वर्ष 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट में पहली बार कानूनी तौर पर विवाह में तलाक यानी संबंधविच्छेद का प्रावधान आया. वर्ष 1976 में इस में संशोधन हुआ और आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान जुड़ गया. इस के बाद से ही अदालतों में तलाक के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में तलाकशुदा लोगों की संख्या 13.6 लाख है. यह आंकड़ा बताता है कि तलाकशुदा लोगों में महिलाओं की संख्या ज्यादा हैं. इस का अर्थ यह है कि तलाकशुदा पतियों ने दूसरी शादी कर ली.

वर्ष 2011 के बाद जनगणना अभी नहीं हुई है. अनुमान है कि 2023 तक पहुंचतेपहुंचते तलाकशुदा लोगों की संख्या 23 लाख से अधिक हो चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि तलाक के लिए मुकदमे दाखिल करने वालों में पुरुषों की संख्या 54 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 45 प्रतिशत के करीब है.

तलाक के ज्यादातर मामले पुरुषों की तरफ से आते हैं. तलाक के बाद पुरुष ही सब से ज्यादा शादी करते हैं. तलाक के बाद महिलाओं का घर बसाना मुश्किल होता है. इस की प्रमुख वजह यह भी होती है कि तलाक के बाद भी ज्यादातर मामलों में बच्चे अपनी मां के साथ रहते हैं.

दूसरी शादी में बच्चे सब से बड़ी बाधा होते हैं. पुरुष तलाकशुदा महिला के साथ तो शादी करने को तैयार रहता है पर यदि उस के बच्चे हों तो वह उस महिला के साथ दूसरी शादी करने से बचता है. इस कारण से तलाकशुदा महिलाओं के सामने शादी करने के अवसर कम हो जाते हैं.

इस का अर्थ यह है कि तलाक के बाद महिलाओं का जीवन केवल गुजारा भत्ता पर नहीं चलता. ऐसे में महिलाओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि पतिपत्नी में से केवल एक को नौकरी करनी चाहिए और एक को घर का काम करना चाहिए.

अब महिलाओं के लिए भी जरूरी है कि वे घर के काम से पहले अपने को आत्मनिर्भर बनाएं. घर के काम के लिए नौकरानी रख लें. आजकल वैसे भी किचन और घर में काम करने की इतनी मशीनें आ गई हैं जिन से घर का काम सरल हो गया है. फूड सैक्टर में इतनी तरक्की हुई है कि खाना बनाना पहले कि तरह कठिन नहीं रह गया है.

ऐसे में महिलाओं को इस का लाभ उठाना चाहिए. वे खुद को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाएं. जिस से वक्त पड़ने पर वे अपने फैसले खुद कर सकें, उन को गुजारा भत्ता पर निर्भर न रहना पड़े.

जैसे हालात हैं उसे देखते लगता है कि समाज पुरुष प्रधानता की ओर वापस जा रहा है. महिलाओं से कहा जा रहा है कि वे पूजापाठ, व्रत और तप करे. घर, परिवार पति की सेवा करे. तलाक को समय की मार मान कर स्वीकार कर लें और गुजारा भत्ता पर बुढ़ापा काट दें. अब फैसला औरतों के हाथ है कि वे आत्मनिर्भर हो कर आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती हैं या फिर गुजारा भत्ता पर जीना चाहती हैं. आत्मनिर्भर होने के लिए जरूरी है कि अपने हुनर को पहचानें और खुद को अपने पैरों पर खड़ा करें. तभी तलाक के बाद भी सम्मानपूर्ण जीवन जी सकती हैं.

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