धर्म की इतनी ‘महत्ता’ तो है कि इस का उन्माद पूरे देश या पूरी कौम को अंधा बना सकता है. इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा है जिन में धर्म के नाम पर लाखों को मारा गया, हजारों घर जलाए गए, औरतों से बलात्कार किए गए, बच्चों को जलती आग में फेंका गया. धर्म का उन्माद जगाना सरल इसलिए है क्योंकि बच्चों के पैदा होते ही धर्म के दुकानदार घरों और परिवारों पर हमला कर देते हैं. और फिर तर्क, तथ्य, अर्थ व धर्म के घिसेपिटे आदेशों के अनुसार बच्चों को पाला जाता है. बड़े हो कर वे अपने बच्चों के साथ वही करने लगते हैं जो उन के साथ किया गया था.

यह आश्चर्य की बात है कि हर पीढ़ी में कुछ लोग ऐसे हुए जिन्होंने धर्म की ज्यादती सहने से इनकार कर दिया और एक अपना ठोस रास्ता अपनाया चाहे उस में उन्हें धर्म का कोप सहना पड़ा. हर समाज ने हर युग में ऐसा किया और इसी का नतीजा है कि आज मानव सभ्यता तरहतरह के नए अनुसंधानों व खोजों का लाभ उठा रही है.

हर देश में, अफसोस है, कुछ लोग बारबार सूई को उलटा घुमाने की कोशिश करते रहते हैं. इस में धर्म का धंधा चलाने वालों का बड़ा फायदा है क्योंकि उन की कमाई इसी पर आधारित है कि धर्म के नाम पर अंधे अपनी सुरक्षा व मानसिक शांति के लुभावने-लच्छेदार वादों पर मोटा दान करें व मोटी दक्षिणा दें.

आज 2024 में 2 युद्ध भयंकर पैमाने पर लड़े जा रहे हैं और दोनों में धर्म ही कारण है. रूस-यूक्रेन युद्ध में और्थोडौक्स क्रिश्चियन चर्च का हाथ है जिस में मास्को स्थित सैंटर अपने से अलग हुए यूक्रेन के सैंटर को सबक सिखाना चाहता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को मास्को के चर्च के किरिल ने ही युद्ध के लिए उकसाया था.

फिलिस्तीन और इजराइज का युद्ध पुराने इसलामी अरबों और यहूदी-इजराइली युद्धों को दोहरा रहा है. आज पूरा पश्चिम एशिया सुलग रहा है क्योंकि यूरोपीय ताकतों के जाने के बाद इस क्षेत्र के नाम पर खड़े हुए नेताओं ने मसजिदों के सहारे ताकत छीन ली और ऐसी छीनी कि इन देशों की जनता अपनों की ही गुलाम हो गई है.

भारत ने एक बड़ा विभाजन 1947 में धर्म के नाम पर देखा और आज तक उस का जहरीला कैंसर हमारी प्रगति में आड़े आ रहा है. पाकिस्तान अपने पड़ोसी अफगानिस्तान की राह पर चल रहा है जहां सेनाओं के सहारे कट्टर धर्मनेताओं की चलती है.

धर्मों ने शांति फैलाई हो, ऐसा नहीं लगता. शांतिप्रिय बौद्ध धर्म को मानने वाले राजाओं ने भी खूब युद्ध किए हैं, भारत में ही नहीं, वहां भी जहां बौद्ध धर्म पहुंच गया था.

आज भारत फिर धर्म की दलदल में धंस रहा है. धर्म राजनीति और परिवार पर हावी हो चुका है. धर्म के नाम पर देश बंट रहा है. हमारी प्राथमिकताएं बदल रही हैं. यूरोप और अमेरिका में भी कुछ देशों में ऐसा ही हो रहा है.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संभावित जीत चर्च की जीत होगी और पक्का है कि ट्रंप के फैसले चर्चों को चलाने वालों की गुफाओं से निकलेंगे.

इस की कीमत समयसमय पर आम लोग देते रहे हैं जिन में धर्म के मानने वाले और उदासीन दोनों शामिल रहे हैं. यह अब गंभीर होता जा रहा है. भारत भी अब अफगानिस्तान और ईरान की राह पर है.

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