दो दशक पहले तक भारत में स्कूल की पढ़ाई के साथ अतिरिक्त ट्यूशन की आवश्यकता बच्चों को नहीं होती थी लेकिन आज बच्चा स्कूल में दाखिले के साथ ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगता है. शिक्षण संस्थानों की नाकामयाबी और निकम्मापन न सिर्फ पेरैंट्स की जेब पर भारी पड़ रहा है बल्कि बच्चों की सेहत व मानसिक दशा को बिगाड़ भी रहा है. भारत में छोटेबड़े सभी शहरों और अब तो गांवोंकसबों में भी स्कूल की पढ़ाई के बाद बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास दोतीन घंटे बिताना आम है.
हर मातापिता अपने बच्चे को क्लास में अव्वल देखना चाहते हैं. उन की महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का नाजायज दबाव बच्चों के ऊपर बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ टीचर्स, चाहे सरकारी स्कूल के हों या प्राइवेट स्कूल के, को अतिरिक्त पैसे की हवस ने इतना लालची बना दिया है कि वे स्वयं बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं, वरना क्लास में फेल कर देने की धमकी देते हैं. इस तरह वे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताडि़त करते रहते हैं. प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने में पैसा खूब है. जितनी एक बच्चे की महीने की स्कूल फीस होती है, लगभग उतना ही पैसा ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर ले लेता है. विषय भी सारे नहीं पढ़ाता. अधिकतर साइंस, गणित और इंग्लिश के ट्यूशन के लिए ही इन के पास बच्चे जाते हैं.
एक पीढ़ी पहले वाली जमात की बात करें तो उस वक्त भी 8वीं या 9वीं कक्षा के बाद ही ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी, वह भी उन विषयों में जिन में बच्चा कुछ कमजोर होता था ताकि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में पास हो जाए. मगर वर्तमान पीढ़ी तो पहली और दूसरी कक्षा से ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगी है. नन्हेनन्हे बच्चे स्कूल में लंबा समय गुजारने के बाद दोतीन घंटे ट्यूटर के पास भी बिताते हैं. नतीजा, बच्चों के पास खेलनेकूदने का समय ही नहीं बचा है. पूरे वक्त पढ़ाई का बो झ उन पर हावी रहता है. रोहिणी दिल्ली के युवाशक्ति मौडल स्कूल की वाइस प्रिंसिपल दिव्या वत्स इस मामले में कहती हैं,
‘‘जहां तक प्राइमरी लैवल की बात है तो आजकल स्कूलों में बच्चों के लिए पढ़ाई के अलावा भी ढेर सारी ऐसी गतिविधियां कराई जाती हैं, जिस से उन का समग्र विकास हो सके. ऐसी गतिविधियों से उन्हें खेलखेल में सीखने का मौका मिलता है और स्कूल में ही पारिवारिक माहौल का भी एहसास होता है. ‘‘मेरा यह मानना है कि यदि कोई बच्चा क्लास में अपने टीचर को ध्यान से सुनता है और घर पर पढ़ाई की अच्छे से रिविजन करता है तो उसे स्कूल के बाद निजी ट्यूशन क्लास में भेजने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.
‘‘स्कूली टीचर के साथ मातापिता को भी अपने बच्चे में पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. इस के अलावा उस में रचनात्मक शौक विकसित करने के साथसाथ परिवार के साथ अच्छा समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’ मदर्स प्राइड स्कूल का 6 साल का अंकुर 2 बजे स्कूल से लौटता है. उस की मम्मी स्कूल यूनिफौर्म बदले बिना उस को झटपट खाना खिला कर स्कूल यूनिफौर्म में ही ट्यूशन टीचर के घर भेज देती हैं. दो घंटे वहां पढ़ने व होमवर्क करने के बाद जब अंकुर साढ़े 6 बजे थकामांदा लौटता है तो फिर पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने का न तो टाइम बचता है और न ही ताकत.
