उम्र बढ़ने पर इंसान का शरीर तो कमजोर हो ही जाता है, कई तरह की बीमारियां भी घेर लेती हैं. 88 साल के हो चुके हरिकिशन वर्मा के साथ भी कुछ ऐसा ही था. हालांकि देखने में वह ठीकठाक लगते थे, लेकिन अंदर से वह कई तरह की बीमारियों से घिरे थे. वह शास्त्रीनगर के नीमड़ी गांव स्थित अपने घर में अपनी 50 साल की बेटी राजबाला के साथ रहते थे.

उसी मकान में उन के बेटे अजीत और विजय अपनी ज्वैलरी शौप चलाते थे, लेकिन इन दोनों बेटों से उन का कुछ लेनादेना नहीं था. इस की वजह यह थी कि उन का उन से संपत्ति को ले कर विवाद चल रहा था. उन का छोटा बेटा अरविंद, जो उत्तरीपश्चिमी दिल्ली के सरस्वती विहार में रहता था, वही उन की देखभाल के लिए रोज आता था.

अरविंद सुबह ही पिता के पास पहुंच जाता और दिन भर उन की देखभाल करता था. शाम 6-7 बजे वह घर लौट जाता था. कई सालों से उस का यही नियम बना हुआ था.

एक दिन अरविंद सुबह करीब साढ़े 9 बजे नीमड़ी गांव स्थित पिता के घर पहुंचा. वह जब भी आता था, घर का मुख्य दरवाजा अंदर से बंद मिलता था. दरवाजा खटखटाने के बाद बहन राजबाला कुंडी खोलती थी.

28 जनवरी को भी उस ने दरवाजा खटखटाया. 5 मिनट तक कुंडी नहीं खुली तो उस ने दोबारा दरवाजा खटखटाया. दोबारा भी कुंडी नहीं खुली और न ही अंदर से कोई आवाज आई तो वह सोचने लगा कि पता नहीं क्या बात है, जो अभी तक दरवाजा नहीं खुला.

उस ने आवाज देते हुए दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया. वह जैसे ही गैलरी में पहुंचा, उसे किचन के सामने राजबाला औंधे मुंह पड़ी दिखाई दी. बहन को उस हालत में देख कर वह घबरा गया. दौड़ कर उस ने बहन को सीधा किया तो शरीर अकड़ा एवं ठंडा था, नाक और मुंह से थोड़ा खून भी निकला हुआ था, जो सूख चुका था. बहन की हालत देख कर वह सहम उठा.

उसे पिता की ङ्क्षचता हुई तो आवाज देते हुए वह सामने वाले कमरे में गया. वहां टीवी चल रहा था और उस के पिता जो लुंगी बांधे रहते थे, वह बैड पर पड़ी थी. इस के बाद वह सामने वाले कमरे में गया तो वहां पिता रजाई में लिपटे हुए मिले. रजाई हटाई तो उन का शरीर भी ठंडा और अकड़ा हुआ था.

उन्हें पेशाब की जो नली लगी हुई थी, वह जस की तस लगी थी. बहन और पिता की हालत देख कर अरविंद चीखता हुआ बाहर आया और सभी को यह बात बताई. इस के बाद उस ने यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दे दी. नीमड़ी गांव के नजदीक मुख्य रोड पर स्थित पैट्रोल पंप के पास अकसर पुलिस कंट्रोल रूम की वैन खड़ी रहती है. 100 नंबर पर कौल होते ही वैन नीमड़ी गांव पहुंच गई और हरिकिशन तथा उन की बेटी राजबाला को बाड़ा ङ्क्षहदूराव अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि यह क्षेत्र उत्तरी दिल्ली के थाना सराय रोहिल्ला के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना सराय रोहिल्ला को दे दी गई.

हरिकिशन और उन के बेटों को थाना सराय रोहिल्ला के ज्यादातर पुलिसकर्मी जानते थे. इस की वजह यह थी कि हरिकिशन और उन के बेटे आए दिन झगड़े की शिकायतें ले कर वहां आते रहते थे. उन के बीच प्रौपर्टी को ले कर काफी समय से झगड़ा चल रहा था.

