गरमी की छुट्टियों में मैं मम्मी के साथ अपनी मौसी के घर जब भी दिल्ली जाती तो रास्ते में बड़ेबड़े मकान दिखाई देते. शीशे की खिड़कियों पर डले परदे और बालकनी में लगे झूले, कुरसियां, पौधे, हैंगिंग लाइट और बड़ेबड़े सुंदर से मेन गेट और बाहर खड़े गार्ड्स व चमकती गाडि़यां दिखती थीं. मैं हमेशा सोचती कि इन मकानों में लोग अंदर कैसे रहते होंगे. इन मकानों को बस फिल्मों में ही देखा था और वैसी ही कल्पना की थी. पता नहीं, एक उत्सुकता सी थी हमेशा इन बड़े मकानों को अंदर से देखने की.

हमारे घर के सामने रहने वाले गुप्ता अंकल ने अपना घर बेच दिया और रातोंरात ही घर को ढहा दिया गया. अब मलबा ही मलबा था चारों ओर. दोचार दिनों बाद ही मलबा उठाने के लिए मजदूर भी आ गए. 10 दिनों में ही 5 सौ गज का प्लौट दिखाई देने लगा. मैं रोजाना अपने स्कूल से आ कर कमरे की खिड़की से मजदूरों को काम करते देखती. जब मम्मी खाने के लिए आवाज लगातीं, तभी मैं खिड़की से हटती. एक दिन स्कूल से आ कर मैं ने देखा कि प्लौट पर बहुत गहमागहमी है. कई लोग सिर पर कैप लगाए दिखाई दिए जो इंचीटेप से जमीन माप रहे थे. मम्मी ने बताया कि ये कैप लगाए लोग इंजीनियर हैं जो घर का डिजाइन बनाएंगे. किन्हीं अरोड़ा साहब ने यह घर खरीदा है और अब यहां बड़ा सा महलनुमा घर बनेगा. मैं सुन कर बड़ी खुश हो गई और सोचने लगी कि अब तो शायद मैं यह बड़ा सा मकान अंदर से देख पाऊं.

कभी तो कोई मौका मिलेगा अंदर जाने का. अब तो बड़े ही जोरशोर से काम चलने लगा. बहुत शोर रहने लगा. अब हमारे घर के अंदर तक आवाजें आती थीं. ईंटें, सीमेंट, लोहे के सरिये, मशीनें चलती रहतीं, मजदूर जोरजोर से बातें करते यानी खूब चहलपहल रहती थी रात तक. करीब 2 साल तक काम चला और मम्मी ने जैसा कहा था वैसा ही महलनुमा सुंदर सा मकान तैयार हुआ. आज मेरी स्कूल की छुट्टी थी और मैं ने देखा कि इस मकान के बाहर बड़ा सा शामियाना लगा था और पूरा घर शामियाने से चारों ओर से ढका हुआ था. मैं दौड़ कर मम्मी के पास गई तो पापा को मम्मी से बात करते सुना कि आज अरोड़ा साहब के मकान का मुहूर्त है. तभी यह शामियाना लगा है.

तब मैं ने उछलते हुआ पापा को टोका और पूछा, ‘‘फिर तो हम भी जाएंगे न, आखिर पड़ोसी हैं हम इन के?’’ पापा मुसकराए, बोले, ‘‘अरे नहीं बेटा, हमें नहीं बुलाया है उन्होंने. हमें तो जानते भी नहीं हैं ये लोग.’’ सुन कर मैं उदास हो गई और मन ही मन कल्पना करने लगी कि कैसे इस घर के लोग पार्टी करेंगे, घर अंदर से कैसा होगा? सब मजे कर रहे होंगे? बच्चे भागमभाग कर रहे होंगे? इतना बड़ा मकान है यह. काश, ये अरोड़ा अंकल हमें भी बुला लेते. मैं खिड़की के पास आ कर खड़ी हो गई और हसरतभरी निगाहों से मकान की तरफ देखने लगी. रात हो चली थी.

बस, लाइटें ही लाइटें थीं मकान की मंजिलों और शामियाने में और खूब तेज म्यूजिक बज रहा था. कुछ ज्यादा दिख नहीं पा रहा था कि अंदर क्या चल रहा है. दूर तक गाडि़यां दिख रही थीं. मेहमान खूबसूरत कपड़ों में अंदर जाते दिख रहे थे. मम्मी ने मु झे खाना खाने को बुलाया पर मेरा मन तो अरोड़ा अंकल के मकान के अंदर जाने को मचल रहा था. आज अपनी पसंद का खाना भी अच्छा नहीं लगा मु झे. रातभर सामने पार्टी चलती रही. मम्मी, पापा और मैं सो गए. सुबह मैं तैयार हो कर स्कूल चली गई. वापस आ कर खिड़की से मकान देखने लगी. मकान बाहर से सुंदर था पर घर में कोई दिखाई नहीं देता था. बस, गाडि़यां आतीजाती दिखती थीं कभीकभी. ज्यादातर बड़ा सा गेट बंद ही रहता था. इस मकान को देखतेदेखते अब मेरा मन भी उकता गया था. मैं अब अपना समय अपनी पढ़ाई में देने लगी.

