बिहार में नीतीश कुमार का खेमा बदल कर 9वीं बार मुख्यमंत्री बनना एक तरह से विपक्षी दलों के लिए एक हैडेक का कम होना है. नीतीश कुमार कब के अपनी विचारधारा त्याग चुके थे. वे नीतिविहीन नीतीश कुमार थे क्योंकि जो शख्स अपनी पार्टी के साथ अकसर पाला बदलता रहता है, उसे किसी नीति का मानने वाला नहीं कहा जा सकता.
दिखने में चाहे लगे कि विपक्ष इस से कमजोर हुआ है लेकिन बिहार में सीटों के बंटवारे की लड़ाई भी नीतीश कुमार अपने साथ नए गठजोड़ में ले गए हैं. दलबदल और पालाबदल करा कर भारतीय जनता पार्टी ने जो भी नेता दूसरी पार्टियों से बटोरे हैं, अब तक उन सभी की भारतीय जनता पार्टी में चपरासी की सी भूमिका है.
राममंदिर के उद्घाटन में प्रधानमंत्री ने जिस तरह से अपने पुराने कर्मठ मंत्रियों की अवहेलना की है और जिस तरह महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार या मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया से व्यवहार किया जा रहा है उस से साफ है कि सत्तापलट के बाद भारतीय जनता पार्टी अब नीतीश कुमार को दिखावटी चेहरा ही मान कर चलेगी.
भाजपा की जमीनी ताकत काफी मजबूत है. धर्म के धंधे में लगे लोग उस के मुफ्त के कार्यकर्ता हैं. उद्योगपति उसे पैसे देते हैं. ऊंची जातियों के अफसरों ने देशभर के फैसले लेने वाली यूनिटों पर पूरा कब्जा किया हुआ है. उद्योगपति उस के साथ हैं क्योंकि एक तो वे हमेशा सत्ता के साथ रहते हैं, दूसरे, सभी उद्योगपति हिंदू धर्म की देन जातिव्यवस्था का पूरा लाभ उठा रहे हैं और वे इस सनातन धर्म के पैरोकार हैं जो ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य को विशेष स्थान देता है.
कुर्मी नीतीश कुमार इस सारी भीड़ में कहां टिक पाएंगे? उन की आवाज तब तक थी जब तक वे विपक्ष की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री थे. आज जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केंद्रीय मामलों में बोलने की हैसियत तक नहीं रखते तो नीतीश कुमार नए गठजोड़ में कोई कीमत नहीं रख पाएंगे. विपक्षी दलों के लिए वे अकेले कोहेनूर के हीरे की तरह थे. भारतीय जनता पार्टी में वे मुकुट में लगे सैकड़ों हीरों में से एक हैं और मुकुट की पहचान उस हीरे से नहीं, उसे पहनने वाले से है.
विपक्षी दलों को अब संतोष होना चाहिए कि जो भी छुटभैये नेता नीतीश कुमार के साथ जाने को मजबूर हुए हैं वे 2024 के लोकसभा चुनावों में जिद नहीं करेंगे. उन्हें समाजवादी खेमे जनता दल (यूनाइटेड) के ?ांडे पर भगवा रंग पोतना पड़ेगा. बिहारी इस नए रंग को पसंद कर पाएगा, इस बारे में अभी नहीं कहा जा सकता. पिछले चुनावों तक नीतीश कुमार अपनेआप में एक ताकत हुआ करते थे पर अब उम्र के चलते वे बेचारे से होने लगे हैं. वे और उन के विधायक भाजपा के साथ हैं. उन के वोटर भी भाजपा के साथ जाएंगे, इस में संदेह है.