इसीलिए सूचना पा कर कार्यवाहक थानाप्रभारी साहिब सिंह लाकड़ा एसआई आलोक कुमार राजन, कांस्टेबल यशपाल को ले कर नीमड़ी गांव पहुंच गए. वहां से पता चला कि पुलिस कंट्रोल रूम की वैन हरिकिशन और राजबाला को हिंदूराव अस्पताल ले गई है तो कांस्टेबल यशपाल को घटनास्थल पर छोड़ कर साहिब सिंह लाकड़ा और एसआई आलोक कुमार हिंदूराव अस्पताल जा पहुंचे. साहिब सिंह ने वहां मौजूद मृतक हरिकिशन के बेटे अरविंद से बात करने के बाद इस घटना की जानकारी एसीपी मनोज कुमार मीणा और डीसीपी मधुर वर्मा को दे दी.

2-2 हत्याओं की बात थी, इसलिए डीसीपी मधुर वर्मा, डीसीपी द्वितीय असलम खां, एसीपी मनोज कुमार मीणा भी घटनास्थल का दौरा करने के बाद बाड़ा हिंदूराव अस्पताल पहुंच गए. सूचना पा कर हरिकिशन के अन्य दोनों बेटे विजय वर्मा और अजीत वर्मा, जिन से उन का झगड़ा चल रहा था, वे भी अस्पताल पहुंच गए थे.

उन्होंने भी अपने पिता और बहन की हत्या पर दुख जताया. पिता और बहन की हत्या हुई थी, इसलिए दुख होना स्वाभाविक था. पुलिस ने इन दोनों भाइयों से भी बात की. उन्होंने बताया कि जिस मकान में पिता और बहन की हत्या हुई है, उन का वह मकान मेन बाजार में है.

उसी मकान में 2 दुकानें बनी हैं, जिन में वे महालक्ष्मी ज्वैलर्स के नाम से ज्वैलरी का धंधा करते हैं. वे रोजाना सुबह 10 बजे के करीब अपनी दुकानें खोलते हैं और रात 9 बजे बंद कर के सरस्वती विहार स्थित अपने फ्लैटों पर चले जाते थे.

आज जब वे अपनी दुकानों पर आए तो उन्हें पिता और बहन की हत्या की खबर मिली. जब उन्हें पता चला कि दोनों को बाड़ा हिंदूराव अस्पताल ले जाया गया है तो वे वहां आ गए.

“आप दोनों बता सकते हैं कि इन की हत्या किस ने की होगी?” साहिब सिंह ने पूछा.

“पता नहीं सर, यह किस ने किया है? इस बारे में हम किसी का नाम भी तो नहीं ले सकते, लेकिन इतना जरूर बता सकते हैं कि कल रात 9 बजे के करीब जब हम दुकान बंद कर के अपने घर के लिए निकले थे, तब दोनों ठीकठाक थे.” अजीत वर्मा ने कहा.

अजीत और विजय से बात करने के बाद साहिब सिंह घटनास्थल पर आए. घटनास्थल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह पर रखा है. इस से साफ था कि ये हत्याएं लूट की वजह से नहीं की गई थीं. उसी मकान के एक हिस्से में विजय और अजीत की ज्वैलरी की दुकानें थीं.

हत्यारों को यदि लूटपाट करनी होती तो वे ताला तोड़ कर दुकानों का सामान ले जा सकते थे, लेकिन दुकानों के ताले बंद थे. अब सवाल यह था कि ये हत्याएं क्यों और किस ने कीं?

थाने पहुंच कर अरविंद ने पुलिस को बताया कि उस के पिता और बहन की हत्या उस के बड़े भाइयों, अजीत वर्मा और विजय वर्मा ने उन की संपत्ति हथियाने के लिए की हैं. संपत्ति को ले कर बापबेटों के बीच आए दिन झगड़ा होने की जानकारी पुलिस को थी ही, इसलिए जब अरविंद ने अपने दोनों सगे भाइयों पर हत्या का शक जताया तो पुलिस ने उस की शिकायत पर अजीत वर्मा और विजय वर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के इस बात की जानकारी डीसीपी को दे दी.

