जमींदार राकेश कासनिया से फोन पर बात कर के टिल्लू खां बेहद खुश था. वजह यह थी कि जमींदार ने उसे अपने खेतों में काम करने के लिए बुलाया था. दरअसल राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले जमींदार राकेश कासनिया के यहां बड़े स्तर पर कपास की खेती होती है.

कपास की चुगाई के लिए वह भरतपुर जिले के कैथवाड़ा गांव के रहने वाले टिल्लू खां और उस के साथियों को बुला लेता था. जो भी मजदूर उस के यहां आते थे, वे परिवार सहित आते थे. इस बार राकेश कासनिया ने टिल्लू खां से यह भी कह दिया था कि वह अपनी जानपहचान वाले कुछ और लोगों को भी साथ ले आए.

जमींदार के खेतों में परिवार सहित काम करने से जहां उन परिवारों को एकमुश्त मजदूरी मिल जाती थी, वहीं मालिक को भी मजदूरों के लिए दरदर भटकना नहीं पड़ता था. मजदूरों के आनेजाने का किराया भी जमींदार ही देता था. इसलिए मजदूर उस के यहां खुशीखुशी आते थे. भरतपुर हनुमानगढ़ से लगभग 450 किलोमीटर दूर है.

टिल्लू खां ने अपने साथ चलने के लिए करीम खां, अख्तर खां और हबीब से बात की. जमींदार राकेश कासनिया ने सारे मजदूरों के किराए के पैसे टिल्लू खां के खाते में औनलाइन जमा करा दिए थे, जिस से मजदूरों को उस के गांव तक आने में परेशानी न हो.

जमींदार राकेश कासनिया के यहां जाने की बात से सारे मजदूर खुश थे. इस की वजह यह थी कि उन के यहां खानेपीने की कोई परेशानी नहीं होती थी. वहां खाने में घी, दूध और छाछ भी मिलती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि जमींदार के खेतों में काम करने वाले मजदूरों की मेहमानों की तरह खातिरतवज्जो होती थी. इसलिए टिल्लू ने जिनजिन लोगों से चलने की बात की, वे सब जाने की तैयारी करने लगे.

टिल्लू के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी खातून महज 14 साल की थी. किसी वजह से इस साल उस की पत्नी उस के साथ जमींदार के यहां नहीं जा पा रही थी. तब टिल्लू ने अपनी तीनों बेटियों के साथ जाने का प्रोग्राम बनाया. अन्य मजदूर अपनी बीवीबच्चों के साथ जा रहे थे.

राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में कपास की खेती बहुत ज्यादा होती है. कपास उत्पादन की वजह से इन दोनों जिलों की श्वेत पट्टी के रूप में पहचान बन चुकी है. देशी व अमेरिकन कपास (नरमा) की फसल पकने पर पौधों से फाहों को अलग कराने का काम मजदूरों से कराया जाता है.

इस प्रक्रिया को चुगाई या चुनाई कहा जाता है. इस साल 5-6 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चुनाई की रकम मजदूरों को अदा की गई थी. इस तरह एक मजदूर दिनभर में चुनाई कर के 500 से 600 रुपए तक कमा लेता है. ज्यादा कमाने के लिए लोग अपने परिवार के साथ यहां काम करने आते थे.

टिल्लू खां अन्य 15 मजदूरों को ले कर जमींदार राकेश कासनिया के गांव जाखड़ावाली पहुंच गया. राकेश के खेतों के पास ही रविन्द्र, रणवीर, देवतराम आदि के भी खेत थे.

राकेश के खेतों का काम निपटा कर इन मजदूरों को इन पड़ोसी किसानों के खेतों की भी कपास की चुगाई करनी थी. जैसे ही टिल्लू खां की मजदूर टोली राकेश कासनिया के घर पहुंची, उन की खूब आवाभगत हुई. सभी राकेश के ही घर ठहरे.

राकेश का घर काफी बड़ा था. घर के पिछवाड़े दरजन भर दुधारू पशु बंधे रहते थे. सुबह का सारा दूध डेयरी पर भिजवा दिया जाता था, जबकि शाम के दूध का दही जमाया जाता था. अगली सुबह मशीनों से दही मथ कर मक्खन व मट्ठा बनाया जाता था. 3 मजदूर इन पशुओं को संभालते थे.

