सौरभ रस्तोगी अपनी पत्नी शैली के साथ बरेली के फतेहगंज (पश्चिमी) थाना क्षेत्र के माली मोहल्ले में रहता था. उस का अपना मकान था, जिस के निचले तल पर उन की सोनेचांदी की ज्वैलरी की दुकान थी. ऊपरी तल पर उस का निवास था.

सौरभ का नौकर विनोद फतेहगंज से लगभग 2 किलोमीटर दूर खिरका गांव में रहता था. वह काम कर के रोजाना अपने घर चला जाता था. 3 मई की सुबह 9 बजे विनोद सौरभ रस्तोगी के घर पहुंचा और सड़क पर खड़े हो कर उस ने सौरभ को कई आवाज लगाई. लेकिन ऊपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. जबकि रोजाना उस की आवाज सुनते ही सौरभ बाहर झांकता और उसे देख कर दुकान खोलने के लिए चाबियां नीचे फेंक देता.

दुकान के बराबर से ही ऊपर जाने के लिए सीढि़यां थीं, जिस में आगे की ओर चैनल लगा था और उस के पीछे शटर. शटर और चैनल दोनों हमेशा अंदर से बंद रहते थे. शटर को थोड़ा खुला देख विनोद आश्चर्य में पड़ गया. क्योंकि सौरभ अगर सामने की दुकान पर चाय पीने भी जाता था तो शटर लौक कर के जाता था.

विनोद ने सौरभ के बारे में पड़ोस में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. उस ने संदेह वाली बात पड़ोसी को बताई तो उस ने ऊपर जा कर देखने को कहा. विनोद पूरा शटर खोल कर सीढि़यों के रास्ते प्रथम तल से होते हुए जब दूसरे तल पर पहुंचा तो सौरभ को हाथपैर बंधे हुए पड़े पाया. उसे उस हालत में देख कर ही लग रहा था कि वह जीवित नहीं है. विनोद घबरा कर उल्टे पैर वापस लौट आया.

नीचे आ कर उस ने पड़ोसी को पूरी बात बताई. उस की बात सुन कर जरा सी देर में पासपड़ोस के लोग एकत्र हो गए. पुलिस चौकी पास ही थी. विनोद ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी में दे दी. चौकी से अविलंब थाना फतेहगंज (पश्चिमी) को सूचना भेज दी गई.

15 मिनट में ही थाने के इंसपेक्टर देवेश सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस मकान के दूसरे तल पर पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा मिला. सौरभ की हत्या कर दी गई थी और उस की लाश बेड पर पड़ी थी. उस की कनपटी पर गोली लगने का निशान था, साथ ही गरदन पर भी घाव था. लग रहा था, जैसे गोली कनपटी पर लगने के बाद गरदन से होती हुई बाहर निकली हो. गरदन पर किसी तेज धारदार चीज से काटे जाने का भी निशान था और गला कसे जाने के निशान भी साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब हत्यारे सौरभ को किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

इंसपेक्टर देवेश सिंह ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में बरेली के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ और सीओ मीरगंज मनोज कुमार पांडेय भी फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट्स की टीम के साथ वहां पहुंच गए. एक्सपर्ट की टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई. टीम द्वारा अपना काम कर लिए जाने के बाद अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

करीब 20 गज के प्लौट में बने उस मकान के प्रथम तल पर किचन और बाथरूम के अलावा एक दीवान पड़ा था. यहीं पर सौरभ की दुकान का लौकर था, जिस में वह ग्राहकों द्वारा गिरवी रखे जाने वाले गहने और पैसा रखता था. दूसरे तल पर बना कमरा सौरभ का बेडरूम था. जबकि तीसरे व अंतिम तल पर टौयलेट था.

