सूरज के निकलते ही आसमान में छाई कोहरे की धुंध साफ होने लगी थी. चिडिय़ों की मधुर कलरव ने सुबह होने का आभास कराया तो बागेश्वरी देवी भी उठ गईं. उन की बड़ी बहू पहले ही उठ कर फ्रेश हो गई थी. लेकिन पहली मंजिल पर रहने वाला उन का छोटा बेटा, बहू और पोता अभी तक नहीं उठा था. चायनाश्ते का समय हो गया था, इस के बावजूद वे लोग पहली मंजिल से नीचे नहीं आए थे.

एक बार तो बागेश्वरी देवी को लगा कि शायद ठंड होने की वजह से वे उठ न पाए होंगे. लेकिन इतनी देर तक न कभी बेटा ओमप्रकाश सोता था और न पोता शिवा. इसलिए वह परेशान होने लगीं. वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की कोतवाली शाहपुर के मोहल्ला अशोकनगर में रहती थीं.

मकान की ऊपरी मंजिल पर काम चल रहा था. साढ़े 8 बजतेबजते मजदूर काम पर आ गए थे, लेकिन तब तक ऊपर सो रहे लोगों में से कोई नहीं उठा था. मजदूर जैसे ही सीढिय़ां चढ़ते हुए प्रथम तल पर पहुंचे, उन्हें कमरे के अंदर से दरवाजे के जोरजोर से थपथपाने और औरत के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी. एक मजदूर ने जल्दी से दरवाजे की बाहर से लगी सिटकनी खोल दी.

अंदर से घर की छोटी बहू अर्चना तेजी से बाहर निकली और सीधे सामने वाले कमरे की तरफ भागी. उसे इस तरह भाग कर कमरे में जाते देख मजदूर हैरान रह गए.

अर्चना ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा खुल गया. अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर उस के पांव चौखट पर ही जम गए और वह जोर से चीखी. उस कमरे में बैड पर ओमप्रकाश की लाश चित पड़ी थी. फर्श पर खून ही खून फैला था. उन्हीं के बगल 4 साल के मासूम बेटे शिवा की भी लाश पड़ी थी. दोनों लाशें देख कर ही अर्चना जोर से चीखी थी.

बापबेटे की लाशें देख कर मजदूरों के भी हाथपांव फूल गए. अर्चना रोतीचीखती नीचे सास बागेश्वरी देवी के पास पहुंची. बहू के मुंह से बेटे और पोते की हत्या की बात सुन उन का पूरा बदन कांपने लगा. घर में रोनापीटना मच गया. दोनों की आवाजें सुन कर पड़ोसी भी आ गए. जैसेजैसे यह खबर मोहल्ले में फैलती गई, लोग बागेश्वरी देवी के घर इकट्ïठा होने लगे.

बागेश्वरी देवी की बड़ी बहू ने फोन द्वारा इस घटना की सूचना अपने पति राजकुमार को दे दी. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में इंसपेक्टर थे. छोटे भाई और भतीजे की हत्या की बात सुन कर वह भी सन्न रह गए. उन्होंने कोतवाली शाहपुर के प्रभारी आनंदप्रकाश शुक्ला को फोन द्वारा घटना की जानकारी दे दी.

इंसपेक्टर आनंदप्रकाश शुक्ला तुरंत एसआई रामकृपाल यादव, एएसआई विमलेंद्र कुमार, कांस्टेबल संतोष कुमार, रामविनय सिंह, शिवानंद उपाध्याय और जनार्दन पांडेय को साथ ले कर अशोकनगर स्थित राजकुमार यादव के घर पहुंच गए. मृतक ओमप्रकाश यादव के ससुर दीपचंद यादव राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पीएसओ थे. उन्हें जब घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने गोरखपुर रेंज के आईजी पी.सी. मीणा को फोन किया.

इस के बाद तो आईजी पी.सी. मीणा, डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी, एसएसपी लव कुमार, एसपी हेमंत कुटीयार, सीओ कमल किशोर, क्राइम ब्रांच, एसटीएफ की टीम, डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम वहां पहुंच गईं. थोड़ी ही देर में अशोकनगर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया.

