प्रेरणा की विभा मौसी से पटती तो हमेशा से थी, लेकिन अब तक उन से मुलाकात परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होती थी. पर इस बार वह अकेली आई थीं और मौसा दौरे पर गए हुए थे. उस रात विभा ने प्रेरणा को अपने कमरे में ही सोने को कहा. सोने से पहले प्रेरणा ने पढ़ने के लिए कोई पत्रिका मांगी.

‘‘कौन सी दूं…’’ विभा ने 3-4 पत्रिकाओं के नाम बोले.

‘‘कोई भी दे दो.’’

‘‘हां, हैं तो सब एक सी ही, नारी उत्थान की हिमायती,’’ विभा बोली, ‘‘मगर, कोई कुछ भी कर ले, नारी उत्थान न कभी हुआ है और न होगा.’’

‘‘वह भला क्यों, मौसी.’’

‘‘क्योंकि पुरुषों से कहीं ज्यादा नारी ही नारी का शोषणा करती है यानी औरत ही औरत की दुश्मन है…”

‘‘जैसे कि सासबहू, ननदभौजाई और देवरानीजेठानी,’’ प्रेरणा ने बात काटी.

‘‘नहीं प्रेरणा, सगी बहनें और कई बार तो मांबेटी तक एकदूसरे का शोषण करती हैं,’’ विभा कसैले स्वर में बोली, ‘‘बेटी के मुकाबले मां का बेटे को ज्यादा सिर चढ़ाना तो सर्वविदित है ही, लेकिन कुछ बेकार की मान्यताओं के कारण बेटियों को उन की मनपसंद शिक्षा न देना या उन की पसंद के वर को नकार देना भी आम बात है और मैं तो इसे भी शोषणा ही कहूंगी.’’

प्रेरणा ने पत्रिका एक ओर रख कर बत्ती बुझा दी और पूछा, ‘‘और अगर व्यक्तिगत मनमुटाव के कारण किसी के प्यार का खून किया जाए तो उसे क्या कहोगी, मौसी.’’

‘‘जुल्म, अत्याचार, शोषण, कुछ भी, मगर ऐसा हुआ किसी के साथ.’’

‘‘हां, मेरे साथ.’’

यह सुन कर पहले तो विभा हक्कीबक्की रह गई, फिर संभल कर बोली, ‘‘तेरी मजाक करने की आदत कुछ ज्यादा ही हो गई है. अपने दिवंगत मातापिता को तो बख्श दे.’’

‘‘सच कह रही हूं मौसी, पापा तो खैर, इस सब में शामिल नहीं थे. मम्मी और लीना मामी के रहमोकरम ने ही कहर ढाया था.’’

तभी विभा के दिमाग में बिजली सी कौंधी. एक बार कुछ उड़तीउड़ती खबर तो सुनी थी कि आजकल शुभा जीजी और लीना भाभी में जबरदस्त ठनी हुई है. जीजी आरोप लगा रही हैं कि लीना का भांजा उन की भोलीभाली एकलौती बेटी को फांस रहा है और लीना का कहना है कि उस के सुशील, मेधावी भांजे को शुभा जीजी घरजमाई बनाने के लिए बेटी से उस पर डोरे डलवा रही हैं.

वैसे, जीजी और भाभी में छत्तीस का आंकड़ा तो शुरू से ही था. जुड़वां होने के कारण जीजी और तिलक भाईसाहब में कुछ ज्यादा ही पटती थी. दोनों घंटों बातें करते थे. पहले तो छोटे बहनभाइयों को इस में कुछ फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन जब शादी के बाद जीजी और दिल्ली में नौकरी कर रहे तिलक भाईसाहब कभी भी चंद दिनों के लिए एकसाथ घर आते, तब वयस्क हुए भाईबहनों को उन के घंटों कमरा बंद कर के अकेले बैठने की आदत बहुत खटकती थी. कुछ कहने पर भाईसाहब मुसकरा कर कह देते, ‘अपनी जीजी से पूछो भई, दरवाजा तो वही बंद करती है.’

