इजराइल को पश्चिम एशिया का मिलिट्री ताकत के रूप में सब से मजबूत देश माना जाता है. वह अपने पर हमला करने वाले हर देश व गुट को जड़ से उखाड़ देने की धमकी ही नहीं देता, कितनी बार कर के दिखा भी चुका है. उस के खिलाफ फिलिस्तीनियों के एक गुट हमास द्वारा 7 अक्तूबर को किया गया जबरदस्त हमला, जिस में करीब 5,000 रौकेट एकसाथ दागे गए और समुद्र व जमीन से हमलावर इजराइल में घुसे भी, एक अचंभा था.
इजराइल की बांह मरोड़ने की आदत को अलोकतांत्रिक मानते हुए भी जो देश उस का साथ देते रहे हैं वे हमास के इस हमले से भौचक्के रह गए हैं. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा तो है कि वे ऐसा सबक सिखाएंगे कि हमलावर आगापीछा भूल जाएंगे पर लगता है फिलिस्तीन ने अब मरनेमारने का वैसा ही फैसला किया है जैसा रूस के खिलाफ यूक्रेन के व्लोदोमीर जेलेंस्की ने पिछले साल लिया था कि वे रूस के हमले का जवाब सही ढंग से देंगे.
इजराइल असल में उन यहूदियों द्वारा बनाया गया देश है जो द्वितीय विश्वयुद्ध में 1,500 से 2,000 वर्ष पहले इस इलाके को छोड़ कर पूरे यूरोप में बस गए थे क्योंकि यहां उन पर रोमन साम्राज्य हमले कर रहा था. इसलाम बाद में आया. जो गैरयहूदी इस इलाके में थे उन में से कुछ ईसाई बने और कुछ मुसलमान.
फिलिस्तीनी भी इस इलाके में सदियों से रह रहे थे पर यूरोप ने हिटलर के जुल्मों के शिकार यहूदियों को अपना एक देश देने का फैसला किया और फिलिस्तीनियों से जगह छीन कर यहूदियों को बसा दिया.
वर्ष 1947 से अब तक इजराइल में दुनियाभर से आ कर बसे यहूदियों ने इस बंजर, पथरीले, रेतीले इलाके को आबाद कर दिया. आसपास के देशों को पछाड़ते हुए यहूदियों ने इतना उत्पादन किया कि प्रतिव्यक्ति उत्पादन वहां 52,170 डौलर है जिस के मुकाबले भारत का लगभग 2,020 डौलर और चीन का 14,000 डौलर व यूरोप के मुसलिम बहुल देश तुर्की का 10,000 डौलर के आसपास है.
फिलिस्तीनी गरीबी और गुरबत में इजराइली सेना के साथ में इजराइल से घिरे कुछ इलाकों और समुद्र के किनारे गाजा पट्टी में रहते हैं. फिलिस्तीनियों का यह ताजा हमला गाजा पट्टी से हुआ क्योंकि समुद्री रास्ते से हथियार लाना संभव था. इजराइल अब गाजा पट्टी पर बने शहरों पर जबरदस्त हमले कर रहा है पर इस लड़ाई में कौन जीतेगा, यह कहना मुश्किल है.
मोटे तौर पर यह फिलिस्तीनियों का आत्मघाती हमला है क्योंकि वे इजराइल की ताकत और उस को मिलने वाले हथियारों का मुकाबला नहीं कर सकते. फिर भी नेतन्याहू ने माना है कि उन का देश हमास के खिलाफ एक लंबी लड़ाई में फंसने वाला है. कुल 23 लाख की आबादी वाले हमास के कंट्रोल में फिलिस्तीन का यह इलाका इतनी हिम्मत दिखा रहा है, यह बड़ी बात है. सही या गलत क्या है, यह दूसरी बात है.
इजराइल असल में पश्चिम एशिया में एक बिगड़ैल बुलडौग की तरह व्यवहार करता है और पिछले युद्धों की सफलता व आर्थिक संपन्नता का नशा उस पर बहुत है. फिर भी, जैसे गुफाओं और पहाडि़यों में रहते अफगानों ने रूस, अमेरिका और पाकिस्तान को पस्त किया, यदि वैसे ही हमास ने मरने की ठान ली है तो इजराइल का एक लंबे युद्ध में फंसना तय है.
यह एक उदाहरण है उन सब देशों के लिए जहां शासक अत्याचार, पुलिस, सेना के सहारे जनता को कुचल कर राज करने की कोशिश करते हैं. यह एक ऐसा उदाहरण है जो देश के बाहर वालों और देश के अंदर अपनी ही जनता दोनों के लिए है.
अभी कुछ वर्षों पहले ट्यूनीशिया, इजिप्ट (मिस्र) और सीरिया में जनता के विद्रोह का बड़ा असर हुआ था. हमास की लड़ाई में फिलिस्तीनी जनता एकसाथ है या नहीं, पता नहीं. वह अपने घरबार न्योछावर करने को तैयार है या नहीं, पता नहीं.
यदि वह तैयार है तो जैसे यहूदियों ने 1940-45 के बीच बुरी तरह अत्याचार झेलने के बाद एक खुशहाल देश इजराइल बनाया था, हमास भी अपने लोगों को एक नई उम्मीद दे सकता है. हां, अगर वे अल्लाह पर ही निर्भर रहे, तो शायद कुछ न होगा और फिर फिलिस्तीनी मजदूर इजराइल में नौकरी करने के लिए दिनभर के परमिटों की लाइनों में खड़े मिलेंगे.