पुलिस ने बड़ी बारीकी से घटनास्थल की जांच की. जिस कमरे में दोनों लाशें पड़ी थीं, वहीं बैड के पास खून से सना एक हथौड़ा और एक कूदने वाली रस्सी पड़ी थी. लाशें देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे ने हथौड़े से ओमप्रकाश की हत्या की थी, जबकि उन के बेटे का रस्सी से गला घोंटा था. पुलिस ने दोनों सामानों को कब्जे में ले लिया.

सभी को यह बात परेशान कर रही थी कि आखिर बच्चे की हत्या क्यों की गई? पुलिस की नजर जब कमरे के दरवाजे की सिटकनी पर पड़ी तो दरवाजे पर सिटकनी तोडऩे जैसा कोई निशान नहीं था. देख कर लग रहा था कि किसी ने सिटकनी के पेंच खोल कर उसे फर्श पर रख दिया था.

जबकि पूछताछ में अर्चना ने बताया था कि उस के पति अंदर से सिटकनी बंद कर के सोए थे. उस ने यह भी कहा था कि लूटपाट का विरोध करने पर लुटेरों ने हथौड़े से उस के पति की हत्या की होगी. उसी समय बच्चा जा गया होगा, तब पहचाने जाने के डर से उन्होंने बच्चे को भी मार दिया होगा. लूटपाट के दौरान खटपट की आवाज सुन कर वह आ न जाए, इसलिए बदमाशों ने उस के कमरे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी थी.

अर्चना का बयान पुलिस को कुछ अजीब लग रहा था. बागेश्वरी देवी के बड़े बेटे इंसपेक्टर राजकुमार आ गए तो वह उस कमरे में गए, जहां दोनों लाशें पड़ी थीं. उन्होंने भी कमरे का निरीक्षण किया. उन्हें भी साफ लग रहा था कि यह लूट का मामला नहीं है. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक की मां बागेश्वरी देवी की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दोनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया. तकरीबन 7 साल पहले की बात है.

यह मामला एक तो विभागीय था, दूसरे बात मुख्यमंत्री तक पहुंच चुकी थी, इसलिए उसी दिन शाम को आईजी पी.सी. मीणा, एसएसपी लव कुमार ने एसपी (सिटी) हेमंत कुटीयार, एसपी (क्राइम ब्रांच) मानिकचंद और सीओ (कैंट) कमल किशोर को बुला कर विचारविमर्श करने के साथ इस केस का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए.

एसएसपी लव कुमार के निर्देश पर थानाप्रभारी आनंदप्रकाश शुक्ला ने सब से पहले मृतक ओमप्रकाश और उन की पत्नी अर्चना के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. ओमप्रकाश की काल डिटेल्स से तो कुछ खास नहीं मिला, लेकिन अर्चना की काल डिटेल्स चौंकाने वाली थी. रात साढ़े 12 से डेढ़ बजे के बीच उस ने एक नंबर पर कई फोन किए थे.

जांच में पता चला कि वह नंबर फिरोजाबाद जिले के स्वामीनगर के रहने वाले अजय कुमार यादव का था और उस के फोन की लोकेशन दोपहर के बाद से ले कर उस समय तक गोरखपुर की थी. यही नहीं, इस के पहले भी उस नंबर पर अर्चना की दिन में कईकई बार लंबीलंबी बातें होती रही थीं.

सारा माजरा पुलिस की समझ में आ गया. अर्चना शक के दायरे में आ गई, लेकिन पुलिस ने इस बात का अहसास किसी को नहीं होने दिया. अजय कुमार गोरखपुर में ही था, लेकिन पुलिस के पास उस का कोई फोटो नहीं था, जिस से उसे पहचाना जा सके.

अजय कुमार के फोटो के लिए पुलिस ने सोशल साइट फेसबुक खंगाली तो उस में उस का फोटो मिल गया. लेकिन फेसबुक पर पड़े उस के फोटो देख कर एक बारगी पुलिस को झटका सा लगा, क्योंकि एक फोटो में वह समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ बैठक में था तो दूसरे फोटो में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से हाथ मिला रहा था.

उन्होंने यह बात एसएसपी लव कुमार को बताई तो उन्होंने कहा कि स्थितियों से साफ लगता है कि इन हत्याओं में उसी का हाथ है, इसलिए उसे तुरंत गिरफ्तार करो. देर होने पर वह हाथ से निकल सकता है.

