Husband wife:‘कोरा कागज’ फिल्म को रिलीज हुए 50 साल होने को हैं लेकिन बेटी की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोलने वाली मां आज भी मौजूद है. बेटियां अब भी फिल्म की नायिका अर्चना जैसी, नादान दब्बू या कमजोर कुछ भी कह लें, होती हैं जो खामोशी से मां को अपने घर में आग लगाते देखती रहती हैं पर हिम्मत जुटा कर यह नहीं कह पातीं कि प्लीज ममा, हमारे बीच में मत बोलो, हमारी जिंदगी और हमारे छोटेमोटे झगड़े हम मैनेज या सौल्व कर लेंगे और अगर आप की मदद या सलाह की जरूरत पड़ी तो लेने में हिचकिचाएंगे नहीं.

भोपाल के पौश इलाके शाहपुरा में रहने वाली 38 वर्षीया मीनाक्षी की मानें तो उस की कहानी ‘कोरा कागज’ फिल्म से 80 फीसदी मिलतीजुलती है. मीनाक्षी सरकारी नौकरी में अच्छी पोस्ट पर है. उस की शादी हुए 8 साल हो गए हैं. पति रवि भी केंद्र सरकार की नौकरी में हैं. दोनों ने अपनी पसंद से शादी की थी जो अब टूटने की कगार पर है. अब उस पर अदालती मोहर भर लगना बाकी है. क्यों टूट रही है एक और शादी जबकि पतिपत्नी में कोई खास मतभेद नहीं है, इस की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं.
मीनाक्षी तब मिडिल स्कूल में थी जब मम्मीपापा का तलाक हो गया था. उसे ज्यादा कुछ याद नहीं. हां, यह जरूर मालूम था कि पापा ने तलाक के तुरंत बाद दूसरी शादी कर ली थी. मम्मी स्कूलटीचर थीं, उन्होंने तलाक का सदमा बरदाश्त करते उसे पिता बन कर भी पाला. अच्छा पढ़ायालिखाया, संस्कार दिए, कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी और आज के दौर के हिसाब से आजादी भी दी जिस का कि उस ने कभी गलत फायदा नहीं उठाया.

रवि से प्यार तो उसे इंदौर में कोचिंग के दौरान ही हो गया था लेकिन शादी के बारे में उन्होंने तय किया था कि नौकरी लगने के बाद ही करेंगे. ऐसा हुआ भी. नौकरी लगने के एक साल बाद ही जब मीनाक्षी ने रवि से शादी करने का फैसला लिया तो मम्मी ने उस का साथ ही दिया और धूमधाम से शादी की. बेटी की शादी को ले कर जो खटका या गिल्ट, कुछ भी कह लें, उन के मन में था वह बगैर किसी झंझट के खत्म हो गया था. रवि और उस के घर वाले भी मम्मी को पसंदआए थे. तब दोनों परिवारों के बीच ये डायलाग बहुत कहेसुने गए थे कि आजकल जमाना बहुत बदल गया है अब लड़की और लड़के में कहनेभर का फर्क बचा है और दामाद बेटे से कम नहीं होता. उस की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह पत्नी के घर का खयाल रखे और उस की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाए.

रवि को उस ने काफी पहले ही मम्मीपापा के तलाक के बारे में बता दिया था जिस के बारे में रवि का कहना था कि यह कोई बड़ा इशू नहीं है. इस की बेवजह चर्चा न की जाए. रवि की बहुत सी बातों के साथ यह अदा भी मीनाक्षी को लुभाती थी कि वह अतीत और अप्रिय बातों को रोते रहना पसंद नहीं करता था.

शादी के वक्त रवि की पोस्टिंग जबलपुर में थी और मीनाक्षी की ग्वालियर में, तब दोनों ने तय किया था कि हफ्तेपंद्रह दिनों में वे भोपाल आ जाया करेंगे. इस से मम्मी को भी अच्छा लगेगा और रवि भी अपने घर में रह लेगा. इसी दौरान दोनों के घर वाले भी मिलजुल लिया करेंगे. एक साल ठीकठाक गुजरा. रवि और मीनाक्षी दोनों बेचैनी से वीकैंड का इंतजार करते थे और शुक्रवार की रात अपनीअपनी ट्रेनें पकड़ लेते थे.

