UP congress Leaders reached Ram Mandir : अयोध्या में 15 जनवरी को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के साथ अयोध्या में मंदिर दर्शन और सरयू स्नान किया. कांग्रेस के प्रदेश नेताओं ने यह दिखाने की कोशिश की कि उन पर राम के विरोध का आरोप ठीक नहीं है. वे राजनीति में धर्म के इस्तेमाल का विरोध करते हैं. सोशल मीडिया पर इस के तमाम फोटो पोस्ट होने लगे. सोशल मीडिया पर अयोध्या की पोस्ट में कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. यह बात कांग्रेस के विरोधियों को अच्छी नहीं लगी.

कुछ ही देर में एक दूसरा वीडियो आ गया. इस वीडियो में कुछ गुमनाम जैसे दिखने वाले चेहरे कांग्रेस के झंडे को खींच रहे हैं. इस वीडियो में यह दिखाने की कोशिश की गई कि अयोध्या जाने वाले कांग्रेस के नेताओं का विरोध हुआ. यह छोटा सा वीडियो कितना सच है या झूठ, यह किसी ने नहीं समझा. विरोध करने वालों को कोई नहीं पहचान पा रहा था. जिस का विरोध हो रहा, उस को कोई नहीं पहचान पा रहा. सोशल मीडिया पर यह भी वायरल होने लगा. कांग्रेसियों के अयोध्या दर्शन कार्यक्रम पर यह छोटा सा वीडियो प्रभाव डालने लगा.

जमीनी मुद्दे खत्म नहीं होते

यह उदाहरण भर है. इस तरह की तमाम घटनाएं होती हैं जहां पर सोशल मीडिया का झूठ भी सच की तरह दौड़ता है. सोशल मीडिया में लोगों को लगता है कि सच यही है. जबकि सही मामले में इस तरह की घटनाएं जमीनी स्तर पर प्रभाव नहीं डालती हैं. आज राजनीति पर सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. यही वजह है कि आम लोगों के मुद्दे बहस से बाहर हो गए हैं. बहस से बाहर होने के बाद भी आम लोगों के मुद्दे हकीकत में मौजूद हैं और ये चुनाव पर असर डालते हैं. सोशल मीडिया का प्रभाव केवल उतने लोगों तक होता है जो सक्रिय होते हैं. सोशल मीडिया का एक बड़ा वर्ग वहां दिखता भले है पर वह सक्रिय नहीं है.

आंकड़े बताते हैं कि 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इंटरनैट का प्रयोग करते हैं. इन में से आधे यानी 50 करोड़ के आसपास ऐसे लोग हैं जो सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं. जो लोग सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं वे 24 घंटे में औसतन 2 से ढाई घंटे प्रतिदिन करते हैं. यानी वे रोज 20 घंटे बिना सोशल मीडिया के गुजारते हैं. इन में से 8 घंटे सोने के निकाल दें तो 12 घंटे वे सोशल मीडिया से दूर अपने काम करते हैं. ये लोग जमीनी सच के हिसाब से अपने फैसले करते हैं.

हर प्लेटफौर्म की अलग पहचान है

अपनी दिनचर्या के इस दौरान वे जीवन के सच का सामना करते हैं, वे रोजमर्रा के संघर्ष कर रहे होते हैं. ऐेसे में उन को जमीनी मुद्दों का सच पता होता है. वे सोशल मीडिया के प्रभाव में नहीं आते. सोशल मीडिया के 5 प्रमुख प्लेटफौर्म हैं- फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (जो पहले ट्विटर था), यूट्यूब और व्हाट्सऐप. राजनीति की बातें सब से अधिक एक्स पर होती हैं. उस के बाद व्हाट्सऐप और यूट्यूब के नंबर आते हैं.

इंस्टाग्राम और यूट्यूब मनोरंजन के सब से बड़ा साधन हैं. फेसबुक का प्रयोग लोग अपनी छवि को चमकाने के लिए भी करते हैं.

सोशल मीडिया पर वह सब से प्रभावी माना जाता है जिस के फौलोअर्स अधिक होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि जितने फौलोअर्स होते हैं उन में केवल 10 से 20 फीसदी ऐक्टिव हों तो सब से अच्छा माना जाता है. इस से यह पता चलता है कि फौलोअर्स की आभासी दुनिया होती है. यह सच नहीं होती. सोशल मीडिया में तमाम ऐसे इनफलुएंसर होते हैं जिन के फौलोअर्स तो लाखों में होते हैं पर आसपास के लोग उन्हें नहीं पहचानते. फौलोअर्स की संख्या का जो सच है, वह भी मार्केटिंग का जाल है. यहां पैसे खर्च कर संख्या को बढ़ाया जाता है.

ताजा उदाहरण विवेक बिंद्रा और संदीप माहेश्वरी का है. सोशल मीडिया पर दोनों के करोड़ों फौलोअर्स हैं. दोनों के बीच विवाद हुआ तो इन के साथ मुठ्ठीभर लोग भी खड़े नहीं हुए. विवेक बिंद्रा का अपनी पत्नी से विवाद हुआ, झगड़े का वीडियो वायरल हुआ तो फौलोअर्स ही विरोध में खड़े हो गए. सोशल मीडिया जीवन ही नहीं, समाज का भी सच नहीं है. यह तर्कशक्ति की जगह कट/पेस्ट और फौरवर्ड पर चलता है. यही वजह है कि जो फौलोअर्स दिखते हैं वे असरदार नहीं होते.

