अभिव्यक्ति यानी बोलने की आजादी को जला डालने के लिए सरकारी नियमकानून या पुलिसिया आदेश अब केंद्र या राज्य सरकारों के गलियारों से नहीं निकलते. सरकारों ने अब दूसरा तरीका ढूंढ़ लिया है. सत्तारूढ़ पार्टी अपने आम भक्तों से कहती है कि विपक्षियों के किसी के बयान को मानहानि या धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने या देशद्रोही होने वाला ठहरा कर अपने पास के थाने में रिपोर्ट लिखवा दो. प्रशासन में बैठे लोग इस लिखित या डिजिटल या बोले गए कथन के लिए सत्ता में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर मुकदमा दर्ज कर लेते हैं और फिर पुलिस का कहर चालू हो जाता है.

सीधेसीधे इन में सरकार कहीं नहीं होती. यह हर नागरिक का हक है कि वह अपने पर हुए किसी तरह के अपराध पर एफआईआर दर्ज करा सकता है और पुलिस का काम है कि उस दर्ज रिपोर्ट पर छानबीन करे. पुलिस बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, सामूहिक दंगे की रिपोर्ट दर्ज ही न करे या दर्ज करने पर कोई छानबीन न करे, यह उस की मरजी है. सरकार के खिलाफ कही गई हर बात पर आदेश मिल जाता है कि कहनेलिखने वाले को तुरंत गिरफ्तार कर लो और जांच के नाम पर जेल में डाल दो.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद राहुल गांधी को इसी तरह के मुकदमों में फंसाया जा रहा है और एक मामले में तो गुजरात उच्च न्यायालय ने भी इस कानूनी हथकंडे व धौंस पर अपनी मोहर लगा दी क्योंकि राहुल गांधी ने नीरव मोदी, ललित मोदी जैसों पर देश से भाग जाने का आरोप लगाया था जिस को ले कर नरेंद्र मोदी के समर्थकों को बुरा लगा था.

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