मोना ने फ्लोरेसेंट यलो कलर का सूट पहना और मां की तसवीर देख कर मुसकरा दी.
‘अच्छी लग रही हूं न, मम्मी?’ तसवीर में मां के मुसकराते चेहरे को देख, पूरी तरह आश्वस्त हो कर वह नीचे बैठक में आ गई. मम्मी के अचानक देहांत के 2 दिनों बाद उस की बचपन की सहेली शर्मिला अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए आने वाली थी.
नियत समय पर मोना घर के गेट पर ही खड़ी हो कर उस की प्रतीक्षा करने लगी. तभी एक गाड़ी आ कर रुकी. उस में से शर्मिला उतरी और दौड़ कर, रोते हुए, मोना के गले लग गई, बोली, “मोना, यह अचानक… कैसे चली गईं आंटी?”
मोना ने मुसकराते हुए कहा, “मम्मी कहीं नहीं गईं हैं, यहीं तो हैं, तू अंदर चल.
“यह देख, ये रहीं मम्मी, घर के एकएक कोने में, दीवार पर सजी इन पेंटिंग्स में, इन बेलबूटों में, स्वतंत्रता की इस मूर्ति में, ये जो सबकुछ मम्मी ने अपने हाथों से बनाया है, इन के स्पर्श में, बाहर गार्डन के हर पौधे में, सभी तरफ तो हैं मम्मी.”
यह कह तो दिया मोना ने, हालांकि, उस की आंखें भीतर का दर्द बखूबी बयां कर रही थीं. तभी उस की ममेरी बहन चायनाश्ता ले कर आ गई, बोली, “अरे मोना, ऐसे वक्त में यह सब…”
शर्मिला हैरान थी.
“हां सोनिया, मम्मी ने मुझ से पहले ही वचन ले लिया था कि, ‘मेरे जाने के बाद तू रोने मत बैठ जाना. इस घर में हमेशा रौनक रही है और मेरे बाद भी रहनी चाहिए, इस की ज़िम्मेदारी तेरी है. कोई मेहमान घर से भूखा न जाए, इस बात का खास ख़याल रखना. पापा से हलकाफुलका मज़ाक करते रहना ताकि उन्हें मेरी कमी न खले. और संस्कारों के नाम पर किए जाने वाले काम विधिविधान से नहीं बल्कि हंसतेखाते करना और ध्यान रहे, वातावरण बोझिल न हो. जीवन और मृत्यु अकाट्य सत्य हैं. तुम लोग खुश रहोगे, तभी मैं खुश रह पाऊंगी,” मोना ने यह सब कहा और चाय का कप पकड़ा दिया.
शर्मिला अवाक् थी. वास्तव में उस घर में मनहूसियत नहीं, बल्कि एक विशिष्ट अनुभूति हो रही थी. फूलों और खुशबू से सारा घर महक रहा था. मोना के पापा, सौम्य मुसकान के साथ, आंटी की तसवीर को निहार रहे थे और हलकाहलका संगीत बज रहा था.
मृत्यु पर रिवाजों का यह बदलाव वास्तव में सुखद बयार सा प्रतीत हो रहा था.