इस मकान में अरोड़ा अंकल को आए पांचछह साल हो गए थे. मैं आज जब कालेज से वापस आ रही थी तो अरोड़ा अंकलजी के घर पर लाइटें लगी देखीं. रात को पापा ने बताया कि अगले महीने अरोड़ा अंकल के बेटे की शादी है. सुना है, बड़े ही अमीर घर से बहू आ रही है. ‘‘तो अभी से इतनी लाइटें क्यों लगा दीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘पूरे महीने फंक्शंस होंगे इन के यहां,’’ मम्मी बोलीं. ‘‘पर हमें क्या? हमें कौन सा बुलाएंगे?’’ मैं ने चिढ़ते हुए कहा. एक महीना यों ही निकल गया. बैंड बजने लगे. शहर के सभी अमीर लोग घर के बाहर इकट्ठे थे. घुड़चढ़ी हो रही थी. घर की सजावट से ले कर मेहमानों और अरोड़ा अंकलआंटीजी के कपड़े सब देखने लायक थे. बरात चली गई और चमकते हुए घर में शांति पसर गई. सुबह 4 बजे बैंडबाजा सुनाई दिया. मम्मी और मैं आंखें मलते हुए खिड़की पर पहुंचे. डोली आ गई थी. लंबी सी चमकती हुई गाड़ी रुकी और परी जैसी बहू उतरी. अरोड़ा आंटी अपने सभी रिश्तेदारों और मेहमानों के साथ अपने बहूबेटे को बड़े से गेट के अंदर ले गईं और गेट बंद हो गया. चारों ओर चुप्पी फैल गई और मम्मी वापस जा कर सो गईं. मैं अपने बैड पर लेटे हुए सोचने लगी कि अंदर कैसे सब बहू पर वारिवारि जा रहे होंगे. ढेरों गिफ्ट मिले होंगे बहू को. महल की रानी बन कर रहेगी यह तो. क्या समय है इस लड़की का.

नौकरचाकर आगेपीछे घूमेंगे इस के. गाड़ीबंगला, पैसा, शानोशौकत और क्या चाहिए एक लड़की को. इतना सुंदर और बड़ा घर यानी जो भी फिल्मों में देखा था उसी की कल्पना करते और ये सब सोचतेसोचते मैं सो गई. कई दिनों तक सामने गाडि़यां आतीजाती रहीं. कई दिनों बाद बाजार में अचानक से हमें सामने वाली गुप्ता आंटी मिलीं. हालचाल पूछने के बाद बोलीं, ‘‘हमारे जाने के बाद अब तो अरोड़ाजी बन गए हैं आप के पड़ोसी? पिछले साल शादी थी उन के बेटे की, आप लोग भी गए होंगे?’’ ‘‘नहींनहीं, आंटी. हम कहां गए थे. हमें थोड़ी बुलाया था और हम से तो वे लोग आज तक बोले भी नहीं. बस, गाड़ी आतीजाती दिखती हैं, फिर गेट बंद,’’ मैं ने तपाक से जवाब दिया. ‘‘ओह, वैसे मैं भी शादी में तो जा नहीं पाई थी, बस, थोड़ी देर के लिए ही इन के घर गई थी बहू की मुंहदिखाई के लिए. बड़े ही अमीर घर से बहू लाए हैं अरोड़ा साहब और ऊपर से इतनी सुंदर, सुशील और खूब पढ़ीलिखी. इन के पूरे परिवार में कोई भी इतना पढ़ालिखा नहीं है. बस, क्या ही बताऊं, समय ही बलवान है इन लोगों का तो. वैसे,

हम ने भी अपनी बेटी शिखा का रिश्ता तय कर दिया है. अगले महीने ही शादी है. आप सब को भी आना है. शादी का कार्ड देने आऊंगी मैं,’’ गुप्ता आंटी खुश होती हुई बोलीं. ‘‘हांहां जरूर आइएगा. यह तो बड़ी खुशी की बात है. अब चलते हैं, काफी देर हो गई है. आप भाईसाहब के साथ आइएगा हमारे घर. उन से मिले भी काफी समय हो गया है,’’ मम्मी ने गुप्ता आंटी से कह कर विदा ली और हम बाजार में आगे निकल गए. थोड़े दिनों बाद ही गुप्ता आंटी हमारे घर अपनी बेटी शिखा की शादी का कार्ड देने आईं. मम्मी को मु झे और पापा को साथ लाने का कह जल्दी ही चली गईं. मैं पापामम्मी के साथ शिखा की शादी में पहुंची. दूर से ही हौल में गुप्ता आंटी ने स्टेज से हमें देखा और अपनी ओर आने का इशारा किया. हम तीनों गुप्ता आंटी के पास पहुंचे. तभी आंटी ने कीमती से लहंगे में पास ही खड़ी खूबसूरत सी लड़की को नजदीक बुलाया और मेरी तरफ देखते हुए बोलीं, ‘‘निया बेटे, इस से मिलो यह शीनू है. तुम्हें एक बार देखना चाहती थी और तुम्हारे घर के सामने वाले घर में ही रहती है और शीनू, यह निया है, अरोड़ा अंकल की बहू.’’ ‘‘अच्छा, सच में,’’ निया ने कहा. मेरे कुछ कहने से पहले ही निया ने मु झे गले लगा लिया. ‘‘आप तो बहुत ही प्यारी हो, शीनू. आओ न कभी हमारे घर. खूब बातें करेंगे,’’ निया ने कहा. ‘‘हांहां, भाभी. जरूर. जल्दी ही आती हूं आप के यहां. आप अपना मोबाइल नंबर दे दें,’’ मैं ने कहा. घर वापस आ कर मैं तो उछल रही थी. मेरी तो खुशी का कोई ठिकाना न था.