डीसीपी मधुर वर्मा ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी मनोज कुमार मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर साहिब सिंह लाकड़ा, एसआई आलोक कुमार राजन, राजीव कुमार, कांस्टेबल यशपाल, ताराचंद को शामिल किया गया. जिन दोनों भाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज था, वे बाड़ा ङ्क्षहदूराव अस्पताल में थे. पुलिस टीम दोनों भाइयों अजीत वर्मा और विजय वर्मा को वहां से थाने ले आई.

थाने में पूछताछ में दोनों भाइयों ने कहा कि प्रौपर्टी को ले कर पिता से उन का विवाद जरूर चल रहा था, लेकिन हत्या करने जैसी बात वे सोच भी नहीं सकते. अपने समय पर वे दुकानें बंद कर के स्कूटी से सरस्वती विहार चले गए थे.

उन का कहना था कि उन के छोटे भाई अरविंद को पिताजी बहुत ज्यादा चाहते थे, क्योंकि घर में वह सब से छोटा था. ज्यादा लाड़प्यार की वजह से वह बिगड़ गया था. कोई कामधंधा भी नहीं करता था. कहीं ऐसा तो नहीं कि पैसे की जरूरत पडऩे पर उस ने पिताजी से पैसे मांगे हों और पिताजी ने मना कर दिया हो तो उसी ने गुस्से में उन्हें मार दिया हो. राजबाला ने उसे देख लिया हो, तो उस ने उस की भी हत्या कर दी हो.

अजीत वर्मा और विजय वर्मा ने पुलिस को जो बताया था, वह सच भी हो सकता था. इसलिए सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने अरविंद वर्मा को भी थाने बुला लिया.

पड़ोसियों और दुकानदारों को जब पता चला कि जिन लोगों की हत्या हुई है, पुलिस उन्हीं के घर वालों को संदिग्ध मान कर पूछताछ कर रही है तो उन्हें यह बात बुरी लगी. दुकानें बंद कर के सभी इकट्ठा हुए और कहने लगे कि पुलिस इस मामले को गंभीरता से न ले कर घर वालों को ही परेशान कर रही है. इस बात से नाराज हो कर सभी पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

एसीपी मनोज कुमार मीणा और अन्य अधिकारियों ने भीड़ को समझाया और विश्वास दिलाया कि उन्हें कातिलों का सुराग मिल चुका है, इसलिए कातिल जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होंगे. पुलिस किसी निर्दोष को कतई नहीं फंसाती. उन के काफी समझाने के बाद भीड़ शांत हुई.

पुलिस पर मामले के खुलासे का दबाव बढ़ता जा रहा था. अरविंद और उस के दोनों भाई पुलिस की गिरफ्त में थे. पुलिस दोनों उन से अपने तरीके से पूछताछ कर रही थी. पुलिस ने पड़ोसियों से पूछताछ कर के यह जानने की कोशिश की कि हरिकिशन और उन की बेटी राजबाला की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी? इस पूछताछ में एक बात यह सामने आई कि हरिकिशन अकड़ वाले जिद्दी स्वभाव के आदमी थे. अगर कोई आदमी उन के घर के आगे गाड़ी खड़ी कर देता था तो वह उस से लडऩे को तैयार हो जाते थे. लेकिन ये झगड़े ऐसे नहीं थे, जिस से कोई उन की हत्या कर देता.

हरिकिशन का नीमड़ी गांव में 100 वर्ग गज का जो मकान था, वह वहां की मेन बाजार में था. मौजूदा समय में उस की कीमत करोड़ों रुपए में थी. इस से पुलिस को लग रहा था कि ये हत्याएं प्रौपर्टी को ले कर ही की गई हैं.