ऐसे ही एक दिन भोपाल में मीनाक्षी की मम्मी ने उस के ट्रांसफर की बात चलाई कि वह अगर भोपाल हो जाए तो सभी को सहूलियत रहेगी. उन की दलील यह थी कि रवि तो केंद्र सरकार का कर्मचारी है, इसलिए तबादले में दिक्कत जाएगी लेकिन थोड़ी कोशिश करने पर मीनाक्षी का ट्रांसफर भोपाल हो सकता है.

इस बात का चूंकि रवि के पेरैंट्स ने भी समर्थन किया था, इसलिए वह कुछ नहीं बोल पाया वरन उस की तो इच्छा थी कि मीनाक्षी का ट्रांसफर जबलपुर ही करा ले. पतिपत्नी एक जगह रहें, सरकार की इस नीति के तहत ट्रांसफर जल्द हो जाएगा. बाद में कभी देखा जाएगा या फोन पर कभी मीनाक्षी को दिल की बात बताऊंगा तो वह समझ जाएगी, यह सोचते वह खामोश रहा. लेकिन हैरान उस वक्त रह गया जब 15 दिनों बाद ही मीनाक्षी का भोपाल का ट्रांसफर और्डर आ गया. मीनाक्षी यह सोचते हुए बहुत खुश थी कि अब फिर मम्मी के पास रहेगी और रवि से मिलने के लिए भागादौड़ी भी नहीं करना पड़ेगी. अपनी खुशी रवि से उस ने शेयर की, साथ ही, यह भी बताया कि मम्मी ने ट्रांसफर के लिए किसी दलाल को 2 लाख रुपए भी दिए हैं.

बस, यहीं से बात बिगड़नी शुरू हुई. बकौल मीनाक्षी, वह खुशीखुशी में समझ ही नहीं पाई कि रवि को यह बात नागवार गुजरी है और इस तरह करवाए गए ट्रांसफर को वह हम दोनों के बीच दरार डालने के तौर पर देख रहा है. कई दिनों तक वह इस संबंध में कुछ नहीं बोला लेकिन बात मीनाक्षी से छिपी न रही जब उस ने अंतरंग क्षणों में रवि के इस उखड़े मूड की वजह जाननी चाही तो उस ने अपने मन की बात जाहिर कर दी. मीनाक्षी ने उस की तकलीफ समझी और तुरंत सौरी बोल दिया तो रवि का मन हलका हो गया. लेकिन उस ने यह समझाइश भी सर्द लहजे में दे दी कि कोशिश करना कि आइंदा मम्मी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण न करें.

लेकिन अतिक्रमण तो हो चुका था. बस, इस नए बसे घर की टूटफूट बाकी थी. अगले 3 साल मीनाक्षी पति और मम्मी के बीच पिसती रही. अकसर ऐसा होने लगा था कि वह फोन करता तो वह मम्मी के साथ बैठी होती थी या उन्हीं के साथ बाजार या नए बने मौल में होती थी. घर में हो, तो रूम में जा कर बात की जा सकती थी और ऐसा वह करती भी थी लेकिन बाजार या डाक्टर के यहां होने पर ऐसा होना संभव नहीं हो पाता था. ऐसा हालांकि बहुत कम बार हुआ कि उसे रवि से यह कहना पड़ा हो कि घर पहुंच कर बात करती हूं पर कई बार ऐसा उस वक्त हुआ जब रवि उस से बात करने के लिए कोचिंग के दिनों से भी ज्यादा बेचैन दिखा. और इस दौरान अगर उस ने फोन पर सूंघ भी लिया कि मैं मम्मी के पास हूं तो वह फिर सहज हो कर बात नहीं कर पाता था और जल्द बात खत्म करने की कोशिश ‘हांहूं’ करते करता था.