जिस बेडरूम में सौरभ की हत्या की गई थी, वह काफी कम जगह में बना था. एक बेड और एक टेबल के अलावा वहां एक अलमारी रखी थी. इतने सामान से ही पूरा कमरा भरा था. कमरे में रखी अलमारी खुली पड़ी थी और उस का सामान बाहर निकला पड़ा था. अलमारी का लौकर खुला था और बिलकुल खाली था. अलमारी और लौकर के लौक टूटे हुए थे. कमरे में टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. कांच का गिलास भी मेज के पास टूटा पड़ा था. गिलास के कांच का एक टुकड़ा खून से सना हुआ था. सौरभ का गला शायद उसी कांच से काटा गया था. सीढि़यों पर चाबी के कई गुच्छे पड़े मिले थे.

इसी बीच सूचना पा कर बरेली से सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी व अन्य घर वाले आ गए. उन से पूछताछ करने पर पता चला कि गत दिवस 2 मई को सौरभ अकेला था. उस की पत्नी शैली 2 मई की सुबह नोएडा चली गई थी. उस दिन शुक्रवार होने की वजह से बाजार की साप्ताहिक छुट्टी थी. सुबह पत्नी को टे्रन में बैठाने के बाद सौरभ अपनी नानी की अंत्येष्टि में बछला गया था. उस की नानी की मौत भी 2 मई की सुबह हुई थी. नानी की अंत्येष्टि में वह गया तो था, लेकिन घर वालों के रोकने के बावजूद जल्दी चला आया था.

घटनास्थल के मुआयने और पूछताछ के बाद यह नतीजा निकला कि इस घटना को पुख्ता योजना बना कर अंजाम दिया गया था. हत्यारों कोे यह बात अच्छी तरह पता थी कि सौरभ घर पर अकेला है, उस की पत्नी शैली बाहर गई हुई है. इसीलिए घटना को अंजाम देने के लिए 2 मई की रात चुनी गई.

हालात बता रहे थे कि घर के अंदर दाखिल होने वाले को सौरभ अच्छी तरह जानता था. क्योंकि कोई भी व्यक्ति बाहर से घर के अंदर तब तक प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक अंदर मौजूद शख्स ताला न खोले. बाहर से ताला खोलना किसी भी तरह संभव नहीं था. सीढि़यों के पास शटर लगा था, जिस में अंदर से ताला पड़ा हुआ था. फिर सीढि़यां चढ़ने के बाद एक दरवाजा था, वह भी अंदर से बंद रहता था.

अगर किसी ने दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया होता तो निशान जरूर मिलते. दरवाजों पर लगी कुंडियां सहीसलामत थीं. इस का मतलब था कि सौरभ ने ही अपने किसी परिचित को देख कर दरवाजे खोले होंगे और उसे ऊपर ले गया होगा. रात 9 बजे सौरभ ने विनोद को फोन कर के बुलाया था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से वह नहीं आ सका था. इस के बाद ही किसी समय सौरभ की हत्या की गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने गहन जांचपड़ताल करने के बाद करीब एक बजे सौरभ की लाश पोस्टमार्टम के लिए बरेली स्थित मोर्चरी भेज दी. मौके पर मिले सौरभ के मोबाइल को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने 2 बुलेट भी बरामद किए.

उधर सौरभ की पत्नी शैली को पति की मौत की खबर मिली तो वह देर शाम दिल्ली से वापस आ गई.

सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर देवेश सिंह ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध भादंवि की धारा 394 और 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने सौरभ के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात उस ने अंतिम काल अपनी पत्नी शैली को की थी. उस से पहले उस ने 9 बजे विनोद से बात की थी. इन दोनों काल से पहले सौरभ की बात एक अनजान नंबर पर भी हुई थी. उस नंबर पर उस दिन भी और उस के पहले दिन भी कईकई बार देर तक बातें की गई थीं.

इंसपेक्टर देवेश सिंह ने उस नंबर के बारे में विनोद से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह नंबर बरेली के थाना बहेड़ी के अंतर्गत आने वाले गांव जुआ जवाहरपुर की रहने वाली पूजा शर्मा का था. विनोद उस के बारे में इसलिए जानता था, क्योंकि सौरभ ने उसे भेज कर कई बार पूजा का मोबाइल रिचार्ज कराया था. इस से पुलिस को यह मामला अवैध संबंधों का लगा.