मोबाइल की लोकेशन से पुलिस को पता चल गया था कि अजय कुमार बसअड्ïडे पर है. पुलिस को फोटो मिल ही गया था, इसलिए 22 जनवरी की सुबह पुलिस ने बसअड्डे को घेर लिया. बसअड्ïडे पर भारी मात्रा में पुलिस बल देख कर अजय ने भागने की कोशिश तो की, लेकिन वह भाग नहीं सका. पुलिस उसे पकड़ कर सीधे शाहपुर कोतवाली ले आई.

अजय कुमार के पकड़े जाने की सूचना मिलते ही एसएसपी लव कुमार और एसपी (सिटी) हेमंत कुटीयार थाने आ गए. अजय ने खुद को समाजवादी पार्टी का नेता बताते हुए बिना वजह थाने लाए जाने पर रौब तो खूब झाड़ा, लेकिन जब उस के सामने काल डिटेल्स रखी गई तो उस की सारी हेकड़ी निकल गई.

रुआंसी आवाज में हाथ जोड़ कर उस ने पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. अर्चना की बातों में आ कर मुझ से यह अपराध हो गया. उसी ने मुझ पर पति और बच्चे को रास्ते से हटाने का दबाव डाला था.’’

इस के बाद अजय ने ओमप्रकाश और उन के 4 साल के मासूम बेटे की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अजय ने स्वीकार कर लिया कि इन हत्याओं में अर्चना का भी हाथ था. इसलिए पुलिस अर्चना को गिरफ्तार करने के लिए अजय को साथ ले कर अशोकनगर कालोनी पहुंच गई.

उस समय इंसपेक्टर राजकुमार के घर परिवार वाले तो थे ही, अर्चना के पिता दीपचंद भी मौजूद थे. पुलिस अधिकारी पूछताछ के बहाने उसे लौन में वहां ले आए, जहां अजय कुमार खड़ा था. उसे पुलिस हिरासत में देख कर अर्चना का चेहरा सफेद पड़ गया.

अजय को देख कर अर्चना समझ गई कि उस का खेल खत्म हो गया है. अब उस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है. इस से पहले कि उस से पुलिस कुछ पूछती, उस ने खुद ही कह दिया,  ‘‘हां, मैं ने ही अजय के साथ मिल कर पति और बेटे की हत्या की है. मुझे इस का कोई मलाल भी नहीं है.’’

अर्चना के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर वहां खड़े लोग दंग रह गए. बेटी की करतूत पर दीपचंद तो गश खा कर गिर पड़े और बेहोश हो गए.

पुलिस ने अर्चना को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद एसएसपी लव कुमार ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता आयोजित कर अर्चना और अजय कुमार को पत्रकारों के सामने पेश किया तो दोनों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए ओमप्रकाश और उन के 4 साल के बेटे की हत्या के पीछे की पूरी कहानी सुना दी. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना जमनिया के खलीलचक ढडनी के रहने वाले भोलानाथ यादव का 5 लोगों का छोटा सा परिवार था. उन 5 लोगों में 2 तो वह पतिपत्नी थे, बाकी 2 बेटे राजकुमार व ओमप्रकाश और एक बेटी प्रमिला. भोलानाथ साधनसंपन्न किसान थे, इसलिए अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाई. पढ़लिख कर बड़ा बेटा राजकुमार यादव उत्तर प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर हो गया तो दूसरा बेटा ओमप्रकाश यादव नेत्र परीक्षक.

पिता की मौत के बाद राजकुमार ने पूरे परिवार को अपने साथ रख लिया था. उन की पोङ्क्षस्टग गोरखपुर हुई तो वहां किराए पर रहते हुए उन्होंने कोतवाली शाहपुर के अंतर्गत बशारतपुर की पौश कालोनी अशोकनगर में जमीन खरीद कर अपना मकान बनवा लिया. राजकुमार की शादी हो चुकी थी, ओमप्रकाश ने नेत्र परीक्षक का डिप्लोमा कर लिया तो उन की भी शादी सिंगापुर में हो गई.

शादी के बाद ओमप्रकाश पत्नी को सिंगापुर से गोरखपुर ले आए. पत्नी को गोरखपुर में अच्छा नहीं लगा तो 6 महीने बाद ही वह सिंगापुर लौट गई. उस ने ओमप्रकाश को भी वहां आने को कहा, लेकिन ओमप्रकाश घरपरिवार छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे, इसलिए मना कर दिया.

दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. इसी जिद ने उन के बीच तलाक करा दिया. इस के बाद सन 2009 में 34 साल के ओमप्रकाश की दूसरी शादी लखनऊ के रहने वाले पीएसी के कंपनी कमांडर दीपचंद यादव की बड़ी बेटी अर्चना से हो गई. उस समय अर्चना यही कोई 19 साल की थी.

उन की 2 बेटियों में अर्चना बड़ी थी. वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत तो थी ही, स्वच्छंद स्वभाव की भी थी. अकेली घूमना, दोस्ती करना और महंगे मोबाइल फोन रखना उसे अच्छा लगता था. यह प्रवृत्ति उस की शादी के बाद भी बनी रही. खूबसूरत अर्चना को पा कर ओमप्रकाश खुश थे. करीब साल भर बाद उन के घर बेटा पैदा हुआ तो पतिपत्नी ने प्यार से उस का नाम नितिन रखा. घर में सभी उसे प्यार से शिवा कहते थे.  इस तरह ओमप्रकाश का घर खुशियों से भर गया.

ओमप्रकाश जिस मकान में परिवार के साथ रहते थे, वह उन के बड़े भाई राजकुमार यादव का था. वह भी भाई की तरह अपनी मेहनत की कमाई से एक घर बनाना चाहते थे, जिसे वह अपना कह सकें. अपने सपनों का महल खड़ा करने के लिए उन्होंने जीतोड़ मेहनत की. आखिर उन की मेहनत सफल हुई और उन्होंने थाना गुलरिहा के मोगलहा में जमीन खरीद कर सुंदर सा अपना घर बनवा लिया.

उन के बेटे नितिन उर्फ शिवा का जन्मदिन था, उसी दिन वह अपने नए मकान में जाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन उन का यह सपना सपना ही रह गया. क्योंकि अर्चना और ओमप्रकाश के जो 5 साल हंसीखुशी से बीते थे, पिछले साल से उन की खुशियों में अचानक ग्रहण लग गया था.

ओमप्रकाश की बशारतपुर के एक कौंप्लेक्स में औप्टिकल्स की दुकान थी. उन के दुकान पर चले जाने के बाद अर्चना घर में खाली रहती थी. बूढ़ी सास बागेश्वरी देवी और जेठानी नीचे के कमरे में रहती थीं, जबकि वह पहली मंजिल पर. खाली समय में वह टीवी देख कर समय बिताती थी या फिर मोबाइल पर सोशल साइट फेसबुक पर दोस्तों के साथ चैटिंग करती थी.

किसी दिन फेसबुक के ‘ऐडेड फ्रैंड’लिस्ट में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से हाथ मिलाते हुए था सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ बैठे अजय कुमार यादव पर उस की नजर पड़ी तो वह उस से काफी प्रभावित हुई.

उस ने अजय की प्रोफाइल खोल कर देखी तो उस में उस का पता गांव स्वामीनगर, थाना शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद दिया था. उस का मोबाइल नंबर भी उस में था. अर्चना ने अपने फेसबुक के मुख्य पेज पर अपनी शादी से पहले की आकर्षक फोटो लगा रखी थी.

अजय की राजनीतिक पहुंच देख कर उस ने उसे ‘फ्रेंड रिक्वैस्ट’ भेज दी तो अजय की ओर से रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली गई. उस के बाद उन के बीच चैटिंग शुरू हो गई. जल्दी ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

अजय कुमार यादव फिरोजाबाद के थाना शिकोहाबाद के गांव स्वामीनगर का रहने वाला था. दो भाइयों में वही बड़ा था. उस के घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. गांव में उस के पिता श्यामबहादुर यादव की किराने की दुकान थी. पिता के न रहने पर अजय भी दुकान पर बैठता था.

उस की शादी भी हो चुकी थी. पत्नी काफी खर्चीली थी, जबकि उस के खर्च पूरे करने का अजय के पास कोई साधन नहीं था, इसलिए जल्दी ही दोनों में तलाक हो गया था. पत्नी के चले जाने के बाद अजय अकेला हो गया था. उस के बाद वह समाजवादी पार्टी से जुड़ गया और मेहनत की बदौलत जल्दी ही युवजन सभा में जिला स्तर का पद पा लिया.

