सूरज के निकलते ही आसमान में छाई कोहरे की धुंध साफ होने लगी थी. चिडिय़ों की मधुर कलरव ने सुबह होने का आभास कराया तो बागेश्वरी देवी भी उठ गईं. उन की बड़ी बहू पहले ही उठ कर फ्रेश हो गई थी. लेकिन पहली मंजिल पर रहने वाला उन का छोटा बेटा, बहू और पोता अभी तक नहीं उठा था. चायनाश्ते का समय हो गया था, इस के बावजूद वे लोग पहली मंजिल से नीचे नहीं आए थे.

एक बार तो बागेश्वरी देवी को लगा कि शायद ठंड होने की वजह से वे उठ न पाए होंगे. लेकिन इतनी देर तक न कभी बेटा ओमप्रकाश सोता था और न पोता शिवा. इसलिए वह परेशान होने लगीं. वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की कोतवाली शाहपुर के मोहल्ला अशोकनगर में रहती थीं.

मकान की ऊपरी मंजिल पर काम चल रहा था. साढ़े 8 बजतेबजते मजदूर काम पर आ गए थे, लेकिन तब तक ऊपर सो रहे लोगों में से कोई नहीं उठा था. मजदूर जैसे ही सीढिय़ां चढ़ते हुए प्रथम तल पर पहुंचे, उन्हें कमरे के अंदर से दरवाजे के जोरजोर से थपथपाने और औरत के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी. एक मजदूर ने जल्दी से दरवाजे की बाहर से लगी सिटकनी खोल दी.

अंदर से घर की छोटी बहू अर्चना तेजी से बाहर निकली और सीधे सामने वाले कमरे की तरफ भागी. उसे इस तरह भाग कर कमरे में जाते देख मजदूर हैरान रह गए.

अर्चना ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा खुल गया. अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर उस के पांव चौखट पर ही जम गए और वह जोर से चीखी. उस कमरे में बैड पर ओमप्रकाश की लाश चित पड़ी थी. फर्श पर खून ही खून फैला था. उन्हीं के बगल 4 साल के मासूम बेटे शिवा की भी लाश पड़ी थी. दोनों लाशें देख कर ही अर्चना जोर से चीखी थी.

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