तीनों भाई खुद को बेकसूर बता रहे थे. एसआई आलोक कुमार राजन जिस समय साहिब सिंह के सामने तीनों भाइयों से पूछताछ कर रहे थे, उसी समय इंद्रलोक चौकी के प्रभारी राजीव कुमार सीसीटीवी कैमरे की एक फुटेज ले कर आ गए. वह फुटेज हरिकिशन के मकान के सामने स्थित एक ज्वैलर्स की दुकान के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे की थी.

पुलिस को उस फुटेज से पता चला कि अरविंद रोजाना सुबह 9-10 बजे के बीच पिता के पास आता था और शाम 7, साढ़े सात बजे तक वहां रहता था. वह साढ़े 7 बजे के करीब मकान के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलता दिखाई दिया था. पूछताछ में अरविंद ने बताया भी यही था.

उसी फुटेज में साढ़े 8 बजे के करीब एक युवक हरिकिशन के मकान के मुख्य दरवाजे से तेजी से निकलता दिखाई दिया. एचडी क्वालिटी के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में वह युवक साफतौर पर घबराया हुआ दिख रहा था. उस के निकलने के कुछ देर बाद 2 लोग तेजी से उसी दरवाजे से निकले. वे दोनों हेलमेट लगाए हुए थे.

पुलिस ने वह फुटेज अरविंद को दिखाई तो उस ने उन लोगों को पहचान कर बताया कि हेलमेट लगा कर निकलने वाले उस के बड़े भाई अजीत और विजय हैं. उन से पहले जो युवक भागता हुआ निकला था, वह विजय का बेटा विकास है. अरविंद ने बताया कि विकास कभीकभी वहां आता था. घर से निकलते समय इतना घबराया हुआ क्यों था, यह बात उस की समझ में नहीं आई.

उस दिन अजीत और विजय घर के अंदर से हेलमेट लगा कर निकले थे, जबकि इस के पहले वे अपना हेलमेट हाथ में ले कर निकलते थे और स्कूटी पर बैठने के बाद हेलमेट लगाते थे. पुलिस ने वह फुटेज अजीत और विजय को दिखाई तो उन्होंने यह तो माना कि हेलमेट लगाए हुए वही घर से निकले थे, लेकिन उस दिन वे घर के अंदर से हेलमेट लगा कर क्यों निकले, इस बात का वे कोई उचित जवाब नहीं दे सके.

पूछताछ के लिए पुलिस विजय के बेटे विकास को थाने ले आई. विकास को अलग ले जा कर जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सारी सच्चाई पुलिस को बात दी. उस ने बताया कि उसी ने अपने पिता और चाचा के साथ मिल कर दादा और बूआ की हत्या की थी. बेटों द्वारा बाप और बहन के कत्ल की बात सुन कर पुलिस हैरान रह गई. क्योंकि एक बाप ने जिस तरह जीजान लगा कर अपने बेटों की परवरिश की थी, किसी लायक बनाया था, वही बेटे उन की जान ले लेंगे, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था.

खैर, केस खुल चुका था. अजीत और विजय जो अब तक पिता और बहन की हत्या पर घडिय़ाली आंसू बहा रहे थे और खुद को बेकसूर बता रहे थे, उन की हकीकत सामने आ चुकी थी. पुलिस ने उन दोनों के सामने विकास से पूछताछ की. उस ने उन के सामने भी हत्या का खुलासा कर दिया. अब विजय और अजीत कैसे हत्या से मना कर सकते थे.

लिहाजा उन्होंने भी स्वीकार कर लिया कि इस डबल मर्डर को उन्होंने ही अंजाम दिया था. उन्होंने बताया कि पिता और बहन ने उन के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिए थे कि उन की हत्या करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

विकास, विजय और अजीत से पूछताछ के बाद हरिकिशन और उन की बेटी राजबाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

हरिकिशन वर्मा मूलरूप से हरियाणा के जिला झज्जर के रहने वाले थे. सन 1950 के आसपास नौकरी की तलाश में वह दिल्ली आए तो सन 1953 में दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में उन की नौकरी लग गई. इस के बाद वह अपनी पत्नी लक्ष्मी देवी को भी दिल्ली ले आए.