तब मुझे समझ नहीं आता था कि एक मकड़ी मेरी जिंदगी की खुशियों और सुखों के इर्दगिर्द जाला बुन रही है जिस में मैं धीरेधीरे कुछ जाने, कुछ अनजाने में मक्खी की तरह फंसती जा रही हूं. रवि ने अब भोपाल आना भी कम कर दिया था. उस की बातों में अब पहले सी गरमाहट भी नहीं रह गई थी.

जिंदगी फिर दरकती सी महसूस हुई तो मीनाक्षी ने फिर रवि को टटोला. लेकिन इस बार उस ने साफसाफ कह दिया कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है. तुम चूंकि मम्मी के पास रह रही हो, इसलिए अब मेरी परेशानी और तकलीफ समझ नहीं पाओगी. यह ठीक है कि शादी के पहले हुए डिस्कशन में हम दोनों ने इस सिचुएशन को समझा था और इस का हल भी निकाला था कि मम्मी को अकेलापन महसूस न हो, इसलिए तुम जब चाहो उन से मिल लो. कुछ दिन उन के साथ भी रह लो लेकिन अब हो उलटा हो रहा है. तुम मम्मी की देखभाल के नाम पर मुझे और मेरे घर वालों को इग्नोर कर रही हो. क्या मेरे मम्मीपापा को नहीं लगता होगा कि बहू कुछ दिन उन के पास भी रहे. आखिर उन की भी तो कुछ इच्छाएं होगीं. उन्हें भी तो चार लोगों और रिश्तेदारों में जवाब देना पड़ता होगा. तुम 8-10 दिनों में 2-3 घंटों के लिए उन के पास जाती हो, उस पर भी अपनी मम्मी को पर्स की तरह लटका कर ले जाती हो, सो लगता ऐसा है कि बहू नहीं बल्कि कोई मेहमान आया है. क्या तुम्हारी मम्मी को ये बातें समझ नहीं आतीं जो वे तुम्हें दूधपीती बच्ची की तरह गले से लिपटाए रखती हैं.

उस दिन उस ने पहली दफा इतने सख्त लहजे में बात की थी कि मैं वहीं फूटफूट कर रोने लगी. एक तरफ मम्मी थीं जिन का ब्लडप्रैशर अकसर हाई रहने लगा था और ब्लडशुगर भी हर कभी बढ़ जाती थी और दूसरी तरफ रवि था जो समझता था कि मैं जानबूझ कर मम्मी की बीमारी और सेहत को बढ़ाचढ़ा कर बताते उस की और ससुराल की अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती हूं और यह सब मम्मी प्लांट कर रही हैं. जबकि, ऐसा हरगिज हरगिज नहीं था मैं तो एक ऐसे रास्ते की तलाश में थी जिस से दोनों तरफ आ-जा सकूं. यह कहावत मैं भूलने लगी थी कि 2 नावों के सवार को कभी किनारा नहीं मिलता.

अगले कुछ महीने इसी तनाव में गुजरे. अब यह तनाव मैं मम्मी से छिपा नहीं सकी और उन्हें सबकुछ बता दिया. उस रात उन की तबीयत फिर बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा. सुबह उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया लेकिन उन की हालत ठीक नहीं थी. रवि को फोन किया तो वह बेहद सधी आवाज में बोला, ‘देख लो मेरी जरूरत हो तो बता देना, दोस्तों को बोले देता हूं कोई इमरजैंसी हो तो उन्हें बुला लेना.’

बकौल मीनाक्षी, अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. रवि का औपचारिक लहजा बता रहा था कि उस की कोई दिलचस्पी अब मेरी परेशानियों में नहीं रही. यह बिलकुल पहाड़ टूटने जैसी बात थी जिस के बारे में खुल कर अब मैं मम्मी को भी नहीं बता सकती थी.

वक्त ऐसे ही गुजरता रहा. अब तो समझने वाले भी समझने लगे थे कि हमारे बीच सबकुछ ठीक नहीं है. सासससुर के बातचीत करने का लहजा भी रवि जैसा होता जा रहा था, जिस के बारे में मम्मी ने एक कहावत के जरिए बताया था कि घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है.