फिर तो उस का बड़े नेताओं के बीच उठनाबैठना होने लगा. ऐसे में ही उस का फोटो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी खिंच गया, जिसे उस ने फेसबुक पर अपलोड कर दिया. इस फोटो को काफी लोगों ने लाइक किया.

इसी दौरान अजय ने दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी से 2 बच्चे पैदा हुए. लेकिन दूसरी पत्नी से भी उस की अनबन रहने लगी और वह भी नाराज हो कर बच्चों के साथ मायके चली गई. यह 2 साल पहले की बात है. इधर पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से अजय को पार्टी से निकाल दिया गया. लेकिन उस के उस फोटो को देख कर अर्चना तो उस से प्रभावित हो ही चुकी थी.

अजय और अर्चना की दोस्ती होने के बाद जबतब उन की फोन पर भी बातचीत होने लगी थी. जल्दी ही उन की दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे. इसी का नतीजा था कि अर्चना ने अजय को अपने मायके लखनऊ में मिलने के लिए बुला लिया.

उस ने उसे मायके में इसलिए बुलाया था, ताकि मिलने में कोई बाधा उत्पन्न न हो. वहां मां के अलावा घर में कोई और नहीं रहता था. पापा दिन में ड्यूटी पर चले जाते थे, छोटी बहन वंदना की शादी ही हो चुकी थी. वह अपनी ससुराल में रहती थी.

पति से बहाना कर के अर्चना बेटे को ले कर मायके आ गई. अजय उस के दिए पते पर लखनऊ पहुंच गया. अर्चना ने मां से अजय का परिचय पुराने दोस्त के रूप में कराया. इस के बाद दोनों एकांत में मिले तो खुद को रोक नहीं पाए और वासना के प्रवाह में ऐसे बहे कि मर्यादा भंग कर बैठे.

अजय अर्चना से मिल कर फिरोजाबाद लौट गया तो अगले दिन अर्चना भी लखनऊ से गोरखपुर आ गई. इस के बाद उस ने ओमप्रकाश को महत्त्व देना बंद कर दिया. वह हर घड़ी मोबाइल से ही चिपकी रहती. उस की यह आदत न पति को अच्छी लग रही थी और न ही सास को. जब भी कोई उस से कुछ पूछता, वह कोई बहाना बना देती. धीरेधीरे ओमप्रकाश को उस पर शक होने लगा.

इस बीच अजय अर्चना से मिलने उस के ससुराल भी आने लगा था. सास बागेश्वरी देवी ने इस नए चेहरे को देखा तो पूछ बैठीं कि यह कौन है? तब उस ने खुद को अर्चना का दूर का रिश्तेदार बता दिया था, वह अर्चना के सभी रिश्तेदारों को जानती थीं. इतने दिनों बाद यह नया रिश्तेदार कौन आ गया, यह बात बागेश्वरी देवी के गले नहीं उतरी तो उन्होंने ओमप्रकाश से बात की.

ओमप्रकाश ने जब अर्चना से अजय के बारे में पूछा तो अपनी गलती मानने के बजाय वह पति से लडऩे पर आमादा हो गई. बस उसी दिन के बाद उन के रिश्ते में जो दरार पड़ी, वह धीरेधीरे बढ़ती ही गई.

पतिपत्नी के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं कि लगभग रोज ही घर में महाभारत होने लगा. यही नहीं, दोनों अलगअलग कमरों में सोने लगे. ओमप्रकाश नितिन को ले कर सोता था, जबकि अर्चना दूसरे कमरे में अकेली सोती थी.

एक तरह से अब अर्चना के लिए पति उस के प्रेम में रोड़ा बन रहा था. रोजरोज के झगड़े से वह ऊब चुकी थी. इसी का नतीजा था कि उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए अजय से बात की. अजय उस के लिए कुछ भी करने को तैयार था, इसलिए वह उस का साथ देने के लिए राजी हो गया.