परिवार के मुखिया व राकेश के पिता चौधरी लालचंद की पहल पर पहले दिन सभी मजदूरों को खालिस घी का हलवा व हरी सब्जियों के संग भोजन परोसा गया. सभी मजदूर चौधरी परिवार की मेहमाननवाजी के कायल हो गए.

टिल्लू की बड़ी बेटी खातून तो बेहद खुश थी. खातून को राकेश और उस के भाई कुलदीप की पत्नियां दिखाई नहीं दीं. चुलबुली खातून खोजी निगाहों से उन के घर के कई चक्कर लगा चुकी थी, पर दोनों बहुएं उसे दिखाई नहीं दीं. उसी बीच शोख खातून राकेश की नजरों में जरूर चढ़ गई.

अगली सुबह बड़े चौधरी लालचंद के कहने पर सभी मजदूरों को गांव के ही बृजलाल के खाली पड़े मकान में ठहरा दिया गया. अख्तर की बीवी और खातून खाना बनाने के लिए घर पर रुक गईं, जबकि अन्य सभी नरमा चुगाई के लिए राकेश के साथ ट्रैक्टर से खेतों पर चले गए.

आधे घंटे बाद राकेश अपने खेतों से सब्जियां तोड़वा कर ले आया और उसे अख्तर की बीवी को दे कर कहा, “भाभी, खातून को भेज कर घर से दही और छाछ मंगवा लेना.”

दरअसल, राकेश का मन 14 साल की खातून पर आ गया था. इसलिए वह बहाने से उसे अपने यहां बुलाना चाह रहा था.

“अरे, अंकल ठहरो. मैं दही और छाछ लेने आप के साथ ही चलती हूं. आप के साथ चलने से मुझे सहूलियत रहेगी.”

कह कर खातून डोलची ले कर राकेश के पीछेपीछे चल पड़ी. खातून जैसे ही दालान से बाहर निकली, राकेश ने उसे रोक कर कहा, “खातून, तुम अंकल मत कहो, क्या मैं तुम्हारे अब्बू की उम्र का हूं?”

“गलती हो गई, अब खयाल रखूंगी. भैया कहूं तो चलेगा?” खातून ने कहा, “अरे भैया, एक बात बताओ, दोनों भाभियां दिखाई नहीं दे रही हैं, कहां छिपा दिया है आप ने उन्हें?”

“खातून, मैं ने अपनी बीवी को तलाक दे दिया है. अब दूसरी बीवी की तलाश में हूं. कोई लड़की पसंद आ गई तो शादी कर लूंगा. और हां सुन, अब तू बच्ची नहीं रही, मुझे अंकल या भैया कहा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. तुम मुझे राकेश कहो, प्यार से रौकी. समझ गई ना?” इतना कह कर राकेश आगे बढ़ गया.

डोलची उठाए खातून राकेश के पीछेपीछे चल रही थी. घर पहुंच कर राकेश ने खातून की डोलची छाछ से भर दी. खातून डोलची उठाने लगी तो राकेश ने उस का हाथ दबा दिया. इस पर नादान खातून ने मुसकरा दिया.

उस रात न राकेश को नींद आई, न खातून को. दोनों ही सारी रात करवटें बदलते रहे. राकेश शातिर खिलाड़ी था, जबकि खातून प्रेम के इस खेल से अनाड़ी थी. शातिर राकेश ने खातून को फंसाने के लिए शब्दों का जाल बुन लिया. उसे फंसाने के लिए वह उस से लच्छेदार बातें करने लगा. उस की बातों का 14 साल की खातून पर ऐसा असर पड़ा कि वह भी उसे चाहने लगी.

राकेश और उस के बड़े भाई कुलदीप ने उच्चशिक्षा हासिल कर के वैज्ञानिक तरीके से खेती करानी शुरू की थी. जिस से उन्हें अच्छी पैदावार मिलने लगी थी. दोनों की शादी एक ही परिवार में सगी बहनों से हुई थी, लेकिन किन्हीं कारणों से दोनों भाइयों के गृहस्थ जीवन में ऐसी खटास आई कि मामला अदालत की चौखट तक पहुंच गया.

राकेश के परिवार की गिनती इलाके में रसूखदार व प्रभावशाली परिवारों में होती थी. उस के  परिवार का इलाके में अच्छाखासा दबदबा था. परिवार में सभी सुखसुविधाओं के साथ कई लग्जरी गाड़ियां व खेतीबाड़ी के लिए ट्रैक्टर था.