पुलिस ने पूजा के घर पर गिरफ्तारी के लिए दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिली. पता चला कि वह 19 अप्रैल को अपने प्रेमी राकेश गंगवार के साथ भाग गई थी. राकेश पड़ोस के गांव मोहम्मदपुर का रहने वाला था.

राकेश और पूजा का एक साथ भागना और पूजा का सौरभ से बराबर बात करना, इस बात की ओर इशारा करता था कि संभवत: उन दोनों ने ही मिल कर सौरभ की हत्या कर के लूट को अंजाम दिया था.

पुलिस ने उन्हें शीघ्र गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया. 7 मई की दोपहर को एक मुखबिर से इंसपेक्टर देवेश सिंह को सूचना मिली कि पूजा अपने प्रेमी राकेश के साथ इज्जत नगर रेलवे स्टेशन पर खड़ी है. यह खबर मिलते ही उन्होंने तुरंत वहां जा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने सारा सच उगल दिया.

पूजा थाना बहेड़ी क्षेत्र के गांव जुआ जवाहरपुर निवासी रामवीर की बेटी थी. रामवीर खेतीकिसानी का काम करता था. उस का अपनी पत्नी कमला से अकसर वादविवाद होता रहता था, जोकि कभीकभी भयंकर रूप अख्तियार कर लेता था.

वादविवाद का कारण था कमला का महत्त्वाकांक्षी होना. उसे अपनी चादर के हिसाब से पैर पसारना नहीं आता था. उस के हाथ में जितना पैसा आता था, वह घर की जिम्मेदारियों के बजाय फिजूल के कामों में खर्च कर देती थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद कमला को बनसंवर कर रहना पसंद था. इसी वजह से उस के खरचे ज्यादा बढ़े हुए थे. उस की फिजूलखर्ची को ले कर पतिपत्नी में प्राय: रोज झगड़ा होता था.

इस सब से तंग आ कर रामवीर ने कमला को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह अपने बच्चों के साथ अपने मायके बरेली के ही गांव मोहम्मदपुर आ गई. लेकिन जवान बेटी को घर में बैठे देख कुछ ही दिनों में मांबाप को चिंता होने लगी. उन्होंने किसी तरह दौड़भाग कर के उस की शादी जुआ जवाहरपुर के सेवानिवृत्त फौजी भूपराम शर्मा से कर दी. भूपराम सेवानिवृत्ति के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेतीबाड़ी करते थे. शादी के बाद कमला बच्चों के साथ अपनी इस ससुराल में रहने लगी.

समय के साथ कमला की बेटी पूजा जवान हो गई. वह बरेली के विशाल कन्या डिग्री कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. पूजा अपनी मां कमला से इसलिए नाराज रहती थी, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह कर लिया था. इसी बात को ले कर मांबेटी में अकसर झगड़ा हो जाता था. कमला अपनी झगड़ालू बेटी से कम ही बोलती थी. पूजा के उग्र स्वभाव से कमला काफी डरती थी.

पूजा भी अपनी मां पर गई थी. उस के भी काफी ऊंचे ख्वाब थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वह सहीगलत के चक्कर में भी नहीं पड़ना चाहती थी. ऐसी बातों में उस का दिमाग भी काफी तेज दौड़ता था.

पूजा अपनी ननिहाल मोहम्मदपुर जाती रहती थी. एक दिन वहीं पर उस की मुलाकात राकेश कुमार गंगवार से हुई. राकेश के पिता होरीलाल भी किसान थे. उस की 2 बड़ी बहनों का विवाह हो चुका था. राकेश उन दिनों बरेली कालेज में बीए द्वितीय वर्ष (प्राइवेट) की पढ़ाई कर रहा था. इस के अलावा वह पार्ट टाइम नौकरी भी करता था. राकेश का पूजा की ननिहाल में आनाजाना था. दोनों ने बीए के फार्म भी साथसाथ भरे थे.

