सरकारी नौकरियां या दूसरे रोजगार पैदा करने में निखट्टू साबित होने के बाद सरकारों ने निजी उद्योगों और दफ्तरों में नौकरियां पर डाका डालने की योजना बनाई है. हरियाणा सरकार ने 2021 में एक कानून पास किया कि हर प्राइवेट कंपनी को 30,000 से कम वेतन वाले कर्मचारियों में से 75 प्रतिशत हरियाणवी रखने होंगे चाहे वे दूसरे राज्यों के कर्मचारियों के मुकाबले ठीक हों या न हों. इस कानून को लागू करने के लिए लंबीचौड़ी रिटर्नें, कागजी कार्रवाई, फाइन, जेल का बाकायदा प्रबंध किया गया.

कुछ कंपनियों ने इस कानून को चुनौती दी और अब हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट ने कहा है कि यह कानून असंवैधानिक है और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. कंपनियों ने तो राहत महसूस की है पर नेताओं को अब अपनी खिल्ली उड़ती नजर आ रही है क्योंकि इस तरह की चोंचलेबाजी भारतीय जनता पार्टी ही सरकारी फैसलों की पहचान बन गई है.

अब एक ज्योतिष रिसर्च केंद्र का आर्थिक कष्ट निवारण उपाय देखिए : एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिला कर हर शनिवार को पीपल के पेड़ पर धूप में चढ़ाएं तथा ओम नमो भगवते वासुदेव मंत्र जपते हुए पीपल की 7 बार परिक्रमा करें. इसी तरह का एक और निर्देश उसी रिसर्च केंद्र से आया है धर्म का कार्य करने में कभी देर मत करना और सत्धर्म मिल जाए तो दानपुण्य करने में देर नहीं करना. धन और वोट दान अब गैर ब्राह्मण नेता भी लेने लगे हैं और हरियाणा में हरियाणावासियों को लौलीपौप देने का कानून इन्हीं पाठों को पढ़ कर आए नेताओं ने दिया है.

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अखंड भारत की बात करती है और दूसरी तरफ यह हरियाणा में नौकरियां केवल हरियाणवी लोगों के लिए सुरक्षित रखना चाहती है. यह दोगलापन हिंदू धर्म के देवीदेवताओं के कारनामों में भरा पड़ा है और वहीं से सीख कर तो लोग अपना राज चला रहे हैं.

हरियाणा ही नहीं सभी राज्यों में सरकारें इसी तरह की नौटंकी करती रहती हैं. आरक्षण इसी नौटंकी का एक हिस्सा है. पहला आरक्षण तो सदियों से पौराणिक है जिस में काम का बंटवारा जाति से कर रखा है और हमारा आरक्षण इस धार्मिक आरक्षण को ठीक करने के लिए कानूनी है जिस में नौकरियों को सभी जातियों में बांटने की बात होती है.

जरूरत है कि देश में खेती भी उत्पादक व लाभदायक हो ताकि वह और लोगों को रोजगार दे सके और उद्योग सा लाभदायक हो और फलेफूले ताकि वे नौकरियां पैदा करे. बनीबनाई नौकरियों को बांटने या धर्मस्थलों पर नौकरियां पैदा करने से देश और समाज का कल्याण नहीं होगा. जपतप, मंत्र पढ़ने से या कानून बना डालने से देश नहीं सुधरता. इस के लिए नेताओं और जनता को मिल कर काम करना होता है, चाहे वह 70 घंटे सप्ताह का क्यों न हो.

अगर हरियाणा सरकार कहती कि हरियाणवी बंदे को ही रखो और वे सातों दिन रोज 10 घंटे काम करेंगे तो देखते हैं कैसे उद्योग छीनाछपटी करते हैं लोकल लेबर के लिए, पर नीयत तो खराब थी. मुफ्त का माल हड़पने की थी जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है.

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