हरिकिशन की ड्यूटी गुलाबी बाग के स्कूल में थी, इसलिए उन्होंने वहीं नीमड़ी गांव में किराए का कमरा ले लिया. हंसीखुशी के साथ उन का समय बीत रहा था. वह एकएक कर 4 बेटों आजाद, अजीत, विजय, अरविंद और 4 बेटियों सावित्री, सरला, राजबाला और चंद्रकला के पिता बने.

हरिकिशन के पिता हरलाल गांव में रहते थे. वह हरिकिशन के लिए अनाज वगैरह भेजते रहते थे. घर से सहयोग मिलने की वजह से हरिकिशन को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी.

उसी दौरान उन के पिता ने नीमड़ी गांव में उन के लिए 100 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद दिया था. वह प्लौट गांव की मुख्य सडक़ के किनारे था. हरिकिशन उसी प्लौट में घर बनवा कर रहने लगे. उन्होंने अपने सभी बच्चों को पढ़ायालिखाया. बच्चे जैसेजैसे जवान होते गए, वह उन की शादियां करते गए. बड़े बेटे आजाद की युवावस्था में ही मौत हो गई थी. उस के बाद उन के 3 बेटे रह गए थे.

हरिकिशन ने उत्तरीपश्चिमी दिल्ली के सरस्वती विहार में एक 3 मंजिला मकान बना कर एकएक फ्लोर अपने तीनों बेटों को रहने के लिए दे दिया था, जिस में वे अपनेअपने परिवारों के साथ रहते थे. उन का नीमड़ी गांव में जो मकान था, उस में अजीत और विजय ने अलगअलग 2 दुकानें बना ली थीं, जिन में वे सोनेचांदी की ज्वैलरी का धंधा करते थे.

हर मांबाप के लिए उस समय एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, जब उन की बेटी शादीशुदा होने के बावजूद अपने मायके में आ कर रहने लगती है. राजबाला की यही समस्या थी, जिस की वजह से हरिकिशन काफी परेशान रहते थे. हरिकिशन सन 1988 में नौकरी से रिटायर हो चुके थे.

दरअसल, उन्होंने राजबाला की शादी फरीदाबाद में कर दी थी. शादी के बाद हर औरत की ख्वाहिश मां बनने की होती है. शादी के कई सालों बाद भी जब वह मां नहीं बनी तो वह मानसिक तनाव में रहने लगी. क्योंकि ससुराल में सभी उसे ताने देने लगे थे. हालात यहां तक पहुंच गए कि पति ने उसे तलाक दे दिया.

तलाक के बाद राजबाला पिता के पास आ गई. जवान बेटी किस तरह अपनी जिंदगी काटेगी, इस बात की ङ्क्षचता हरिकिशन और उन की पत्नी लक्ष्मी देवी को परेशान करती थी. दोनों एक बार बेटी का घर फिर से बसाने की कोशिश की और दिल्ली में ही एक आदमी से उस की शादी कर दी.

बेटी का घर फिर से बस गया तो वे निश्चिंत हो गए. सभी बच्चे अपनीअपनी घरगृहस्थी में खुश थे, इसलिए उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उन की यह निश्चिंतता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं नहीं रह सकी. बेटी राजबाला की उन्होंने जो दूसरी शादी की थी, उस से भी उस की जिंदगी में खुशहाली नहीं आ सकी. वजह वही रही कि यहां भी राजबाला की कोख सूनी रही. वह मां नहीं बनी तो उस की गृहस्थी में फिर से जहर घुलना शुरू हो गया.

ससुराल के और लोगों की बात तो दूर, पति भी बातबात पर ताने देने लगा. रोजरोज की बेइज्जती से राजबाला ऊब गई तो एक दिन ससुराल से मायके आ गई. यह सन 2003 की बात है. इस के बाद वह न ससुराल गई और न ही उस का पति उसे बुलाने आया.

राजबाला ने इसे नियति का खेल मानते हुए हालातों से समझौता कर लिया और पिता के साथ ही रहने लगी. लक्ष्मी देवी राजबाला की बहुत चिंता करती थीं. इसी चिंता की वजह से वह बीमार रहने लगीं और एक दिन चल बसीं.

