25 दिसंबर के पहले से ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होना शुरू हो गया था जिस में माथे पर बड़ा सा तिलक लगाए एक सवर्ण सा दिखने वाला पति अपनी पत्नी को हड़का रहा है कि तुम लोग जिस तरह नया साल मनाने की बात कर रही हो वह पाश्चत्य है, ऐयाशीभरा है, लोग आधी रात को नशे में धुत रहते हैं. कौन किस की बांहों में पड़ा है, पता भी नहीं चलता. नया साल तो हम सनातनी हिंदू गुडी पडमा को सलीके और विधिविधान से मनाते हैं.

कैसे मनाते हैं, यह भी गुस्साया पति बता रहा है कि सुबह उठ कर ईश्वर का ध्यान करते हैं, फिर मांबाप को प्रणाम करते हैं, पूजापाठ करते हैं, गौमाता को चारा खिलाते हैं और फिर मंदिर जाते हैं. सनातनी पति हिंदू नववर्ष की तारीफों में कसीदे गढ़ते कुछ फुजूल की दलीलें भी देता है कि इन दिनों में ऋतु परिवर्तन होता है, मन में उल्लास रहता है, यह होता है वह होता है वगैरहवगैरह.

हिंदू एक जनवरी को नया साल मनाना बंद कर दें, ऐसी कोशिशों ने पिछले 15-20 सालों में ज्यादा जोर पकड़ा लेकिन जब वे नहीं माने तो धर्म के दुकानदारों और ठेकेदारों ने उन का रुख मंदिरों की तरफ मोड़ना शुरू कर दिया कि कोई बात नहीं, जब 1 जनवरी को ही मनाना है तो नया साल मंदिरों में मनाओ. वहां पूजापाठ करो, यज्ञहवन करो और अहम बात दानदक्षिणा देते जेब ढीली करो. इस का दूसरा मकसद यह था कि हिंदुओं की पूजापाठ और बातबात में मंदिर जाने की लत और बढ़े.

 भक्तों को तो बहाना चाहिए

इस साल तो हाल यह है कि किसी भी धर्मस्थल में पांव रखने की भी जगह नहीं है. इस के बाद भी लोग हैप्पी न्यू ईयर का गैरसनातनी मंत्र जपते मंदिरों की तरफ दौड़े पड़ रहे हैं मानो सारा मोक्ष 1 जनवरी, 2024 को ही मिलना हो. यह और बात है कि इन्हें तो परेशानियों, झिड़कियों और धक्कामुक्की के अलावा कुछ नहीं मिलना. हां, पंडेपुजारियों की जरूर चांदी है जिन्हें रोजाना से हजारलाख गुना तक ज्यादा दक्षिणा मिलना तय है.

जिन शहरों और मंदिरों में सब से ज्यादा कारोबार होना है उन में से एक मथुरा वृंदावन भी है जहां मंदिरों की पूरी श्रृंखला है. मथुरा प्रशासन की मानें तो इस साल 31 दिसंबर और 1 जनवरी को 10 लाख से भी ज्यादा लोगों के आने की संभावना है. शहर में भारी वाहनों की आवक 25 दिसंबर से ही बंद कर दी गई है और पार्किंग के लिए वाहनों को बाहर ही रोका जा रहा है.

ट्रैफिक व्यवस्था के अलग से इंतजाम किए जा रहे हैं. कृष्ण और राधा के इन मंदिरों में यों तो सालभर भक्तों की आवाजाही बनी रहती है, खासतौर से जन्माष्टमी और राधाष्टमी पर, लेकिन अब भीड़ नए साल में भी उमड़ने लगी है.

बांके बिहारी मंदिर में गुब्बारे नए साल पर लगाए जाएंगे और सुंगधित इत्रों का छिड़काव भी होगा. अब यह पूछने या बताने को वह वीडियो वाला सवर्ण पति उपलब्ध नहीं कि भैया, इधर एयरपोर्टों, रेलस्टेशनों, बसअड्डों और हाईवे पर आ कर ज्ञान बांटों कि यह हम हिंदुओं का नहीं बल्कि अंगरेजों का नया साल है, इसलिए मंदिर मत जाओ.

यही हाल काशी विश्वनाथ के मंदिर का है जहां पिछले साल के पहले ही दिन 5 लाख से ज्यादा भक्तगण पहुंचे थे. मथुरा वृंदावन के मंदिरों की तरह वाराणसी के मंदिर हजारबारह सौ वर्गफुट क्षेत्रफल वाले हैं और तंग गलीकूचों में हैं जहां सुबह 5 बजे से ही हरहर महादेव के नारे लगाते लोगों को देख लगता है कि वेद, व्यास जैसे धर्मग्रंथों के रचयिता कोई चूक कर गए जिसे मौजूदा पंडो ने संभाल लिया है.