पूजा के ननिहाल में रहते राकेश का आनाजाना बढ़ गया था. जब भी वह आता, उस की नजरें पूजा पर ही टिकी रहतीं. पूजा नासमझ तो थी नहीं कि उस की नजरों को नहीं पढ़ पाती. वह उस के दिल की बात बखूबी समझती थी. मोहब्बत का बीज जब दोनों ओर अंकुरित हो जाए तो एकदूसरे के करीब आने में वक्त नहीं लगता. धीरेधीरे पूजा राकेश से खुलती चली गई. वक्त के साथ दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के बाद दोनों छिपछिपा कर एकदूसरे से मिलने लगे. जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का सपना लिए दोनों ने जल्दी ही अपने बीच की सारी दूरियां भी मिटा दीं.

राकेश और पूजा जहां प्यार के रास्ते पर बेफिक्र हो कर तेजी से आगे बढ़ रहे थे, वहीं उन दोनों के प्यार की बात गांव वालों से छिपी न रह सकी. जल्दी ही इस बारे में दोनों के घर वालों को भी पता चल गया.

राकेश और पूजा के प्यार के किस्से सुनसुन कर दोनों के परिजन तंग आ गए थे. इसी के मद्देनजर राकेश के घर वालों ने उस का रिश्ता बरेली के नवाबगंज कस्बे के एक सभ्रांत परिवार में तय कर दिया. वहीं पूजा के पिता भूपराम ने भी बेटी की शादी मीरगंज थाना क्षेत्र के गांव धनेली में पक्की कर दी.

इस से पूजा को अपने अरमान और ख्वाब बिखरते नजर आए. वह राकेश पर गांव छोड़ कर भागने का दबाव बनाने लगी. लेकिन राकेश इस के लिए तैयार नहीं था. इस पर पूजा ने उसे बलात्कार के आरोप में जेल भिजवाने की धमकी दी, तो उसे पूजा की बात माननी पड़ी.

20 अप्रैल, 2014 को पूजा की शादी होनी थी. लेकिन उस से पहले ही 19 अप्रैल को वह राकेश के साथ गांव से भाग गई. राकेश पूजा को ले कर अपने मामा ओमप्रकाश के घर जा पहुंचा, जो बरेली के थाना देवरनिया क्षेत्र के गांव जमुनिया में रहते थे.

वहीं पर दोनों ने विवाह कर लिया. लेकिन विवाह के बाद की जिंदगी की अच्छी शुरुआत के लिए पैसों की जरूरत थी. पूजा ने इस के लिए पहले से ही एक योजना बना रखी थी. उस ने अपनी योजना राकेश को बताई तो उसे पूजा की योजना अच्छी लगी. उस ने पूजा से वादा किया कि वह इस योजना में उस का हर तरह से साथ निभाएगा.

सुनील रस्तोगी बरेली स्थित फतेहगंज (पश्चिमी) के माली मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के मकान के निचले तल पर उस की ज्वैलरी शौप थी. अच्छी जगह दुकान होने की वजह से ग्राहक भी खूब आते थे. ज्वैलरी बेचने के अलावा सुनील गिरवीगांठ का भी काम करता था. उस के यहां आने वाले ग्राहकों की कोई कमी नहीं थी.

सुनील के परिवार में उस की पत्नी सीमा, एक बेटा सौरभ और 2 बेटियां वर्षा और दीपिका थीं. उन्होंने बेटियों के विवाह कर दिए थे. चार साल पहले सौरभ का विवाह भी बरेली के कस्बा सिरौली के मोहल्ला सीपरी निवासी शैली से हो गया था. उन दिनों सौरभ पिता के साथ दुकान पर बैठता था.

2 साल पहले सौरभ की मां का देहांत हो गया तो कुछ ही महीने बाद सौरभ के पिता सुनील ने दूसरा विवाह करने की ठान ली. इस विवाह का सौरभ व शैली के अलावा अन्य घर वालों ने भी काफी विरोध किया, लेकिन सुनील नहीं माने.