शहरी आबोहवा में पल रही गरीब परिवार की खातून 14 साल की उम्र में अपने तंदुरुस्त शरीर की वजह से जवान दिखती थी. गेहुंआ रंग व गठीले बदन की खातून पर राकेश इस कदर फिदा हुआ कि वह उस के लिए पागल सा हो गया था.

राकेश सुबह के समय खुद ट्रैक्टर चला कर मजदूरों को खेतों पर ले जाता था. खातून राकेश के पास बैठ जाती थी, जबकि अन्य मजदूर पीछे ट्राली में बैठते थे. खातून की छोटी बहन सलमा भी राकेश की सीट के पास मडगार्ड पर बैठती थी. शाम को वापसी में भी ऐसा ही होता था. इस बीच मौका मिलने पर राकेश खातून से हंसीमजाक कर लिया करता था. एक दिन ट्रैक्टर पर आते समय राकेश ने खातून से धीरे से कहा, “आज रात को गली में मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.”

मजदूरों को जाखड़ावाली आए मात्र 5 दिन ही हुए थे. इस तरह राकेश और खातून ने पलक झपकते ही दूरियां नाप ली थीं. सभी मजदूर थकेमांदे होने के कारण खाना खाने के तुरंत बाद नींद के आगोश में समा जाते थे. खातून ने इसी का फायदा उठाया.

जैसे ही सब लोग सो गए, खातून दबे पांव बाहर निकली. राकेश दीवार की ओट में पहले से ही खड़ा था. खातून के आते ही उस का हाथ पकड़ कर वह रुखीराम के खाली पड़े घर में घुस गया.

एकांत मिलते ही राकेश ने उसे बांहों में भर लिया और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. खातून ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, “यह आप क्या कर रहे हैं, यह सब ठीक नहीं है?”

“खातून, मैं तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.” राकेश ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

“नहीं, आप शादीशुदा हैं. आप तो मुझे बरबाद कर के चले जाएंगे. मैं जिंदगी भर रोती रहूंगी.” खातून ने कहा.

राकेश ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, “खातून, मैं ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया है. अब मैं तुम से शादी कर के तुम्हें पत्नी बना कर रखूंगा. तुम मेरी बात पर यकीन करो. अब फैसला तुम्हें करना है कि शादी गुपचुप करोगी या ढोलधमाकों के साथ.”

राकेश की बातों पर खातून ने यकीन कर लिया और उस के सामने समर्पण कर दिया. इच्छा पूरी कर के दोनों अपनेअपने बिस्तरों पर चले गए.

अगली सुबह खातून के बदन का पोरपोर दर्द कर रहा था. देर रात तक जागने से उसे सिरदर्द के साथ तेज बुखार भी हो गया था. जब सभी लोग खेतों में जाने लगे तो खातून ने पिता से कहा, “अब्बू, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे बुखार है, इसलिए आज मैं काम पर नहीं जा पाऊंगी.”

“कोई बात नहीं, तुम घर पर आराम करो. मैं दवा के लिए छोटे चौधरी (राकेश) को बोल दूंगा.” टिल्लू ने कहा.

कुछ देर बाद राकेश ट्रैक्टर ले कर मजदूरों को लेने आया तो टिल्लू ने कहा, “छोटे चौधरी, खातून को बुखार हो रहा है. उसे गांव के डाक्टर से दवा दिलवा देना. आज वह काम पर भी नहीं जा रही है.”

“अंकल, आज गांव के डाक्टर एक शादी में गए हैं. दोपहर के समय मैं शहर जाऊंगा तो वहां से दवा दिला दूंगा.” राकेश ने कहा.

मजदूरों को खेत में छोड़ कर राकेश जल्दी लौट आया और जिप्सी ले कर खातून के पास पहुंच गया. दवा दिलाने के बहाने उस ने खातून को जिप्सी में बैठा लिया. जिप्सी स्टार्ट करते हुए उस ने चुहलबाजी करते हुए कहा, “रानी, तबीयत सचमुच में खराब है या चालाकी से मिलने का उपाय ढूंढ़ा है.”

“देखोजी, आप को मजाक सूझ रहा है और मैं दर्द के मारे मरी जा रही हूं.” खातून ने कहा.