जीजी से पूछना बिल्ली के गले में घंटी बांधना था और वह हिम्मत किसी में नहीं थी. भाईसाहब की शादी के बाद भी जीजी ने अपनी यह आदत नहीं छोड़ी. मायके तो वह हमेशा तभी आती थीं जब भाभी और भाईसाहब आते थे, लेकिन साल में 1-2 चक्कर भाई साहब के यहां जरूर लगा आती थीं. भाभी का कहना था कि तब अपने घर में ही उन की स्थिति एक शरणार्थी की सी हो जाती है. जाहिर है, वह तहेदिल से जीजी का स्वागत नहीं करती होंगी, मगर इस से जीजी को कुछ फर्क नहीं पड़ता था. वह मौका मिलते ही अपने लाड़ले भाई के पास चली आती थीं. परोक्ष में अगर उन्होंने भाभी की बुराई नहीं की तो कभी तारीफ भी नहीं की यानी दोनों एकदूसरे को महज इसलिए सहन कर रही थीं कि दोनों ही भाईसाहब को प्यार करती थीं और भाई साहब उन दोनों को, मगर यह शीतयुद्ध मासूम प्यार को ध्वस्त करने लायक विस्फोटक कैसे हो गया.

‘‘लेकिन, भाभी का भांजा तुझे मिला कहां…?’’ विभा ने पूछा.

‘‘उन्हीं के घर. मैट्रिक की परीक्षा दे कर मैं मम्मी के साथ दिल्ली गई थी. वहां जयेश यानी उन का भांजा भी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दे कर छुट्टियां गुजारने आया था,’’ प्रेरणा दिमाग पर जोर देती हुई बोली, ‘‘मम्मी जयेश को देख कर बहुत खुश हुईं, ‘अच्छा है, तुम यहां पर हो. तुम्हारे साथ इस लड़की का दिल भी लग जाएगा वरना मुझे यह कहकह कर ही परेशान कर रही थी कि मामा की छोटी बच्चियों के साथ मैं बोर हो जाऊंगी.’

‘‘इस पर जयेश आसमान की ओर देख कर बुदबुदाया, ‘चढ़ जा बेटा सूली पर, पहले तो 2 छोटी बच्चियां थीं. अब एक बड़ी और आ गई बोर करने को.’

‘‘मुझे उस की यह भावभंगिमा बहुत अच्छी लगी, लेकिन उस की चिढ़ाने की कोशिश का मैं मुंहतोड़ जवाब सोच पाती, मम्मी ने फिर पूछा, ‘तुम्हें गाड़ी चलानी आती है, जयेश.’

‘‘जयेश के हां कहते ही मम्मी ने मामा से कहा कि ड्राइवर के बजाय वह जयेश के साथ घूमना पसंद करेंगी,

‘ड्राइवर के साथ न आपस में बातचीत की आजादी रहती है, न ही मरजी से आनेजाने की. उसे तो समय पर छोड़ना होता है…’

‘‘‘और फिर गाड़ी में इतने लोगों के लिए जगह भी तो नहीं है,’ मामी ने भी सहमति जताई, ‘जयेश को ही गाड़ी चलाने दीजिए, सैरसपाटे का मजा रहेगा.’

‘‘और वाकई दिल्ली घूमने का मजा आ गया. मेरी और जयेश की कुछ ही घंटों में दोस्ती हो गई, जो जल्दी प्यार में बदल गई. कब वह जय और मैं प्रे हो गई, पता ही नहीं चला.

‘‘छुट्टियां खत्म हो रही थीं सो बिछुड़ना ही था, पर हमें इस का दुख नहीं था. हम फैसला कर चुके थे कि हम सारी छुट्टियां दिल्ली में ही गुजारा करेंगे.

‘‘यह कोई मुश्किल भी नहीं था, क्योंकि हरेक छुट्टियों में दिल्ली आना मेरी तो नियति थी ही और मामी का लाड़ला होने के कारण जय का तो उन के घर में सदा स्वागत था. और फिर उसे इंजीनियरिंग में दाखिला अपने ही शहर में मिल गया था. सो, छुट्टियों में तो उसे कहीं बाहर जाना ही था. लिहाजा, गरमीसर्दी की छुट्टियों में हमारी मुलाकात मजे से हो जाती थी.

‘‘एक बार मैं ने मम्मी से कहा कि हर बार हम ही दिल्ली आते हैं. एक बार हमें चिन्नीमिन्नी को भी अपने पास बुलाना चाहिए तो मम्मी बोलीं, ‘चाहती तो मैं भी बहुत हूं, पर क्या करूं, तेरे मामा को इतनी फुरसत ही नहीं मिलती.’

‘‘मम्मी के इतना कहते ही चिन्नीमिन्नी चहकीं, ‘पापा को काम करने दीजिए, बूआ, हम मम्मी और जयेश भैया के साथ आ जाएंगे.’