उन्होंने अखबारों में विवाह हेतु विज्ञापन दे दिया. जल्द ही मीरजापुर जनपद से उन के लिए एक विधवा महिला का रिश्ता आ गया. उस का एक बच्चा भी था. तमाम विरोधों के बाद सुनील ने विवाह कर लिया और घर से अलग हो कर उस महिला के साथ बरेली शहर स्थित किला थाना क्षेत्र के कूंचा मोहल्ले में रहने लगे.

पिता के बरेली जाने के बाद दुकान की पूरी जिम्मेदारी सौरभ पर आ गई. कह सकते हैं कि वह दुकान उसी की हो गई. पूजा की दूर के रिश्ते की एक नानी थी, जो सौरभ की दुकान पर अकसर खरीदारी करने जाती रहती थी. वह चूंकि काफी पुरानी ग्राहक थी, इसलिए सौरभ उस का खास ख्याल रखता था. एक बार पूजा भी अपनी नानी के साथ सौरभ की दुकान पर गई. नानी ने उस का परिचय सौरभ से करा कर कहा कि कभी यह कुछ खरीदने आए तो उसे उचित दाम पर ही ज्वैलरी दे देना.

पहली ही मुलाकात में सौरभ पूजा के दिमाग में चढ़ गया. वह अकसर उस की दुकान पर जाने लगी. एक दिन वह शाम के वक्त सौरभ की दुकान पर पहुंची तो वह दुकान बंद कर रहा था. सौरभ उसे ऊपर अपने मकान में ले गया और अपनी पत्नी शैली से मिलवाया.

बेडरूम में बिठा कर उस ने शैली से अपनी ज्वैलरी पूजा को दिखाने को कहा, जो उस ने हाल में ही बनवाई थी. दरअसल सौरभ सोच रहा था कि शैली की ज्वैलरी देख कर शायद पूजा को डिजाइन पसंद आ जाएं और वह वैसे ही डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने का मन बना ले.

शैली एक अजनबी लड़की के सामने अपनी अलमारी खोल कर ज्वैलरी नहीं दिखाना चाहती थी, लेकिन सौरभ के कहने पर उसे बात माननी पड़ी. शैली की ज्वैलरी देख कर पूजा की आंखें चुंधिया गईं. ज्वैलरी के वजन और कीमत की सोच कर उस के मन में लालच आ गया.

उस दिन पूजा वहां से वापस तो लौट आई, लेकिन उस की आंखों के सामने वहीं ज्वैलरी नाचती रही. इस के बाद उस ने सौरभ से मुलाकातें बढ़ा दीं. मुलाकातें बढ़ी तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनों की बातें होने लगीं.

पूजा को अपनी तरफ खिंचता देख सौरभ खुश था. उस का भी मन बहक गया. धीरेधीरे स्थिति यह आ गई कि सौरभ अपने नौकर विनोद को भेज कर पूजा का मोबाइल भी रिचार्ज कराने लगा.

राकेश के साथ भागने और शादी करने के बाद जब अच्छी जिंदगी के लिए पैसे की जरूरत महसूस हुई तो पूजा ने राकेश के साथ मिल कर सौरभ को लूटने की योजना बना ली.

इस के लिए उस ने मर्दों की कमजोरी वाला रास्ता अख्तियार किया. वह सौरभ से खुल कर प्रेम भरी बातें करने लगी. एक साथ तन्हा समय बिताने की बात हुई तो सौरभ ने मौके की तलाश शुरू कर दी.

सौरभ की पत्नी शैली की बच्चेदानी पर कुछ चर्बी थी, जिस वजह से गर्भ नहीं ठहर पा रहा था. उस का इलाज नोएडा के नीलकंठ अस्पताल में चल रहा था. डाक्टर गर्भाशय की चर्बी औपरेशन के जरिए हटाने की बात कर रहे थे. शैली को उसी औपरेशन के लिए नोएडा जाना था.

सौरभ को पूजा से एकांत में मिलने के लिए यह सही मौका लगा. इस के लिए उसे ऐसा इंतजाम करना था कि उसे शैली के साथ न जाना पड़े. इस के लिए उस ने काम का बहाना बना कर शैली को अपने नौकर जंगबहादुर की पत्नी के साथ नोएडा जाने के लिए मना लिया.