“जानेमन, घबराओ मत, आज ससुरजी की इजाजत ले कर आया हूं. पूरे दिन घुमाऊंगा और तुम्हारे तनमन का दर्द निकाल कर ही दम लूंगा.” राकेश ने कहा.

कई घंटे घूमने के बाद राकेश की जिप्सी पीलीबंगा शहर से लौट आई. शहर में दोनों ने जी भर कर मस्ती की. मानमनुहार कर के राकेश ने खातून को बीयर भी पिला दी थी. राकेश का साथ मिलने पर बिना दवा के ही खातून ठीक हो गई थी.

राकेश की पहल पर खातून ने एक आर्टिफिशियल मंगलसूत्र गले में पड़े पुराने काले धागे में बांध लिया था. खातून की पसंद का एक सुर्ख सूट भी राकेश ने खरीद दिया था.

शहर में बिताए उन पलों में राकेश खातून को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि वह उस का शौहर है और समय आने पर वह उस के साथ रीतिरिवाज से निकाह कर लेगा. राकेश ने यह भी कहा था कि उस की पहली पत्नी के जितने भी गहने हैं, वे सब अब उस के हैं.

इस के अलावा वह उस की पसंद के और गहने बनवा कर उसे गहनों से लाद देगा. इस तरह शातिर राकेश उसे लूटता रहा और शादी का सपना संजोए खातून लुटती रही. राकेश ने उस दिन भी रात में उस से मिलने का वादा करा लिया था.

शाम को टिल्लू लौटा तो खातून ने राकेश द्वारा दिया सूट दिखाते हुए कहा, “अब्बा, यह सूट देखो, बड़ी चौधराइन ने दिया है. आप को पहन कर दिखाऊं.”

सूट बढ़िया और महंगा था. अब्बू के इशारे पर खातून ने सूट पहन लिया. कढ़ाईदार सुर्ख सूट में खातून नईनवेली दुलहन सी लग रही थी.

रात को सभी सो गए तो खातून राकेश से मिलने उसी खाली मकान में जा पहुंची, जहां वह पहले मिली थी. वहां राकेश पहले से ही मौजूद था. उस समय उस के गले में राकेश के नाम का मंगलसूत्र व बदन पर वही सुर्ख सूट था. वह अप्सरा सी लग रही थी.

राकेश ने उस की सुंदरता की तारीफ की तो खातून ने कहा, “देखो रौकी, तुम मुझे धोखा मत देना. ऐसा हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊंगी. जहर खा कर अपनी जान दे दूंगी.”

“हट पगली, तू ने ऐसा सोचा भी कैसे? और सुन, शहर से तुझे कल मोबाइल ला कर दे दूंगा.” राकेश ने कहा.

अगले दिन राकेश ने खातून को एक मोबाइल ला कर दे दिया. समय गुजरता रहा. राकेश का जब मन करता, वह खातून को मिसकाल कर देता. साइलैंट मोड पर मोबाइल पर आई मिसकाल के इशारे को खातून समझ जाती. उस के बाद शौच का बहाना कर के वह रणवीर जाट के खेत में बने कोठा में पहुंच जाती. वहां दोनों अपनी इच्छा पूरी करते. इस तरह पूरे महीने उन का यह खेल चलता रहा.

कहते हैं, लाख कोशिशों के बाद भी इस तरह के संबंध छिपाए नहीं छिपते. राकेश और खातून के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक रात लघुशंका के लिए अख्तर खां उठा तो उस ने राकेश और खातून को सुनसान पड़े घर में घुसते देख लिया.

हकीकत जानने के लिए छिप कर वह वहीं बैठ गया. घंटे भर बाद दोनों एक साथ बाहर निकले तो अख्तर पूरा मामला समझ गया.

राकेश के बड़े भाई कुलदीप को भी राकेश और खातून के संबंधों को ले कर संदेह हो गया था. एक सुबह खातून नहाने के लिए गुसलखाने में घुसी तो उस के कपड़ों में लिपटा मोबाइल फोन छोटी बहन सलमा के हाथ लग गया. तब खातून ने वह फोन किसी सहेली का बता कर पिंड छुड़ाया. खातून ने यह बात अब्बू को न बताने के लिए सलमा को राजी भी कर लिया.

खातून और राकेश की हरकतों को जान कर अख्तर बेचैन हो उठा. वह पूरी रात इसी उधेड़बुन में लगा रहा. आखिर उस ने यह बात टिल्लू खां को बताने का निश्चय कर लिया. सुबह उठने पर वह टिल्लू को बाहर ले गया और राकेश तथा खातून के बीच पक रही खिचड़ी उसे बता दी.