पड़ोस में रवि राय के यहां सालगिरह का कार्यक्रम था, जिस में ओमप्रकाश भी सपरिवार जाना था. यही दिन अर्चना को पति को रास्ते से हटाने के लिए उचित लगा. उस ने अजय को फोन कर के 20 जनवरी को गोरखपुर बुला लिया. 3 बजे दोपहर अजय गोरखपुर पहुंच गया. उस समय मकान में काम चल रहा था, इसलिए बागेश्वरी देवी ऊपर थीं. अर्चना ने पीछे की सीढिय़ों से अजय को अपने कमरे में ला कर छिपा दिया.

देर शाम ओमप्रकाश लौटे तो पत्नी से पार्टी में चलने को कहा. उस समय सिर दर्द का बहाना बना कर अर्चना ने पार्टी में जाने से मना कर दिया. ओमप्रकाश ने भी जाने की जिद नहीं की. बेटे को तैयार किया और खुद भी तैयार हो कर चले गए. पति के जाने के बाद अर्चना ने अजय को बाहर निकाला और उसे खिलायापिलाया. ओमप्रकाश के लौटने का समय हुआ तो उसे फिर छिपा दिया.

रात करीब 11 बजे ओमप्रकाश बेटे के साथ पार्टी से लौटे और बेटे के साथ अपने कमरे में सो गए. सोते समय उन्होंने दरवाजे की सिटकनी अंदर से बंद नहीं की. मजदूरों के  जाने के बाद उन के औजारों से हथौड़ा निकाल कर अर्चना ने अपने कमरे में पहले ही रख लिया था. बच्चों की कूदने वाली रस्सी भी उस ने रख ली थी. अपनी इस योजना को वह किसी भी तरह से विफल नहीं होने देना चाहती थी.

सब के सो जाने के बाद अर्चना रात एक बजे के करीब दबे पांव अपने कमरे से निकली और पति के कमरे में गई. देखा कि बापबेटे गहरी नींद में सो रहे हैं तो वापस आई और अजय को हथौड़ा और रस्सी थमा कर एक बार फिर पति के कमरे में आ गई.

अर्चना ने उसे पति पर वार करने के लिए इशारा किया तो अजय ने हथौड़े से ओमप्रकाश के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. भरपूर वार से ओमप्रकाश भले ही चीख नहीं पाया, लेकिन शरीर ने तो हरकत की ही, जिस से नितिन जाग गया. पापा को मारते देख वह चिल्लाने लगा. अर्चना डर गई. दूसरी ओर संगमरमर के फर्श पर खून देख कर अजय भी कांप उठा.

अर्चना ने अजय से बच्चे को खत्म करने को कहा तो अजय की हिम्मत जवाब दे गई. उस ने मना किया तो भेद खुलने के डर से अर्चना कांप उठी. तब उस ने खुद ही बेटे का गला पकड़ लिया. उस समय मां की वह ममता भी नहीं जागी, जिस के बारे में कहा जाता है कि मां की ममता से बढ़ कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है. मां मर सकती है, लेकिन अपने बच्चों को खरोंच तक नहीं आने दे सकती. लेकिन वासना में अंधी अर्चना ने बेटे को गला दबा कर मार दिया.

पुलिस और घर वालों को गुमराह करने के लिए अर्चना ने घर का सामान बिखेर दिया साथ ही सिटकनी खोल कर फर्श पर रख दी, ताकि सभी को यही लगे कि लूट की नीयत से सिटकनी तोड़ कर अंदर आए लुटेरों ने ओमप्रकाश और नितिन की हत्या कर दी है. इस के बाद दोनों ने बाथरूम में जा कर खून से सने हाथपैर धोए और कमरे में जा कर सो गए.

सुबह 4 बजे दोनों उठे तो अर्चना ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका. कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने पीछे की सीढ़ी से अजय को बाहर निकाल दिया. अजय वहां से निकल कर गोरखपुरमहारागंज राष्ट्रीय राजमार्ग पर आया और टैंपो से बसअड्ïडे पर जा कर छिप गया. वह वहां इसलिए रुका था, क्योंकि अगले दिन अर्चना भी उस के साथ जाने वाली थी. वह अर्चना को ले जा पाता, उस के पहले ही पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन के आधार पर उसे पकड़ लिया.

अर्चना ने प्रेमी अजय के साथ मिल कर जो किया, उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी. अब उन की बाकी की ङ्क्षजदगी जेल की सलाखों के पीछे बीतेगी. लेकिन अर्चना को अभी भी अपने किए का दुख नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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