खत्म हो रही जमीनी राजनीति

तमाम ऐसे नेता हैं जो सोशल मीडिया पर तो खूब चमकते हैं लेकिन असल में उन के समर्थक बेहद कम होते हैं. गोरखपुर में समाजवादी पार्टी की नेता हैं काजल निषाद. पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में उन के फौलोअर्स को देखते टिकट दे दिया. वे टीवी सीरियल में काम करती थीं. कैंपियरगंज से विधानसभा का चुनाव हार गईं. हाल के कुछ चुनावों में ऐसे नेताओं को खूब टिकट मिले जो सोशल मीडिया पर बहुत पहचाने जाते थे. ये लोग चुनाव हार गए. चुनाव में जीत के लिए सोशल मीडिया पर ऐक्टिव चेहरों को महत्त्व मिलता है. इस के साथ ही यह जरूरी है कि वह सोशल मीडिया से अधिक जमीन पर सक्रिय हो.

समाजवादी पार्टी के नेता और संस्थापक मुलायम सिंह यादव कहते थे, ‘अगर नेता बनना है तो रोज कम से कम 2 हजार नए लोगों से व्यक्तिगत मिलो. इस से जानपहचान बनेगी. लोग भरोसा करेंगे, वोट देंगे.’

जो लोग यह समझते हैं कि केवल सोशल मीडिया पर फौलोअर्स बढ़ाने से जीत मिलेगी, वे सही नहीं सोच सकते. सोशल मीडिया राजनीति का एक जरूरी प्रोफाइल भर है. केवल सोशल मीडिया के प्रभाव से जीत नहीं मिलती. फौलोअर्स वोटर नहीं होते. इस फर्क को समझना पड़ेगा. आज जो फौलोअर्स हैं वही कल एक गलत कदम पर ट्रोल करने से नहीं चूकते हैं.

बेमानी है फौलोअर्स की बहस

सोशल मीडिया की ताकत यह है कि कम से कम समय में यह आप की बात को आगे पहुंचा सकता है. इस के साथ ही इस का दूसरा सच यह है कि नैगेटिव बातों का प्रचार अधिक होता है. पौजिटिव बातों को लोग आगे नहीं बढ़ाते. सोशल मीडिया पर सब से अधिक किन विषयों को लोग पंसद करते हैं, इन में सब से पहला विषय सैक्स है. दूसरे नंबर पर मनोरंजन फिल्म और गाने आते हैं. तीसरे नंबर पर धर्म की बातें आती हैं.

चौथे नंबर पर रोजगार और कैरियर को लोग पसंद करते हैं. 5वें नंबर पर अपराध और उस के बाद राजनीति का नंबर आता है. सैक्स के विषय को देखें तो पोर्नस्टार सनी लियोनी को सब से अधिक सर्च किया जाता है. इस के बाद भी वे फिल्मों में नहीं चलीं. सोचिए, क्या सनी लियोनी चुनाव जीत सकती हैं? जवाब है, नहीं.

फौलोअर्स और वोटर में फर्क होता है. देश के 2 बड़े नेताओं नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की तुलना भी उन के सोशल मीडिया प्रोफाइल से की जानी उचित नहीं है. राहुल गांधी नरेंद्र मोदी को बराबर की टक्कर दे रहे हैं. कांग्रेस ने संसद टीवी के यूट्यूब चैनल पर दर्शकों की संख्या दिखाने वाले स्क्रीनशौट साझा किए, जिस में दावा किया गया कि संसद में राहुल गांधी के भाषण को पीएम मोदी की तुलना में अधिक दर्शक मिले.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) टीवी की एक पोस्ट के अनुसार, राहुल गांधी के भाषण को संसद टीवी पर 3.5 लाख बार देखा गया, जबकि मोदी को 2.3 लाख बार देखा गया. कांग्रेस का कहना है कि राहुल, पीएम मोदी से ज्यादा पौपुलर हैं. कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम के मुताबिक, राहुल गांधी के आखिरी 30 ट्वीट्स को 48.13 मिलियन इंप्रैशन मिले, जबकि पीएम मोदी के आखिरी 30 ट्वीट्स को 21.59 मिलियन इंप्रैशन मिले.

भाजपा ने कहा कि एक्स (पहले ट्विटर) पर पीएम मोदी के अकाउंट को पिछले एक महीने में लगभग 79.9 लाख एंगेजमैंट मिले, जबकि राहुल गांधी के अकाउंट को लगभग 23.43 लाख एंगेजमैंट मिले. बीजेपी ने कहा कि फेसबुक पर पीएम मोदी के अकाउंट को पिछले एक महीने में लगभग 57.89 लाख एंगेजमैंट मिले, जबकि राहुल गांधी के अकाउंट को लगभग 28.38 लाख एंगेजमैंट मिले. 2 बड़े नेताओं के लोगों के बीच इस तरह की बहस राजनीति में सोशल मीडिया के प्रभाव को बताती है.

यह बहस बेमकसद है. नेताओं को समझना होगा कि फौलोअर्स वोटर नहीं होते. चुनाव वोट से जीते जाते हैं, फौलोअर्स से नहीं. वोटर को अपने क्षेत्र की जमीनी परेशानियों को जानने के लिए सोशल मीडिया नहीं देखना पड़ता. वह सच को समझता है. सोशल मीडिया राजनीति को प्रभावित कर सकता है, वोट नहीं दिला सकता.

अगर ऐसा होता तो भाजपा कर्नाटक, तेलंगाना और हिमांचल प्रदेश के चुनाव न हारी होती. जो नेता केवल सोशल मीडिया पर दिखेंगे, वे चुनाव नहीं जीत सकते. सोशल मीडिया एक वर्ग तक सीमित है. और वह वर्ग भी सोशल मीडिया को देख कर ही फैसले नहीं करता है.

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