नाबालिग बेटी की हरकतें जान कर टिल्लू खां चौंका. इस के बाद दोनों ने पूरे मामले पर विचारविमर्श कर के फैसला लिया कि यह बात बड़े चौधरी लालचंद को बताई जाए. टिल्लू ने बहलाफुसला कर खातून से मोबाइल फोन ले कर उसे ईंट से चकनाचूर कर दिया.

अख्तर और टिल्लू खां उसी दिन लालचंद से मिले. उन्होंने कहा, “चौधरीजी, आप का लाडला राकेश मेरी नाबालिग खातून पर डोरे डाल रहा है. वह उस पर गंदी नजर रखता है. हुजूर, मेरी बेटी के साथ कुछ गलत हो गया तो मैं गरीब आदमी बरबाद हो जाऊंगा. आप उसे रोकिए अन्यथा बरबादी की आंच से आप का परिवार भी नहीं बचेगा.”

टिल्लू खां के मुंह से बेटे की करतूतें सुन कर लालचंद को भी चिंता हुई. उन्होंने दोनों को कुछ करने का आश्वासन दे कर भेज दिया.

लालचंद से शिकायत के बाद भी राकेश के व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई. दीपावली नजदीक आ गई थी. मजदूर टिल्लू खां की इतनी औकात नहीं थी कि वह परदेश में चौधरी के परिवार से कोई पंगा लेता. इसलिए टिल्लू और अख्तर ने अपने गांव लौटने में ही अपनी भलाई समझी.

इस के बाद अख्तर और टिल्लू खां ने राकेश से कहा, “भैया, अब दीवाली नजदीक आ गई है. अब हम गांव जाना चाहते हैं, इसलिए हमारी अब तक की मजदूरी का हिसाब कर दो.”

राकेश ने सभी मजदूरों का हिसाब कर दिया. हिसाब हो जाने के बाद मजदूरों ने जाने की तैयारी कर ली.

हिसाब होने व गांव जाने की बात की जानकारी खातून को हुई तो वह परेशान हो उठी. वह राकेश को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना चाहती थी. राकेश के साथ भले ही उस का विधिवत निकाह नहीं हुआ था, पर राकेश ने उसे पत्नी बना रखा था. उसे मंगलसूत्र भी पहनाया था.

खातून के पास राकेश से बात करने का सहारा मोबाइल था, जिसे उस के अब्बा ने ले कर तोड़ दिया था. अब उस के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वह राकेश से मिल कर मन की बात कहती.

उस की नजर में एक ही रास्ता था कि वह तुरंत राकेश से मिल कर इस विषय पर बात करे. एक दिन घर वालों से छिप कर वह राकेश के खेतों की ओर निकल गई. रास्ते में उसे आत्माराम मिला तो उस ने कहा, “अंकल, प्लीज अपना मोबाइल दे दीजिए. मुझे अब्बू से जरूरी बात करनी है.”

आत्माराम ने उसे अपना फोन दे दिया. थोड़ा सा अलग हट कर खातून ने राकेश का नंबर मिला दिया. राकेश ने फोन रिसीव किया तो खातून बोली, “रौकी, मैं नरमा के खेत में जा रही हूं. इस समय मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं. मुझे अब्बू गांव ले जाना चाहते हैं, पर मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. तुम तुरंत मुझ से मिलो, नहीं मिले तो तुम्हें पछताना पड़ेगा.”

खातून की चेतावनी सुन कर राकेश सन्न रह गया. वह जानता था कि खातून जिद्दी है, बिना सोचेसमझे वह किसी भी हद तक जा सकती है. वह उस के खिलाफ कोर्टकचहरी भी जा सकती है.

पुलिस और कानूनी काररवाई की बात जेहन में आते ही राकेश परेशान हो उठा. उस का दिमाग घूम गया. परेशानी के इस आलम में उस ने अपने बड़े भाई कुलदीप को बुला लिया.

दोनों भाइयों ने इस जटिल मुद्दे पर बात की, लेकिन उन्हें कोई राह नहीं सूझी. तब राकेश ने अपने जिगरी दोस्तों अशोक और पूनम शर्मा को खेत में बुला लिया. चारों राकेश के गले आ पड़ी इस परेशानी का तोड़ ढूंढने में जुट गए. अंत में चारों ने परेशानी की मूल खातून को ही मिटाने का भयानक निर्णय ले लिया. उन्होंने इस का तरीका भी खोज लिया.