‘‘तभी मामी बोल पड़ीं, ‘हां, यह ठीक रहेगा. ये भी छुट्टियों में कहीं नहीं जा पातीं. सो, इन का घूमना भी हो जाएगा. आप से मिलने और हमें लेने के लिए बाद में तुम्हारे मामा भी आ जाएंगे.’

‘‘और उस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा कि गरमी की छुट्टियों में मैं दिल्ली जाती थी और क्रिसमस की छुट्टियों में मामी और बच्चों को ले कर जय हमारे घर आता था. मैं ने जय को अपनी सहेलियों से भी मिलवा दिया था और उन के पते पर वह अब मुझे पत्र भी लिखता था.

‘‘उस साल जय को छुट्टियों के दौरान किसी फैक्टरी में ट्रेनिग लेना अनिवार्य था. सो, उस से मुलाकात नहीं होगी, सोचसोच कर मेरा हाल बेहाल हो रहा था.

“मेरी हालत देख कर मेरी सहेली साधना ने अपने बड़े भाई से कह कर अपने शहर की एक बड़ी कंपनी में जय की ट्रेनिंग और गेस्टहाउस में रहने का प्रबंध करवा दिया.’’

‘‘अब जय तो यहां आए और मम्मी मुझे ले कर दिल्ली चल दें, इस से पहले ही मैं ने चिन्नीमिन्नी को भी अपने यहां आने को उकसा लिया. अब जय बेखटके उन सब से मिलने के लिए छुट्टी का दिन हमारे साथ गुजारता था. मम्मी को मामा के पास न जाना अच्छा नहीं लग रहा था. सो, उन्होंने एक दिन जय से पूछ ही लिया, ‘फैक्टरियां तो तुम्हारे भोपाल में भी बहुत हैं, फिर तुम इतनी दूर ट्रेनिंग लेने कैसे आ गए.’

‘‘‘यह फैक्टरी अपेक्षाकृत बड़ी थी, इसलिए यहां आ गया.’

‘‘‘तुम्हारी मम्मी ने कहा नहीं कि इतनी देर के लिए घर से इतनी दूर मत जाओ.’

‘‘‘यह तो कुछ ही सप्ताह की ट्रेनिंग है, आंटी, अगले साल तो एमबीए के लिए और उस के बाद नौकरी के लिए न जाने कितनी दूर जाना पड़ेगा.’

‘‘‘कुछ भी हो भई, हम तो अपनी प्रेरणा को अपने से दूर नहीं भेजेंगे. इसी शहर के किसी अच्छे लड़के से उस की शादी करेंगे.’’

‘‘मगर, जय पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. अकेले में मिलते ही उस ने मुझे आश्वासन दिया, ‘चिंता मत करो, मैं ने अपनी सूझबूझ से फैक्टरी में सब को प्रभावित कर लिया है. एमबीए करते ही यहां नौकरी करने आया समझो.’

‘‘मैं बोली कि एमबीए भी तो यहीं से कर सकते हो. मेरी सहेली रश्मि के पिता शिक्षा विभाग में सचिव हैं. वह तुम्हें एडमीशन दिलवा देंगे,’ तो जय बोला, ‘तो फिर मिलवाओ मुझे उन से, ताकि मैं उन्हें प्रभावित कर सकूं. तुम्हारे करीब रहने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘रश्मि के पिता जय से प्रभावित हुए और उन्होंने आश्वासन दिया कि उसे दाखिला अवश्य मिल जाएगा.

‘‘जब जय ट्रेनिंग पूरी कर के जा रहा था तो पापा ने औपचारिकतावश कहा था, ‘तुम्हारा यहां आना अच्छा लगता है. पता नहीं, अब कभी यहां आओगे भी या नहीं,’ तो जय बोला, ‘बहुत जल्दी और शायद हमेशा के लिए. मुझे आप का शहर बहुत पसंद है. मैं एमबीए यहीं से करूंगा और फिर अभी जहां ट्रेनिंग ली है, वहीं नौकरी भी मिल रही है.

‘‘मम्मी को हम दोनों पर शक तो पहले से ही था, अब वह विश्वास में बदल गया. उन्होंने शायद पहली बार मामी को पत्र लिखा और वह भी बहुत लंबा, यह मैं ने लिफाफे की मोटाई से अंदाजा लगाया.

‘‘मैं ने साधना के घर जाने के बहाने से बाहर जा कर जय को फोन कर के सब बताया. उसे ने मुझे आश्वासन दिया कि मम्मी जो कर रही हैं, करने दो, लीना मौसी मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरा अहित कभी नहीं करेंगी.’’