25 अप्रैल को शैली के जाने की योजना बन गई. सौरभ ने पूजा को फोन कर के उस से घर पर मिलने की बात भी बता दी, लेकिन ऐन वक्त पर किसी वजह से उस दिन शैली का जाना स्थगित हो गया. इस वजह से उस दिन सौरभ और पूजा नहीं मिल पाए.

2 मई को सुबह सौरभ शैली को नौकर की पत्नी के साथ ले कर बरेली जंक्शन गया और साढ़े 6 बजे दिल्ली जाने वाली आला हजरत एक्सप्रेस से उसे दिल्ली भेज दिया, वहां से उसे नोएडा जाना था. पत्नी को भेजने के बाद सौरभ ने 8 बजे सुबह फोन कर के पूजा को मिलने के लिए बुला लिया.

उस दिन शुक्रवार था और शुक्रवार को मार्केट की साप्ताहिक छुट्टी रहती थी, इसलिए उस दिन दुकान खोलने की भी मजबूरी नहीं थी. प्रोग्राम के हिसाब से सब कुछ ठीक था, लेकिन तभी सौरभ को नानी की मौत का समाचार मिला. मजबूरी थी, इसलिए न चाहते हुए उसे बेमन से कछला जाना पड़ा, जहां उस की नानी की अंत्येष्टि होनी थी.

वहां पर भी पूजा ने उसे 3-4 बार फोन किया. पूजा से एकांत में मिलने की तमन्ना सौरभ के सिर चढ़ कर बोल रही थी. अंत्येष्टि के बाद जब वह जाने लगा तो घर वालों और रिश्तेदारों ने उसे रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुका.

शाम लगभग साढ़े 6 बजे तक वह अपने घर पहुंच गया. उस ने घर पहुंचने की खबर पूजा को दे दी. इस के बाद पूजा राकेश के साथ बाइक पर बैठ कर सौरभ के घर के लिए चल दी. बाइक राकेश के मामा ओमप्रकाश की थी.

रात 8 बजे वह सौरभ के मकान से कुछ दूरी पर उतर गई और सौरभ के घर की तरफ चल दी. राकेश वहीं मार्केट में घूमने लगा. इसी बीच उस ने शराब पी और वहीं पास के एक बैंक्वेट हौल में हो रहे वैवाहिक समारोह में जा कर खाना खाया.

नशे की हालत में उस ने बाइक एक स्थानीय पत्रकार अनवार खान की बाइक से भिड़ा दी. इस पर दोनों में काफी बहस हुई. राकेश अपनी बाइक वहीं खड़ी कर के वहां से चला गया. पत्रकार अनवार खान ने फतेहगंज (पश्चिमी) थाने को सूचना दी, जिस के बाद थाने से सिपाही वहां पहुंचे और राकेश की क्षतिग्रस्त बाइक को उठवा कर थाने ले गए.

दूसरी ओर पूजा सौरभ के घर पहुंची तो सौरभ ने खुद आ कर शटर खोला और उसे अपने साथ दूसरी मंजिल पर बने अपने बेडरूम में ले गया. कुछ देर दोनों के बीच बातें होती रहीं.

फिर सौरभ 2 गिलास और फ्रिज से फू्रटी की बोतल निकाल कर ले लाया. उस ने फू्रटी मेज पर रख दी. पूजा फू्रटी की बोतल उठा कर दोनों गिलासों में पलटने लगी. इसी बीच सौरभ टौप फ्लोर पर टौयलेट चला गया. पूजा ने मौके का फायदा उठा कर अपने पर्स में रखे ‘एटीवान’ की 2 टैबलेट का पिसा पाउडर निकाला और सौरभ के गिलास में डाल कर मिला दिया.

