इजराइल और फिलिस्तीनियों के एक मिलिटैंट गुट हमास के बीच चल रहे युद्ध में किसी का पक्ष लेना थोड़ा मुश्किल काम है. इजराइल युनाइटेड नेशंस द्वारा बाकायदा स्वीकारा गया एक स्वतंत्र देश है जिस का अपना संविधान है, अपना   झंडा है, अपनी संसद है और जहां चुने गए लोग शासन करते हैं.

हमास इजराइल के क्षेत्र में पहले से रह रहे फिलिस्तीनियों में से हथियारों से लैस बिना किसी संविधान, चुनाव, सरकार वाला एक गुट है. जब 7 अक्तूबर की सुबह हमास ने इजराइल के एक उत्सव के दिन 3 हजार रौकेटों से हमला कर के इजरायल के एक दक्षिणी शहर में किबुत्ज रीम के पास एक स्थल में आराम से शांति से पूजा कर रहे व उत्सव मनाते एक हजार से अधिक लोगों को, जिन में औरतेंबच्चे शामिल थे, मार डाला और इजरायल में घुस कर बहुत से इजराइलियों को मारा व कई इजराइलियों को गाजा के अपने खुफिया इलाके में होस्टेज के तौर पर कैद कर लिया तो इजराइल को कुछ तो करना ही था.

वर्ष 1948 से जन्म से ही इजराइली वह सब करते रहे हैं जो उन के साथ दुनियाभर में 2,000 साल किया गया. हिटलर ने जो बर्बरता व क्रूरता उन के साथ 1940 से 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में की, उस को दुनिया में न दोहराया जाए, इस संकल्प की जगह इजराइल के यहूदियों ने हिटलर से भी ज्यादा क्रूरता पिछले 70 सालों में दिखाई है.

यह संभव हुआ इसलिए कि इजराइलियों ने 1948 में मिली बंजर जमीन को न केवल उपजाऊ बनाया बल्कि उन्होंने एक औद्योगिक व सैनिक दृष्टि से ताकतवर देश का निर्माण भी कर लिया. जहां आसपास के अरबी बोलने वाले लोगों की प्रति व्यक्ति आय 7,000 डौलर से 2,000 डौलर प्रति वर्ष है, 70 सालों में इजराइल ने अद्भुत प्रगति कर के प्रति व्यक्ति आय को 58,000 डौलर पहुंचा दिया और अरब देशों से घिरे होने के बावजूद एक अलग धर्म वाले मजबूत देश का निर्माण कर लिया. पर इस का मतलब यह है कि क्या वे कुछ के गुनाहों की सजा पूरी कौम को दें? गाजा पट्टी में रहने वाले 20 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को मार डालने की सैन्य योजना किसी के गले नहीं उतरेगी. वर्ष 2006 में भी एक युद्ध इसीलिए हुआ था जब हमास के गुरिल्लों ने 2 इजराइली सैनिकों को अगवा कर लिया था.

कुछ इजराइलियों की वजह से दूसरे निहत्थेनिर्दोषों का सजा देना वैसा ही है जैसे ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला कर के किया था. नाराजगी अमेरिकी की विदेश नीति से थी पर मौत की सजा दी गई उस कमर्शियल बिल्ंिडग में काम करने वालों और 3 बड़े जहाजों के यात्रियों को.

आज इजराइल यही कर रहा है. कुछ हजार हमास गुरिल्ला फोर्स का बदला 20 लाख निहत्थे गाजा पट्टी में बसे फिलिस्तीनियों को मार कर लिया जा रहा है. इजराइल कहता है कि अगर हमास ने हथियार नहीं डाले तो गाजा पट्टी में कोई जिंदा नहीं बच पाएगा चाहे वह बमों, रौकेटों से मरे या भूख व प्यास से.

ऐसा हिटलर ने किया था. हिटलर ने निहत्थे, निर्दोष यहूदियों को गैस चैंबरों में धकेला था, मशीनगनों से उड़ाया था, खुद कब्र खोद कर उस में कूदने को कहा और दूसरे यहूदियों, जिंदा लोगों को मिट्टी में दबाने को कहा. वर्ष 1940 से 1945 के दौरान जो बर्बरता यहूदियों के साथ हुई वह अब इजराइल गाजा पट्टी में दोहरा रहा है ताकि अपने देश की मौतों का बदला लिया जा सके.

नैतिकता का एक बड़ा सवाल पूरे पश्चिम जगत के सामने अब यह खड़ा हो गया है कि वे किस हद तक इजराइल का समर्थन करें? मुसलिम फिलिस्तीनियों से यूरोप और अमेरिका की सरकारों को कोई हमदर्दी नहीं है. पर इस तरह का नरसंहार, जो इजराइल करने जा रहा है या कर चुका है, कैसे पचाया जा सकता है? इजराइली खुद को नया हिटलर और मुसोलिनी साबित कर रहे हैं. उन का नैतिकता के किन मापदंडों के तहत समर्थन किया जा सकता है?

भारत में इजराइल समर्थक हैं क्योंकि यहां वैसी बर्बरता इजराइली टैंकों की जगह हमारे बुलडोजर कर रहे हैं, मैतेई मणिपुरियों की भीड़ कुकी मणिपुरियों के साथ कर रही है और भाजपा की सरकार उसे मूक समर्थन दे रही है. यह अत्याचार हमारे शूद्रों (ओबीसी) व दलितों (एससी) के साथ सदियों से होता रहा है. यह पौराणिक व्यवस्था रही है.

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