हरिकिशन वर्मा ने तीनों बेटों को सरस्वती विहार में एकएक फ्लैट दे रखा था. उन्हें अब बेटी राजबाला की चिंता थी. उन के न रहने पर बेटे राजबाला की देखभाल करेंगे या नहीं, इस बात पर उन्हें संशय था. इसलिए वह नीमड़ी गांव वाला मकान राजबाला को देना चाहते थे, जिस से भविष्य में उसे किसी का मोहताज न रहना पड़े.

नीमड़ी वाले मकान में 2 दुकानों और उन के पीछे वाले 2 कमरों पर विजय और अजीत का कब्जा था. मकान मुख्य बाजार में था, इस से काफी महंगा था. अजीत और विजय को जब पता चला कि उस के पिता यह मकान राजबाला के नाम करना चाहते हैं तो उन्होंने पिता से इस बात का विरोध किया.

हरिकिशन जिद्दी स्वभाव के थे ही. उन्होंने साफ कह दिया कि यह मकान उन का है, इसलिए वह इसे किसे देते हैं, यह उन की मरजी. पिता के इस दो टूक जवाब से दोनों भाइयों को लगा कि अगर उन्होंने मकान दूसरे के नाम कर दिया तो उन के हाथ से दुकानें निकल जाएंगी. तब वे सडक़ पर आ जाएंगे.

उन्होंने पिता की बात का जम कर विरोध किया और यहां तक कह दिया कि वे किसी भी हालत में यह घर किसी दूसरे के नाम नहीं करने देंगे. इसी बात को ले कर बापबेटों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

इस झगड़े से परिवार 2 हिस्सों में बंट गया. एक तरफ अजीत और विजय थे तो दूसरी तरफ हरिकिशन, उन की बेटी राजबाला और बेटा अरविंद. दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. हरिकिशन ने भी ठान लिया था कि जो औलाद उन की बात नहीं मान रही, उसे वह अपनी जायदाद से फूटी कौड़ी नहीं देंगे.

उन्होंने दोनों बेटों से अपनी दुकानें खाली करने को कह दिया. लेकिन वे दुकानें खाली करने को तैयार नहीं थे. तब हरिकिशन ने दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण ली. अजीत और विजय ने न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चूंकि वे हरिकिशन वर्मा की जायज औलादें हैं, इसलिए इस पैतृक संपत्ति पर उन का भी अधिकार है.

जबकि हरिकिशन कहा था कि यह संपत्ति पैतृक नहीं है, इसे उन्होंने खुद खरीदी है. इसलिए इस संपत्ति पर वे अपना अधिकार नहीं जता सकते.

अदालत ने फैसला सुनाया कि जिन दुकानों का अजीत और विजय उपयोग कर रहे हैं, हर महीने वे डेढड़ेढ़ हजार रुपए किराए के रूप में हरिकिशन को दें. यह बात करीब 9 साल पहले की है. इसी आदेश पर दोनों भाई पिता को निर्धारित धनराशि देते रहे.

विजय और अजीत ने अपनी दुकानों के पीछे बने कमरों में चांदी के सिक्के बनाने की मशीनें लगवा ली थीं. बड़े ज्वैलर्स के और्डर पर वे चांदी के सिक्के बना कर पहुंचाते थे. इस से उन की आमदनी बढ़ गई थी. राजबाला और हरिकिशन दुकानों को खाली कराने के उपाय खोजते रहते थे. इसलिए दोनों भाई दुकानों के शटर में ताले हमेशा अंदर से लगाते थे.

अंदर से ताले लगा कर वे पीछे की गैलरी से होते हुए घर के मुख्य दरवाजे से निकलते थे. उसी समय राजबाला या हरिकिशन उन से किसी न किसी बात पर झगड़ा कर बैठते थे, जिस की शिकायत पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर होती थी. तब पुलिस मौके पर पहुंच कर दोनों पक्षों को समझाबुझा कर शांत कराती थी.

