सुधा के पति को क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन हो गया था. उन का रेस्पिरेटरी फेल्योर हो गया था, जिसे वे मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल में जा कर ही पता कर पाए. पहले वे जनरल फिजीशियन से दवाइयां ले रहे थे. लेकिन एक रात उन्हें सांस लेने में काफी समस्या होने लगी और उन के पैरों में भी सूजन आ गई. उन्हें बेहोशी छा गई.

आननफानन उन्हें एक मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल के इमरजैंसी वार्ड में भरती करवाया गया. जहां जांच से पता चला कि उन्हें क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन की बीमारी है, जिस के परिणामस्वरूप उन्हें सांस लेने में अधिक तकलीफ हो रही है. ऐसा मरीज दस हजार में एक होता है. इस का इलाज जल्दी करवाना पड़ता है वरना आगे चल कर इस पल्मोनरी हाइपरटैंशन से लंग्स पर प्रैशर बढ़ जाता है. तकरीबन 4 वर्षों के इलाज के बाद वे स्वस्थ हुए और नियमित दिनचर्या को अब वे कर पा रहे हैं.

क्या है यह बीमारी ?

क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन (सीटीईपीएच) ऐसी स्थिति है जहां क्रोनिक रक्त के थक्कों (थ्रोम्बोएम्बोलिक) के कारण फुफ्फुसीय धमनियों में रक्तचाप बढ़ जाता है, जो फेफड़ों के माध्यम से रक्त के मुक्तप्रवाह को बाधित करता है.

असल में आज की लाइफस्टाइल और प्रदूषणभरे माहौल में लंग्स इन्फैक्शन के मामलों में काफी वृद्धि हुई है, जिस का समय रहते इलाज करना अधिक जरूरी है, लेकिन अधिकतर मरीज इधरउधर इलाज करवाते रहते हैं, जिस से उन की बीमारी की सही जांच नहीं हो पाती. फलस्वरूप, रोगी की बीमारी बढ़ जाती है और फिर उस को ठीक करना असंभव सा हो जाता है.

कम समय में सफल इलाज के लिए मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल सही होता है, जहां एक छत के नीचे सारी जांच और इलाज कम समय में बिना भागदौड़ के संभव हो जाता है. हालांकि इस के खर्चे थोड़े अधिक होते हैं लेकिन आजकल कई संस्थाएं और मैडिकल इंश्योरैंस हैं जो गरीबों को इलाज में मदद करती हैं, जिस से कम दाम में इलाज संभव हो पाता है.

क्या है लंग्स डिसऔर्डर ?

इस बारे में मुंबई की ग्लोबल हौस्पिटल के पल्मोनोलौजी और लंग्स ट्रांसप्लांट के हेड डा. समीर गार्डे कहते हैं कि लंग्स की 2 तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं और इन्हें सम?ाना आवश्यक है.

  1. इन्फैक्शन, मसलन निमोनिया, कोविड इन्फैक्शन, स्वाइन फ्लू या टीबी के रोगी
  2. दूसरे, जिन को अस्थमा है या वे स्मोकिंग की वजह से सीओपीडी के शिकार है या लंग्स फाइब्रोसिस यानी लंग्स में कड़कपन का आना आदि है.

इन दोनों ही तरह के मरीज हौस्पिटल पहुंचते हैं. ऐसा देखा गया है कि भले ही कोई अपने लंग्स का कितना भी खयाल रखे, शहर में बिगड़ता पौल्यूशन, बिगड़ती लाइफस्टाइल जिस में स्ट्रैस काफी होता है, की वजह से भी इन्फैक्शन, उन्हें हो जाया करता है. छोटीमोटी सर्दी, खांसी साल में 2 बार हर किसी को होती है, लेकिन निमोनिया या टीबी की वजह से हौस्पिटल में एडमिट होना पड़ता है.

उन लोगों को यह बीमारी अधिक होती है जिन्होंने खाना ठीक से नहीं खाया है, खाने में पौष्टिक आहार नहीं लिया है या हाई प्रोटीन डाइट नहीं ली है. जिन की डायबिटीज कंट्रोल में नहीं रहती है उन्हें भी कई बार लंग्स की बीमारी होती है. इस के अलावा बड़ी बीमारियां, जैसे कैंसर या लंग्स ट्रांसप्लांट करवाने वाले मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इस से उन में लंग्स के इन्फैक्शन, जल्दी हो जाते हैं.

बचें प्रदूषण से

डाक्टर आगे कहते हैं कि प्रदूषण, एलर्जी, खेती करने वाले किसान और स्मोकिंग से लंग्स खराब होने वाले अलग मरीज होते है जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक होने के बावजूद लंग्स इन्फैक्शन हो जाता है. इन में अधिकतर किसानों को लंग्स फाइब्रोसिस की बीमारी होती है, जो धान की कन्नी या भूसे से अधिक होती है. इस के अलावा कबूतर के पंख और मल की वजह से भी लंग्स फाइब्रोसिस होता है, जिसे हाइपर सैंसिटिविटी निमोनाइटिस कहते हैं. इस में लंग्स में सूजन आ जाती है, जिस से लंग्स कड़क हो जाते हैं और कई बार लंग्स ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ती है.

लक्षण

  • 2 हफ्ते से अधिक समय तक खांसी आना.
  • खांसी में खून का गिरना.
  • बुखार आना.
  • सांस लेने में दम लगना.
  • थोड़े काम करने पर थकान महसूस करना.
  • हृदयगति का बढ़ना आदि हैं.

ऐसा होने पर तुरंत लंग्स स्पैशलिटी वाले डाक्टर के पास जाएं, क्योंकि खांसी में अस्थमा, लंग्स फाइब्रोसिस की शुरुआत, लंग्स कैंसर के लक्षण आदि कुछ भी हो सकते हैं.

मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल की खासीयत

डा. समीर कहते हैं कि मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल में डाक्टर दिनरात ध्यान रखते हैं. इस के अलावा जांच जल्दी होने पर बीमारी का पता जल्दी चल जाता है. यहां अस्थमा और पल्मोनरी के रोगी के लंग्स की जांच भी की जाती है, जिस में ब्रीदिंग टैस्ट, सीटी स्कैन किए जाते हैं. जांच के बाद इलाज की सभी सुविधाएं मिल जाती हैं.

एक्सपर्ट चैस्ट फिजीशियन इन अस्पतालों में अधिक होते हैं. इलाज भी अच्छी तरह से हो जाता है. ऐसा देखा गया है कि मल्टीस्पैशलिटी वाले हौस्पिटल में अधिकतर मरीज गंभीर बीमारी वाले आते हैं, जिन का इलाज बाहर सही से न हो पाया हो.

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