आते ही सो जाता है. 10 बजे उस के पापा रात के खाने के लिए उस को जबरदस्ती उठाते हैं. अकसर अंकुर ट्यूशन पढ़ने नहीं जाना चाहता. स्कूल से लौट कर वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ घर के सामने वाले पार्क में खेलना चाहता है. कभी टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून शो देखना चाहता है, कभी वीडियो गेम खेलना चाहता है, लेकिन मम्मी के आगे उस की एक नहीं चलती है. ट्यूशन क्लास न जाने के लिए अंकुर कभीकभी पेटदर्द का भी बहाना करता है, लेकिन उस की मम्मी गरम पानी से चूरन की गोली खिला कर उसे ट्यूशन के लिए रवाना कर देती है. अंकुर अभी कक्षा 2 में है.
शहर के अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है. उस की स्कूल की फीस 3,000 रुपए महीना है और उस की मां 4,000 रुपए हर महीने ट्यूशन टीचर को देती है, जो उस का सारा होमवर्क और रिवीजन वर्क करवाती है. अंकुर की मां हर वक्त उसे सम झाती है कि उसे क्लास में फर्स्ट आना है. इसी क्लास में ही नहीं, बल्कि आगे भी हर क्लास में फर्स्ट आना है और बड़े हो कर पापा की तरह इंजीनियर बनना है. नन्हा सा बच्चा जो अभी इंजीनियर होने का मतलब भी नहीं सम झता, पढ़ाई के नाम पर उस से उस की सारी आजादी और अधिकार छीन लिए गए हैं. बैडमिंटन रैकेट और बैटबौल डब्बे से बाहर नहीं निकलते. खेलने के लिए उस के पास सिर्फ संडे का आधा दिन होता है. बाकी दिन सुबह से शाम तक वह स्कूल यूनिफौर्म में ही रहता है. वह मन लगा कर पढ़े,
इस के लिए उस की मां चौकलेट, चिप्स, मोमोज, पिज्जा आदि जो वह खाने के लिए मांगता है, सब मंगा कर देती है. यही वजह है कि अंकुर थुलथुल होता जा रहा है. आज कुछ पब्लिक स्कूलों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्कूलों में शिक्षा देने का काम बड़े ही चलताऊ तरीके से हो रहा है. गलीगली कुकुरमुत्तों की तरह इंग्लिश स्कूल खुले हुए हैं. अधिकतर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के पास बुनियादी साधन नहीं हैं. स्टूडैंट्स के अनुपात में टीचर बहुत कम हैं. एक शिक्षक पर कई कक्षाओं की जिम्मेदारी होती है. देखा जाता है कि जो टीचर सुबह नर्सरी क्लास लेती है वही हाफटाइम के बाद 9वीं या 10वीं के बच्चों को पढ़ा रही है.
कम सैलरी, साधनों की कमी और व्यवस्थागत कमियों की वजह से ऐसे शिक्षक अपने दायित्व के प्रति उदासीन रहते हैं. ऊपरी कमाई का बड़ा लालच स्कूलों में टीचर्स बच्चों पर दबाव डालते हैं कि वे उन के घर आ कर उन से ट्यूशन लें. वही शिक्षक, जो कक्षा में गंभीर नहीं होते, प्राइवेट ट्यूशन में बच्चे पर काफी ध्यान देते हैं क्योंकि यहां ऊपरी कमाई का लालच है. अयान शेख कक्षा 8 का छात्र है. वह स्कूल की छुट्टी के बाद हफ्ते में 3 दिन दो घंटे गणित और विज्ञान के ट्यूशन के लिए स्कूल के ही टीचर फ्रेडरिक फैंथम के घर जाता है और 3 दिन दो घंटे इंग्लिश और हिस्ट्रीज्योग्राफी के ट्यूशन के लिए मिसेज कामता कौशल के घर जाता है. उस के पिता हर माह 6 हजार रुपए उस के प्राइवेट ट्यूशन पर खर्च करते हैं और साढ़े 3 हजार रुपए स्कूल की फीस देते हैं. अयान कहता है कि स्कूल में तो ये टीचर्स कुछ पढ़ाते नहीं हैं पर घर पर बहुत अच्छी तरह विषय सम झाते हैं.
