भारतपाक के बीच जितने भी युद्ध हुए हैं उन में सिनेप्रेमियों की दिलचस्पी हमेशा से रही है. फिल्म ‘शेरशाह’ भी भारतपाक युद्ध पर थी जिस का नायक एक युवा था. अब आगे ‘इक्कीस’ पर काम शुरू हो चुका है. इसी बीच भारतपाक युद्ध पर एक और फिल्म आई है, जिस का नाम है ‘पिप्पा’.
इस फिल्म में भारत ने एक ऐसे टैंक का इस्तेमाल किया था जो जमीन पर चलने के साथसाथ पानी में भी तैर सकता था और इसलिए पंजाब रैजीमैंट के जवानों ने उसे प्यार से पिप्पा नाम दिया. पिप्पा घी का वह कनस्तर होता है जो पानी में आराम से तैर सकता है.
यह उभयचर टैंक जिसे पीटी-76 और पलावुशी टैंक कहा जाता है, एक अनोखा टैंक था जिसे उभयचर अभियानों के लिए डिजाइन किया गया था और इस का उपयोग युद्ध के दौरान नदियों को पार करने के लिए किया गया था.
यह टैंक युद्ध के दौरान बहुत महत्त्वपूर्ण था जिस ने युद्ध में जीत के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सेना के पास बचा इकलौता असली पीटी-76 टैंक इस फिल्म में दिखाया गया है. बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के आखिरी दिन इस टैंक ने भी जलसमाधि ले ली थी.
निर्देशक राजाकृष्णा मेनन ने अपनी इस फिल्म में पिप्पा यानी पीटी-76 टैकों से पाकिस्तान के टैंकों को आग लगा दी थी. इस फिल्म में उस ने बलराम सिंह (ईशान खट्टर), उन के परिवार, उन की यूनिट और पूर्वी पाकिस्तान के हालात के साथसाथ पिप्पा की भूमिका को भी दिखाया है.
पिप्पा एक युद्ध फिल्म है, जिस में कुछ हीरो हैं, उन की बैकस्टोरी है, उन का दर्द है. फिल्म में कुछ अगलबगल के ट्रैक भी हैं. फिर भी यह फिल्म दिल को छू नहीं पाती, दिमाग पर असर नहीं कर पाती. इसे देख कर मुट्ठियां नहीं भिचतीं, भुजाएं नहीं फड़कतीं, हालांकि इस के युद्ध सीन सजीव हैं.
यह फिल्म अमृतसर, अहमदनगर, पश्चिम बंगाल के अंदरूनी इलाकों की पृष्ठभूमि पर आधारित है. यह फिल्म देशभक्ति और वीरता की कहानी है जिस में 45 कैवेलरी टैंक स्क्वाड्रन के कैप्टन बलराम मेहता की जिंदगी की झलकियां दिखती हैं.
पिप्पा को ले कर सीओ कमांडिंग ने उसे चुनौती दी पीटी-76 टैंक की 3 फौजियों को बढ़ा कर 4 फौजियों की जगह बनाने की. बलराम ने उसे कर दिखाया. मानेक्क्षा ने इस काबिल लड़के को तुरंत फ्रंट पर रवाना करने का हुक्म दिया. वह नौजवान अपने शहीद फौजी पिता के बूट्स उठा कर चल निकला एक ऐसे मिशन पर जिस की मिसाल दुनिया में दूसरी नहीं मिलती. भारत ने पाकिस्तान से युद्ध किया और बनाया एक नया देश बंगलादेश.
इस फिल्म में बलराम के साथ जो टैंक परदे पर आया वह असली पीटी-76 टैंक ही है. इस टैंक के हमले से धूधू कर जलते पाकिस्तान के चैफी टैंकों के नाम पर ही ब्रिगेडियर मेहता ने अपनी किताब का नाम रखा ‘द बर्निंग चैफीज’.
यह फिल्म पाकिस्तान से बंगलादेश की आजादी पर आधारित है. ‘पिप्पा’ में ईशान खट्टर एक सैनिक की भूमिका में है, जो बंगलादेश के 6 करोड़ लोगों को आजाद कराने के लिए पाकिस्तान से युद्ध लड़ रहा है. फिल्म में प्रियांशु ईशान खट्टर के बड़े भाई का किरदार निभा रहे हैं.
प्रियांशु राम जबकि ईशान खट्टर बलराम मेहता का किरदार निभा रहे हैं. फिल्म के शौट्स अच्छे बने हैं, जैसे युद्ध के लिए एक नदी पार करने के लिए एक टैंक का उपयोग करने वाला सीन.
भारतपाकिस्तान और 1971 के युद्ध पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं. इस बार ईशान खट्टर कुछ अलग ले कर आए हैं. इस में पारिवारिक ड्रामा और युद्ध की भयावहता दोनों दिखाई गई है. साथ ही, देशभक्ति की भावना और खुद को साबित करने की उत्सुकता भी है.
फिल्म के प्रोडक्शन डिजाइनर ने दर्शकों को 5 दशक पीछे ले जा कर पूरा एहसास कराने का काम किया है. इतिहास गवाह है कि पूर्वी पाकिस्तान के आजाद हो कर बंगलादेश बनने के उस संघर्ष को दबाने के लिए वहां के करीब 30 लाख लोगों को मार दिया गया था और करीब 3 लाख औरतों के साथ बलात्कार किए गए थे.
मुक्तिवाहिनी के उस संघर्ष में भारत की प्रमुख भूमिका थी और पूर्वी मोरचे पर पाकिस्तान को हराने में वहां के गरीबपुर में हुई निर्णायक लड़ाई की थी. गरीबपुर की लड़ाई के हीरो कैप्टन बलराम सिंह मेहता थे.
‘पिप्पा’ फिल्म बुरी नहीं बनी है. शुरू से ही यह अपने मुख्य किरदारों की सोच को स्पष्ट कर देती है. बलराम के बागी तेवर दिखा कर यह स्थापित करती है कि यह बंदा कल को मैदान में क्या रुख अपनाएगा. अपने बड़े भाई और 1965 की लड़ाई के हीरो मेजर राम से बलराम का खुंदक रखना अजीब लगता है. बलराम की बहन (मृणाल ठाकुर) की शादी वाला ट्रैक भी मिसफिट है. पूरी फिल्म में दृश्यों के बीच का तालमेल बारबार टूटता है.
सैम के किरदार में कंवल सदाना जंचे हैं. बलराम बने ईशान खट्टर ने अपने किरदार में जोर लगाया है. कलाकार अपनीअपनी भूमिकाओं में फिट हैं. इनामउल हक ने शानदार काम किया है. ‘परवाना…’ वाले गाने को छोड़ कर बाकी का गीतसंगीत औसत है.
सच यह है, यह फिल्म पूरी तरह से पिप्पा की कहानी नहीं है न ही बलराम की और न ही बंगलादेश के जन्म की. यह फिल्म आधे भरे कनस्तर की तरह है. यही अधूरापन इस फिल्म की कमी है.