‘‘फिर 3-4 दिन के बाद ही एक रात मामी का फोन आया. उन्होंने मम्मी से पता नहीं क्या कहा, मगर वह बहुत खुश हुईं और बोली, ‘तुम बिलकुल सही कदम उठा रही हो, लीना. अगर तिलक कुछ टालमटोल करे तो मुझे बताना, मैं उसे डांट कर फौरन कुछ करने को कहूंगी.’

‘‘उस के कई दिन बाद फिर मामी का फोन आया और उन्होंने जो कहा, वह सुन कर मम्मी ने कहा कि आज रात वह चैन से सोएंगी.

‘‘मैं जय की बात से आश्वस्त हो चुकी थी. सो, मैं ने उस बातचीत को कोई अहमियत नहीं दी. मेरी बीए फाइनल की परीक्षा करीब आ रही थी. अगर जय की नौकरी लगने तक शादी टालनी थी तो अच्छे नंबर लाने थे, ताकि एमए में दाखिला मिल सके. सो, मैं पढ़ाई में जुट गई.

‘‘परीक्षा के बाद हमेशा की तरह मम्मी मुझे ले कर मामा के घर जाने के बजाय पापा के साथ दक्षिण भारत घुमाने ले गईं. मुझे भी दिल्ली जाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि 2 महीने बाद तो जय आ ही रहा था.

“लौटने पर जब साधना को फोन किया, तो उस ने बताया कि जय का पत्र आया हुआ है और रश्मि को उस के पापा ने बताया है कि जय ने भी अभी तक दाखिला के लिए आवेदन नहीं किया है.’’

‘‘मेरे आग्रह पर साधना वह पत्र ले कर आ गई. जय ने लिखा था कि लीना मौसी और तिलक मौसाजी ने एमबीए के लिए उस का एडमीशन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में करवा दिया है. अब तो मेरी मम्मी को इस रिश्ते से जो भी एतराज होगा, वह अमेरिका रिटर्न्ड दामाद के लिए उड़नछू हो जाएगा. वह 2 साल बाद लौट कर मेरे शहर में ही नौकरी कर के मुझ से शादी करेगा. बस, मैं 2 साल किसी तरह अपनी शादी टाल दूं.

‘‘यह कोई मुश्किल नहीं था. पापा को मेरी शादी की जल्दी नहीं थी. वह मुझे पहले अच्छी तरह पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना चाहते थे.

“दुखी तो मैं बहुत हुई, लेकिन जय के उज्ज्वल भविष्य की खातिर इतना बिछोह तो सहन करना ही था.

‘‘वैसे, मैं समझ गई थी कि मम्मी के कहने पर ही मामा ने जय का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाया है. उन के खयाल से जय मुझे अमेरिका जा कर भूल जाएगा और मैं भी बिना किसी संपर्क के कब तक उसे याद करूंगी, मगर उन्हें यह नहीं पता था कि हमारा प्यार शाश्वत था और हम एकदूसरे से बराबर संपर्क बनाए हुए थे.

‘‘मम्मी ने मेरे लिए लड़के देखने शुरू कर दिए थे. मैं लड़कों की तसवीर देख कर उन में कुछ ऐसा नुक्स निकालती कि पापा आगे बात चलाने से मना कर देते.

‘‘जय के लौटने का समय नजदीक आ रहा था. मैं ने साधना के भाई से बात की. उन्होंने आश्वासन दिया कि वह जय को अपने यहां उच्च पद पर रख लेंगे. बेहतर रहे कि अगर वह उन्हें तुरंत अपना बायोडाटा भेज दे. तभी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तिलक मामा आ गए. बातोंबातों में पता चला कि अगले सप्ताह वह अमेरिका जा रहे हैं.’’

‘‘मैं पूछे बिना न रह सकी कि क्या वह जयेश से मिलेंगे? इस पर वह बोले, ‘उसी की शादी तय करने तो जा रहा हूं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक भारतीय प्रोफैसर ने जयेश को दाखिला और अतिरिक्त सुविधाएं दी ही इसी शर्त पर थीं कि वह उन की बेटी से शादी कर के वहीं रहेगा. लडक़ी ग्रीनकार्ड होल्डर है. सो, जयेश को भी ग्रीनकार्ड मिल जाएगा और वह अपने भाईबहनों को भी वहीं बुला लेगा. इस तरह पूरे परिवार का कल्याण हो जाएगा.’

‘‘इस पर मैं बोली, ‘लेकिन, मेरा और जय का तो सर्वनाश हो जाएगा, मामा. आप को मालूम नहीं, हम एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं.’

