मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में 26 दिसंबर, 2023 को बीटैक की एक छात्रा को सहपाठी लड़के द्वारा थप्पड़ मारने का मामला सामने आया. दरअसल, छात्रा ने साथ में पढ़ने वाले इस छात्र की दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, जिस के बाद उस छात्र ने कक्षा में अन्य छात्रों के सामने ही बीटैक की सीनियर छात्रा को कई थप्पड़ जड़े. वह इतने पर ही शांत नहीं हुआ बल्कि गुस्से में कुरसी उठा कर लड़की को मारने की कोशिश की. लड़की ने भाग कर अपनी जान बचाई. बाद में लड़की ने यह घटना घर पर परिजनों को बताई और थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंची. छात्रा ने आरोप लगाया कि आरोपी कई दिनों से उस पर दोस्ती करने का दबाव बना रहा था. दोस्ती स्वीकार न किए जाने पर वह हिंसा पर उतर आया.

इस बार के बिग बौस में ईशा मालवीय और अभिषेक कुमार ऐसे कंटैस्टैंट हैं जो अपने पास्ट रिलेशन को ले कर चर्चा में रहते हैं. अभिषेक ईशा के एक्स बौयफ्रैंड हैं. एक साल पहले उन का रिश्ता खत्म हो चुका है. उन का रिश्ता टूटने की वजह भी कहीं न कहीं अभिषेक का थप्पड़ और उस की तरफ अग्रेसिव व्यवहार ही था. ईशा ने अंकिता और खानजादी से बात करते वक्त बताया था कि उस ने एक बार अभिषेक को अपने दोस्तों से मिलवाया. ईशा के ज्यादा दोस्त होने की वजह से अभिषेक को गुस्सा आ गया था और उस ने ईशा को सब के सामने थप्पड़ मार दिया था. थप्पड़ की वजह से ईशा की आंख के नीचे निशान पड़ गए थे. इसी के बाद उन का रिश्ता टूटता चला गया.

कुछ समय पहले डायरैक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘थप्पड़’ ऐसे ही विषय को ले कर आई थी. इस में बात शुरू होती है सिर्फ एक थप्पड़ से लेकिन यह पूरी फिल्म महज थप्पड़ के बारे में नहीं थी बल्कि उस के इर्दगिर्द तैयार हुए पूरे तानेबाने और हर उस सवाल को कुरेद कर निकालने की कोशिश करती दिखी जिस ने इस ‘सिर्फ एक थप्पड़’ को पुरुषों के हक का दर्जा दे दिया.

इस में अमृता की भूमिका में तापसी पन्नू अपने पति विक्रम के साथ एक परफैक्ट शादीशुदा जिंदगी बिताती दिखती है. अमृता सुबह उठने से ले कर रात को सोने तक अपने पति और परिवार के इर्दगिर्द घिरी जिंदगी में बिजी है और इस ‘परफैक्ट’ सी जिंदगी में बहुत खुश है. लेकिन इसी बीच एक दिन उन के घर हुई पार्टी में विक्रम अमृता को एक जोरदार थप्पड़ मार देता है तो फिर सबकुछ बदल जाता है. किसी ने सोचा न था कि एक थप्पड़ रिश्ते की नींव हिला देगा. लेकिन अमृता ‘सिर्फ एक थप्पड़’ के लिए तैयार नहीं थी. एक औरत की जंग शुरू होती है एक ऐसे पति के साथ जिस का कहना है कि मियांबीवी में यह सब तो हो जाता है. उस के आसपास के लोगों के लिए यह बात पचा पाना बहुत मुश्किल था कि सिर्फ एक थप्पड़ की वजह से कोई स्त्री अपने ‘सुखी संसार’ को छोड़ने का फैसला कैसे ले सकती है जबकि पुरुष को तो समाज ने स्त्री को मारनेपीटने का हक दिया ही हुआ है.