जैसेजैसे हरिकिशन की उम्र बढ़ती जा रही थी और वह बीमार भी रहने लगे थे, इसलिए उन का छोटा बेटा अरविंद उन की देखभाल के लिए रोज सुबह उन के पास आ जाता था. दिन भर उन के पास रहता और शाम को सरस्वती विहार स्थित अपने घर चला जाता था. उस का रोज का यही क्रम था.

दिवाली या अन्य मौकों पर अजीत और विजय के पास चांदी के सिक्के बनाने के बड़े और्डर आते थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वे रातदिन काम करते थे. इन के काम को प्रभावित करने के लिए राजबाला 100 नंबर पर फोन कर के शिकायत कर देती थी कि उस के भाई सिक्के बनाने में तेजाब का इस्तेमाल करते हैं, जिस की स्मैल से उस के बूढ़े पिता को सांस लेने में परेशानी होती है.

इस शिकायत पर पुलिस आ कर उन का काम रुकवा देती थी. काम रुकने पर विजय और अजीत का नुकसान होता. इस तरह के फोन राजबाला अकसर करती रहती रहती थी. आए दिन के इस तरह के झगड़े से दोनों भाई परेशान रहते थे.

एक दिन विजय के हाथ पिता के इसी मकान की एक परची हाथ लग गई. वह परची गांव वजीरपुर के प्रधान द्वारा लिखी गई थी. पहले जब लोग कोई प्लौट या मकान खरीदते थे, गांव में इसी तरह की परचियों पर लिखापढ़ी हो जाती थी.

हरिकिशन को भी प्लौट की इसी तरह की परची कटी थी. वह परची हरिकिशन के पिता हरलाल के नाम थी. लेकिन हरिकिशन ने उस परची पर कङ्क्षटग कर के अपना नाम लिख दिया था. विजय को इस परची से लगा कि नीमड़ी गांव वाला प्लौट उस के दादा हरलाल ने खरीदा था. यानी जिस प्लौट को हरिकिशन अपने द्वारा खरीदा बता रहे थे, वह उन के दादा का खरीदा था. जबकि दादा की संपत्ति परिवार के लोगों की मरजी के बिना किसी और को नहीं दी जा सकती थी.

उसी परची के आधार पर विजय ने तीसहजारी न्यायालय में इस्तगासा दाखिल कर प्लौट की उस परची पर कटिंग कर धोखाधड़ी करने वाले पिता हरिकिशन और भाई अरविंद के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की अपील की थी.

तब तत्कालीन महानगर दंडाधिकारी ज्योति कलेर के आदेश पर उस परची की फोरैंसिक जांच हुई तो यह बात सिद्ध हो गई कि परची पर कटिंग कर के हरिकिशन का नाम बाद में लिखा गया था. इस के बाद कोर्ट के आदेश पर हरिकिशन और उन के छोटे बेटे अरविंद के खिलाफ सराय रोहिल्ला थाने में भादंवि की धारा 420/467/468/120 बी के तहत रिपोर्ट दर्ज हो गई थी.

इस केस में हरिकिशन की गिरफ्तारी हुई तो अरविंद ने अपनी अग्रिम जमानत ले ली थी. कोर्ट में केस चलने के बावजूद इन लोगों के बीच चल रहा झगड़ा बंद नहीं हुआ. छोटीछोटी बातों पर झगड़ा कर के पुलिस को फोन करना आए दिन की बात थी, इसीलिए थाने का हर पुलिसकर्मी इन्हें अच्छी तरह से जानता था. झगड़े से विजय और अजीत का धंधा चौपट हो रहा था. उन पर लोगों का कर्ज भी हो गया था.

शाम दोनों भाई इसी समस्या पर विचार कर रहे थे, तभी विजय का बेटा विकास आ गया. अपने पिता और चाचा की हालत देख कर वह भी परेशान हो गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का समाधान कैसे निकला जाए.

अचानक विकास तैश में आ गया. उस ने कहा कि क्यों न इस समस्या की जड़ हरिकिशन और राजबाला को ही खत्म कर दिया जाए? उपाय अच्छा था. विजय और अजीत विकास की बात पर सहमत हो गए, लेकिन समस्या यह थी कि यह सब किया कैसे जाए.