योजना को अंजाम देने के लिए राकेश ने अशोक को भेज कर अपने एक अन्य दोस्त दीनदयाल जाखड़ की बोलेरो जीप मंगवा ली. इस के बाद राकेश ने नरमा के खेत में खातून को आवाज दे कर कोठा पर बुला लिया. वहां 3 अन्य लोगों को देख कर खातून घबरा गई.

राकेश ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “घबराओ मत खातून, ये तीनों मेरे अपने हैं. आज मैं इन की मौजूदगी में तुम से शादी करूंगा. यहां तुम्हारे घर वाले आ सकते हैं, इसलिए दूसरी जगह चलने के लिए गाड़ी मंगवा ली है. आगे वाले गांव में शादी की पूरी व्यवस्था मैं ने करवा ली है, वहीं चल कर शादी कर लेंगे.”

तब तक अंधेरा घिर चुका था. शादी की बात सुन कर खातून बहुत खुश हुई. अंजाम से अंजान खातून खुशीखुशी चारों के साथ बोलेरो में सवार हो गई. अशोक ने गाड़ी एशिया की सब से लंबीचौड़ी इंदिरा गांधी नहर की पटरी पर दौड़ा दी.

लाखुवाली हैड के नजदीक सुनसान पटरी पर चारों ने गाड़ी रोकी. गाड़ी में रखी रस्सी से उन्होंने खातून के हाथपांव बांध दिए और किसी बंडल की तरह उसे नहर में उछाल दिया. मौत को सामने देख खातून रोईगिड़गिड़ाई और असफल विरोध भी किया, पर नौजवानों के आगे भला वह क्या कर सकती थी. नहर में गिरते ही वह अथाह जल में समा गई.

उधर घर में खातून के न मिलने से सभी घबरा गए. सांझ ढलने तक उस के न लौटने पर टिल्लू और अख्तर गांव की पुलिस चौकी पहुंचे और राकेश पर बेटी को भगाने का शक जाहिर करते हुए एक तहरीर दे दी.

वहां उन की बात नहीं सुनी गई तो वे थाना पीलीबंगा पहुंचे और वहां बेटी के अगवा करने का आरोप लगाते हुए राकेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

नाबालिग बच्ची का मामला था, वह भी सुदूर जिला की रहने वाली थी. मामला काफी संवेदनशील था. इसलिए मामले की जानकारी मिलते ही युवा पुलिस अधीक्षक गौरव यादव ने थानाप्रभारी विजय कुमार मीणा को मामले का खुलासा करने का आदेश दे दिया.

प्रभावी काररवाई का भरोसा मिलने पर रोताबिलखता मजदूर टोला भरतपुर लौट गया. विजय कुमार मीणा ने एएसआई प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में कांस्टेबल अमर ङ्क्षसह, ओम नोखवाल, अमनदीप, लक्ष्मण स्वामी और पीरूमल को शामिल किया गया.

मुखबिर द्वारा पता चला कि राकेश और उस के 3 साथी गांव से लापता हैं, इस से ये चारों शक के दायरे में आ गए. मुखबिरों से यह भी पता चला था कि खातून ने आत्माराम के मोबाइल से राकेश से बात की थी. डीएसपी नारायण दान रतनू भी पुलिस काररवाई पर नजर रख रहे थे.

पुलिस को कोई सफलता मिलती, इस से पहले ही नहर से सटे थाना रावला की पुलिस ने नहर से 14-15 साल की एक लड़की की लाश बरामद की. लाश की शिनाख्त के लिए भरतपुर से टिल्लू खां और उस की बेगम को बुलवा लिया गया. मृतक लड़की के पैरों में 6-6 अंगुलियां होने से मांबाप ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी खातून के रूप में कर दी.

मुखबिरों की इत्तला पर पुलिस ने राकेश को पकड़ लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के साथियों के नाम बता दिए. पुलिस ने पीलीबंगा के मुंसिफ कोर्ट में उसे पेश कर पूछताछ के लिए 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

इस बीच पुलिस ने कुलदीप, राकेश, अशोक और पूनम शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी से विस्तार से पूछताछ कर के उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

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