सवाल स्त्री के मान का

सच यही है कि एक थप्पड़ स्त्री के मानसम्मान और अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता है. एक थप्पड़ यह दर्शाता है कि आज भी पुरुषों ने औरत को अपनी प्रौपर्टी सम?ा रखा है, जबरन उस पर अपना हक जमाना चाहते हैं. अगर स्त्री ने हक नहीं दिया तो थप्पड़ की गूंज में उसे एहसास दिलाना चाहते हैं कि उस की औकात क्या है. समाज में उस का दर्जा क्या है.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक महिलाओं से हिंसा पूरी दुनिया का भयंकर मर्ज है.  दुनिया की 70 फीसदी महिलाओं ने अपने करीबी साथियों के हाथों हिंसक बरताव ?ोला है, फिर चाहे वह शारीरिक हो या यौनहिंसा. दुनियाभर में हर रोज 137 महिलाएं अपने करीबी साथी या परिवार के सदस्य के हाथों मारी जाती हैं.

हमारे समाज में अकसर लड़कियां और लड़के दोनों ही पुराने रिवाजों से बंधे हुए होते हैं. लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि घर के काम करना, पति की सेवा करना और उस की हर बात मानना उन का कर्तव्य है. उन्हें सिखाया जाता है कि पुरुष महिलाओं का मौखिक, शारीरिक या यौनशोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं. इस का उन्हें कोई नतीजा भी नहीं भुगतना होगा.

बचपन से लड़कियों का 40 फीसदी समय ऐसे कामों में जाता है जिन के पैसे भी नहीं मिलते. इस का यह नतीजा होता है कि उन्हें खेलने, आराम करने या पढ़ने का समय लड़कों के मुकाबले कम ही मिल पाता है.

प्यू रिसर्च सैंटर की स्टडी

हाल ही में अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सैंटर ने एक दिलचस्प स्टडी की थी. इस में भारत में महिलाओं के बारे में पुरुषों की सोच का अध्ययन किया गया. स्टडी में पाया गया कि ज्यादातर भारतीय इस बात से काफी हद तक सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा पति का कहना मानना चाहिए.

प्यू रिसर्च सैंटर की यह नई रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई. रिपोर्ट 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच 2019 के अंत से ले कर 2020 की शुरुआत तक किए गए अध्ययन पर आधारित है.

इस के अनुसार करीब 80 प्रतिशत इस विचार से सहमत हैं कि जब कुछ ही नौकरियां हैं तब पुरुषों को महिलाओं की तुलना में नौकरी करने का अधिक अधिकार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 में 9 भारतीय (87 प्रतिशत) पूरी तरह या काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए. यही नहीं,  इस रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर भारतीय महिलाओं ने इस विचार से सहमति जताई कि हर परिस्थिति में पत्नी को पति का कहना मानना चाहिए.

महिलाओं पर केंद्रित होती हैं ज्यादातर गालियां

नारीशक्ति की बात तो होती है लेकिन अभी भी महिलाएं दोयम दर्जे पर हैं. पढ़ीलिखी महिलाएं भी प्रताडि़त हो रही हैं. अगर आप को किसी को अपमानित करना है तो आप उस के घर की महिला को गाली दे देते हैं. उस का चरम अपमान हो जाता है और वह मर्दों के अहंकार को भी संतुष्ट करता है. किसी पुरुष से बदला लेना होगा तो बोलेंगे स्त्री को उठा लेंगे, महिला अपमानित करने का माध्यम बन जाती है. गांव में तो बहुत होता था पहले. अमूमन यह देखा गया था कि ये गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे लेकिन अब आम पढ़ेलिखे लोग भी देने लगे हैं.

जब भी कोई बहस ?ागड़े में तबदील होने लगती है तो गालियों की बौछार भी शुरू हो जाती है. यह बहस या ?ागड़ा 2 मर्दों के बीच भी हो रहा हो तब भी गालियां महिलाओं पर आधारित होती हैं. कुल मिला कर गालियों के केंद्र में महिलाएं होती हैं. दरअसल, समय के साथ स्त्री, पुरुषों की संपत्ति होती चली गई और उस संपत्ति को गाली दी जाने लगी. गाली दे कर मर्द अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. महिलाएं परिवार की इज्जत के प्रतीक के तौर पर देखी जाती हैं. इज्जत को बचाना है तो उसे देहरी के अंदर रखिए. महिलाएं समाज में कमजोर मानी जाती हैं. आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उन के घर की महिलाओं- मां, बहन या बेटी को गालियां देना शुरू कर दीजिए. गाली सिर्फ गाली देना ही नहीं है, यह मानसिकता का प्रतीक भी है जो वीभत्स गाली देते हैं और उसे व्यावहारिकता में लाते हैं. इसलिए निर्भया जैसे मामले दिखाई देते हैं.