अगर स्कूल में ही अच्छी तरह पढ़ा दें तो ट्यूशन की जरूरत न पड़े. अयान की क्लास के अनेक बच्चे इन दोनों टीचर्स के घर जा कर ट्यूशन पढ़ते हैं. सम झ सकते हैं कि ऐसे टीचर्स की ऊपरी कमाई कितनी ज्यादा है. संयुक्त परिवार का टूटना आरंभिक स्तर पर बच्चों को स्कूल के अलावा घर में भी थोड़ेबहुत मार्गदर्शन की जरूरत होती है. लेकिन एकल परिवार में यदि मांबाप दोनों नौकरीपेशा हैं तो उन के पास वक्त ही नहीं है कि दोतीन घंटे बैठ कर वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें. अगर पिता नौकरीपेशा है और मां गृहिणी है और उस की शिक्षा इतनी नहीं है कि वह बच्चे को पढ़ा सके तो भी समस्या उत्पन्न होती है. ट्यूशन कराना स्टेटस सिंबल छोटे बच्चों को ट्यूशन कराना आज स्टेटस सिंबल भी बन गया है.
किस का बच्चा कौन से महंगे स्कूल में पढ़ रहा है और किस महंगे ट्यूटर से ट्यूशन ले रहा है, इस को बताने में लोगों को बहुत गर्व महसूस होता है. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों की ट्यूशन लगा देता है. ‘मिसेज मेहरा अगर अपने बेटे को मीनाक्षी मैडम के ट्यूशन क्लास में पढ़वा रही हैं तो हमारे पास पैसे की कमी है क्या जो हम अपनी बेटी को उन की ट्यूशन क्लास में नहीं भेज सकते?’ कालोनी और फ्लैट कल्चर में रह रहे लोगों की यह सोच आज नर्सरी के बच्चे को भी ट्यूशन के चक्रव्यूह में फंसा रही है. ट्यूशन लगाना पेरैंट्स के लिए आज एक सामाजिक उपलब्धि लगती है चाहे उन के बच्चे को सब आता हो. काफी बच्चों के मातापिता तो सिर्फ इसलिए ट्यूशन भेजते थे ताकि वे शाम को महल्ले के बच्चों के बीच खेलने न जाएं. अंशिका ने अपनी 7 साल की बेटी की ट्यूशन लगवा दी है,
जबकि वे खुद उस का सारा होमवर्क करवा सकती हैं. अभी तक करवा ही रही थीं. उन से पूछा तो बोलीं, ‘अरे ट्यूशन की जरूरत तो नहीं थी, मैं तो बेटी को खुद पढ़ा लेती हूं, मगर साथ वाली बड़ा टोकती हैं. उन की बेटी भी ट्यूशन जाती है. मैं ने सोचा कि कहीं ताना न देने लगे कि- अरे आप की बेटी ट्यूशन नहीं जाती? उन की बात से ऐसा लगेगा जैसे हम आर्थिक रूप से उन से कमजोर हैं. इसलिए इस की ट्यूशन लगवा दी. कुछ मातापिता की यह हार्दिक इच्छा होती है कि जो वे जीवन में नहीं बन पाए, उन का बच्चा वह अवश्य बने (भले ही उस की उस क्षेत्र में रुचि न हो). ऐसे लोग प्रतिमाह पढ़ने वाले ट्यूशन फीस के अतिरिक्त भार के लिए और अधिक मेहनत कर लेते हैं पर बच्चे को ट्यूशन कराने से पीछे नहीं हटते हैं. द्यमातापिता बच्चों को खुद पढ़ाएं आरिफ एक प्रतिष्ठित स्कूल में बायोलौजी के टीचर हैं.