जब सौरभ टौयलेट से वापस आया तो पूजा ने एक गिलास उसे दे कर दूसरा गिलास अपने होंठों से लगा लिया और सिप करने लगी. सौरभ फ्रूटी पीते हुए टीवी खोल कर उस पर प्रोग्राम सेट करने लगा. करीब 20 मिनट बाद सौरभ बेहोश हो कर बेड पर लुढ़क गया. सौरभ के बेहोश होते ही पूजा ने राकेश को फोन कर के आने को कह दिया.

लगभग 11 बजे राकेश आया तो पूजा उसे शटर उठा कर अंदर ले आई. आने के बाद राकेश सौरभ को होश में लाने की कोशिश करने लगा. वह होश में आया तो राकेश ने 315 बोर का तमंचा तान कर सौरभ को पेट के बल लेटने की हिदायत दी. डर कर सौरभ पेट के बल लेट गया.

पूजा ने सौरभ के हाथ पीठ की तरफ ला कर अपने दुपट्टे से बांध दिए. साथ ही उस ने सौरभ के पैर भी उस की शर्ट से बांध दिए. इस के बाद राकेश ने अलमारी की चाबी मांगी तो सौरभ ने देने से इनकार कर दिया. इस पर राकेश ने उसे डराने के लिए तमंचे से एक हवाई फायर किया. उस ने एक बार फिर चाबी मांगी, लेकिन सौरभ ने चाबी देने से फिर मना कर दिया.

इस पर राकेश को गुस्सा आ गया और उस ने सौरभ की कनपटी पर तमंचे की नाल रख कर गोली मार दी जो कि गर्दन के पार होते हुए बाहर निकल गई. सौरभ ने उठने की कोशिश की, लेकिन हाथपैर बंधे होने के कारण वह गिर पड़ा. जिस से मेज पर रखा फू्रटी का गिलास टूट गया. उसी गिलास के टूटे कांच से राकेश ने सौरभ की गर्दन काटी. उस के बाद उस ने बेल्ट से उस का गला कस दिया, जिस से सौरभ की मौत हो गई.

सौरभ को मौत के घाट उतार कर राकेश और पूजा ने अलमारी का लौक तोड़ा और उस के अंदर बनी छोटी तिजोरी का लौक भी तोड़ कर उस में रखी 650 ग्राम ज्वैलरी और लगभग 4 हजार रुपए निकाल लिए.

यह सब करतेकरते रात का एक बज गया था. काम हो गया तो दोनों वहां से निकल आए. राकेश ने बाहर आ कर अपनी बाइक ढूंढ़ी, लेकिन बाइक नहीं मिली. बाइक सिपाही थाने ले गए थे. राकेश ने बैंक्वेट हौल के बाहर खड़ी एक बाइक में अपनी चाबी लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. उसी बाइक पर बैठ कर दोनों वहां से निकल गए.

राकेश के बहनबहनोई बरेली के भोजीपुरा थाने के चौपारा गांव में रहते थे. राकेश पूजा को साथ ले कर रात 3 बजे अपनी बहन के घर पहुंच गया. 2 दिन दोनों वहीं रुके. इसी बीच राकेश ने अपने घर जा कर लूटी गई ज्वैलरी और रुपए भैसों के बाड़े में चारा रखने वाली नांद के नीचे जमीन में छिपा दिए. लूट का माल ठिकाने लगा कर वह अपनी बहन के घर आ गया. फिर 5 मई को दोनों नैनीताल चले गए.

7 मई को दोनों वापस बरेली आए. इज्जतनगर रेलवे स्टेशन से वे बाहर आ कर खड़े ही हुए थे कि फतेहगंज (पश्चिमी) थाने के इंस्पेक्टर देवेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर चुराई गई साढ़े 6 सौ ग्राम ज्वैलरी और 4 हजार रुपए भी बरामद कर लिए. हत्या में प्रयुक्त बाइक पुलिस पहले ही बरामद कर चुकी थी. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

पूजा और राकेश गंगवार एकदूसरे को प्यार करते थे, यह गलत नहीं था. दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली, इसे भी गलत नहीं कहा जा सकता. लेकिन अपने प्यार को मंजिल देने के लिए जब वे गुनाह के रास्ते पर उतर गए तो अंजाम बुरा ही होना था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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