धर्म है इस सोच का जिम्मेदार

जितने भी धर्म हैं, हिंदू,, इसलाम, कैथोलिक ईसाई, जैन, बौद्ध, सूफी, यहूदी, सिख आदि सभी के संस्थापक पुरुष हैं, स्त्री नहीं. न ही स्त्री किसी धर्म की संचालिका है. न वह पूजापाठ, कथा, हवन कराने वाली पंडित है, न मौलवी है, न पादरी है. वह केवल पुरुष की आज्ञा का पालन करने के लिए इस संसार में जन्मी है. धर्म का मूल आधार ही पुरुषसत्ता है. स्त्री का दोयम दर्जा सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, हर धर्मग्रंथ में वह चाहे कुरान हो, बाइबिल हो या कोई और धर्मग्रंथ हो स्त्रियों को हमेशा पुरुष से कमतर माना गया.

धर्म की आड़ में कहानियों के माध्यम से स्त्री जीवन को दासी और अनुगामिनी के रोल मौडल दिखा कर उसी सांचे में ढालने का प्रयास किया जाता है. सीता, सावित्री, माधवी, शकुंतला, दमयंती, द्रौपदी, राधा, उर्मिला जैसी कई नायिकाओं के ‘रोल मौडल’ को सामने रख कर सदियों से स्त्री का अनावश्यक शोषण चलता आ रहा है. पुरुषसत्ता स्वीकृत भूमिका से अलग किसी स्थिति में स्त्री को देखना पसंद नहीं करती. इसलिए धार्मिक आचार संहिता बना कर वह स्त्री की स्वतंत्रता और यौनशुचिता पर नियंत्रण रखती है.

दुनिया का कोई देश या जाति हो, उस का धर्म से संबंध रहा है. सभी धर्मों में स्त्री की छवि एक ऐसी कैदी की तरह रही है जिसे पुरुष के इशारे पर जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है. वह पितृसत्तात्मक समाज की बेडि़यों से जकड़ी होती है.

धर्मों में स्त्री सामान्यतया उपयोग और उपभोग की वस्तु है. उस की ऐसी छवि गढ़ी गई है जिस से स्त्री ने भी स्वयं को एक वस्तु मान लिया है. धर्म ने स्त्री को हमेशा पुरुष की दासी के रूप में चित्रित किया. रामचरितमानस में सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है और महाभारत में द्रौपदी को चीरहरण जैसे सामाजिक कलंक से गुजरना पड़ता है.

स्त्री अधिकार की बात हमारे धर्मग्रंथों में कभी की ही नहीं गई. वह पुरुष के श्राप से शिला बन जाती है, पुरुष के ही स्पर्श से फिर से स्त्री बन जाती है. पुरुष गर्भवती पत्नी को वनवास दे देता है, पुरुष अपनी इच्छा से उसे वस्तु की तरह दांव पर लगा देता है. सभी धर्मग्रंथों में उसे नरक की खान, ताड़न की अधिकारी और क्याक्या नहीं कहा गया.

मर्द हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इसी के माध्यम से सब प्राप्त कर सकता है जिन्हें वह एक मर्द होने के कारण अपना हक सम?ाता है.

इन स्थितियों से महिलाएं तभी उबर सकती हैं जब वे पुरुषसत्ता और धर्मगुरुओं के षड्यंत्र को जान सकें और अपनी शक्ति की पहचान कर सकें. अपने मान की रक्षा के लिए खुद खड़ी हों न कि दूसरों की राह देखें.

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