गोआ का डोना पाउला टूरिस्ट स्थल, चारों ओर मौजमस्ती का आलम और सैलानियों का जमघट, ऐसा लग रहा था मानो पूरी दुनिया यहां इकट्ठी हो गई हो. सब को इंतजार था सूरज के डूबने का, बेहद आकर्षक नजारा था. आकाश में सूरज तेजी से धरती के दूसरे छोर, जहां दूरदूर तक पानी ही पानी दिखाई दे रहा था, को छूने को बेताब हो रहा था. उस की लालिमा समुद्र में बिखरने लगी थी और धीरेधीरे लाल होता समुद्र सूरज को अपने आगोश में लेने को बेचैन हो रहा था.
अब कई लोग हाथों में कैमरे लिए उस अद्भुत नजारे को कैद करने जा रहे थे, तभी मेरी नजर दूर बैंच पर बैठे, एक बुजुर्ग दंपती पर पड़ी जो आसमान की ओर टकटकी लगाए उस डूबते सूरज को देख रहा था. उन के चेहरे पर खिंची अनेक रेखाएं जीवन में उन के अनगिनत संघर्षों को दर्शा रही थीं. तभी वे दोनों धीरे से बैंच से उठे, एकदूसरे का हाथ थामा और धीमी चाल से रेलिंग की ओर बढ़ने लगे.
हिलोरें मारती समुद्र की विशाल लहरों का शोर उस ढलती शाम की शांति को भंग कर रहा था. लाल सूरज ने समुद्र के पानी की सतह को लगभग छू लिया था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे एक विशालकाय आग का गोला पानी के ऊपर पड़ा हो. भीड़ में से अनेक हाथ कैमरा लिए ऊपर उठ चुके थे और अनेक फ्लैश की रोशनियां इधरउधर से चमकने लगीं, परंतु मेरी नजरें उसी बुजुर्ग दंपती पर टिकी हुई थीं. अचानक उस बुजुर्ग महिला ने अपना संतुलन खो दिया और वह गिरने को हुई, जब तक कोई उन्हें संभालता, उन के पति की बूढ़ी बांहों ने उन्हें थाम लिया. उन देनों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे को देखा और उन के चेहरे हलकी सी मुसकराहट के साथ खिल गए. तभी मैं वहां पहुंच चुकी थी, ‘‘आंटी, आप ठीक तो हैं,’’ अचानक ही मैं बोल पड़ी. लेकिन उत्तर दिया उन के पति ने, ‘‘बेटा, 55 साल का साथ है, ऐसे कैसे गिरने देता.’’ मैं ने अपना कैमरा उन की ओर करते हुए पूछा, ‘‘एक फोटो प्लीज.’’ और उन को डूबते सूरज के साथ अपने कैमरे में कैद कर लिया.
रेखा जोशी, फरीदाबाद (हरियाणा)
मैंरेलवे में बुकिंग काउंटर पर कार्यरत हूं. एक बार एक सज्जन मुझ से प्लेटफार्म टिकट ले कर गए. उन्होंने 50 रुपए का नोट दिया और 5 टिकट लिए.
मैं ने 100 रुपए का नोट समझ कर उन्हें 85 रुपए वापस कर दिए.
थोड़ी देर बाद वे अंकल वापस आए और मुझे 50 रुपए का नोट दे कर सारी स्थिति समझाई. तब मुझे अपनी गलती का पता चला. मैं ने उन्हें धन्यवाद दिया. उन की ईमानदारी दिल को छू गई. ऐसे ही लोगों की वजह से आज भी ईमानदारी जिंदा है.
स्नेहा अभिनव धनोदकर, इंदौर (म.प्र.)