तब मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि यह जाला मम्मी बुन रही थीं जिस में से मैं चाह कर भी नहीं निकल पा रही. एक तरह से मम्मी ने मुझे उस में ही छटपटाने को मजबूर कर दिया है. मुझे एकाएक ही मम्मी बहुत खुदगर्ज नजर आने लगीं थीं जिन्होंने अपने सुख और सहूलियत के लिए मेरे और रवि के बीच एक ऐसी खाई खोद दी थी जिसे पाटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो गया था. सबकुछ सामने होते हुए भी कभी उन के मुंह से यह नहीं निकला कि जा बेटी अपने पति के पास चली जा, मेरा क्या है, मैं तो रह लूंगी. जिंदगी अब बची ही कितनी है. उलटे, हर वक्त वे मुझे यह एहसास कराती रहीं कि मेरे बगैर उन का रहना बहुत मुश्किल है.

हां, दिखावे को जरूर वे कभीकभार कहती हैं कि, ‘मेरा क्या है मैं तो हमेशा से अकेली रही हूं. पहले तेरा बाप चरित्रहीन होने का झूठा लांछन लगा कर चला गया. अब रवि समझता है कि मैं अपने स्वार्थ के लिए तुझे उस से दूर कर रही हूं. जबकि ऐसा है नहीं. कौन मां ऐसा चाहेगी. मैं ने तो यह समझा था कि मुझे दामाद नहीं बल्कि बेटा मिल गया है जो मेरे दुख को समझेगा लेकिन वह भी मुझे समझ नहीं पाया. तेरा जब मन करे उस के पास चली जाना. अगर मना करे तो मैं उस के पांवों में सिर रख कर अपनी गलतियों के लिए माफी मांग लूंगी.’

मीनाक्षी की समझ में सब आ रहा है कि गड़बड़ कहां है. एक तरफ खुद को असुरक्षित समझने वाली मम्मी हैं तो दूसरी तरफ उन्हें खुदगर्ज करार दे चुका रवि है जिस ने पिछली बार प्यारव्यार, शादीवादी सब भूलते बेहद बाजारू शब्दों में यह कह दिया था कि तुम्हारे बाप ने तुम्हारी मां को यों ही तलक नहीं दे दिया होगा.

तब ऐसा लगा था कि भरे चौराहे पर किसी ने मां की गाली दे दी हो और हम में और झुग्गीझोंपड़ी वालों में जो कथित फर्क है वह खत्म हो गया है. यह कोई बेटी बरदाश्त नहीं कर सकती हालांकि किसी ने ऐसा कहने की हिम्मत की तो उस की भी वजह यों ही नहीं पैदा हो गई थी. मीनाक्षी अब पहले के मुकाबले बेहद सुकून महसूस कर रही है. उस ने और रवि ने परस्पर सहमति से तलाक की अर्जी दायर कर दी है जिस का फैसला एकाधदो पेशियों में हो जाएगा और दोनों एक ऐसे बंधन से मुक्त हो जाएंगे जिस में, दरअसल, वे कभी बंध ही नहीं पाए थे.

मीनाक्षी को इस बात का भी एहसास है कि यह तलाक वह मां के नहीं बल्कि अपने दम पर ले रही है. वह मां के प्रति अपना फर्ज निभा रही है. मम्मी अगर, बकौल रवि, खुदगर्ज हैं तो यही सही. उन्होंने जो किया और आज वे उस की कीमत वसूलना चाहती हैं तो वसूल लें और अपनी जिंदगी का अक्स अपनी बेटी की आने वाली जिंदगी में देख लें. उन के पास तो फिर भी मैं थी लेकिन मेरे पास कौन है जिस का मुंह देख कर मैं जिंदगी काट लूं. और अच्छा भी है कि कोई नहीं है, वरना शायद मैं भी यही वसूली करती जिस की सजा कोई रवि भुगतता. फिर भी न जाने क्यों मन में यह बात सालती रहती कि रवि अगर थोड़ा सा समझौता और कर लेता तो जिंदगी कुछ और होती. फिर लगता है कि मम्मी ही अगर समझ से काम लेतीं तो किसी समझौते की नौबत ही क्यों आती.

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