मेरा तो मानो कोई सपना सच हो गया. अब तो मैं बड़े आराम से उस मकान में अंदर जा सकती हूं और अगर निया भाभी मेरी दोस्त बन गईं तो फिर तो मजा ही आ जाएगा. मैं रोज इस बड़े से मकान में जा पाऊंगी. ‘‘अरे, शादी से आ कर बड़ी ही खुश नजर आ रही हो तुम. क्या बात है? कपड़े बदल लो और सो जाओ. सुबह कालेज भी जाना है. एग्जाम्स भी हैं तुम्हारे,’’ मां ने कमरे में मु झे कौफी पकड़ाते हुए कहा. झटपट दिन बीत गए और एग्जाम्स भी नजदीक आ गए. मेरा सारा टाइम कालेज और पढ़ाई में ही बीतने लगा. खिड़की से अरोड़ा अंकल का मकान देखे तो बहुत समय हो गया था. आज मेरा आखिरी पेपर था. कालेज से वापस आते समय मैं सोच रही थी कि कल फ्री हो कर कुछ अच्छा सा गिफ्ट ले कर निया भाभी से मिलने जाऊंगी. आते ही मैं ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मा, कल मैं निया भाभी से मिलने सामने चली जाऊं?’’ ‘‘चली जाना. एक बार पापा से भी फोन कर के पूछ लो. सुबह ही भोपाल के लिए निकल गए हैं और अब एक हफ्ते बाद आएंगे. तुम्हारे पेपर का भी पूछ रहे थे. वैसे, पेपर कैसा हुआ तुम्हारा? जाने से पहले एक बार फोन भी कर लेना निया को. अच्छी लड़की है निया. कोई एटीट्यूड नहीं था लड़की में,’’ मम्मा ने कहा. ‘‘पेपर तो बहुत अच्छा हुआ है, मम्मा. फिकर नौट. अभी पापा को बताती हूं और हां, फोन कर के ही जाऊंगी निया भाभी के घर,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

कल मैं इस बड़े से मकान को अंदर से देख पाऊंगी. यह सोचसोच कर मैं बहुत ही खुश थी. सुबहसवेरे गाड़ी के हौर्न से मेरी नींद खुली. मम्मी घर में दिखाई नहीं दीं. मैं भाग कर अंदर खिड़की पर गई. देखा तो अरोड़ा अंकलजी के मकान के बाहर चारपांच पुलिस की गाडि़यां खड़ी थीं. भीड़ ही भीड़ थी सामने. मीडिया की गाडि़यां और शोर ही शोर था. तभी मम्मी ने मु झे आवाज लगाई. ‘‘आप कहां थीं, मम्मा? क्या हुआ है नीचे? यह पुलिस क्यों आई है? क्या हुआ है अरोड़ा अंकलजी के घर में?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बेटे, निया भाभी नहीं रहीं. पता नहीं कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में? नीचे सब बता रहे हैं कि बहुत तंग करते थे ससुराल वाले उस लड़की को. इतना दहेज लाई थी, पढ़ीलिखी थी, सुंदर थी. फिर भी उसे दहेज के लिए मारतेपीटते थे. अरोड़ा अंकल के बेटे को निया पसंद नहीं थी और पता चला है कि वह पहले से ही शादीशुदा था.

संतान न होने का ताना देते थे. मतलब हर तरह से परेशान थी वह और आज उस ने अपनी जान ही ले ली,’’ मम्मी ने सुबकते हुए बताया. मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे. मु झे निया भाभी याद आ रही थीं. मैं ने अपने मोबाइल पर उन की डीपी देखी. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्यारी सी, खूबसूरत सी लड़की अब दुनिया में नहीं थी. बड़े से मकान को अंदर से देखने का मेरा चाव एक झटके में ही खत्म हो गया. मकान बड़ा नहीं, हमारी सोच बड़ी होनी चाहिए. हमारा दिल बड़ा होना चाहिए. इतनी चमकदमक के पीछे कितना अंधकार है. निया भाभी के लिए लाए गिफ्ट को टेबल पर रख मैं ने खिड़की को बंद कर दिया.

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