिछले चुनाव में यहां 10 सीटें मिली थीं जो बढ़ कर 22 हो जाएंगी. अन्य दलों को 2019 के चुनाव में 115 सीटें गईं थीं जो इस बार घट कर 99 रह जाएंगी. इस केलकुलेटर ने 100 सीटें ऐसी भी बताई हैं जिन पर भाजपा का वोट शेयर महज 5.8 फीसदी था और उसे कोई सीट नहीं मिली थी.

कांग्रेस ने इन 100 में से 33 सीटें 19 फीसदी वोटों के साथ जीती थीं. अन्य दलों ने 67 सीटें 75.2 फीसदी वोटों के साथ जीती थीं. इन सीटों पर भाजपा का खाता इस बार भी नहीं खुल रहा है लेकिन उस का वोट शेयर 11.2 फीसदी हो जाएगा. कांग्रेस इन सीटों पर 16.8 फीसदी वोट और 31 सीटें ले जाएगी. अन्य दलों को 72 फीसदी वोट और 69 सीटें मिल रहे हैं.

ऐसे सर्वे देख सर पीटने के अभी और कई मौके मिलेंगे जिन का मकसद जैसे भी हो एनडीए को 400 के लगभग दिखाना है. ऊपर वाले सर्वे में कुछ जटिलताएं हैं जिन्हें आसान करते राज्यवार सर्वे भी मैदान में आने लगे हैं जो कहीं ज्यादा दिलचस्प हैं और मुफ्त का मनोरंजन भी करते हैं. इंडिया टीवी सीएनएक्स के मुताबिक भाजपा अकेले दम पर 343 सीटें ले जा रही है जबकि एनडीए को 399 सीटें मिलेंगी. कांग्रेस 38 सीटों पर सिमट कर रह जाएगी. टीएमसी को 19, डीएमके को 18, जीडीयू को 14, आप को 6, सपा को 3 और अन्य को 91 सीटें मिलेंगी.

भाजपा जहां 100 फीसदी सीटें ले जा रही हैं उन में गुजरात की 26, राजस्थान की 25, हरियाणा की 10, मध्य प्रदेश की 29, हिमाचल प्रदेश की 4, दिल्ली की 7 और उत्तराखंड की 5 सीटें शामिल हैं. इस तरह 106 सीटें उसे तोहफे में मिल रही हैं.

छत्तीसगढ़ में वह 11 में से 10 बिहार में 39 में से 17, झारखंड में 13 में से 12, कर्नाटक की 28 में से 22, केरल में 3, महाराष्ट्र में 47 में से 27, ओडिशा में 21 में से 10, पंजाब में 3, तमिलनाडु में 39 में से 3 तेलंगाना में 17 में से 5, पश्चिम बंगाल में 42 में से 22, जम्मू कश्मीर में 5 में से 2 और सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीटें जीत रही है.

यहां बसपा और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल रहा है जबकि सपा को उदारतापूर्वक 3 सीटें दी गई हैं. बाकी 2 – 2 सीटें भाजपा के सहयोगी दलों अपना दल और आरएलडी को जा रही हैं.

इस तरह जब मुनीमो ने भाजपा को 342 और उस के गठबंधन को 399 पर पहुंचा दिया तभी सांस ली. यह कोई मामूली काम नहीं है आंकड़ों में जोड़तोड़ और हेराफेरी स्किल वाला काम होता है. कंपनियों की बैलेंस शीट और सरकारों के बजट यूं ही नही बन जाते. उन में इधर का उधर और उधर का इधर करने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं.

इस सर्वे में कोई खोट निकालना उतनी ही नादानी का काम है जितना किसी बिना टिकट मुसाफिर का टिकट चैकर से चलती ट्रेन में छिप पाना. वैसे कहा तो यह भी जा सकता है कि तमिलनाडु और केरल में भाजपा को एकएक से ज्यादा सीट मिलना ठीक वैसी ही बात है जैसी यह कि उत्तर प्रदेश में वामदल या एआईडीएमके का भी इतनी ही सीटों पर जीत जाना.

इन चित्रगुप्तों और नारदों ने न तो कांग्रेस पर रहम किया है और न ही टीएमसी और बीजू जनता दल जैसे आधा दर्जन क्षेत्रीय दलों पर, जिन की सीटें काट कर भाजपा के खाते में जोड़ दी गई हैं. यानी वहां बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और कट्टरवाद मुद्दे नहीं हैं बल्कि लोग भाजपा को जिताने पर आमादा हो आए हैं. वे अपनी झोपड़ी के भाग खोलने वाले हैं.

रामचंद्रजी यूपी से निकल कर पूरे देश का भ्रमण कर रहे हैं. इसलिए ऐसे चमत्कार तो होंगे ही कि कोई 400 सीटों पे लड़ रही भाजपा 342 से ले कर 370 तक सीट ले जा रही है.

400 पार की लीला वाकई अदभुद है. देशभर के लोगों को एक वर्ग पहेली मिल गई है लेकिन इस का एक दो टूक पहलू यह भी है कि भाजपा 250 के आसपास भी सिमट कर रह सकती है. हर किसी को राजनैतिक विश्लेष्ण करने का हक है लेकिन बात जब खुशामद, चाटुकारिता और अंधभक्ति की हो हम इस दौड़ में शामिल नहीं हो सकते.

अस्तु सोशल मीडिया पर एक और सर्वे वायरल हो रहा है जिसे आरएसएस द्वारा किया बताया जा रहा है. मुमकिन है ऐसा न हो लेकिन देश का आम आदमी इस से इत्तफाक रख रहा है जिस में भाजपा को 543 में से केवल 214 सीटें दी गई हैं. इस में तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में भाजपा का खाता नहीं खुल रहा है. यह सर्वे जिस का भी हो कम से कम यह सच तो बोल रहा है कि हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा क्लीन स्वीप नहीं कर रही है और न ही ओडिशा, झारखंड , बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक में वह सीवोटर या इंडिया टीवी जैसा कमाल कर रही है. दिल्ली में वह 5 और उत्तर प्रदेश में 65 सीट जीतती बताई गई है जो हालातों को देखते उतना ही मुमकिन है जितना उस का पश्चिम बंगाल में 9 ओडिशा में 6 और तेलंगाना में एक सीट पर ठिठक जाना यह भी इसी सर्वे में बताया गया है.

अब अगर सचमुच भाजपा 400 पार नहीं कर पाई तो भाजपाई जनता को क्या मुंह दिखाएंगे जो दिनरात सुबहशाम यह पहाड़ा मीडिया के सामने और मीटिंगों में रटते रहते हैं यह तो वे ही जानें. सही आंकड़ा और सच क्या है इस के लिए 4 जून तक इंतजार तो करना ही पड़ेगा.

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