उन्होंने अपने बेटे के लिए गणित और विज्ञान की ट्यूशन तब लगवाई जब वह 9वीं कक्षा में आया. उस से पहले वे खुद ही उस का होमवर्क करवाते रहे हैं. नर्सरी और केजी के बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजे जाने का वे विरोध करते हैं. आरिफ कहते हैं, ‘‘यदि आप स्वयं अपने बच्चों को घर पर पढ़ा सकते हैं तो ट्यूशन टीचर की जरूरत नहीं है और इतने छोटे बच्चों को तो ट्यूशन के लिए भेजना ही नहीं चाहिए. स्कूल में चारपांच घंटे की पढ़ाई उन के लिए पर्याप्त है. बच्चों में आत्मविश्वास जगाने और आत्मनिर्भरता सिखाने की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चों का दिमाग इतना सक्रिय होता है कि क्लास में उन्हें जो कुछ भी बताया जाता है उसे शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं. मेरी राय में यदि आप उन्हें घर पर समय दे सकते हैं तो छोटी कक्षा में ट्यूशन के लिए हरगिज न भेजें.’’
आरिफ चूंकि खुद एक टीचर हैं तो वे बच्चों की पढ़ाई के प्रति गंभीरता और लापरवाही को भलीभांति सम झते हैं. वे कहते हैं, ‘‘बच्चे की ग्रहणशक्ति और स्कूल में टीचर्स द्वारा विषय को पढ़ाने के तरीके पर निर्भर करता है कि उस को स्कूल की पढ़ाई के अलावा भी पढ़ाए जाने की आवश्यकता है अथवा नहीं. कुछ बच्चे किसी बात को तेजी से सीख लेते हैं तो कुछ दो या चार बार पढ़ने के बाद ही अध्याय के मूल सिद्धांत को सम झ पाते हैं तो इस का सटीक जवाब है कि यदि बच्चे को हर अध्याय का कौन्सैप्ट सम झ में आ रहा है तो उस को ट्यूशन की कोई आवश्यकता नहीं है.’’
बच्चों को समय दें शेफाली अस्थाना के दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं. शेफाली सरकारी नौकरी में हैं. वे शाम को घर आने के बाद स्वयं दोनों बच्चों को पढ़ाती हैं. छोटे बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास भेजने की बढ़ती रवायत पर उन का कहना है, ‘‘पहले बच्चों की माताएं घर पर रहती थीं, यदि पिता बिजी हुए तो वे बच्चों को पढ़ाती थीं. मैं स्वयं अपने बच्चों को पढ़ाती हूं जबकि मैं नौकरी भी करती हूं. आजकल मातापिता बच्चों को समय नहीं देना चाहते. वे उन के ऊपर पैसा खर्च करने को तैयार हैं पर उन के पास घंटेदोघंटे बैठ कर यह नहीं जानना चाहते कि वे पढ़ाई में कैसे हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे और बच्चे घर के किसी भी सदस्य से पढ़ लिया करते थे. ऐसा अब नहीं है.
‘‘हम भाईबहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की मगर कभी किसी से प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ी. हम सब को शाम को पिताजी पढ़ाते थे. अगर वे किसी काम से शहर से बाहर होते थे तो ताऊजी पढ़ाते थे. पहले के पिता अपने बच्चों की तरक्की स्वयं देखते थे क्योंकि उन के पास आज की पीढ़ी की अपेक्षा पैसा कम होता था और वे उसे बरबाद नहीं करना चाहते थे, बल्कि संभाल कर चलते थे. पहले कक्षाओं में शिक्षक भी मन लगा कर पढ़ाते थे और जिन बच्चों को कुछ नहीं सम झ में आता था, वे स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें अतिरिक्त समय दे दिया करते थे. आज के शिक्षकों में यह भावना नहीं है.
वे सीधे ट्यूशन लेने को कहते हैं. मातापिता भी शिक्षक के कोप से बचने के लिए या उस की निगाह में अपने बच्चे का महत्त्व बढ़ाने के लिए उन से ही ट्यूशन लगवा देते हैं. ‘‘आज का समय प्रतिस्पर्धा का है, इसलिए हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा अधिक से अधिक अंक लाए और इसीलिए वे छोटी कक्षा से ही उस को ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर देते हैं. जो लोग संयुक्त परिवार से अलग हो चुके हैं और पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उन के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं रह गया है. उन का घर और बच्चे सब नौकरों और प्राइवेट ट्यूटर के सहारे रहते हैं.’’