‘‘‘मालूम है, तभी तो जयेश को तुम से दूर, अमेरिका भेजने को मैं ने प्रोफैसर सहाय के साथ यह सौदेबाजी की, वरना तो यह मेरे सिद्धांतों के सर्वथा खिलाफ है.’

‘‘‘पर, आप ने ऐसा क्यों किया, मामा? क्यों नहीं हो सकती मेरी और जयेश की शादी?’ मैं बोली.

‘‘‘महज इसलिए कि जयेश लीना का भांजा है, जिसे तुम्हारी मां पसंद नहीं करतीं. और तुम लीना की उस ननद की बेटी हो, जिसे स्वयं लीना और उस की बहन नापसंद करती है. मैं और तुम्हारे पापा जोरजबरदस्ती कर के अगर तुम दोनों की शादी करवा देंगे, तो तुम्हें ससुराल में तिरस्कार और जयेश को तुम्हारी मां की अवहेलना मिलेगी, जिसे उम्रभर झेलना आसान नहीं होगा. और फिर परिवार का बड़ा लड़का और एकलौती बेटी होने के कारण तुम दोनों का ही अपनेअपने परिवारों के प्रति कुछ दायित्व है. सो बेहतर यही है कि तुम एकदूसरे को भूल जाओ.’

‘‘‘जय शादी करना मान गया…?’ मैं ने पूछा.

‘‘‘अभी उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है. उसे ही समझाने मैं अमेरिका जा रहा हूं. और सच पूछो तो, यहां भी मैं तुम्हें ही समझाने आया हूं कि जिद कर के या रोधो कर बेकार में अपनी फजीहज मत करवाना,’ मामा ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मुझे यकीन था कि जय कभी नहीं मानेगा, लेकिन कुछ सप्ताह बाद ही उस की शादी का कार्ड मिला. मैं बुरी तरह टूट गई.

‘‘फिर अचानक जय का पत्र आया. उस ने लिखा था, ‘तिलक मौसाजी के समझाने से मैं ने भी तुम्हारी तरह परिस्थितियों के सामने सिर झुका दिया था, लेकिन समझौता नहीं कर सका यानी अनीता को अपना नहीं पा रहा था. सो, उस के करीब जाते ही आंखें बंद कर के तुम्हारा ही ध्यान कर लेता हूं, काम चल जाता है.

‘‘‘मैं हिंदी में कविता लिखने लगा हूं. अनीता हिंदी पढ़ नहीं सकती तो बेखटके अपने मनोभाव तुम्हें अर्पित करता रहता हूं. तुम्हारा नाम जपने का भी तरीका निकाल लिया है. मैं ने अनीता को बता दिया है कि इंस्पिरेशन को हिंदी में प्रेरणा कहते हैं, जिस की कविता लिखने में हमेशा जरूरत रहती है, सो मैं जबतब चिल्लाता रहता हूं कि मेरी प्रेरणा कहां हो तुम. प्रेरणा, प्रेरणा खयालों में आओ न.’

‘‘उस समय तो मैं बहुत व्यथित हुई थी, लेकिन जयेश ने मेरी जिंदगी में आ कर नए रंग भर दिए. कई बार यह सोच कर दिल में अजब सी कसक भी उठती है कि मैं ने तो नए जीवन को पूरी तरह अपना लिया, लेकिन शायद जय बेचारा अभी भी समझौता कर के जी रहा होगा.’’

‘‘जी रहा होगा. तुझे नहीं पता कि जयेश को मरे तो कई महीने हो गए,’’ अब तक चुपचाप सुनती विभा तपाक से बोल पड़ी. यह सुन कर तो प्रेरणा चौंक पड़ी, ‘‘अचानक कैसे…? क्या एक्सीडेंट हुआ था?”

‘‘नहीं, ब्लड कैसर था उसे. काफी लंबा इलाज चला था.’’

‘‘मौसी, मेरा तो मम्मी और तिलक मामा की मृत्यु के बाद लीना मामी से संपर्क नहीं रहा. आप प्लीज, मुझे उन से जय के परिवार का पता ले कर दीजिए,’’ प्रेरणा ने दुखी स्वर में विनती की.

‘‘अनजान लोगों से क्या अफसोस जताओगी?’’ विभा बोली. इस पर प्रेरणा कुछ हिचकिचाई, ‘‘हां, मौसी. बस, यह जानने के लिए कि उस के अंतिम शब्द क्या थे.’’

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