विकास ने कहा, “यह बहुत आसान है. दादा और बूआ को गला दबा कर मार देते हैं. उस के बाद हम लोग निकल चलते हैं. यहां अरविंद चाचा भी आते हैं, वह दिन भर इन के पास रहते हैं. पुलिस जब पूछताछ करेगी तो हम अरविंद का नाम ले लेंगे. इस तरह एक तीर से 2 शिकार हो जाएंगे.

लालच में आ कर तीनों ने हरिकिशन और उस की बेटी राजबाला की हत्या करने की पूरी योजना बना डाली. शाम 7 बजे के बाद जब अरविंद वहां से चला गया तो 8 बजे के करीब उन्होंने अपनी दुकानों के शटर गिरा कर अंदर से ताले बंद किए. इस के बाद वे तीनों गैलरी से होते हुए उन कमरों की तरफ गए, जहां हरिकिशन और राजबाला रहते थे.

राजबाला उस समय कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. विजय उस के कमरे में इस तरह घुसा कि राजबाला को उस के आने की भनक तक नहीं लगी. विजय ने उस के पास पहुंच कर पहले एक हाथ से मुंह दबोचा और दूसरे हाथ से उस का गला दबाने लगा.

राजबाला मजबूत जिस्म की थी. उस ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की. किसी तरह उस ने खुद छुड़ा भी लिया. वह कमरे से निकल कर बाहर के दरवाजे की ओर भागी तो विजय ने उसे पकड़ कर गिरा दिया और दोनों हाथों से गला घोंट दिया.

अजीत और विकास उस कमरे में गए, जिस में हरिकिशन सोते थे. हरिकिशन उस समय रजाई ओढ़े सो रहे थे. आते ही विकास ने हरिकिशन का मुंह वहां पड़ी धोती से दबाया तो हरिकिशन जाग गए. उन्होंने अपना बचाव करते हुए विकास को गाल पर एक चांटा मारा तो विकास की पकड़ ढीली पड़ गई. तभी अजीत ने विकास को हटा कर खुद पिता का मुंह और नाक हाथ से दबा दिया.

हरिकिशन तड़पने लगे तो विकास ने उन के पैर दबोच लिए. कुछ देर में उन का शरीर ढीला पड़ गया तो उन्होंने उन की लाश रजाई में लपेट दी. उन्हें उम्मीद थी कि मकान के मुकदमे से जुड़े कागजात घर में रखी सेफ में रखे होंगे, इसलिए वे चाबी तलाशने लगे.

राजबाला के कमरे में उन्हें एक बैग मिला, जिस में उन्हें अलमारी की चाबी मिल गई. वह चाबी विजय ने अपने पास रख ली. दोनों हत्याएं करने के बाद पहले विकास निकला. वह घबराया हुआ इधरउधर यह देख रहा था कि उसे घर से निकलते कोई देख तो नहीं रहा.

इस के कुछ देर बाद सिर पर हेलमेट लगा कर विजय और अजीत निकले. जाते समय वे दरवाजे को भिड़ा गए थे. तीनों ने यही सोचा था कि घर से निकलते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा, लेकिन उन के घर के सामने ज्वैलर्स की दुकान के बाहर उच्च क्वालिटी के लगे सीसीटीवी कैमरे ने देख लिया था, यह शायद उन्हें पता नहीं चला.

विकास मैट्रो से तो विजय और अजीत अपनी एक्टिवा से सरस्वती विहार स्थित अपने फ्लैटों पर चले गए थे. तीनों यही सोच रहे थे कि उन पर किसी को शक नहीं होगा. लेकिन उन की हकीकत कैमरे से सामने आ गई थी.

पुलिस ने विजय, अजीत और विकास से पूछताछ कर उन्हें तीस हजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी अजय कुमार मलिक के समक्ष पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. पुलिस ने सेफ की चाबी व अन्य सबूत इकट्ठे कर उन्हें फिर से उन्हीं की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और अभियुक्तों से की गई बातचीत पर आधारित

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