एक और धार्मिक नगर उज्जैन में भी 8-10 लाख हिंदुओं के आने की संभावना है. पिछले साल उज्जैन में भी 5 लाख से ज्यादा लोगों ने भोलेनाथ की छत्रछाया में नया साल मनाया था. यहां के महाकाल मंदिर में खास इंतजाम साल के पहले दिन किए जाएंगे. सुबह की भस्मी आरती में भक्तों को नहीं जाने दिया जाएगा. लेकिन मंदिर के पट सुबह 6 बजे से खोल दिए जाएंगे जिस से ज्यादा से ज्यादा भक्त दर्शन कर सकें और पैसा चढ़ा सकें.

जम्मू के वैष्णोदेवी मंदिर भी लोग जाना शुरू हो गए हैं और भारी तादाद में तिरुपति मंदिर भी पहुंच रहे हैं. हर जगह अफरातफरी, धक्कामुक्की और बदइंतजामी है. होटल, लौज, रिसोर्ट फुल हो चुके हैं लेकिन भक्तों की जेबें चूंकि भरी है, इसलिए किसी को यह गिलाशिकवा नहीं कि हिंदू क्यों नया साल मनाने मुंबई के सिद्धि विनायक और हरिद्वार, ऋषिकेश जैसी धार्मिक नगरियों में जा कर अपना वक्त व पैसा बरबाद कर रहे हैं. इस से धर्म और संस्कृति नष्टभ्रष्ट होते हैं.

अंग्रेजी नए साल का नकद हिंदूकरण

धर्म के ठेकेदारों की यह बेचारगी नहीं बल्कि चालाकी है कि वे नए साल पर मंदिरों में हिंदुओं के जाने पर कोई एतराज नहीं जताते. नहीं तो कोई 10 दिनों पहले से देशभर में हल्ला मचना शुरू हो गया था कि हिंदू स्कूलों में अपने बच्चों को सांता न बनाएं. बनाना ही हो तो बच्चों को राम, कृष्ण, शंकर, महाराणा प्रताप, भगत सिंह या हनुमान बनाएं.

बच्चों को सांता बनाना गुलामी की निशानी है. क्या कोई ईसाई किसी हिंदू त्योहार पर अपने बच्चों को हिंदू देवीदेवता बनाता है. इतना ही नहीं, जगहजगह हिंदूवादी संगठनों ने स्कूलों में जा कर प्रबंधन को हड़काया भी था कि इस बार हिंदू बच्चों को सांता बनाया तो समझ लेना. मध्यप्रदेश के भोपाल और शाजापुर सहित कई शहरों में तो इन भगवा गमछाधारियों से डर कर कई स्कूलों ने नोटिस जारी कर दिए थे कि हमारे स्कूल में बच्चों को सांता नहीं बनाया जाएगा.

लेकिन यही उन्मादी और मठाधीश नए साल के हिंदूकरण पर मुंह में दही जमाए बैठे हैं क्योंकि इस की कीमत उन्हें दक्षिणा और चढ़ावे की शक्ल में मिलती है. इक्कादुक्का लोग ही सोशल मीडिया पर यह कह कर मन मसोस लेते हैं कि हमारा नया साल तो गुडी पडवा पर शुरू होता है. कोई किसी को धौंस नहीं दे रहा, फिर समझाइश की तो उम्मीद ही बेकार है कि नए साल पर मंदिर मत जाओ.

उलटे, मंदिर जाने वालों को तरहतरह से प्रोत्साहित ही किया जा रहा है. मीडिया अतिउत्साह में छाप और दिखा रहा है कि साल का पहला दिन भगवान के मंदिर में मनाएं तो सालभर सुख, शांति और समृद्धि रहेगी.

बात सच है, ये तीनों चीजें रहेंगी तो, लेकिन इफरात से दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरते पंडेपुजारियों के पास जो मुमकिन है धर्म के नकदीकारण के लिए आने वालों सालों में न्यू ईयर भंडारों की भी इजाजत देने लगें. धंधा यों ही चलता रहा तो मुमकिन यह भी है कि कोई हिंदू देवता नए साल का भी पैदा कर दिया जाए. इन दिनों तो देश में सबकुछ मुमकिन है.

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